9 साल से बिना छुट्टी लिए एक डॉक्टर लगातार कर रहा है काम
साढ़े 7 हजार से ज्यादा पोस्टमार्टम किये, इकलौते बेटे की शादी में भी ड्यूटी के बाद ही हुए शरीक
हादसे में अपनों को खो चुके परिवार के सदमें को खुद कर दर्द समझकर एक डॉक्टर सब कुछ भूलकर अपनी ड्यूटी में ऐसा जुटा कि फिर खुद की भी सुध लेने का वक्त नहीं मिला। कहते हैं ना कि आप अगर अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से करते हैं तो उससे बड़ी कोई समाज सेवा नहीं हो सकती। इसी वाक्य को मूलमंत्र बनाकर एक सरकारी डॉक्टर ने अपने काम को इस कदर अंजाम दिया कि उसकी राह में कभी रविवार या त्यौहार की कोई छुट्टी नहीं आई। यहां तक कि अपने इकलौते बेटे की शादी में भी ड्यूटी खत्म करके ही पहुंचे।
डॉ. भरत बाजपेई को 2006 में इंदौर के जिला अस्पताल में ट्रांसफर हुआ जहां उन्हे फोरेंसिक मेडिसिन प्रभारी बनाया गया। चार्ज लेते के साथ ही डॉ. बाजपेई की नजर पीएम रुम (पोस्टमार्ट घर) के बाहर रोते हुऐ कुछ लोगों पर पडी। जाकर देखा तो पता चला कि उस घर का चिराग एक दुर्घटना में बुझ गया है। उसकी लाश के इंतजार में उसका परिवार आंसू बहा रहा है। डॉ. बाजपेई के ड्यूटी जॉइन करने पर स्टॉफ ने छोटी सी पार्टी रखी थी। मगर उस पार्टी में न जाकर डॉ. बाजपेई पीएम रुम में घुस गये। बिना देर किए पीएम करके बॉडी घरवालों के सुपुर्द कर दी। उसी दिन एक के बाद एक तीन पीएम किये। उस दिन से ही अस्पताल का पीएम रुम डॉ. बाजपेई का दूसरा घर बन गया। जिला अस्पताल में नौकरी ज्वाईन करने के बाद पहली छुट्टी मिली तो उस दिन भी डॉ. बाजपेई अस्पताल पहुंचकर अपने काम में जुट गये। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और आज लगातार काम करते हुऐ डॉ. बाजपेई को साढे नौ साल से ज्यादा का वक्त हो चला है। इस बीच न कोई सरकारी छुट्टी और न ही कोई घर की जरुरत डॉ. बाजपेई के काम के आगे आड़े आ पाई। डॉ. बाजपेई ने 9 साल में बिना छुट्टी लिये साढ़े सात हजार पोस्टमार्टम किये हैं। बिना छुट्टी लिये लगातार नौकरी करने को लेकर डॉ. बाजपेई का लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दो बार 2011 और 2013 नाम दर्ज किया गया है। इसी साल 26 जनवरी को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उनकी कर्तव्य परायणता को लेकर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में उन्हे सम्मानित किया है।
56 साल के डॉ. बाजपेई की पहली पोस्टिंग नवम्बर 1991 में उज्जैन के सिविल हॉस्पिटल में हुई। 1992 में उज्जैन में हुए सिंहस्थ (कुंभ) में दिन में 18-18 घंटे डॉ. बाजपेई मरीजों का इलाज करते रहे। साथ ही सिंहस्थ के दौरान कोई बीमारी नहीं फैले इस पर भी नजर रखे रहे। सिंहस्थ खत्म होने के बाद उनके इस योगदान पर प्रशासन और समाजसेवियों ने काफी सराहना की। 1997 में इंदौर के एमवाय अस्पताल में ट्रांसफर हो गया। जहां सीएमओ के पद पर रहते हुऐ अपनी बेहतर सेवाएं दीं। यही पर उन्हें पोस्टमार्टम भी करने होते थे। यहां भी डॉ. बाजपेई हर दिन 3-5 पोस्टमार्टम करते रहे। इस बीच जब एमवाय अस्पताल में पोस्टमार्टम का काम बढ गया तो सरकार ने तत्काल जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम शुरु करने के आदेश दिये। ऐसे में डॉ. बाजपेई को योग्य मानते हुऐ ये जिम्मेदारी सौंपी गई। इंदौर के जिला अस्पताल में 2006 से पोस्टमार्टम शुरु हुआ और उसी दिन डॉ. बाजपेई का ट्रांसफर कर यहां की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
डॉ. बाजपेई का कहना है,
"किसी अपने को खो चुका परिवार पहले से ही सदमें में होता है, ऐसे में उसे पोस्टमार्टम के लिये इंतजार कराना अमानवीय है। ईश्वर ने कुछ सोच के मुझे इस पेशे में उतारा है और ये जिम्मेदारी दी है। इसलिये जब तक रिटायर नहीं हो जाता, तब तक मेरी कोशिश रहेगी कि यहां आने वाले परेशान लोगों को और परेशानी नहीं होनें दूं। मैंने कभी पोस्टमार्टम करने में जल्दबाजी नहीं कि मेरी कोशिश रहती है कि मुर्दा शरीर से ज्यादा से ज्यादा सच निकालकर अदालत के सामने रख सकूं। जिससे पीडित परिवार को न्याय मिल सके।"
22 नवम्बर 2015 को डॉ. बाजपेई के इकलौते बेटे अपूर्व की शादी थी। मगर रोज की तरह डॉ. बाजपेई अस्पताल में ड्यूटी करने पहुंच गये। घर में बारात निकलने का वक्त हो गया था तो स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के कहने पर घर चले गये। मगर उनका मन ड्यूटी छोडकर जानें को नहीं था। इसके पहले कभी उन्होंने ऐसा नहीं किया था। घर पहुंचे तो बारात सज चुकी थी और बेटा घोड़ी चढ़ चुका था। अचानक अस्पताल से फोन आया कि दो बॉडी पोस्टमार्टम के लिये आई हैं। डॉ. बाजपेई बारात छोडकर ड्यूटी पर चल दिये। खास बात ये रही कि इस तरह बीच कार्यक्रम से जाने पर उनकी पत्नी और घर के सद्सयों नें उनके काम में रुकावट बनने की जगह सहर्ष ही उन्हें जाने की इजाजत दे दी। जब बेटे की शादी हो रही थी तब डॉ. बाजपेई अस्पताल में पीएम कर रहे थे। अपना काम निपटाने के बाद शाम को जाकर डॉ. बाजपेई बेटे की शादी में शरीक हो पाये।
अपने काम की बदौलत डॉ बाजपेई न सिर्फ अपने डिपार्टेमेंट और अस्पताल में काफी लोकप्रिय हैं बल्कि जिन्हें भी इनके बारे में जानकारी मिलती है सब इज्जत की नज़र से देखते हैं। जिला अस्पताल में काम करने वाले समाजसेवी रामबहादुर वर्मा का कहना है, "
मेरी जिंदगी में सरकारी अस्पताल में ऐसा डॉक्टर देखने को नहीं मिला, जिन्होनें अपनी नौकरी के सामने खुद के बारे में भी नहीं सोचा। अक्सर डॉ बाजपेई बिना खाना खाये जुनूनी बनकर काम में लगे रहते हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सिलसिले में उन्हें अदालती कार्यवाही में भी शामिल होना पड़ता है, मगर वहां से आते ही फिर अपने काम में जुट जाते हैं।"
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