इतिहास को सहेजने की कोशिश का नाम है दि इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट
ये सिर्फ लोगों की व्यक्तिगत यादें नहीं हैं बल्कि ये भारत का इतिहास है और लोगों की व्यक्तिगत यादों को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना देश के इतिहास को। अफसोस की बात है, कोई भी इस बात पर बोलने को तैयार नहीं कि नि:शब्द विज्ञापन कैसे काम करते हैं।
"कोई क्या करता है, कितने लम्बे या कम वक्त तक जीता है, ये कोई मायने नहीं रखता, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि इस धरती के इतिहास को बनाने में वह क्या भूमिका निभाता है।’’
दुनिया के पहले और सबसे सफल ऑनलाइन संग्रह, दि इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट को बनाने के पीछे अनुषा यादव का यही नज़रिया काम कर रहा था। 2010 में अपनी स्थापना के बाद से, दि इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये पता लगाने में जुटा है कि व्यक्तिगत इतिहास, व्याख्यान, फोटो और अभिलेखागार को किस तरह फिर से खोजा जाए, समझा जाए और दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जाए। अनुषा की सफलता से प्रेरित होकर, जापान, एस्टोनिया और ईरान जैसे देशों ने भी अपने देश की विरासत को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने के लिए इसी तरह के उपक्रम की शुरुआत की है।
ये संग्रह अब 136 तस्वीरों और यादों, कहानियों का एक ख़ज़ाना होने का दावा करता है। ये तस्वीरें बताती हैं लड़े गए युद्धों और उनकी जीत के बारे में, उन ज़िंदगी के बारे में जो खो गईं या जो जी गईं, तस्वीरें बताती हैं व्यक्तिगत जीत और हार के बारे में, और इन सबसे बढ़कर ये तस्वीरें सच बयाँ करती हैं। ये तस्वीरें इतिहास को हमारे सामने रखती हैं, ठीक वैसा ही जैसा वो था, ना कि वो जो हमने राजनीतिक पूर्वाग्रहों और विरूपण से प्रभावित इतिहास की किताबों में पढ़ा। ये वो सच है जिसे जानने की हमें वाकई ज़रुरत है, क्योंकि वो कहती हैं, "यदि आप अपने अतीत को नहीं समझते, तो भविष्य को भी नहीं समझ पायेंगे। हम भविष्य से बेहतर तरीके से बातचीत कर सकते हैं, अगर हम अपने अतीत की आवाज़ को समझ पाएँ तो।
आप ने अब तक जो कुछ किया है, वो चाहे इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट हो, या फिर मेमोरी कंपनी के साथ काम, आपका हर काम यादों के इर्द-गिर्द घूमने वाला और अतीत की रोचकता से जुड़ा रहा है। आप के लिए यादें इतनी खास क्यों हैं?
मुझे प्यार है इस दुनिया से। इस पर इतनी परतें जमी हैं, जिससे मुझे अपने काम के लिए एक बड़ी पहुंच मिलती है। और यादें तो सभी के लिए खास होती हैं। ये इंसान की पहचान भी हैं और जानकारी का खजाना भी। स्मृति अनुभव का ही एक पर्यायवाची है।
मैंने सोचा भी नहीं था कि यादें इस तरह से मेरी जिंदगी का हिस्सा बन जाएंगी। अपनी फोटोग्राफ़ी करने से लेकर अभी तक, यादें मेरे लिए एक तरह से दस्तावेज़ बन चुकी हैं। मैं उनके बारे में भावुक नहीं होती। मैं जानती हूं कि बहुत लोगों के लिए भावुकता पैदा कर सकती हैं, लेकिन इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट शुरू करने के पीछे मेरा इरादा ऐसा नहीं था। बल्कि तथ्यात्मक इतिहास या उससे मिलते-जुलते दस्तावेज़ तैयार करने के लिए भावनात्मक अनुभवों का इस्तेमाल करना था।
जयपुर में पलने-बढ़ने और इस शहर की भव्यता और ऐतिहासिक आकर्षण से घिरे होने के बावजूद अतीत की कल्पना में बहने से खुद को रोकना क्या नामुमकिन नहीं है? इतिहास के बारे में जो बातें मुझे जकड़ कर रखती हैं वो हैं अतीत की कहानियाँ, नेतृत्व करने वाले लोगों का जीवन और वो जो उन्होंने खोया। तो फिर कैसे मुमकिन है कि यादों को भावनाओं से दूर रखा जाए?
ये सच है। जयपुर जैसे छोटे शहर में बड़े होते हुए मैंने महसूस किया कि मेरे पास जीवन के लिए विकल्प सीमित थे। तो उत्साह की कमी को पूरा करने के लिए मेरी कल्पनाशक्ति ने थोड़ी ज्यादा मेहनत की। मैंने पाया कि दृश्यों कि कल्पना- चाहे वो पेंटिंग हों, हस्य किताबें हों या फिर फिल्में- जब तक उनमें दृष्य है, मुझे उसको खुद से जोड़ने का बहाना मिल ही जाता है।
क्या है जो इस जुनून को बढ़ावा देता है?
हम इंसान खुद से बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा बनने की कोशिश में रहते हैं। मेरे लिए एक तस्वीर किसी फिल्म के शुरुआती बिंदु जैसी थी। वो फिल्म मेरे दिमाग में चलती-रहती और मैं उसका एक हिस्सा बन जाती। फोटोग्राफ़ी ने मुझे ये मौका दिया कि मैं ऐसी किसी चीज़ का हिस्सा बन सकूँ।
फोटोग्राफी के मेरे जुनून को उस वक्त नई ऊर्जा मिली जब मैं 12 साल की थी और मेरे पिता का देहांत हो गया। मेरे लिए अच्छे वक्त से फिर से जुड़ने का ज़रिया तस्वीरें ही थीं। मेरे पिता एक शौकिया फोटोग्राफर थे और उन्होंने हमारे लंदन, स्कॉटलैंड और अमेरिका यात्रा के दौरान हमारी ढेर सारी तस्वीरें ली थीं। मैं बार-बार अपनी मां से वही कहानियां दोहराने को कहती। इस तरह बहुत छोटी उम्र से ही फोटोग्राफी और कहानियों के साथ नाता जुड़ गया। अब जबकि मैं बड़ी हो गई हूं, तो मैं बस कहानियों की ताकत से ही ज्यादा आकर्षित हो पाती हूं।
इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट तब आया जब फेसबुक ने पहली बार अपनी फोटो शेयरिंग सुविधा शुरू की?
मुझे लगता है कि करीब एक साल के बाद। फेसबुक के फोटो शेयरिंग फीचर ने मुझे हर किसी के पास जाकर व्यक्तिगत रूप से तस्वीरें मांगने और संग्रहित करने से बच बचा लिया। यहां मुझे जो भी जरूरत है वो मैं लोगों को ऑनलाइन अपल़ोड करने को कह सकती हूं। मैं शादियों पर एक संग्रह बनाना चाहती हूं, क्योंकि शादी की तस्वीर हर किसी के पास होती है और मैं भारतीय शादियों का पूरा तरीका संग्रहित कर सकती हूं, सारी परंपराएं, रीति-रिवाज, समारोह, लोग कैसे कपड़े पहनते हैं और क्या खाते हैं। शादी कैसे होती है ये हमें पता होता है क्योंकि करण जौहर हमें बताते हैं कि शादियां कैसे होती हैं। ऐसे लोगों की पूरी एक दुनिया है जो शादी करते हैं- शिया, सुन्नी, तमिल, मलयाली, बंगाली, कश्मीरी- जिनके अलग-अलग क्षेत्रीय और बिल्कुल अनूठे रीति-रिवाज और परंपराएं हैं। मुझे इन सब को दस्तावेज की शक्ल देने का शौक था।
लोग निर्देशों का पालन ठीक से नहीं करते थे। कई लोग तस्वीरें भेजते थे तो वो यही नहीं लिखते थे कि ये किसकी शादी की तस्वीर है। हालांकि, वो पूरी कहानी बता देते थे कि उनके अंकल कौन हैं, वो कहां हैं, वो क्या खाना पसंद करते हैं, और भी काफी कुछ। इसलिए मैंने भावी प्रकाशकों के सामने इन सभी तस्वीरों और इनसे जुड़ी कहानियों को एक किताब के रूप में रखा। लेकिन ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। मैं वापस लौटी ताकि अपना किराया चुकाने के लिए कुछ कमा सकूं। लेकिन मुझे ये एहसास परेशान कर रहा था जैसे मुझसे कुछ छूट रहा था, कुछ ऐसा जिस पर मैं ध्यान नहीं दे पा रही थी। मैं महीनों उसी प्रोजेक्ट के इर्द-गिर्द सोचती रही। अंत में फरवरी 2010 में किस्मत चमकी।
मुख्यधारा ऐतिहासिक ज्ञान के संदर्भ में पुरानी यादों के इस व्यक्तिगत स्मृति संग्रह का क्या महत्व है?
इतिहास हमेशा राजनीति के चलते ही प्रस्तुत किया गया है। ये राजनीति की सेवा के लिए ही लिखा गया है। लेकिन अब ये कहना मुश्किल है कि इंटरनेट के दौर में इसे कितने वक्त तक सीमित रखा जा सकता है। हमें जो स्कूलों में पढ़ाया जाता है वो वास्तविक घटनाओं का बेहद संकीर्ण रूप है। अब इन व्यक्तिगत यादों और यादों को लेकर जिज्ञासा के बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों और सम्मेलनों का आयोजन हो रहा है। इस कहावत में एक महान सच छुपा है कि “हर संकट एक मौका लेकर आता है”। उदाहरण के लिए- अगर अमेरिका में नागरिक युद्ध और दूसरा विश्व युद्ध नहीं होता, तो शायद मुंबई में कपड़ा मिलें नहीं होतीं।
आप इस बात पर अड़ी हैं कि इस साइट पर विज्ञापन नहीं चलेंगे?
ये सिर्फ लोगों की व्यक्तिगत यादें नहीं हैं बल्कि ये भारत का इतिहास है। और लोगों की व्यक्तिगत यादों को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना देश के इतिहास को। अफसोस की बात है, कोई भी इस बात पर बोलने को तैयार नहीं कि निशब्द विज्ञापन कैसे काम करते हैं। मैं कुछ अन्य तरीकों से पैसा कमाने की कोशिश कर सकती हूं लेकिन विज्ञापन से दूर ही रहेंगे।
इंडियन मेमोरी प्रोजेक्ट को चलाने के लिए लोगों से फंड और दान के रूप में पैसा लेते हैं, जो कई बार नहीं भी मिलता है। मेरे पास एक तरीका है जो इस वेबसाइट के लिए डोमेन को संचालित करता है। और मेमोरी कंपनी से होने वाला फायदा फिर से परियोजना को मज़बूत बनाने में खर्च होगा।
मेमोरी कंपनी क्या है?
मेमोरी कंपनी एक परामर्शदाता है जो जरुरत के मुताबिक मेमोरी प्रोजेक्ट बनाती है, कॉर्पोरेट्स, समुदाय, ब्रांड और उन लोगों के लिए जो विभिन्न कहानी कहने वाले उपकरणों के माध्यम से अपने इतिहास और अतीत को दस्तावेज़ बना कर रखना चाहते हैं। कहानी बताना ही इतिहास को याद रखने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।
अभी शायद उन प्रोजेक्ट बारे में बात करना जल्दबाज़ी होगी जिनके लिए मैंने सौदा किया है। अभी तीन परियोजनाएं हैं जिन पर काम चल रहा है और इसी महीने उन्हें अंतिम रूप दे दिया जाएगा, इसके बाद ही उन परियाजनाओं पर बात करना मुमकिन हो पाएगा। हालांकि, अभी भारतीय ब्रांड के संक्षिप्त इतिहास को दस्तावेज़ों की शक्ल दे रही हूं क्योंकि मैं अपने खुद के इतिहास का दस्तावेजीकरण शुरू करने के लिए कंपनियों में जागरुकता पैदा करना चाहती हूं। कॉर्पोरेट्स भी धीरे-धीरे इसे लेकर सचेत हो रहे हैं कि नेतृत्व के एक तरीके के रूप में इतिहास कितना शक्तिशाली हो सकता है।
इंडियन मेमोरी प्रोजक्ट पर कोई खास कहानी जो व्यक्तिगत रूप से आपकी पसंदीदा कहानी हो?
सभी कहानियां मेरे दिल के करीब हैं। जब भी कोई नई कहानी आती है, वो ही मेरी पसंदीदा बन जाती है। पहले मैं उसे पढ़ती हूं और फिर उससे प्यार करने लगती हूं। फिर मैं चाहती हूं कि ये कहानी पूरी दुनिया पढ़े।
लेकिन विशेष रूप से आकर्षित करने वाली जेसन स्कॉट की कहानी है। ये कहानी है कि कैसे दो अलग-अलग महाद्वीपों में रहने वाले परिवार ये पाते हैं कि उनके पूर्वज एक ही थे और फिर वो एक दूसरे से जुड़ जाते हैं।
इसके बाद नंबर आता है उस आदमी की कहानी का जिसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दुनिया को पोल्का डॉट्स बेचने का काम किया। ये कहानी एक आकर्षक घोषणा करती है कि कैसे आज मुंबई में कोई कपड़ा मिल ना होता, अगर अमेरिका में कोई नागरिक युद्ध और दूसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ होता और ये कहानी बताती है कि कैसे वो हर चीज़ जो कहीं खो सी जाती है, एक इतिहास है... बिलकुल तितली की तरह प्रभावित करने वाला।
इसके अलावा वो चौंकाने वाली कहानियां जो बताती हैं कि बुरे दौर में इंसान के लिए कौन सी चीजें सबसे ज्यादा मायने रखती हैं। उदाहरण के लिए- विभाजन के दौरान जब बॉलीवुड गीतकार आनंद बख्शी का परिवार रात को अपने गृहनगर को छोड़ रहा था, तो उन्हें बताया गया कि वो अपने साथ कोई एक सामान ही ले जा सकते हैं। उस वक्त वो अपनी दिवंगत मां की तस्वीर साथ लाए थे। हालांकि, उनके पिता ने उन्हें डांटा भी कि उन्हें कोई मूल्यवान वस्तु साथ लानी चाहिए थी। तब उन्होंने अपने पिता को कहा कि पैसा तो कभी भी खर्च हो सकता है। लेकिन मां की तस्वीर उनके लिए अमूल्य थी। मैंने वो कहानी पढ़ी और तुरंत याद किया जो सुसान सोन्ताग ने युद्ध पर जाने वाले सिपाहियों के बारे में लिखा था कि वो घर से कोई खजाना नहीं बस तस्वीरें साथ ले जाते हैं। यदि सोन्ताग ज़िंदा होतीं तो मुझे इस कहानी को उन तक पहुंचाने का रास्ता मिल गया होता।
फिलहाल किस नए आइडिया पर काम कर रही हैं?
हर वक्त मैं अनेकों आइडियाज़ पर काम करती रहती हूं. लेकिन बहुत जल्द मैं मेमोरी कंपनी से मर्केंडाइज़ लाने पर काम कर रही हूं. ऐसे प्रोडक्ट्स, जिन्हें लोग इस्तेमाल कर सकते हैं. ये प्रेरणादायी और इतिहास से प्रेरित भी.
आपको ऐसा क्यों लगता है कि पेंटिंग्स के मुकाबले फोटोग्राफ्स जज्बातों को ज्यादा कुरेदते हैं?
क्योंकि ये एकमात्र नॉन-फिक्शनल सबूत हमारे पास है.
और यही हमारे अस्तित्व का आधारभूत सच है?
बेशक. फर्ज कीजिए अगर किसी रोज हमें एम्नीशिया हो जाए, आपको न पता हो कि आप कौन हैं, कोई पहचान नहीं हो, आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं हो, तो हमें जिंदगी को फिर से बहाल करने में लंबा वक्त लग जाएगा. हम लोग अतीत के साए में महफूज हैं और वही हमारी जिंदगी को मायने बख्शता है.