लोइया ने नौकरी छोड़ मणिपुर में बसाया 300 एकड़ का पुनशिलोक जंगल
पश्चिमी इंफाल के उरीपोक खैदेम निवासी मोइरांगथेम लोइया (45) मणिपुर की एक ऐसी बेमिसाल शख्सियत हैं, जिन्होंने स्टेट फॉरेस्ट रिजर्व की लगी-लगाई जॉब छोड़कर ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ लगभग दो दशक लंबा संघर्ष करते हुए तीन सौ एकड़ जमीन को जंगल में तब्दील कर डाला है। अब यहां दुनिया भर के पर्यटक आते रहते हैं।
इंफाल (मणिपुर) के उरीपोक खैदेम निवासी पैंतालीस वर्षीय मोइरांगथेम लोइया पिछले अठारह वर्षों से ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ संघर्षरत हैं। उनके उस बेमिसाल जुनून और जुझारूपन का ही प्रतिफल है, फिर से हरा-भरा हो चुका 300 एकड़ का पुनशिलोक जंगल। अपनी लंबी भूख हड़ताल खत्म करने के बाद सितंबर 2016 में इरोम शर्मिला भी उनका जंगल देखने पहुंची थीं। लोइया बचपन में पुनशिलोक वनक्षेत्र में खेलाकूदा करते थे।
वर्ष 2000 में अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद लोइया एक दिन जब पुनशिलोक इलाके में घूम रहे थे, उन्होंने देखा कि अब तो यहां पहले जैसी रमणीयता नहीं रही। सब कुछ निचाट सा उजड़ चुका है। लापता हरियाली की स्मृतियों ने उन्हे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। बचपन की यादों में समाये हुए पुनशिलोक के दृश्य उन्हे बेतरह परेशान करने लगे। वैसा सब कुछ न पाकर दो वर्षों तक उनका मन उचटा रहा।
जब पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग सुर्खियों में आ चुका था, अपनी मानसिक उथल-पुथल में एक दिन लोइया ने सोचा कि क्यों न वह अपना जीवन पुनशिलोक क्षेत्र को फिर से हरा-भरा करने में समर्पित कर दें।
उसके बाद वर्ष 2002 में, जब वह स्टेट फॉरेस्ट रिजर्व में जॉब करने लगे थे, एक दिन पुनशिलोक के मारू लांगोल हिल रेंज पहुंच गए, जो पूरी तरह वृक्ष-विहीन हो चुका था। पूरे क्षेत्र में एक भी पेड़ नहीं था। वह कहने भर को हिल रेंज रह गया था।
उसी दिन लोइया ने अपनी दवाओं वाली नौकरी छोड़ दी और वहीं पुनशिलोक में एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। इस तरह उनके साल-दर-साल छह वर्ष गुजर गए। इस बीच वह एक-अकेले जुनून में वहां मगोलिया, ओक, बांस, टीक, फिकस आदि के बीज खरीद लाए। उन्हे जमीन बो दिया। तैयार होने के बाद उनके पौधे रोपने लगे।
लोइया की रोजमर्रा की ऐसी गतिविधियों ने उनके साथ कुछ दोस्तों को भी जोड़ लिया। वर्ष 2003 में लोइया और उनके साथियों ने वाइल्डलाइफ ऐंड हैबिटैट प्रोटेक्शन सोसायटी (डब्ल्यूएएचपीएस) बनाई। इस संस्था के वॉलंटियर्स भी वृक्षारोपण में जुट गए। इसके बाद तो वन विभाग का अमला भी उनके साथ हो लिया। जंगल के आसपास बनाए गए अवैध मकानों को उन्होंने ढहा दिया।
इस समय लोइया, उनके साथियों और वन विभाग की मदद से पुनशिलोक का लगभग तीन सौ एकड़ का इलाका हरियाली से लहलहा रहा है। उनके बसाये हुए जंगल में इस समय बांस की दो दर्जन से अधिक प्रजातियों के अलावा दो-ढाई सौ औषधीय तरु-प्रजातियां भी हैं। जंगल बस गया तो उसमें वनवासी चीता, हिरण, भालू, तेंदुआ, साही वन्य प्रजातियां भी विचरने लगी हैं। पूरा जंगल हर वक़्त पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा है। वहां के तापमान में भी गिरावट आ चुकी है।
इस दौरान लोइया और उनके साथियों ने कई एक बार जंगल को लपटों में झुलसने से भी बचाया है। मोइरांगथेम लोइया बताते हैं कि अब तो उनका तीन सौ एकड़ में फैला पुनशिलोक जंगल देश-विदेशों के पर्यटकों से भी गुलजार रहने लगा है। अपनी कड़ी मेहनत से उन्होंने इस वीरान जगह को हरा-भरा बना दिया है। लोइया को इस काम में राज्य सरकार से भी पूरा प्रोत्साहन मिला है।