हिन्दी सिनेमा की पहली फिमेल सुपर स्टार, जिन्होंने किया 300 से भी ज्यादा फिल्मों में काम
दशकों तक छाई रहीं लड़कियों की आइकॉन 'रूप की रानी'
श्रीदेवी शनिवार की रात साढ़े ग्यारह बजे हार्ट अटैक से दुबई में भले चल बसीं, लेकिन वह अपने जाने के बाद भी करोड़ों फिल्म दर्शकों और अपने चाहने वालों के दिलों पर राज करती रहेंगी। वह लगभग तीन दशक तक फिल्मों में छाई रहीं। वह 54 साल की थीं, जबकि उनका फिल्मी सफर 50 साल का रहा। चार साल से ही चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में वह काम करने लगी थीं। इस बेहतरीन अदाकारा के जाने का 'सदमा' फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ उन लोगों को भी लगा है, जो इनकी फिल्में देखकर बड़े हुए थे...
"वकील पिता की संतान श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त,1963 को तमिलनाडु के गांव मीनमपट्टी में हुआ था। उनका बचपन का नाम 'बेबी श्री अम्मा अयंगर' था। उनकी पहली फिल्म 'रानी मेरा नाम' थी। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में दक्षिण की चार भाषाओं तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ में काम किया। 1967 में उनकी पहली फिल्म आई 'टुनाईवान', जिसमें उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट की भूमिका निभाई थी। उस वक्त उनकी उम्र 4 साल थी।"
चार साल की उम्र से ही चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में 'बेबी श्रीदेवी' नाम से फिल्मी सफर पर निकल पड़ीं पद्मश्री श्रीदेवी का 54 साल की उम्र में शनिवार की रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे हार्ट अटैक से दुबई में निधन हो गया। दुबई वह मोहित मारवाह के शादी समारोह में सपरिवार शामिल होने गई थीं। पति बोनी कपूर निधन से पूर्व भारत लौट आए थे। सूचना पर वह दोबारा दुबई गए। 1991 में जब उनके पिता का निधन हुआ, तब भी विदेश में थीं। अंतिम क्रिया के लिए भारत आईं, फिर शूटिंग के लिए लंदन लौट गईं। उनको लोग 'चांद का टुकड़ा', 'चांदनी', 'चंद्रमुखी', 'हवा हवाई' भी कहा करते थे।
श्रीदेवी की फिल्म 'नगीना' गोल्डन जुबली फिल्म थी। यह एक ब्लॉकबस्टर फिल्म रही। श्रीदेवी में ऐसी कई खूबियां थीं, जो उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करती हैं। जहां उन्होंने फिल्में नाज़ुक-भोली-मासूम लड़की का रोल किया वहीं उन्होंने लड़कों का भी रोल किया और लड़कों के कैरेक्टर में ऐसी उतरीं कि यह पता लगा पाना मुश्किल हो पहली बार में कि ये रोल करने वाली सचमुच की कोई लड़की है। फिल्मों में पहली बार आधी साड़ी पहनने का ट्रेंड भी श्रीदेवी ने ही शुरू किया।
"श्रीदेवी अपने कैरेक्टर में इतना भीतर तक घुस जाती थीं, कि रोल के समय आंसू बहाने के लिए उन्होंने कभी ग्लिसरीन का इस्तेमाल नहीं किया।"
वैसे तो श्रीदेवी पर सब रंग खिलते थे, लेकिन उनका पसंदीदा रंग था सफेद। वह लड़कियों की आइकॉन थीं। जब से श्रीदेवी हिन्दी सिनेमा से जुड़ीं और आज तक उनकी खूबसूरती उदाहरण के तौर पर रखी जाती रही। अपेन अधिकतर गानों में वे कम से कम चार बार ड्रेस बदलतीं थीं, सिर्फ इसलिए कि दर्शकों को भीतर नयापन बना रहे।
श्रीदेवी ही वो खास अदाकारा रहीं, जिन्होंने अपनी फिल्मों में सबसे ज्यादा कपड़े इस्तेमाल किए। श्रीदेवी अपनी फिल्मों में हेमा मालिनी, रेखा, वहीदा रहमान, माला सिन्हा, नरगिस, मुमताज़ आदि के गेट अप लिया करती थीं। वो अपने कैरेक्टर में इतना भीतर तक घुस जाती थीं, कि रोल के समय आंसू बहाने के लिए उन्होंने कभी ग्लिसरीन का इस्तेमाल नहीं किया। उन्हें हिंदी समझ में नहीं आती थी, लेकिन कंठस्थ करने की गजब की क्षमता थी उनमें। हिंदी का हर शब्द रट कर स्वाभाविक संवाद पर्दे पर उतार देती थीं।
"लंबे समय बाद जब श्रीदेवी 'इंग्लिश विंग्लिश' में बड़े पर्दे पर दिखीं, तो उनके चाहने वालों के लिए ये एक बड़ी खबर थी। इंग्लिश-विंग्लिश में उनके रोल को काफी सराहा गया। ये फिल्म सिर्फ एक फिल्म ही नहीं थी, बल्कि समाज की कड़वी सच्चाईयों को करारा जवाब थी।"
फिल्म इंडस्ट्री में डबिंग की प्रक्रिया श्रीदेवी की फिल्मों से ही शुरू हुई। वह अकेली ऐसी अदाकारा रहीं, जिन्होंने सबसे पहले अपने जमाने में एक करोड़ से भी ज्यादा पैसे लिए। श्रीदेवी ने हिंदी, तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों में सबसे अधिक डबल रोल किए हैं। इंसानों की बात तो छेड़ दें, उन्होंने फिल्मों में कुत्ता, सांप, हाथी, बन्दर, तोता, मोर के साथ भी काम किया। बिना डरे वह सांपों को हाथ में ले लेती थीं। श्रीदेवी लगभग तीन दशक तक तमिल, तेलुगु और हिंदी फिल्मों में नंबर वन रहीं।
लंबे समय बाद जब श्रीदेवी 'इंग्लिश विंग्लिश' में बड़े पर्दे पर दिखीं, तो उनके चाहने वालों के लिए ये एक बड़ी खबर थी। इंग्लिश-विंग्लिश में उनके रोल को काफी सराहा गया। ये फिल्म सिर्फ एक फिल्म ही नहीं थी, बल्कि समाज की कड़वी सच्चाईयों को करारा जवाब थी। फिल्म में श्रीदेवी ने एक ऐसी हाउस-वाइफ का किरदार निभाया, जिसे अंग्रेजी नहीं आती। सिर्फ एक भाषा में सही जानकारी न होने की वजह से एक औरतर कैसी-कैसी कड़ी बातों का सामना करती है, उसे श्रीदेवी ने फिल्मी पर्दे पर जीवंत रूप से दिखाया। श्रीदेवी की आखिरी रिलीज फिल्म 'मॉम' रही, इस फिल्म ने भी समाज को एक अच्छा मैसिज दिया। ये फिल्म माँ और बेटी के संघर्षों की कहानी है, जिसमें एक माँ किस तरह अपनी बेटी के लिए किसी भी हद तक चली जाती है। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'हल्ला बोल' में पहली बार वह बोनी कपूर के साथ नजर आई थीं।
"श्रीदेवी ने मात्र तेरह वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म 'मूंडरू मुदिछु' में रजनीकांत की सौतेली माँ का किरदार निभाया। इसी फिल्म में वह पहली बार कमल हासन और रजनीकांत के साथ बड़े पर्दे पर उतरी थीं।"
वकील पिता की संतान श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त,1963 को तमिलनाडु के गांव मीनमपट्टी में हुआ था। उनका बचपन का नाम 'बेबी श्री अम्मा अयंगर' था। उनकी पहली फिल्म 'रानी मेरा नाम' थी। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में दक्षिण की चार भाषाओं तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ में काम किया। 1967 में उनकी पहली फिल्म आई 'टुनाईवान', जिसमें उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट की भूमिका निभाई थी। उस वक्त उनकी उम्र 4 साल थी।
सन् 1983 में जब श्रीदेवी की फिल्म 'सदमा' पर्दे पर उतरी, तो उनके अभिनय ने सबको अचंभित कर दिया था। उन्होंने तमिल में सबसे ज्यादा फिल्में कमल हासन और रजनीकांत के साथ, तेलुगु में कृष्णा, एनटीआर और सोभन बाबू के साथ और हिंदी में जीतेन्द्र और अनिल कपूर के साथ कीं। उन्होंने मात्र तेरह वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म 'मूंडरू मुदिछु' में रजनीकांत की सौतेली माँ का किरदार निभाया। इसी फिल्म में वह पहली बार कमल हासन और रजनीकांत के साथ बड़े पर्दे पर उतरी थीं।
"फिल्म 'सदमा', 'चांदनी', 'गरजना', 'क्षणा क्षणम' आदि में श्रीदेवी ने गाने भी गाए। हॉलीवुड के स्टीवेन स्पीलबर्ग उन्हें अपनी फिल्म 'जुरासिक पार्क' में भी कास्ट करना चाहते थे लेकिन बात नहीं बनी। श्रीदेवी को वर्ष 2013 में भारत सरकार ने पद्मश्री का सम्मान से भी सम्मानित किया।"
तेलुगु फिल्मों में श्रीदेवी ने यंग सोभन बाबू का किरदार निभाया। बाद में दोनों की जोड़ी और भी फिल्मों के साथ फेमस हुई। जब श्रीदेवी , सोभन बाबू की हीरोइन के रूप में दिखाई दी। ऐसा ही एनटीआर , एएनआर, एमजीआर , कृष्णा , शिवजी गणेसन के साथ भी हुआ, सबके साथ श्रीदेवी ने चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में काम किया और बड़े होने पर इनकी हीरोइन बी बनीं।
श्रीदेवी की तीन ऐसी फिल्में भी रहीं, जो कभी बड़े पर्दे पर रिलीज़ नहीं हुईं, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ 'गर्जना', विनोद खन्ना, संजय दत्त, रजनीकांत और माधुरी दीक्षित के साथ 'जमीन' और अमिताभ बच्चन, कमल हासन, जया प्रदा के साथ 'खबरदार'। रिलीज़ क्यों नहीं हुईं, इसके पीछे की कोई खास वजह मालूम नहीं चली। वर्ष 2013 में उनको भारत सरकार ने पद्मश्री का सम्मान दिया। उन्होंने 'सदमा', 'चांदनी', 'गरजना', 'क्षणा क्षणम' आदि में गाने भी गाए।
हॉलीवुड के स्टीवेन स्पीलबर्ग उन्हें अपनी फिल्म 'जुरासिक पार्क' में भी कास्ट करना चाहते थे लेकिन बात नहीं बनी। उनके करियर की सबसे महंगी फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' थी, जो छह साल में बनी लेकिन बॉक्स ऑफिस पर चली नहीं।
बोनी कपूर के उनके करीब पहुंचने की एक अलग ही कहानी है। शुरू में बोनी का प्यार एकतरफा था। इसकी शुरुआत फिल्म 'मि. इंडिया' से हुई। वह श्रीदेवी के प्यार में तभी पड़ गए थे, जब वे 1970 के दशक में तमिल फिल्में किया करती थीं। वह उनसे मिलने के लिए चेन्नई गए, लेकिन श्रीदेवी के सिंगापुर में होने के कारण भेट न हो सकी।
श्रीदेवी की फिल्म 'सोलहवां सावन' देखकर बोनी कपूर ने तय कर लिया कि वे बतौर प्रोड्यूसर उनके ही साथ फिल्म में काम करेंगे। एक दिन बोनी श्रीदेवी से मिलने उनके फिल्म के सेट पर पहुंचे। तब श्रीदेवी ने बताया कि उनका काम उनकी मां देखती हैं। जब बोनी अपनी होने वाली सास से मिले तो उन्होंने कहा कि श्रीदेवी फिल्म 'मि. इंडिया' में काम तो कर सकती हैं, लेकिन उनकी फीस 10 लाख रुपए होगी। बोनी ने जवाब दिया कि वे 11 लाख रुपए देंगे। श्रीदेवी की मां खुश हुईं और इस तरह बोनी कपूर को अपना प्यार हासिल करने का पहली बार मौका मिला।
ऐसा कहा जाता है, कि जिन दिनों बोनी कपूर श्रीदेवी को पसंद करते उन दिनों श्रीदेवी मिथुन चक्रवर्ती से प्यार करती थीं। बोनी भी मोना कपूर से शादी हो चुके थे। बाद में जब मिथुन से श्रीदेवी का मोहभंग हुआ, बोनी उनसे मिलने स्विट्जलैंड पहुंच गए। उसके बाद श्रीदेवी की मां गंभीर रूप से बीमार हो गईं। अमेरिका में उनके इलाज के दौरान बोनी कपूर ने श्रीदेवी का मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से सहयोग किया। उनकी मां का कर्ज भी बोनी ने अदा किया। इसका श्रीदेवी के मन पर गहरा असर हुआ और उन्होंने बोनी को अपना जीवन साथी बना लिया, यद्यपि इस रिश्ते को लेकर बोनी के घरेलू जीवन में भूचाल सा आ गया था।
श्रीदेवी भी दुनिया की बाकी माओं की तरह अपनी बेटियों से काफी अटैच्ड थीं। बड़ी बेटी इन दिनों अपनी पहली फिल्म में व्यस्त थी और मां जिस वक्त अंतिम सांसें ले रही थी, बेटियां साथ नहीं थीं न ही बोनी कपूर। श्रीदेवी बेटी की पहली फिल्म को लेकर काफी उत्साहित भी थीं, लेकिन बेटी को फिल्मी पर्दे पर देखने का सपना वो अपने साथ लेकर ही चली गईं।
श्रीदेवी ने भारतीय सिनेमा को वो दिया, जिसे देना आसान बात नहीं। श्रीदेवी दुनिया में रहे ना रहें, लेकिन उनकी फिल्में, उनकी एक्टिंग सदियों-सदियों तक लोगों को प्रेरणा देगी। उनकी अदाकारी को देखकर अभी नजाने कितनी श्रीदेवियां और जन्म लेगीं।
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