कभी न खुद की जमीन थी न मकान, पर अब बदल गए अंजोर के दिन
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
यह कहानी बोड़ला ब्लॉक के सुदूर वनांचल और बालाघाट की सीमा को छूते कबीरधाम जिले के आखिरी पंचायत तितरी के आश्रित गांव तरमा की है। एक ऐसे सपने की कहानी, जो पिछले 7 साल में हकीकत में बदल गई। 2010 तक अंजोर सिंह ने बेहद गरीबी के दिन देखे हैं।
अंजोर सिंह की कमजोर आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए प्रशासन ने उन्हें साल 2011 में वन अधिकार पट्टा दिया। इससे उन्हें खेती लायक जमीन मिल गई, जिसमें फसल उगाकर वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके।
अंजोर सिंह मेरावी। ऐसा ग्रामीण जिसकी खुद की जमीन न थी। कभी उसने कल्पना भी न की थी, कि उसे रहने के लिए जमीन मिलेगी, मकान मिलेगा, खेती के लिए भी जमीन मिल जाएगी और उस पर सिंचाई के साधन विकसित हो जाएंगे। यह भी न सोंचा था कि इन सिंचाई साधनों के जरिए उसके फसल लहलहाएंगे। लेकिन यह कहानी न सिर्फ सच हुई, बल्कि इसने आदिवासी ग्रामीण को आर्थिक तौर पर समृद्ध भी बना दिया।
सरकार की अलग-अलग योजनाओं ने किसान अंजोर सिंह मेरावी और उनकी पत्नी रामबती मेरावी की जिंदगी ही बदल दी। यह कहानी बोड़ला ब्लॉक के सुदूर वनांचल और बालाघाट की सीमा को छूते कबीरधाम जिले के आखिरी पंचायत तितरी के आश्रित गांव तरमा की है। एक ऐसे सपने की कहानी, जो पिछले 7 साल में हकीकत में बदल गई। 2010 तक अंजोर सिंह ने बेहद गरीबी के दिन देखे हैं। न खुद की जमीन और न मकान। जैसे-तैसे वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे। लेकिन साल 2011 उसके लिए बड़ा बदलाव लेकर आया। सरकार की योजनाएं उन तक पहुंची और उसने अंजोर सिंह की जिंदगी बदलकर रख दी।
हर साल खाद और बेहतर क्वालिटी के बीज भी, ताकि बेहतर उत्पादन हो
इन योजनाओं के अलावा सरकार गरीबों को राशन कार्ड के जरिए कम दर पर राशन उपलब्ध करा रही है। अंजोर सिंह जैसे गरीबों को एसीसीसी डाटा में नाम होने के चलते उज्जवला गैस कनेक्शन भी मिल चुका है। विद्युत विभाग से उन्हें एकल बत्ती कनेक्शन भी दिया गया है। अंजोर व उनकी पत्नी रामबती को कृषि विभाग हर साल नि:शुल्क खाद और प्रमाणित बीज भी उपलब्ध कराता है, ताकि उनके फसल का उत्पादन ज्यादा आ सके।
2011 में मिला वन अधिकार पट्टा, यहां से हुई परिस्थितियों में सुधार की कहानी
अंजोर सिंह की कमजोर आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए प्रशासन ने उन्हें साल 2011 में वन अधिकार पट्टा दिया। इससे उन्हें खेती लायक जमीन मिल गई, जिसमें फसल उगाकर वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। इसके दो साल बाद ही 2013 में उन्हें वन आवास पट्टा मिला। आवास बनाने के लिए जमीन मिली और 75000 रुपए की राशि शासन ने उन्हें मकान बनाने के लिए दी। 2013 में ही उनकी 5 एकड़ वन भूमि का मनरेगा के तहत समतलीकरण करते हुए सुधार किया गया। यह तो सोने पर सुहागा हो गया। जमीन का सुधार होते ही, फसल का उत्पादन बढ़ गया और इसका फायदा उन्हें आर्थिक तौर पर हुआ। अंजोर सिंह को मनरेगा के तहत ही 2016 में अपने खेत में सिंचाई सुविधा विकसित करने के लिए कुएं की स्वीकृति शासन ने दी। साथ ही सौर सुजला के जरिए उन्हें पंप भी मिल गया।
ऐसे हजारों परिवार, जिन्हें सरकार की अलग-अलग योजनाओं ने बनाया समृद्ध
कबीरधाम जिले में ऐसे लाखों परिवार हैं, जिन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं ने समृद्ध बनाया है। जिले में 10160 परिवारों को वन भूमि अधिकार पट्टा, 26647 किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए पंप, 508 किसानों को सौर सुजला योजना के तहत लाभ, 22438 परिवारों को पीएम आवास योजना का फायदा मिला है। इस तरह अलग-अलग योजनाओं से बड़ी संख्या में ग्रामीण लाभान्वित हो चुके हैं।
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