मक़सद पर्यटन का, सवारी साईकिल की- मस्ती ऐसी की पूछो मत...
मनाली से लेह की साईकिल यात्रा के दौरान आया ’अनवेंचर्ड’ को शुरू करने का विचारयात्रियों को साईकिल यात्रा के द्वारा बैंगलोर के इतिहास से करवाते हैं रूबरूलंबी दूरी के यात्रियों के लिये गोवा के अलावा अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के भी हैं विकल्पमई में मातृत्व दिवस पर महिलाओं के लिये विशेष यात्राओं का करते हैं आयोजन
भीतर से घुमक्कड़ी का शौकीन और खतरों से खेलने का जज्बा रखने वाला एक व्यक्ति लगभग एक दशक तक स्टार्टअप के क्षेत्र में और उसके बाद छोटे से अंतराल के लिये विक्रेता के रूप में अपने करियर से संतुष्ट नहीं था। गुरुदीप रामाकृष्णा को पांच साल पहले कुछ साहसिक करने का पहला अवसर तब मिला जब उन्होंने अपने बचपन के दोस्त के साथ मनाली से लेह के रास्ते पर हिमालय के चित्रात्मकता व रहस्यों को जानने के लिए यात्रा की शुरुआत की। दिलचस्प बात यह है कि यह एक साईकिल यात्रा थी।
गुरुदीप वर्तमान में साईकिलों पर ऐसे साहसिक अभियानों को आयोजित करने वाले ‘अनवेंचर्ड’ के मुख्य ‘अनवेंर्चर’ हैं। अपने पहले अनुभव के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘यदि मैं सच्चे शब्दों में कहूं तो हमारे लिए इस मार्ग की यात्रा किसी डरावने अनुभव से कम नहीं थी।’’
गुरुदीप का कहना है कि, ‘‘मैंने इस यात्रा के बाद जल्द ही यह अनुभव किया कि मैं साईकिल पर फिर से उसी पगडंडी वाले मार्ग से अलग-अलग लोेगों के साथ जाना चाहता हॅू ताकि मैं उनसे अपने अनुभवों को साझा कर सकूं।’’ जैसा कि गुरुदीप में लोगों को अपनी बात अच्छी तरह से समझाने का गुण था, इसलिए उन्होने आठ अलग-अलग लोगों को अपने साथ साईकिल यात्रा पर चलने को तैयार कर लिया और इस यात्रा के समाप्त होते-होते वे सब अच्छे मित्र बन गये थे।
गुरुदीप का कहना है कि, ’’इस तरह के समूह में यात्रा करना न केवल किफायती होता है बल्कि इसमें भाग लेने वालों से उनकी अलग-अलग कहानियां भी सुनने को मिलती हैं। इन यात्रियों का डीएनए एक जैसा ही होता है लेकिन वे सब दुनिया से अलग रास्तों पर चलकर कुछ नया खोजने की चाह रखते हैं।’’
2012 के अंत में उनकी भेंट अपने बचपन की एक मित्र तेजस्वनी गोपालास्वामी से हुई जो भूटान की एकल यात्रा कर चुकी थी। इसके बाद वे 2013 की शुरूआत में एक बार फिर मिले मिले और ‘अनवेंचर्ड’ को बनाने के बारे में सोचा। हालांकि कंपनी बनाने का विचार तीन साल पुराना था लेकिन उसे एक साल पहले ही पंजीकृत कराया गया।क्योंकि तेजस्वनी की इतिहास, लोगों से मिलने जुलने और संस्कृति को जानने में रुचि थी इसलिए वह अपनी निजी यात्रा कार्यक्रमों से इस शौक को पूरा करती थी। संगीत के शौक के चलते उसने सितार बजाने का प्रशिक्षण लिया और वह ‘अनवेंचर्ड्स’ की मुख्य जोखिम उठाने वाली सदस्य है। दूसरे शब्दों में तेजस्वनी को यह खिताब उनके अपने कार्य के प्रति पक्की धुन और अच्छे हास्य गुण के कारण मिला है।
अनवेंचर्ड वर्तमान में एक उभरती हुई कंपनी है जिसे उसके संस्थापक अपने पास से धन लगाकर चला रहे हैं और राजस्व के रूप में धन की वापसी वे टूर-साहसिक यात्राओें की सीट बेचकर प्राप्त कर रहे हैं। कंपनी का लक्ष्य अपने टूर और अन्य उत्पादों के माध्यम से लाभ देने वाले राजस्व की प्राप्ति करते हुए अपने व्यवसाय को आगे बढाना है। कंपनी अपने टूर के माध्यम से पहले ही लाभ में है। कंपनी की आय का अधिकांश भाग प्रशासनिक व्यय और उपकरणों को खरीदने पर होता है।
एमबीए स्नातक और विपणन के क्षेत्र में कार्य करने वाले गुरुदीप पिछले एक दशक से कई तकनीकी और गैर-तकनीकी स्टार्ट-अप की टीम में सह संस्थापक के रुप में काम कर चुके हैं। हालांकि उनका कैरियर मार्केटिंग में रहा है इसलिए शुरुआत में वे व्यापार के अनेक क्षेत्रों मंे सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा चुके हैं और संस्कृति को आगे बढाने में लगे हैं। ज्ञान प्राप्त करने और सीखने की लगन के कारण वे उत्पाद विकास, बाजार उत्पाद, बिक्री और ग्राहक सेवा के कार्य में भी सक्रिय भागीदार रहे हैं। उनका अंतिम सेवा कार्यकाल एक सामाजिक भर्ती तकनीकी स्र्टाटअप ‘माईपरिचय’ के साथ रहा।
गुरुदीप को घर के बाहर जाकर लोगों को आपस में मेलजोल बढाकर और संस्कृति से आपस में जोड़ने पर एक महान आशियाना मिला और उसी से परिणामस्वरुप अनवंेचर्ड को लांच किया गया। यह विभिन्न लोगों को अलग-अलग स्थानों और अनुभवोें के साथ गहरे नीले आकाश के नीचे एक घर का माहौल उपलब्ध करवाने का उनका अपना तरीका है।
तेजस्वनी को विज्ञापन, विपणन और कला के क्षेत्र में महारत हासिल है। काॅपी राइटिंग की पृष्ठभूमि होने के कारण वह भीतर से एक उत्सुक यात्री, थियेटर कलाकार, लेखक और कहानी सुनाने वाली हैं। वे विभिन्न स्थानों व लोगों से कहानियां एकत्रित करके ‘अनवंेचर्ड’ के लिए लाती हैं।
शायद यही वजह है कि उन्होने साईकिल से यात्राएं करने से ज्यादा सड़कों की खोजबीन पर अधिक ध्यान दिया और जिन स्थानों की उन्होंने यात्रा की, वहां की संस्कृति और वहां के इतिहास के बीच रहती हैं।
इन्होने अपने कार्य की शुरुआत मनाली-लेह मार्ग से की थी और उन्हें जो शानदार प्रतिक्रिया मिली, उससे वे अभिभूत हो गये। इन्होंने नई मार्गों का तलाशने में बिल्कुल समय बर्बाद नहीं किया और अब वे यात्रियों के लिए अनेक यात्रा कार्यक्रमों के बारे में काफी उत्साहित होकर जानकारी देते हैं।
अपने सबसे लोकप्रिय यात्रा कार्यक्रम ‘शहरी पगडंडी’ के माध्यम से वे यात्रियों को बंगलौर शहर की कालोनियों के बसने और वहां के खानपान व व्यजंनों संबंधी कहानियां सुनायी जाती हैं। यात्रियों को बंगलौर और विंस्टन चर्चिल के बीच के संबंध से भी अवगत करवाया जाता है और आप वहां जाकर उनके ताज व उनसे संबंधित तमाम चीजों को देखकर अपने सफर को पूर्णता प्रदान सकते हो।
इसके अलावा उनकी एक और लोकप्रिय यात्रा में भाग लेने वाले यात्रीगण नौवीं सदी अथवा इससे भी पुराने मंदिरों को देख सकते हैं। यह अनुभव जादू, देवी-देवताओं, महान योद्धाओं, राजघरानों और उनके वंशजों की कहानियां मनमोहनी वाली होती हैं। साईकिल यात्रा के दौरान पर्यटकों को विशिष्ट स्थानों पर लजीज नाश्ता कराया जाता है, जिनका जिक्र वे बंगलौर नामा में बतायी जाने वाले प्रसिद्ध पकवानों के रुप में पढते हैं।
सप्ताह के अंत में होनी वाली यात्राएं जिन्हें वीकंड ट्रेल के नाम से जाना जाता हैं, के तहत यात्रियों को बंगलौर से बाहर कुर्ग, वायांड और ऊटी की सैर करवाई जाती है।
लंबी और साहसिक यात्राओं के शौकीनों के लिये भी इनके पास अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विकल्प के अलावा गोवा की एक सप्ताह की यात्रा का प्रोग्राम भी है जहां यात्री औपनिवेशक प्रभाव के साथ-साथ अनके चर्च, कला और संस्कृति को भी परिभाषित करते हैं।
इसके अलावा ये लोग अपने यात्रियों को उनकी पसंद की यात्रा करने की छूट भी उपलब्ध करवाते हैं। मई के महीने में अनवंेचर्ड ने माताओे के लिए अपने बच्चों के साथ यात्रा करने के लिए मातृ दिवस पर विशेष यात्रा का सफल आयोजन किया है। इन विशेष या़त्राओं में लेह और भूटान की यात्राएं शामिल हैं।
तेजस्वनी गोपालास्वामी का कहना है कि, ’’दिन की यात्राएं निश्चित रूप से उन लोगों के लिए काॅॅफी रुचिकर रही हैं जो देश के विभिन्न भागों से यहां आये और फिर यहीं पर आकर बस गये। इन शहरों की कहानियां सुनकर उन्हें यहां से प्रेम हो गया। विशेष रुप से ऐसे समुदायों की कहानियांे ने उन्हें बहुत आकर्षित किया जो बंगलौर को बसाने के लिए अपने घरों का छोड़कर यहां आये थे।’’