देश की ऐसी पहली जेल जहां है जूतों की फैक्ट्री, कैदी बनाते हैं ब्रांडेड जूते
वो जेल जहां कैदी बनाते हैं ब्रांडेड जूते...
पुणे की यरवदा जेल में पिछले एक सालों से लेदर के ब्रांडेड जूते बनाने का काम कैदियों द्वारा किया जा रहा है। ये जूते 'इन्मेट' ब्रैंड के नाम से बनाए जाते हैं और इन्हें ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है।
'पहले यरवदा जेल के कैदी पुलिसकर्मियों के लिए वर्दी बनाने का काम करते थए, लेकिन तीन साल पहले सरकार ने पुलिसकर्मियों को वर्दी का भत्ता देना शुरू कर दिया जिससे जेल में वर्दी बनाने का काम खत्म सा हो गया।'
आपने जेल में कैदियों द्वारा कुर्सियां, फर्नीचर जैसे सामान बनाने के बारे में तो सुना होगा, लेकिन जेल में लेदर के जूते बनाने की बात थोड़ी अलग लग सकती है। पुणे की यरवदा जेल में पिछले एक सालों से लेदर के ब्रांडेड जूते बनाने का काम कैदियों द्वारा किया जा रहा है। ये जूते 'इन्मेट' ब्रैंड के नाम से बनाए जाते हैं और इन्हें ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है। यह पहल मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी 'टिर्गस वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड' और राज्य जेल विभाग द्वारा मिलकर की गई थी। मकसद था जेल के कैदियों को प्रशिक्षण देकर उनके लिए रोजगार का प्रबंध करना, ताकि वे सिलाई बुनाई जैसे कामों तक सीमित न रहें।
जूते बनाने के लिए पुणे की यरवदा जेल के भीतर ही वर्कशॉप बनाई गई और शुरू में 10 कैदियों को इस काम में लगाया गया। इन्मेट के फाउंडर दिवेज मेहता कहते हैं, 'हमारे लिए ये महत्वपूर्ण था कि कैदियों द्वारा बनाए जाने वाले जूते अच्छे क्वॉलिटी के हों और उन्हें इंटरनेशनल लेवल पर एक्सपोर्ट किया जा सके। हम ये भी चाहते थे कि जो कैदी काम करना चाहते हैं उन्हें रोजगार मिले। जिन कैदियों को जूते बनाने का थोड़ा बहुत काम आता था उन्हें प्राथमिकता दी गई।' जूते बनाने का कच्चा माल टिर्गस कंपनी देती है वहीं सारी मशीनें जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गईं।
शुरू में ये कैदी सिर्फ जूते का ऊपरी हिस्सा तैयार करते थे जिसे टिर्गस कंपनी दूसरे फुटवियर ब्रैंड्स को एक्सपोर्ट करती थी। लेकिन 6 महीने की ट्रेनिंग के बाद कंपनी को लगा कि ये कैदी भी अच्छे जूते बना सकते हैं। अब ये कैदी पूरा जूता खुद ही तैयार करते हैं जिन्हें इन्मेट्स वेबसाइट पर बेचा जा रहा है। टिर्गस कंपनी सोशल मीडिया पर जूतों का प्रमोशन करती है। मेहता ने बताया कि जूते बनाने वाले कैदियों की संख्या बढ़कर 60 हो गई है और इन कैदियों की उम्र 18 से 65 साल तक है। नए कैदियों को भी ट्रेनिंग दी जा रही है और ट्रेनिंग देने वाले ट्रेनर हर वक्त जेल में मौजूद रहते हैं।
इन्मेट द्वारा बनाए जाने वाले जूतों की कीमत 2,500 रुपये के आसपास होती होती है। कंपनी हर कैदी को 200 रुपये प्रति दिन के हिसाब से देती है। लेकिन जेल प्रशासन द्वारा बनाए गए रूल्स के मुताबिक एक कैदी को उसके काम के बदले प्रतिदिन 55 रुपये से ज्यादा नहीं दिए जा सकते इसलिए बाकी पैसे कैदियों के ऊपर ही खर्च कर दिए जाते हैं। जेल की डेप्युटी इंस्पेक्टर जनरल स्वाति साठे ने बताया, 'पहले यरवदा जेल के कैदी पुलिसकर्मियों के लिए वर्दी बनाने का काम करते थए, लेकिन तीन साल पहले सरकार ने पुलिसकर्मियों को वर्दी का भत्ता देना शुरू कर दिया जिससे जेल में वर्दी बनाने का काम खत्म सा हो गया।'
यरवदा जेल में जूते बनाने का काम देखने वाली कंपनी पहले तमिलनाडु में कैदियों के साथ काम कर चुकी है। साठे ने बताया कि यरवदा जेल में पहले से ही बेकरी, कारपेंट्री, फार्मिंग और लोहार, हथकरघे का काम होता है। ये सारे प्रॉडक्ट जेल डिपार्टमेंट स्टोर के जरिए बेचे जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है कि किसी जेल में ब्रांडेड जूते बनाने का काम हो रहा है, इससे कैदियों को प्रोत्साहन मिलने के साथ ही उनके जीवन में सुधार आएगा।
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