इंडियन इंग्लिश राइटर्स के बीच हिंदी के "टेक्नो स्टार लेखक" हैं निखिल सचान
साहित्य-रचना के लिए अंग्रेजी के बजाय हिंदी को चुनापहले ही कहानी संग्रह से हासिल की लोकप्रियता स्वत्रंत लेखक बने रहने के लिए नहीं पकड़ी मुंबई की राहहिंदी किताबें को फिर से सही जगह दिलाने की कोशिश
एक दिन हिंदी के एक युवा लेखक ने राजधानी दिल्ली में फुटपाथ पर किताबें बेचने वाले एक शख्स से पूछा कि आखिर वो हिंदी की किताबें क्यों नहीं बेचता। इस सवाल के जवाब में उस शख्स से बताया कि उसके यहाँ से पिछले डेढ़ महीने में हिंदी की एक किताब भी नहीं बिकी। और तो और, एक दिन एक पुलिसवाला आया और हिंदी की एक किताब उठाकर ले गया। उस शख्स ने पुलिसवाले से किताब के रुपये मांगने का सहस नहीं किया और ये कहकर खुद को तस्सली दे डाली कि कम से कम कोई तो हिंदी की किताब पढ़ेगा।
ये घटना युवा लेखक निखिल सचान की है। निखिल हिंदी साहित्य और हिंदी की किताबों के प्रति लोगों की लगातार कम होती दिलचस्पी से बहुत ही अच्छी तरह वाकिफ हैं। लेकिन, उन्हें हिंदी साहित्य से बेहद प्रेम है। और चूँकि हिंदी पर उनकी पकड़ है और हिंदी में प्रभावी ढंग से भावनाओं और विचारों को अभिव्यक्त्ति कर सकते हैं, उन्होंने हिंदी में लिखे में ही रूचि ली।
अंग्रेज़ी में पढ़ाई-लिखाई करने वाले निखिल अपने हमउम्र के दूसरे युवाओं की तरह अंग्रेजी में किताबें लिखकर खूब शोहरत और धन-दौलत कमा सकते थे। उच्च स्तर की तकनीकी शिक्षा हासिल करने और आईआईटी - आईआईएम जैसे संस्थानों में पढ़ाई के बावजूद कुछ युवाओं ने लाखों रुपयों की नौकरियां ठुकरायी थीं और लेखन को अपना पेश बनाया। चेतन भगत, चेतन भगत , अमीश त्रिपाठी, रश्मी बंसल जैसे कई युवाओं ने अंग्रेजी में किताबें लिखकर खूब नाम कमाया। इन लोगों ने मौजूदा दौर के लोगों खासकर युवाओं को ध्यान में रखकर अपना साहित्य-सृजन किया और अलग-अलग विषयों पर किताबें लिखीं। वैसे भी भारत में अंग्रेजी किताबें पढ़ने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही और हिंदी के पाठक कम होते जा रहे हैं। ऐसे में हिंदी को चुनना वो भी फिल्मों और टीवी सीरियलों के बजाय किताबों के लिए कोई मामूली फैसला नहीं हो सकता। निखिल के हिंदी को चुनने के पीछे भी एक बड़ी वजह थी - हिंदी के प्रति उनका प्रेम और हिंदी साहित्य-पठन से उन्हें भाषा पर मिली पकड़।
कहानियों की अपनी पहली ही किताब से बेहद लोकप्रिय हुए निखिल सचान का जन्म जन्म उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर जिले में हुआ। स्कूली शिक्षा कानपूर में हुई। आईआईटी-बीएचयू से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में आगे चलकर आईआईएम कोझीकोड से एमबीए की डिग्री ली। उनकी उच्च शिक्षा का विषय भी तकनीक और प्रबंधन रहे। निखिल की सारी पढ़ाई लिखाई अंग्रेजी में हुई। फिर भी अंग्रेजी में लिखने के बजाय उन्होंने हिंदी को चुना।
निखिल को बचपन से ही हिंदी भाषा, हिंदी-साहित्य और कला में दिलचस्पी रही । निखिल जब छठवीं कक्षा में थे तब ही उन्होंने हिंदी में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। छठवीं से बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई के दौरान निखिल को हिंदी साहित्य पढ़ने का खूब अवसर मिला। उन्होंने कई रचनाकारों की कहानियाँ, कविताएँ और दूसरी रचनाएं पढ़ीं। साहित्य पढ़ते-पढ़ते ही निखिल के मन में साहित्यकार बनने की इच्छा प्रबल होती गयी।
निखिल ने छोटी-सी उम्र में ही रचनाकारों की भाषा-शैली, उनकी विशिष्टाओं को समझना शुरू कर दिया। पढ़ते-पढ़ते हिंदी के प्रति प्रेम, लगाव और जुड़ाव लगातार बढ़ता गया। चूँकि कलाकार मन बहुत कुछ करना चाहता था निखिल ने थियेटर और नाटक-मंचन में भी दिलचस्पी दिखाई और इस क्षेत्र में काम भी करना शुरू किया। कालेज के ही दिनों में निखिल ने कुछ हिन्दी नाटकों का निर्देशन भी किया। नाटकों में बतौर कलाकार अभिनय भी किया। कई वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और अपनी भाषा और विचारों से लोगों को खूब प्रभावित किया। कविताओं के ज़रिये भी निखिल ने कईयों का दिल जीता।
विश्वविद्यालय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कला-साहित्य से जुडी कई प्रतियोगिताओं में लेकर निखिल ने अपनी कला और प्रतिभा के बल पर कई पुरस्कार जीते। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान निखिल की कलम ने अपनी रफ़्तार तेज़ कर दी ।
बाद में जब मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू की तो निखिल ने "केशव पंडित" नाम का एक नाटक लिखा जो काफी चर्चित भी हुआ।
इस बीच, निखिल कहानियां भी लिखते रहे। साहित्य-पढ़ना, साहित्य का सृजन करना और कला की सेवा करना निखिल की दिन-चर्या का हिस्सा बन गया । लेकिन, पढ़ाई-लिखाई जारी रही , वो भी अंग्रेजी में। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि निखिल पढ़ाई-लिखाई में भी दूसरों से आगे रहे। प्रतिभा के बल पर आईआईटी-बीएचयू और आईआईएम कोझीकोड जैसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में दाखिला हासिल किया। इन संस्थाओं में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा में कई विद्यार्थी हिस्सा लेते हैं, लेकिन कई नाकामयाब ही रह जाते हैं। यहाँ रैंक के आधार पर ही दाखिला मिलता।
निखिल को उनकी डिग्रियों और काबिलियत के आधार पर आईबीएम जैसी बड़ी और मशहूर अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिली। दफ्तर में सारा कामकाज अंग्रेजी में होता है। साथियों और सहकर्मियों से बातचीत भी अक्सर अंग्रेजी में ही होती हैं। बावजूद इसके निखिल लिखते हिंदी में हैं।
उन्होंने लीक से हटकर हिंदी में लिखा। जबकि उनकी तरह ही तकनीकी शिक्षा हासिल करने और आईआईटी -आईआईएम जैसे संस्थाओं से पढ़ने वाले
दूसरे युवाओं ने अंग्रेजी में लिखा और खूब नाम और रुपये कमाए। चेतन भगत , अमिश त्रिपाठी, रश्मी बंसल उन युवा रचनाकारों के नाम हैं जिन्होंने अंग्रेजी में लिखा और बहुत ही जल्द अपनी रचनाओं- साहित्य और किताबों की वजह से लोकप्रिय बन गए।
लेकिन, तकनीकी पृष्ठभूमि वाले निखिल ने हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति और साहित्य-सृजन का माध्यम बनाया। और अपने लेखन से
हिन्दी साहित्य में नयापन लाया।
निखिल ये मानते हैं कि वे अंग्रेजी में लिखने वाले अपनी हमउम्र के भारतीय लेखकों की तरह सिर्फ साहित्य-सृजन के बल पर अपनी रोज़ी-रोटी नहीं जुटा सकते। निखिल का मानना है कि हिंदी-लेखन से रोजी-रोटी चलाना असंभव है। इसके लिए या तो लेखक को सुरेंद्र मोहन पाठक बनना पड़ेगा या फिर उदय प्रकाश जितना बड़ा कद हासिल करना होगा। उदय प्रकाश की कहानियों का अब तक 30 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
इस बड़ी बात ये भी है कि हिंदी के कई रचनाकारों और लेखकों ने पैसा कमाने के मकसद से फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख किया ।
कई बार निखिल के मन में भी आया कि वो भी मायानगरी मुंबई जाकर फिल्म इंडस्ट्री या टीवी के लिए काम करें। लेकिन, उन्होंने आज़ाद लेखक के रूप में ही अपनी पहचान कायम रखने की ठान ली। निखिल कहते हैं, " भले ही मुझे दाम न मिले, लेकिन मैं हिंदी में ही लिखता रहूंगा। आजीविका चलाने के लिए मैं एक कंपनी में काम कर रहा हूं। एक सच यह भी है कि अंग्रेजी भाषा की तुलना में हिंदी भाषा में लिखी गई किताबों को रॉयल्टी नाममात्र मिलती है।"
हिंदी की किताबों की लगातार कम होती लोकप्रियता के बारे में पूछे जाने पर एक बार निखिल ने ये कहा था कि, " हिंदी किताबें सुचारू रूप से सही लोगों के बीच डिस्ट्रीब्यूट नहीं हो पाती हैं। विषय-वस्तु बढि़या होने के बावजूद इनकी पहुंच आम लोगों तक नहीं हो पाती है। प्रकाशक काफी अधिक मूल्य रख देते हैं। उनकी रुचि किताबों को एक सीमित वर्ग तक पहुंचाने में ही होती है। अगर आप किसी बुक स्टॉल पर जाएं, तो दो सौ किताबों में 190 किताबें अंग्रेजी भाषा की मिलेंगी। दूसरी बात यह है कि हिंदी की कहानियां अभी-भी पुराने ढर्रे पर चल रही हैं। ज्यादातर पात्र भी घिसे-पिटे होते हैं। आज भी स्त्रियों की दशा, बेरोजगारी पर ही कहानियां लिखी जा रही हैं। वहीं अंग्रेजी में खूब प्रयोग हो रहे हैं। इसलिए पाठकों को कहानियां अपनी ओर खींच पाती हैं। हिंदी के लेखकों को नई बात नए अंदाज में कहनी होगी। हिंदी में थोड़ी उर्दू, थोड़ी खड़ी बोली, थोड़ी भोजपुरी या अंग्रेजी का भी बेझिझक समावेश किया जाए, तभी आम पाठक कहानियों से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। उन्हें यह विश्वास हो सकेगा कि यह उनके परिवेश की ही कहानी है।"
उनका ये भी कहना है, "साहित्य मेरे लिए पर्सनल चीज है। मैं इसमें अपनी फीलिंग्स शेयर करता हूं। रोजी-रोटी के लिए कंपनी में जॉब करता हूं, लेकिन अपने इमोशंस मैं कहानियों के जरिए लोगों से शेयर करता हूं। जब भी मैं कहानियां लिखता हूं, तो इससे दिल से जुड़ जाता हूं। दरअसल, हिंदी भाषा मेरे दिल के करीब है। "
निखिल ने "नमक स्वादानुसार" नाम से अपना पहला कहानी संग्रह प्रकाशित करवाया। इस संग्रह में वो कहानियाँ हैं जो उन्होंने अपने जीवन काल में अलग-अलग समय लिखीं। इस कहानी संग्रह को लोगों ने खूब पसंद किया। "नमक स्वादानुसार" की कहानियों ने निखिल की लोकप्रियता को चार चाँद लगाये। "नमक स्वादानुसार"को बीबीसी ने फिक्शन कैटगरी में "हिंदी में बढि़या लेखन" करार दिया । वहीं इनसाइडीन वेबसाइट ने निखिल को 'बेस्ट लिटरेरी माइंड इन हिंदी' के लिए चुना। आलोचकों ने भी "नमक स्वादानुसार" की सराहना की।
अपने पसंदीदा साहित्यकारों के बारे में निखिल ने कहा है कि, "हिंदी-उर्दू के लेखकों में उदय प्रकाश, श्रीलाल शुक्ल, सआदत हसन मंटो, इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम आदि मेरे प्रिय लेखक हैं। वहीं विदेशी भाषाओं में जोसेफ हेलर, जॉर्ज ओरवेल, चेखव, ओरहान पामुक, काफ्का, दोस्तोयेवस्की आदि के साहित्य को मैंने खूब पढ़ा है। मंटो अपनी कहानियों में बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात पाठकों के सामने रखते हैं। श्रीलाल शुक्ल की कृति 'राग दरबारी' अतुलनीय है। जोसेफ हेलर अपनी एक कहानी में 40 अलग-अलग पात्रों के इर्द-गिर्द अपनी कहानी बुनते हैं और सबको एकसमान जगह देते हैं। यह कमाल जोसेफ ही कर सकते हैं। पामुक का वाक्य विन्यास और नैरेशन लाजवाब है। आप जितना अधिक साहित्य पढेंगे, आपकी भाषा, शैली, नैरेशन में उतना ही अधिक सुधार आएगा। लिखते समय उन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल है।"
एक ख़ास बात ये भी है कि जिस तरह का नयापन निखिल ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी-साहित्य में लाया और जिस तरह से उन्हें कई पाठक भी मिले हैं, दूसरे अन्य युवाओं ने भी हिंदी को साहित्य-सृजन का जरिया बनाना शुरू किया है।
हिंदी में लिखने वाले युवाओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। हर नया युवा हिंदी लेखक समय की मांग के मुताबिक साहित्य में नयापन ला रहा है। नए युवा लेखकों के लिखने की शैली अलग है, उनकी कहानियां के पात्र अलग हैं। पुरानी परंपरा से हटकर नए लोगों ने हिंदी में लिखना शुरू किया है। इन्हें युवा लेखकों के प्रयोगों और नयेपन से उम्मीद जगी है कि हिंदी साहित्य फिर से रफ़्तार पकड़ेगा और हिंदी की किताबें भी बिकेंगी। निखिल जैसे युवा हिंदी लेखकों के सामने युवाओं को हिंदी की ओर खीचने की बड़ी चुनौती है। नई पीढ़ी का हिंदी से मोहभंग होने के दावों के बीच निखिल जैसे युवा लेखकों की ने नयी उम्मीदें जगाईं हैं और कामयाब भी होते दिखाई दे रहे हैं।