इस व्यक्ति के बनाए हुए स्केच से अपराधियों को पकड़ती है मुंबई पुलिस
महाराष्ट्र का वह 'आधा पुलिसवाला'
चित्रकार नितिन महादेव यादव के बनाए स्केच के आधार पर मुंबई पुलिस भले साढ़े चार सौ से अधिक खूंख्वार अपराधियों को दबोच चुकी हो, आज भी उन्हें कम ही लोग जानते हैं। स्केचिंग को वह राष्ट्रसेवा मानते हैं। अपने बनाए स्केच की वह कोई कीमत नहीं लेते। लोग कैंसर पीड़ित नितिन को 'आधा पुलिस वाला' कहते हैं। वह डेढ़ सौ से अधिक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं।
नितिन कहते हैं कि उनकी कला किसी मायने में समाज के काम आई, यह सोचकर उन्हे खुशी मिलती है। उन्हें वह बात आज भी नहीं भूली है कि कला का इस्तेमाल गलत काम के लिए नहीं करना चाहिए।
जिनके बनाए स्केच के सहारे पुलिस अब तक तमाम खतरनाक अपराधियों को जेल के सींखचों के पीछे पहुंचा चुकी है, ऐसे जीवंत रेखांकन चित्रकार नितिन महादेव यादव का जन्म महाराष्ट्र के एक अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ। उनके पिता कुर्ला की स्वदेशी मिल में वर्कर थे। मां धागों, मोतियों से तोरण, कपड़े और रुई से बच्चों के खिलौने सजातीं। अपने तीन भाई, तीन बहनों में एक नितिन के परिवार का हर सदस्य कलाकार, लेकिन किसी ने उसे अपना कॅरियर नहीं बनाया। वे सभी पढ़ाई करके अलग-अलग कामों में लग गए। सिर्फ वह और उनकी बड़ी बहन ने ही चित्रकारी को पेशे के तौर पर लिया। घर-गृहस्थी चलाने के लिए दोनों स्कूल में ड्रॉइंग टीचर हो गए। आज पिछले तीन दशकों से नितिन चेंबूर के एक प्राइमरी स्कूल में टीचिंग से घर चलाते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को चित्र बनाना सिखाते हैं।
वह बताते हैं, 'जब मैं सातवीं क्लास में था, एक बार बॉल पेन और वॉटर कलर से बड़ी मेहनत से पेंट करके हू-ब-हू बीस रुपए का एक नोट बनाया। उसे बनाने में तीन दिन लगे। जब वह नोट लेकर दुकान में छुट्टा मांगने जाता तो दुकानदार उसे अपने गल्ले में डाल लेता, छुट्टा देने लगता तो वह कहते कि ये नकली नोट है। बहुत ध्यान से देखने पर ही समझ आता। उसके बाद से हर कोई उनकी पेंटिंग की तारीफ करने लगा। फिर एक दिन वह वह नोट लेकर स्कूल गए। स्कूल में वह नोट हर क्लास में घूमा, बच्चों से लेकर टीचर तक सभी नितिन की प्रतिभा के मुरीद हो गए। उसी समय एक टीचर ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा कि तुम्हारी चित्रकला बहुत अच्छी है, तुमने बिलकुल असली जैसा दिखता नोट बनाया है, लेकिन ये काम अब दोबारा कभी मत करना। कला का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। वह बात उनके मन में स्थायी रूप से बैठ गई।'
आज नितिन को पुलिस के लिए अपराधियों के स्केच बनाते लगभग तीन दशक हो रहे हैं, लेकिन पुलिस के अलावा उन्हे कम ही लोग जानते हैं। अगस्त, 2013 की बात है। मुंबई के शक्ति मिल्स कंपाउंड में एक महिला पत्रकार के साथ गैंगरेप की घटना हुई। उसी रात दो बजे नितिन के पास पुलिस का फोन वहुंचा। वह रात में ही पुलिस स्टेशन पहुंच गए। वहां लोगों की भीड़ लगी थी। पीडि़त लड़की को जसलोक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। नितिन उससे कभी नहीं मिले।
पुलिस स्टेशन में उस वक्त एक फोटोग्राफर था, जो घटना के समय लड़की के साथ उपस्थित रहा था। वही घटना का इकलौता प्रत्यक्षदर्शी था। घटना के बाद लोगों ने उसकी जमकर पिटाई की थी। उसने नितिन को अपराधियों का हुलिया बताया, उसके आधार पर रात भर में स्केच तैयार। पुलिस ने उस स्केच के आधार पर पहले एक अपराधी को, फिर बाकी चार और दबोच लिया। बाद में पांचों को अदालत से सजा हो गई। अखबार में उस घटना की खबर के साथ नितिन के बनाए स्केच भी छपने के बाद लोग उन्हे जानने-पहचानने लगे। इसी तरह पुणे में जब प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता लेखक दाभोलकर ही हत्या हुई, पुलिस अपराधियों की तलाश करने लगी। पुलिस नितिन को अपने साथ पुणे ले गई। वहां नितिन ने पुलिस आयुक्त के सामने बैठकर तीन घंटे में हत्यारे का स्केच बना दिया। उस स्केच के सहारे ही पुलिस ने कातिल हो दबोच लिया।
नितिन कहते हैं कि उनकी कला किसी मायने में समाज के काम आई, यह सोचकर उन्हे खुशी मिलती है। उन्हें वह बात आज भी नहीं भूली है कि कला का इस्तेमाल गलत काम के लिए नहीं करना चाहिए। उस बात को वह गांठ न बांध लेते तो क्या पता, वह बड़े होकर नकली नोट बनाने लगते लेकिन उस दिन के बाद से उन्होंने कभी नोट का स्केच नहीं बनाया। यद्यपि घर की गाड़ी खींचने के लिए उन्हें लगातार घनघोर संघर्ष करना पड़ा। उनके घर में एक वक्त ऐसा भी आया, जब स्वदेशी मिल बंद हो गई। पिता बेरोजगार हो गए। घर में बहुत गरीबी थी। बड़े भाई के पास भी कोई काम नहीं था। घर में आय का कोई जरिया नहीं था तो नितिन वाहनों के नंबर प्लेट पेंट करने लगे। उसी दौरान जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पेंटिंग का डिप्लोमा कर लिया। वह मास्टर्स की डिग्री लेना चाहते थे, लेकिन वक्त ने साथ नहीं दिया। वर्ष 1984 की एक घटना का जिक्र करते हुए नितिन बताते हैं- 'एक दिन कुर्ला (मुंबई) के एक होटल में मर्डर हो गया। उस समय वह पुलिस वाहनों के लिए भी नंबर प्लेट पेंट करते थे। उस दिन पुलिस वाले आपस में बात कर रहे थे कि उस मर्डर करने वाले को कैसे पकड़ा जाए। एक वेटर था, जिसने कातिल को देखा था। उन्होंने पुलिस के कहने पर कातिल का स्केच बना दिया। पुलिस ने उस स्केच के सहारे कर्नाटक जाकर कातिल को पकड़ लिया। उसके बाद ऐसे किसी भी केस में पुलिस वाले स्केच बनाने के लिए बुलाने लगे।'
लोग नितिन को 'आधा पुलिसवाला' भी कहते हैं। नितिन जब पांचवीं क्लास में पढ़ते थे, पिता ने पहली बार उनमें चित्रकारी की अद्भुत प्रतिभा देखी। नितिन कहते हैं कि 'उस जमाने में सोशल मीडिया तो था नहीं। पुलिस वालों का जब एक चौकी से दूसरी चौकी में ट्रांसफर होता तो मेरा नाम भी दूसरी चौकी में पहुंच जाता। सब एक-दूसरे को बताते और ऐसे धीरे-धीरे करके पूरी मुंबई की सारी पुलिस चौकियों में मेरा नाम फैल गया। पुलिस वाले छोटे से लेकर बड़े केस तक में स्केच बनाने के लिए मुझे बुलाने लगे। वह पुलिस के लिए अब तक चार हजार से ज्यादा स्केच बना चुके हैं। पुणे के जर्मन बेकरी ब्लास्ट के आतंकी का भी उन्होंने स्केच बनाया। वह भी पकड़ा गया। वह पुलिस के लिए जो भी स्केच बनाते, उसकी छायाप्रति उन्हें नहीं दी जाती थी। उनके पास एक संदूक में उनके बनाए ढेर सारे चित्र रखे थे। एक बार घर में चोरी हुई तो वह संदूक भी चोरी चला गया। उसके साथ ही उनके बनाए सारे चित्र, बचपन की सारी यादें चली गईं। अब वही चित्र बचे हैं, जिनकी स्मृतियां मन में रह गई हैं। फिर भी उनके पास करीब दो हजार स्केच अभी रह गए हैं।
नितिन बताते हैं कि एक बार एक गूंगी लड़की से बलात्कार हो गया। वह बधिर भी थी। वह न कुछ बता सकती थी, न सुन सकती थी। तत्कालीन डीएसपी ने नितिन को बच्ची से मिलवाया। नितिन ने पीड़ित बच्ची की आंखों से भांपकर बलात्कारी के एक-एक कर कई स्केच, कई तरह की आंखें, कई तरह के चेहरे, नैन नक्श बनाकर उसे दिखाए। उस स्केच के आधार पर ही डीएसपी ने बलात्कारी को बहत्तर घण्टे में दबोच लिया। नितिन के बनाए स्केचेज के सहारे मुम्बई पुलिस साढ़े चार सौ से अधिक खूंख्वार अपराधी गिरफ्तार कर चुकी है।
नितिन कहते हैं कि 'किसी के मुंह से सुनकर चित्र बनाना कोई आसान काम नहीं है। इंसान कौआ, कबूतर नहीं कि सब एक जैसे ही हों। हर चेहरा अलग होता है। इसलिए स्केच बनाने से पहले वह विवरण देने वाले से बारीकी से सवाल करते हैं। उसकी हर बात ध्यान से सुनते हैं। उसकी बुद्धि और समझ का भी आंकलन करने की कोशिश करते हैं। इसी दौरान वह जान लेते हैं कि बताने वाला कितना पढ़ा-लिखा है, उसका ऑब्जर्वेशन कितना तेज है। फिर वह एक-एक बात दोबारा बारीकी से पूछते हैं कि क्या देखा, कितना देखा, कितनी दूर से देखा, कितनी रौशनी में देखा, क्या उसकी शक्ल किसी से मिलती जुलती थी, उम्र क्या थी, आदि-आदि। उसी दौरान वह स्केच उतारते जाते हैं। नितिन की चित्रकला के साथ संगीत में भी गहरी अभिरुचि रही है। वह बचपन से ही गाने गाते थे। तरह-तरह के इंस्ट्रूमेंट भी बजाया करते। वह हारमोनियम, कीबोर्ड, माउथ ऑर्गन, तबला, ढोलक, बेंजो लेते हैं। चार साल पहले उनको गले का कैंसर हो गया। आवाज पहले जैसी नहीं रही। अब तो बड़ी मुश्किल से गले से आवाज निकलती है। बोलने में काफी तकलीफ होती है।'
यह सब बताते हुए उनकी आंखें भर आती हैं। नितिन ने खारघर में दो साल पहले ही वन-बेडरूम का फ्लैट बुक कराया था। कुर्ला में वह एक छोटी चाल में रहते थे। अब भी चाल में ही रहते हैं। जब उनको कैंसर हुआ तो उन्हें थोड़ा डर लगा। पहली बार उन्होंने सोचा कि घरवालों के लिए कुछ तो कर जाएं। कल को उन्हे कुछ हो गया तो उनकी पत्नी और बच्चों का क्या होगा। उनको पैसों का लालच कभी नहीं रहा। स्कूल टीचर की नौकरी से जितने पैसे मिलते थे, उसी से घर चलाते रहे। वह कहते हैं कि आज भी तमाम ऐसे गरीब बच्चे हैं, जिन्हें वह मुफ्त में ही सिखाते हैं। अपराधियों के स्केच बनाने के पुलिस महकमे से भी उन्होंने कभी एक पैसे नहीं लिए। कभी किसी ने खुशी से कुछ इनाम दे दिया तो ले लिए पर कभी मांगे नहीं। पुलिस वाले नोटों की गड्डियां लेकर उनके पीछे डोला करते, लेकिन वह हाथ जोड़ कर रुपए लेने से मना कर देते। तीन दशक तक इस राष्ट्रसेवा के बदले नितिन को डेढ़ सौ से अधिक प्रतिष्ठित संस्थाओं ने सम्मानित किया है।
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