भारत में शौचालयों को सुलभ बनाकर लोगों की मदद कर रहे हैं ये 6 स्वच्छता स्टार्टअप
खुले में शौच करने वाली दुनिया की कुल आबादी का 60 प्रतिशत भारत में रहती है। इस लेख में हम आपको कुछ ऐसी पहलों के बारे में बता रहे हैं जो इस समस्या को हल करने की कोशिश कर रही हैं। शहरी और ग्रामीण दोनों ही संदर्भों में भारत में स्वच्छता एक बड़ी समस्या है।
बढ़ती जनसंख्या के साथ, समस्याएं भी बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच और शहरी क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, और इस मुद्दे से निपटने की कोई पहल शायद ही काम कर रही है।
हालांकि सुलभ इंटरनेशनल की कहानी हर कोई जानता है, लेकिन हमने कुछ और पहलों के बारे में जानने की कोशिश की और पाया कि यह 6 पहल ऐसी हैं जो शौचालय बनाने के लिए अधिक सुलभ होने का वादा करती हैं।
3S- सैनिटेशन सलूशन सिंपलीफाइड (स्वच्छता समाधान सरलीकृत)
3S इस क्षेत्र का अग्रणी स्टार्टअप है। 3S पोर्टेबल टॉयलेट, किफायती समाधान, लक्जरी टॉयलेट कंटेनर और सफाई सेवाएं प्रदान करता है। कंस्ट्रक्शन साइट्स और ईवेंट्स के लिए सबसे उपयुक्त, इस कंपनी को 1999 में पुणे में राजीव खेर ने शुरू किया था। वर्तमान में, यह संगठन 155 मिलियन लीटर लिक्विड वास्ट को मैनेज करता है, जो प्रतिदिन 1,55,000 से अधिक लोगों की सेवा करता है।
बेसिक शिट
जैसा कि नाम से पता चलता है, बेसिक शिट का लक्ष्य सार्वजनिक स्वच्छता के लिए स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण बनाना है। 2014 में द्वारका, नई दिल्ली से अश्वनी अग्रवाल द्वारा शुरू किया गया, बेसिक शिट सार्वजनिक क्षेत्रों में अकुशल श्रम द्वारा स्थापित किए जाने वाले स्वच्छ, कम लागत, पोर्टेबल यूरिनल बनाता है, जहां लोग अक्सर खुले में पेशाब करते हैं। यूरिनल कचरे के सही निपटान को सुनिश्चित करने के लिए इन्हें मैनहोल्स के माध्यम से सीवरों से जोड़ा जाता है और एक यूनिट को कवर करने के लिए टिन शेड के साथ 20-लीटर पानी के जार (बायोडिग्रेडेबल पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक) से बनाए जाते हैं।
Svadha
2014 में गरिमा सहाय और केसी मिश्रा द्वारा शुरू किया गया, Svadha स्वच्छता से जुड़े सभी समाधान उपलब्ध कराता है। इसके पास गुणवत्ता, सस्ती और टिकाऊ स्वच्छता समाधान तक पहुंच प्रदान करने के लिए उद्यमियों की एक सेना है। Svadha भागीदारों को सक्षम करने, आपूर्ति प्राप्त करने और तकनीकी व प्रशिक्षण लागू करने वाले भागीदारों से फुल स्टैक का स्वामित्व करके ऐसा करता है। टॉयलेट बोर्ड गठबंधन के पहले त्वरक कार्यक्रम के तहत समर्थित, Svadha ओडिशा से संचालित होता है।
एकम इको सॉल्यूशंस
नई दिल्ली स्थित, एकम इको सॉल्यूशंस 2013 में विजयराघवन चरण और उत्तम बनर्जी द्वारा शुरू किया गया था। यह टिकाऊ स्वच्छता, बांस उत्पादों और टिकाऊ आजीविका के क्षेत्र में काम करता है। कंपनी ने जेरोडोर नामक एक पानी रहित मूत्रालय विकसित किया है, जो पूरी तरह से नान-कंज्यूमेबल और नान-केमिकल-बेस्ड मकैनिकल डिवाइस है। पारंपरिक वॉटर फ्लश यूरिनल में फ्लशिंग के लिए लगभग 2-4 लीटर पानी खर्च होता है, वहीं जेरोडोर एक सिंपल अटैचमेंट देकर इस समस्या को हल करता है जिसे मौजूदा यूरिनल के साथ 10 मिनट से भी कम समय में स्थापित किया जा सकता है।
समाग्रा
पुणे के 'पूप गाय' स्वप्निल चतुर्वेदी द्वारा शुरू किया गया, समाग्रा शहरी गरीबों के लिए अच्छी गुणवत्ता और सुलभ शौचालय बनाने के व्यवसाय में है। बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, स्वच्छ भारत अभियान और कई भागीदारों द्वारा समर्थित, समाग्रा मुख्य रूप से डिजाइन और व्यवहार परिवर्तन के साथ काम करता है ताकि अधिक टिकाऊ भविष्य तक पहुंच सके। कंपनी ऐसे शौचालयों का निर्माण करती है, जिनमें लाइट और वेंटिलेशन जैसी बुनियादी सुविधाएं होती हैं। इसके अलावा कंपनी नियमित रखरखाव सेवाएं, सेनेटरी डस्ट डिब्बे और बच्चों के सामान प्रदान करके एक कदम आगे जाती है। वे कार्यशालाओं और डोर-टू-डोर सर्वेक्षणों द्वारा व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं।
Bankabio
2012 में तेलंगाना से नमिता बांका द्वारा शुरू की गई, कंपनी मानव अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के लिए इनोवेटिव पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने और विकसित करने में लगी हुई है। कंपनी मानव कचरे के डाइजेशन के लिए जैव-टैंकों के निर्माण, आपूर्ति और स्थापना से संबंधित है। कंपनी मानव अपशिष्ट के पूर्ण समाधान के रूप में बायो टैंक्स के विनिर्माण, आपूर्ति और उनकी स्थापना आदि डील करती है। इसके अलावा कंपनी किराए और वार्षिक रखरखाव अनुबंध पर मोबाइल बायोटॉलेट्स, बड़े जैव टैंक के विकास के लिए परामर्श, अपशिष्ट जल उपचार और रीसाइक्लिंग समाधान आदि से भी डील करती है।
ये पहलें उन लोगों का उदाहरण हैं, जिन्होंने शुरुआत में इतनी बड़ी लगती समस्या के प्रति काम करने के लिए जबरदस्त धैर्य दिखाया है। विकासशील दुनिया को इन पहलों की अधिक से अधिक आवश्यकता है।