कैसी धाकड़ है...
भारतीय महिला पहलवान गीता और बबिता फोगाट के संघर्ष को चित्रित करने वाली फिल्म दंगलने बॉक्स ऑफिस पर 450 करोड़ रुपये की कमाई की। गीता फोगाट वो नाम है, जिसने अखाड़े के साथ-साथ सामने वाले को बॉक्स अॉफिस पर भी चारों कोने चित्त कर दिया है, लेकिन कहते हैं न जुनून वही है जो भूख को बढ़ाने का काम करता है। गीता का यही जुनून उसकी भूख को शांत होने नहीं देता। कॉमनवेल्थ में अपनी सफलता का परचम लहराने और देश को पहला स्वर्ण पदक देने वाली गीता अब खुद को ओलम्पिक के लिए तैयार कर रही हैं। यहां पढ़ें 'योरस्टोरी' से गीता की एक धाकड़ मुलाकात...
"भारतीय सिनेमा जगत आमिर खान अभिनीत फिल्म दंगल की सफलता से तब रू-ब-रू हुआ, जब दंगल ने बॉक्स अॉफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। 450 करोड़ रुपये की जबरदस्त कमाई करने वाली इस फिल्म में एक छोटे से शहर की लड़कियों गीता फोगाट और बबिता फोगाट की वास्तविक जीवन पर आधारित कहानी का पूरे देश में खुले दिल से स्वागत किया गया। वैसे तो गीता फोगाट को फ्री-स्टाइल कुश्ती में अपना पहला स्वर्ण पदक जीते हुए सात साल हो गए हैं, लेकिन इस फिल्म ने इन बहनों की जोड़ी को रातों रात मशहूर कर दिया और ये दो लड़कियां देश की हर लड़की की प्रेरणा बन गईं। परदे के पीछे पेज 3 दिखावे और सोशल मीडिया प्रशंसकों से अलग इन दोनों बहनों का सपना पूरी दृढ़ता से अब भी उनकी आंखों में तैर रहा है। गीता की मानें तो कॉमनवेल्थ शुरूआत थी, अभी तो ओलम्पिक लाना है।"
"अभी तो देश के लिए ओलम्पिक मैडल लाना है": बॉक्स ऑफिस और अखाड़ा हिरो गीता फोगाट
“हर बच्चे के मन में कोई सपना हो ये ज़रूरी नहीं, लेकिन हर बच्चा अपने माता-पिता के सपने को पूरा करने की कोशिश ज़रूर करता है और हमने भी वही किया। जहाँ माता-पिता के बच्चों को लेकर देखे गए सपने सच होते हैं, वहीं उनका मार्गदर्शन हमारे जीवन को सरल और कारगर बनाता है। हमें अपने बचपन के दौरान बहुत ही कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा और मैं उसे फिर से याद नहीं करना चाहती। कई बार ऐसे मौके आये जब मैं अखाड़े से दूर भाग जाना चाहती थी, हमें पिता के सपनों की सच्चाई तब समझ में आई जब हम कुश्ती के वरिष्ठ स्तर पर पहुंच गये। संघर्ष तथा बलिदान के साथ यह अनुभव भी विलक्षण था। उनकी मेहनत ने हमारी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल कर हमें ऊंचाई के शिखर पर पहुंचा दिया।”
हरियाणा राज्य, जो कि कन्या भ्रूण हत्या और रूढ़िवादी खाप पंचायतों के लिए कुख्यात है, से आने वाली गीता और बबीता खुद पहलवान रहे महावीर सिंह फोगाट की बेटियां हैं। महावीर और उनकी पत्नी दया ने अपनी चार बेटियों गीता, बबीता, रितु और संगीता के साथ ही महावीर के दिवंगत भाई की बेटियों विनेश और प्रियंका का लालन-पालन भी किया है। एक देश जो कि अनेकों प्रकार के लैंगिक मुद्दों से जूझ रहा है, वहीं फोगाट फैमिली महिलाओं और उनकी सफलता की कहानियों के एक उदाहरण के रूप में अपनी मजबूत पहचान बना चुका है। महावीर ने अपनी नौकरी बेटियों के कुश्ती प्रशिक्षण देने के लिए छोड़ दी और अपने कुश्ती के सपने को बेटियों के माध्यम से साकार करने का निश्चय किया।
गीता कहती हैं, "मेरी पहचान आज उस काम के लिए हो रही है, जो मैंने 2010 और 2012 में किया था। तब मैंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक और 2010 में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। ज़ाहिर है, यह देख कर थोड़ा बुरा तो लगता ही है, कि हमें हमारी कुश्ती की सफलताओं के बजाय हमारे जीवन पर बनाई गई फिल्म दंगल की वजह से पहचान जा रहा है। मेरी इस बात को शिकायत के तौर पर न लिया जाये, लेकिन सचमुच यह अपने आप में बहुत अजीब-सी बात है।
फिल्म की स्पॉटलाइट या कुश्ती का वास्तविक अखाड़ा?
गीता कहती हैं, "दर्शकों के लिए फिल्म बनाना जितना आसान है, असल में कुश्ती की दुनिया उतनी आसान नहीं है। यह बहुत मुश्किल है, यहां सिर्फ कॉम्पटिशन, दर्द (चोटों) और आक्रामकता है। हर पहलवान को खुद को खेल के लिए समर्पित कर देना होता है। सबकुछ भूल कर अपने आप को आग में झोंक देना होता है।" थोड़ा सा मुस्कुराते हुए वो आगे कहते हैं, "लोगों को लगता है, कि फिल्म की सफलता के कारण फोगाट सिस्टर्स मशहूर हुईं है, जबकि हमारी जीत फिल्म के सफल होने की सबसे बड़ी वजह है।"
बीतों दिनों एक योग शिविर में (जो बेंगलुरू में योग गुरु मास्टर अक्षर द्वारा आयोजित किया गया था और जहां गीता और बबीता मुख्य अतिथि थीं) गीता ने महिला प्रतिभागियों को सशक्त होने के लिए संबोधित करते हुए कहा, कि “लड़कियों ने हर बार यह साबित किया है, कि वो बहुत कुछ कर सकती हैं। उनके अनंत आकाश की कोई सीमा नहीं है। उन्होंने जो चाहा वो करके दिखाया। इसलिए औरतों को खुद को कमजोर और पीड़ित नहीं समझना चाहिए। जवाब देने के नये तरीके खोजने चाहिए और सामने वाले को मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए, फिर बात चाहे योग कि हो या फिर आत्मरक्षा की। अभ्यास हमें हमारे भीतर की ताकत को साबित करने का मौका देता है.” फोगाट बहनों से प्रभावित होकर योग गुरू अक्षर के शिविर को संबोधित करते हुए चिकबलपुर, बेंगलुरू के विधायक डॉ सुधाकर ने ओल्यम्पियन्स को एक कुश्ती अकादमी स्थापित करने के लिए दो एकड़ जमीन के आवंटन की भी घोषणा की।
“देश और अधिक ख्याति के लिए फोगाट बहनों पर निर्भर है और तब, जब कि हमने अभी तक एक भी ओलंपिक पदक नहीं जीता है। लेकिन उसके लिए हम पूरी मेहनत और लगन से खुद को तैयार कर रहे हैं और अब तो बंगलुरू कुश्ती अकादमी ने हमारे लिए एक दरवाजा भी खोल दिया है, जिससे कि मुझे काफी उम्मीदें हैं।”
28 वर्षीय पहलवान गीता फोगाट इन दिनों आगामी 2020 के टोक्यो ओलंपिक में वापसी करने के दबाव में हैं। अपनी सफलता और समयसीमा पर बात करते हुए गीता कहती हैं, कि "यदि आप कुछ हासिल करना चाहते हैं तो त्याग आपका कर्तव्य बन जाता है।" महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित करते हुए गीता का कहना है, "यदि आप अपने सपनों को आकार देना चाहते हैं, तो सपनों को पूरा करने के लिए समय निकालना होगा, उन पर काम करना होगा। सपने बैठे-बैठे पूरी नहीं होते, उसके लिए मेहनत करनी होती है। जब हम बीमार पड़ जाते हैं, तो आराम करने के लिए समय निकालते हैं, तो क्यों ना फिट रहने के लिए समय दिया जाये, ताकि कभी बीमार ही न पड़ें।" हाल ही में गीता ने अपने साथी पहलवान पवन कुमार से शादी कर ली है। हरियाणा की इस महिला खिलाड़ी का अभी खेल से सन्यास लेने का कोई इरादा नहीं है और वे उन्ही ऊंचाइयों को हासिल करने का इरादा रखती हैं, जो ये कुछ साल पहले साबित कर चुकी हैं।
गीता कहती हैं, कि-
“अभी थोड़े दबाव में हूँ, क्योंकि लंबे समय बाद वापसी कर रही हूं। हालांकि अपनी मेहनत और सफलता पर मुझे पूरा भरोसा है। एक चाल ही कब सारा खेल बदल दे, कोई नहीं जानता। एक वार आपको मुकाबले से बाहर कर सकता है और यहां तक कि आखिरी के दो या तीन सेकंड में भी चीजें बदल जाती हैं। यह सबकुछ मिलने वाले मौके का सही तरह से इस्तेमाल करने के तकनीकी कौशल पर निर्भर करता है। इन दिनों मैं उन्हीं सब पर काम कर रही हूं।”
स्पॉटलाइट्स और साक्षात्कार के बीच, ठेठ हरियाणवी लहजे वाली फोगाट बहनों ने महिलाओं की ताकत को एक नए सिरे से परिभाषित किया है। आज, जब हम उनकी इस यात्रा पर एक नज़र डालतें हैं, तो पता चलता है कि यह सफलता निश्चित रूप से उनकी कड़ी मेहनत, लगन और विशेष रूप से उनके पिता के सहयोग का परिणाम है। गीता के साथ योरस्टोरी अपनी बातचीत को समाप्त करते हुए ये उम्मीद करता है, कि देश के किसी कोने में ठीक इसी समय एक और लड़की अपने अगले मुकाबले के लिए तैयार हो रही होगी और उसका हर मुकाबला उसे उस मंज़िल तक ले जाएगा, जहाँ वह अपने देश का नाम विश्व पटल पर स्वर्णाक्षरों में लिख सकेगी।
लेखिका: श्रुति मोहन
अनुवाद: प्रकाश भूषण सिंह