अपना एक समय का खाना 'अर्पण' कर ‘स्किप ए मील’ से हजारों लाचारों का पेट भरने की कोशिश
अर्पण राॅय के माता-पिता का हमेशा से ही यह प्रयास रहा कि वह अपना जन्मदिन गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों के साथ मनाएं। ऐसा करने के पीछे उनका एक सीधा और स्पष्ट उद्देश्य यह था कि उनका बेटा इस सच्चाई से रूबरू हो सके कि जीवन कितना कठोर भी हो सकता है और अगर अपनी जीवन में अर्पण को कभी वंचितों के लिये कुछ करने का मौका मिले तो वह उनके लिये कुछ सकारात्मक करने में सफल हो। अर्पण के बचपन का कुछ हिस्सा उड़ीसा के ग्रामीण इलाकों में भी गुजरा जहां उसने भुखमरी से त्रस्त कालाहांडी जैसे इलाके के लोगों के जीवन को भी बेहद नजदीकी से देखा जो कई बार तो सिर्फ आम की गुठलियों पर ही अपने जीवन का निर्वहन करते हैं।
वर्ष 2012 में महाराष्ट्र के टाटा इंस्टटीट्यूट आॅफ सोशल साईंसेस (टीआईएसएस) के तुलजापुर कैंपस में पढ़ाई के दौरान अर्पण का ध्यान प्रतिदिन खाने की मेस में बर्बाद हो रहे खाने की प्रचुर मात्रा पर गया। अर्पण कहते हैं, ‘‘मैं अक्सर अखबारों में यह समाचार पढ़ता था कि प्रतिवर्ष महाराष्ट्र में ही 3 हजार से 4 हजार बच्चे भुखमरी और कुपोषण के शिकार होकर काल के ग्रास में समा जाते हैं और अपने काॅलेज में अपनी आंखों के सामने इतनी मात्रा में खाने की बर्बादी मुझे भीतर से खाये जा रही थी। हमनें कदम आगे बढ़ाये और खाने की बर्बादी करने वाले छात्रों पर लगाम लगाने और बर्बाद होने वाले खाने की मात्रा में कमी लाने के उद्देश्य से अपने बीच के ही कुछ छात्रों को स्वयंसेवकों के रूप में तैनात किया।’’ हालांकि उनके सभी प्रयास बेकार रहे और इतना करने के बावजूद भी खाने की बर्बादी की दर में कोई कमी नहीं आई और ऐसा देखकर अर्पण बहुत क्षुब्ध थे। लेकिन जल्द ही उनके दिमाग में एक विचार कौंधा।
एक समय का भोजन छोड़ें (Skip A Meal)
उनके माता-पिता ने उन्हें बचपन में एक सीख दी थी कि आपके पास जो कुछ भी है उसमें से थोड़ा-बहुत उन लोगों को जरूर दें जिन्हें उसकी जरूरत आपसे अधिक है और इसी सीख से उनके मन में यह विचार आया। अर्पण और उनके कुछ स्वयंसेवक साथियों ने उसी समय यह निर्णय लिया कि वे एक समय का खाना छोड़ेंगे और उसे काॅलेज और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले भूखे लोगों के बीच वितरित करेंगे। जब वे इस बात पर अनुसंधान ही कर रहे थे कि उन्हें किन लोगों को लक्षित करना है तभी इस ‘स्किप ए मील’ टीम के सामने एक ऐसी सच्चाई जिसने इनके आगे बढ़ने के जज्बे को और अधिक हवा दी। अर्पण बताते हैं, ‘‘अपनी सर्वेक्षण यात्रा के दौरान हमें एक अनाथालय का दौरा करने का मौका मिला और हम वहां पर रहने वाले बच्चों को परोसे जाना वाला खाना देखकर हैरान रह गए। वहां रहने वाले बच्चों को खाने में सूखी रोटी के साथ कुछ पानी मिलाकर तरल की हुई पिसी हुई मिर्च परोसी जाती थी और यही खाना वे बच्चे पूरे वर्ष खाते थे।’’
अर्पण आगे कहते हैं, ‘‘कैंसर, एड्स और टीबी जैसी बीमारियों से कुल मिलाकर इतने लोग नहीं मरते जितने भूख के चलते मरते हैं। सिर्फ भारत में ही प्रतिवर्ष 25 हजार से अधिक लोग भुखमरी का शिकार होते हैं और प्रतिदिन लगभग 53 मिलियन लोग भूखेपेट सोने को मजबूर होते हैं।’’
18 जून 2012 को पहली बार ‘स्किप ए मील’ ने भोजन छोड़ा और उसे खाने को तरसते लोगों के बीच वितरित किया। वर्तमान में टीआईएसएस तुलजापुर के 300 छात्र हर शनिवार को अपना भोजन छोड़ते हैं और उसे जरूरतमंदों के बीच वितरित करते हैं।
गति प्राप्त करना
अर्पण कहते हैं उनका इरादा कभी भी ‘स्किप ए मील’ को एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के रूप में पंजीकृत करवाने की नहीं है। वे इसे छात्रों द्वारा संचालित होने वाली पहल के रूप में स्थापित होते हुए देखना चाहते हुए इसे देश के अन्य काॅलेजों के बीच विस्तारित होते हुए भी देखना चाहते हैं। वे कहते हैं, ‘‘हम अपनी इस अवधारणा को गति प्राप्त करते हुए एक देशव्यापी अंदोलन के रूप में फैलते हुए देखना चाहते हैं क्योंकि हमें विश्वास है कि युवाओं के पास क्षमता की कोई कमी नहीं है। इसके अलावा मेरा मानना है कि युवाओं को धन इत्यादि के रूप में सहायता करने के लिये प्ररित करने के स्थान पर दूसरे के साथ अपना खाना बांटने के लिये प्रेरित करना अधिक बेहतर होगा।’’
फिलहाल चेन्नई के मद्रास मेडिकल काॅलेज और दिल्ली के सेंट स्टीफंस काॅलेज के छात्रों ने उनकी इस पहल में उनका साथ देते हुए अपने क्षेत्र में रहने वाले बेघर और भूखे लोगों को इस प्रकार खाना खिलाना प्रारंभ किया है। अर्पण कहते हैं, ‘‘अगर भारत के सभी आवासीय काॅलेज ‘एक काॅलेज-एक क्षेत्र’ के आधार पर इस अवधारणा को अपनाएं तो बहुत ही कम समय में छात्र भुखमरी मिटाने की सरकारी योजनाओं को पीछे छोड़ने में सफल हो सकते हैं क्योंकि हमारे देश में काॅलेज और क्षेत्रों का अनुपात बहुत अच्छा है।’’
सिर्फ विरोध की बात करने वालों के बारे में अर्पण कहते हैं, ‘‘हो सकता है कि आलोचकों को सप्ताह में एक समय का खाना खिलाने की बात नागवार गुजरती हो लेकिन सड़कों पर भूखेपेट रहने वालों के लिये तो साफ पानी की एक बूंद और मात्र एक समय का भोजन किसी दावत से कम नहीं होता है। कुछ नहीं से कुछ हमेशा ही बेहतर होता हैै। मेंने अक्सर पाया है कि सिर्फ काॅलेजों में नहीं बल्कि होटलों और यहां तक की शादियों तक में बचे हुए भोजन को काफी प्रचुर मात्रा में ऐसे ही फेंक दिया जाता है। अगर हमारी जैसी मानसिकता वाले लोग आगे आएं तो वे आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले बेसहारा लोगों के बीच इस भोजन को वितरित करवाकर भूख और खाने की बर्बादी की इस दोतरफा बुराई को मिटाने में अपना सहयोग दे सकते हैं।’’
शिक्षा और सशक्तीकरण
अर्पण कहते हैं कि जिस अनाथालय में ‘स्किप ए मील’ की टीम जाती है वहां के बच्चे बड़ी बेताबी से उनका इंतजार करते हैं। इसके अलावा इस टीम ने अब बच्चों को शिक्षा देने में भी अपना योगदान करना प्रारंभ कर दिया है। अर्पण कहते हैं, ‘‘हमें इस सच्चाई का अहसास है कि इन बच्चों को सिर्फ शिक्षा से कहीं अधिक कुछ चाहिये और उन्हें एक बेहतर भविष्य के लिये कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। हमनें प्रारंभ में अंग्रेजी की शिक्षा को बढ़ावा देने के काम में लगी हुई एक संस्था के साथ मिलकर शिक्षा और गतिविधियों के क्षेत्र में कदम बढ़ाया है। हमनें भी काम करना प्रारंभ किया लेकिन हमें जल्द ही अहसास हुआ कि इन बच्चों का काम सिर्फ अंग्रेजी से नहीं चलेगा। हमने अपने साथ चित्रकारी, क्राफ्ट, हस्तशिल्प इत्यादि जैसी गतिविधियों को भी शामिल किया है।’’
अर्पण और उनकी टीम ने देखा कि ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वाले बच्चों को उस पाठ्यक्रम के साथ सामंजस्य स्थापित करने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था जो ग्रामीण बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया था। वे कहते हैं, ‘‘वह मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। अब हम ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिये एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम विकसित करने के क्रम में हैं।’’
सिर्फ इतना ही काफी नहीं है। यह टीम अब बच्चों के समग्र विकास और बेघरों के लिये अवसर तलाशने के दो पहलुओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। अर्पण कहते हैं, ‘‘हम इन बेघर लोगों के लिये कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के अलावा उनके लिये रोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिशें कर रहे हैं। अब हमारा ध्यान सिर्फ खाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब हमारा ध्येय इन्हें सशक्त बनाने का है।’’
मजबूती से आगे बढ़ना
अर्पण अब अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और उनके द्वारा प्रारंभ की गई यह पहल निरंतर आगे बढ़ रही है। वे कहते हैं कि उनके जैसी मानसिकता के लोगों के साथ जुड़ने के कारण हर आने वाले वर्ष के साथ उनकी यह पहल और अधिक सफल होती जा रही है। उनका कहना है कि वे हमेशा अपने साथ अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के प्रयास में रहते हैं और हो सकता है कि कभी-कभार धन की कमी उनके सामने चुनौती पेश करे लेकिन उन्हें इस बात का पूरा भरोसा है कि उनका यह अभियान आगे बढ़ते रहने में सफल होगा।
अब जब कई दूसरे काॅलेज भी इस अभियान का हिस्सा बन गए हैं तब ‘स्किप ए मील’ प्रतिसप्ताह 1300 लोगों को भोजन उपलब्ध करवा रहा है। वर्ष 2012 में पहली बार ऐसा करने के बाद से अबतक यह अभियान देश के तीन प्रदेशों में 53 हजार से भी अधिक लोगों के पेट भरने में कामयाब रहा है। अर्पण कहते हैं, ‘‘हमारा लक्ष्य मिलेनियम पीढ़ी है। एक तरफ जब पूरी दुनिया बूढ़ी होती जा रही है भारत में औसत उम्र सिर्फ 28 वर्ष है। आने वाले समय में हम दुनिया को कामगार उपलब्ध करवा रहे होंगे। और हमें इस बात का भरोसा है कि यह आयु वर्ग नए विचारों के साथ सामने आकर अपने आसपास की अधिकांश समस्याओं का समाधान पेश करने में सफल होगा।’’
अंत में अर्पण कहते हैं, ‘‘मुझे बड़े सपने देखना पसंद है और मैं बुजुर्गों, विकलांगों, बेघर और लावारिस बच्चों के लिये एक केंद्र का निर्माण करना चाहता हूँ। बिल्कुल एक समाज की तरह। मेरा सपना है कि देश के प्रत्येक वर्ग के रहने वाले बच्चों को भारत के अलावा दूसरे देशों के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करने का मौका मिले।’’