हुनर को 'द टैप' किया और कुछ लकीरों में धड़कने लगी क्रिएटिविटी
राम्या श्रीराम उन कुछ लोगों में से हैं जिनके हुनर को उनके स्केचिंग पेन की पनाह में ही सुकून मिलता है...
“मुझे लगता है कि इसलिए किस्मतवाली हूँ, क्योंकि बचपन से ही मेरे दिमाग में आने वाली किसी भी चीज़ को करने से मुझे रोका नहीं गया। मेरा लक्ष्य समय के साथ-साथ जब-तब बदलता रहता था- कभी मुझे चिड़ियाघर की रखवाली करना होती थी तो कभी मैं घर में पेपर को रीसाइकल करने लगती थी। मैंने अपनी सभी इच्छाओं को गंभीरता से लिया, और ऐसा करने के लिए मुझे जो प्रेरणा मिली, उससे मुझे कई रोचक अनुभव हुए। मुझे इसी वजह से बढ़ावा दिया जाता है और इससे मुझे कई मज़ेदार अनुभव हुए।” यह कहना है द टैप की संस्थापक राम्या श्रीराम का। उनके शब्दों में टैप, “मेरे फ़ितूरी दिमाग और सोच से भरी कलम से निकली कहानियों का घर है।”
द टैप में जीवन को कॉमिक्स के ज़रिए दर्शाया जाता है। इसमें राम्या अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाकर ऐसी विज़ुअल कहानियाँ बनाती हैं जिनमें भाषाओं से जुड़ी सभी रुकावटों का औचित्य ही नहीं रहता।
उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे कॉमिक्स बनाने लगेंगी। एक लैपटॉप टचपैड के ज़रिए अपने दोस्तों के चित्र बनाकर फ़ेसबुक पर पोस्ट करने के खेल से इसकी शुरूआत हुई। एक दोस्त ने इनके हुनर को देखकर अपनी मैग्ज़ीन के लिए कॉमिक स्ट्रिप बनाने का प्रस्ताव दे दिया। राम्या बताती है कि “जब मुझे पहली कस्टम कॉमिक बनाने का ऑर्डर मिला तब मुझे लगा कि इस शौक को किसी बड़ी चीज़ में तब्दील किया जा सकता है। मैंने और भी मेहनत और समय देकर अपने काम को गंभीरता से लेना शुरू किया। अलग-अलग कहानियों को बताने के लिए कई अलग तरीकों और फ़ॉर्मेट्स पर काम किया। किसी और के नज़रिये से सोचना और उसे आख़िरकार में चित्रों से सजी कहानी में पिरोने की प्रक्रिया में मुझे बहुत मज़ा आता है।”
हैदराबाद स्थित अपने स्कूल में राम्या का मन पढ़ाई या खेल के बजाय कला, शिल्प, संगीत और नृत्य जैसी दूसरी गतिविधियों में ज़्यादा लगता था। पीटी क्लास और पियानो क्लास में से वह हमेशा पियानो ही चुनती थीं। मनचाही चीज़ें करने की आज़ादी होने के बावजूद स्कूल ख़त्म होने के बाद तक राम्या को यह नहीं पता था कि आगे क्या करना है। स्कूल के बाद उन्होंने वेल्लूर के वेल्लूर इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
ग्रैजुएशन के बाद भी आगे की ज़िंदगी का रास्ता साफ़ नहीं था। उन्होंने कई कॉलेजों, कंपनियों में आवेदन किए, प्रवेश परीक्षाएँ भी दीं। आख़िर में उन्होंने एक प्रकाशन में संपादक के रूप में काम शुरू किया और पाँच साल तक वहीं टिकी रहीं।
पब्लिशिंग हाउस में काम करके राम्या को ख़ुद के बारे में कई चीज़ें समझने का मौका मिला: “मैं दफ्तर में कई किताबें संपादित करती; और घर जाकर कॉमिक्स बनाने लगती। अकादमिक किताबों की ग़लतियाँ ठीक करती; और फिर घर जाकर अपने घूमने-फ़िरने से जुड़ी कहानियाँ लिखने लगती। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं हमेशा चित्रकारी और लेखन हमेशा मुझसे जुड़े रहे और यही मेरा लक्ष्य हैं! यह सब बस होते-होते हो गया।”
राम्या ने अपनी कहानियों को लोगों तक पहुँचाने के लिए द टैप की शुरूआत की।
“मैं कई बार क्लाइंट मीटिंग्स में बैठे-बैठे कॉमिक्स बनाने के बारे में सोचती रहती थी, सोचती थी कि अगर मैं ‘द टैप’ को और अधिक समय दे सकूँ तो कैसा रहेगा। और बस, फिर मैंने फ़ैसला कर लिया।”
उन्होंने अपना पूरा समय द टैप को देना शुरू कर दिया। राम्या का मानना है कि परिवार और दोस्तों ने उनका भरपूर साथ दिया है, इसलिए उन्हें वन-वुमन आर्मी कहना ठीक नहीं होगा। राम्या खिलखिलाकर बताती हैं कि “मेरे परिवार और दोस्त मेरी बहुत मदद करते हैं जो मेरे हुनर की मार्केटिंग करके उसे लोगों तक पहुँचाने, एक्सेल शीट्स बनाने में मेरी मदद करने, या मेरी चित्रकारी की अच्छी-बुरी बारीकियों के बारे में मुझे बताने का काम करते हैं।”
इतना कुछ मिलने के बाद भी राम्या को समय-समय पर व्यवसाय से जुड़ी चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ा। राम्या के शब्दों में “मुझे ना कहना नहीं आता है। पहले मैं हर काम के लिए हाँ कर देती थी। कई बार कम पैसों पर भी काम करना पड़ा, जबकि मेरा समय और मेहनत उससे कहीं ज़्यादा होती थी।” लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि ऐसे काम नहीं चल पाएगा। वे आगे बताती हैं कि “जब आप कोई काम डूब कर करते हैं तो आपमें उसे लेकर एक उत्साह और जुनून होता है, आप अपना सबकुछ झोंक देते हैं। और काम में लगने वाले पैसे के साथ-साथ अपने इन्हीं प्रयासों का हिसाब रखना भी ज़रूरी होता है।”
उन्हें काम सौंपना या बेचना नहीं आता है, लेकिन वे इसके बारे में सीख रही हैं। राम्या को नीति और योजनाएँ बनाना कुछ ख़ास पसंद नहीं है। इसलिए ही व्यवसाय करने और रणनीतियाँ बनाने की बारीकियाँ सीखने के लिए उन्होंने एक कोर्स भी किया। मैं कई बार क्लाइंट मीटिंग्स में बैठे-बैठे कॉमिक्स बनाने लगती थी। मैंने कई बार सोचा कि अगर मैं द टैप को और अधिक समय दे सकूँ तो कैसा रहेगा। और बस, फिर मैंने फ़ैसला कर लिया।
वह कहती हैं कि, “मेरी राह में आने वाले अवसरों ने मुझे बहुत हद तक प्रभावित किया। मैं हर छोटे-बड़े काम को उतना ही महत्व देती हूँ। अपने हर फ़ैसले में मेरी यही सोच होती है कि आख़िर इसमें खोने जैसा क्या है? इस सवाल का जवाब जितना साफ होता है, मेरी सफलता की गुंजाइश उतनी ही होती है।”
एक व्यवसायी के तौर पर राम्या को कई तरह के ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम करना पसंद है जिनमें थोड़ी सृजनात्मकता और नई-नई चीज़ें बनाने के अवसर होते हैं। एक ही दिनचर्या में बंधकर काम करना उनका तरीका नहीं है। कभी-कभी उन्हें सामान्य नौकरीपेशा लोगों की तरह दोस्तों के साथ चाय-कॉफ़ी के ब्रेक पर जाने और छुट्टी लेकर कहीं घूमने निकल जाने की इच्छा होती है।
एक व्यवसायी के रूप में बस ‘समय के साथ चलने’ वाली इंसान होने के बावजूद, कुछ नियम और छोटे-छोटे लक्ष्य बना लेने सा काफ़ी मदद मिलती है। इससे सबकुछ स्वाभाविक और वास्तविकता से जुड़ा हुआ सा लगता है। उन्हें एक और सीख भी मिली है। वह कहती हैं कि “मुझे यह बात समझ में आ गई है कि आपको तक तक प्रयास करते रहना चाहिए जब तक कि आपको अपनी पसंद और सहजता वाली कोई चीज़ नहीं मिल जाती है। आपको किसी ऐसी चीज़ से समझौता नहीं करना चाहिए जो दूसरे आपके लिए चाहते हैं। जब से मैंने इस बात की गांठ बांध ली है, ज़िंदगी अब आसान हो गई है।”
राम्या के लिए आगे आने वाला समय बाहें फैलाकर खड़ा है। कई प्रोजेक्ट्स, कई चुनौतियाँ, बहुत-सी चित्रकारी और बहुत-सी कहानियाँ उनका इंतज़ार कर रही हैं।! वह यह भी कहती हैं कि: “मैं भी द टैप के उत्पादों की रेंज बढ़ाना चाहती हूं और ऑनलाइन स्टोर्स के क्षेत्र में कदम रखना चाहती हूँ।”
राम्या के काम की कुछ तस्वीरें नीचे पेश हैं -