सुनने की चुनौती का सामना करने वालों में संचार को बढ़ावा देने की नयी कोशिश का नाम है'फिंगर चाट्स'
सुनने की चुनौती का सामना कर रहे बहरे व्यक्तियों के सामने आज भी संचार एक बड़ी समस्या है। आँकड़े बताते हैं कि देश में 180 लाख लोग बहरे लोग हैं, लेकिन उनके लिए केवल 250 ही दुभाषिए/व्याख्याकार हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हर 72000 लोगों के लिए एक व्याख्याकार है। इस समस्या को दूर करने के लिए 'फिंगर चाट' ने नये सिरे से कोशिश शुरू की है। इसकी शुरूआत कोलकाता, चेन्नई और बैंगलुरु में हुई है। इनके द्वारा हर सप्ताह कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। एनेबल इंडिया की ओर से इशारों की भाषा पर पूर्णकालिक पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा है।
फिंगर चाट्स के संस्थापकों में से एक राजेश मेनन ने बताया कि एनेबल इंडिया समावेशी समाज के निर्माण के क्षेत्र में काम कर रहा है। सुनने की चुनौती का सामना करने वालों के लिए पहला अपनी तरह का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ऐसे अनुभवी स्वयं सेवकों का सहयोग लिया गया, जो इस चुनौती को भलि-भांति समझते हैं। इस मंच पर जब बहरेपन का शिकार तथा अनुभवी लोगों को एक संयुक्त मंच प्रदान किया गया।
स्वयं सेवकों का यह छोटा सा समूह साप्ताहिक कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। अब तक कुछ लोगों ने तीन महीने का फ्री स्टाइल पाठ्यक्रम पूरा किया है। स्वयं सेवकों को उम्मीद है कि बहरेपन का शिकार लोगों के सहयोग लिए कुछ और लोग भी सामने आएँगे और इस कार्यक्रम का अधिक से अधिक लोगों को लाभ होगा।
बहरेपन का शिकार बच्चों को अधिकतर जीवन में ऐसा नहीं मौका मिलता कि वे इशारों की भाषा पूर्ण रूप से सीखने का अपना सपना पूरा कर ले देश में ऐसे बच्चों के लिए 397 स्कूल हैं, जिनमें 95 महाराष्ट्र में हैं। इन स्कूलों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें इस भाषा को सिखाने तथा उन बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने वाले योग्य टीचर नहीं मिल पा रहे हैं। एक और चुनौती यह है कि इसमें भारतीय इशारों की भाषा (हिंदी) और अमेरिकी इशारों की भाषा को लेकर अलग विवाद है, जबकि इन दोनों भाषाओं को समझना ज़रूरी है ताकि वे आपस में बेहतर संचार को बढ़ावा दे सकें।
-थिंक चेंज इंडिया