घुमक्कड़ कविता के माध्यम से नये कवियों को मंच दे रहा है ये आईटी प्रोफेशनल
आईटी प्रोफेशनल को कविताओं से हुई ऐसी मोहब्बत की बना डाला घुमक्कड़ कवियों का कविता समूह...
क्या किसी को कविताओं से इतनी मोहब्बत हो सकती है, कि पूरी तरह से तकनीकी होने के बावजूद कविताओं की दुनिया में अनोखे प्रयोग करे? जी ऐसा बिल्कुल हो सकता है और तकनीक से कविताएं और कविताओं से तकनीक के बीच का सामंजस्य कैसे बिठाना है, साथ ही तकनीकी जानकारियों का प्रयोग किस तरह साहित्य के सार्थक काम में करना है इसका बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, बेंगलुरू के गौरव भूषण गोठी। गौरव पेशे से तो आईटी प्रोफेशनल हैं, लेकिन आजकल कविताओं और कविओं के साथ मिलकर एक अच्छा काम कर रहे हैं, जिसको उन्होंने नाम दिया है "घुमक्कड़ कविता"। क्या है घुमक्कड़ कविता और किस तरह बेंगलुरू में गौरव का ग्रुप इससे जुड़कर काम कर रहा है, आईये जानें...
हिन्दी कवि सम्मेलन सिर्फ दिल्ली, बनारस, लखनऊ जैसे गिने-चुने हिन्दी शहरों तक ही सिमट कर रह गये हैं, ऐसे में बेंगलुरू के गौरव भूषण गोठी का "घुक्कड़ कविता" काफी सार्थक और दूरदर्शी तौर पर देखा जाये तो सफल प्रयोग साबित हो रहा है।
आज के समय में जिस तेजी से कविताएं लिखी और छापी जा रही हैं, उसी तेजी से अच्छी कविताएं कहीं लुप्त बी हो रही हैं। जितना अच्छा लिखा जा रहा है, उतना ही गैरज़रूरी भी। मंचों पर कुछ गिने-चुने नाम और चेहरे ही होते हैं, जो हर समारोह हर सम्मेलन का हिस्सा बन दिखाई पड़ जाते हैं। सभी जगहों पर जुगाड़ से काम हो रहा है। पुराने कवि मंच छोड़ना नहीं चाहते, जिसके चलते नये कवियों को मौका मिल नहीं रहा। हिन्दी कविताओं की बात की जाये, तो यहां लेखनी में नित प्रयोग हो रहे हैं। एक से एक कविताएं लिखी जा रही हैं, लेकिन उन्हें सुने कौन और सुनाने के लिए मौका कौन दे ये सबसे मुश्किल बात सामने खड़ी हो जाती है। हिन्दी कवि सम्मेलन सिर्फ दिल्ली, बनारस, लखनऊ जैसे गिने-चुने हिन्दी शहरों तक ही सिमट कर रह गये हैं, ऐसे में बेंगलुरू (जिसको कि हिन्दी नहीं मिश्रित भाषा का शहर कहना ठीक रहेगा या फिर अंग्रेजी) के गौरव भूषण गोठी का "घुक्कड़ कविता" काफी सार्थक और दूरदर्शी तौर पर देखा जाये तो सफल प्रयोग साबित हो रहा है।
सुन कर मन सबसे पहले ये जानने को करता है, कि ये घुमक्कड़ कविता आखिर क्या है। थोड़ा अजीब है, लेकिन पहली बार में ही क्लिक करता है ये नाम। नाम सुनकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है, कि घूम-घूम कर कविता सुनाना... जी घुक्कड़ कविता से जुड़े कवि अलग-अलग शहरों में जाते हैं और वहां के लोकल कवियों को अपने साथ जोड़ एक सम्मेलन करते हैं। और सम्मेलन भी कोई ऐसा वैसा नहीं कि कविता के नाम पर कुछ भी परोस रहे हैं, जैसे-तैसे बस निपटा कर अपने शहर वापिस लौट आयें। ऐसा बिल्कुल नहीं है। गौरव की कोशिश रहती है कि वे अपने सम्मेलनों का आयोजन उच्च स्तर पर करें।
किस तरह काम करता है "घुमक्कड़ कविता"
घुमक्कड़ कविता बहुत ही व्यापक समूह है, जो शहरी कवियों के साथ-साथ छोटे शहरों व गाँवों के कवियों को भी साथ लेकर चलता है। इस समूह के माध्यम से बड़े से छोटे और छोटे से बड़े हर तरह की जगहों और कविओं को एक साथ मंच साझा करने का मौका मिल रहा है। गौरव के अनुसार, "घुमक्कड़ कविता की कोशिश रहती है, कि हर जगह से आये कवियों को मंच प्रदान करें, क्योंकि हमारे लिए न तो शहर महत्वपूर्ण हैं और न ही कोई व्यक्ति विशेष, हमारे लिए यदि कुछ ज़रूरी है तो वो है कविता। कविताएं जिसके पास होंगी वो घुमक्कड़ कविता का हिस्सा है। हम सभी को एक समान मंच प्रदान करते हैं। हमारी सबसे पहली कोशिश यही है कि हम कवियों के बीच से छोटे बड़े का भेद मिटा कर उन्हें बराबरी में एक साथ खड़ा करें। कविताएं छोटी नहीं होतीं, न ही उन्हें लिखने वाला बल्कि ये सब तो हमारी सोच है जो इस तरह भेद करना शुरू कर देती है।" अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गौरव कहते हैं कि "घुमक्कड़ कविता समूह कवि सम्मेलनों का एक नया रूप प्रस्तुत करना चाहता है। हमारी कोशिश है कि हम इसे एक कला के रूप में विकसित करें और साथ ही हम श्रोताओं और कवियों के बीच के भेद को भी खत्म कर दें।"
घुमक्कड़ कविता समूह कुछ-कुछ महीनों के अंतराल पर अलग-अलग शहरों में घुमक्कड़ कविता कवि सम्मेलनों का आयोजन करता है। बेंगलुरू में इस ग्रुप से जुड़े हुए 10 से15 कवि हैं। हर बार हर कवि का जाना तो संभव नहीं होता, तो ऐसे में गौरव कुछ चुनिंदा कवियों को अपने साथ लेकर जाते हैं, जो अपनी सहूलियत के हिसाब से हैं। गौरव कोशिश करते हैं, कि घुमक्कड़ कविता तक पहुंचने वाले सभी कवियों को मंच पर आने का मौका मिले। हर बार एक नये शहर में घुमक्कड़ कविता का आयोजन किया जाता है। ये ग्रुप जिस शहर में जाता है, वहां के लोकल कवियों को अपने साथ जोड़ उन्हें भी मंच प्रदान करता है। सबसे अच्छी बात है कि घुमक्कड़ कविता के माध्यम से उन कवियों को भी मंच पर आने का मौका मिल रहा है, जो कविताएं बेहतरीन लिखते हैं लेकिन पहले से जमे लोंगों के चलते मंचों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
गौरव के साथ उनके कुछ साथी भी इस समूह में काफी सक्रिय हैं, जो कि खुद आईटी प्रोफेशनल हैं। प्रोफेशन को यदि एक तरफ छोड़ दिया जाये, तो कोई शहर का मशहूर शायर है और कोई गज़लकार। इनमें ब्रिजेश देशपांडे और फैज़ अकरम महत्वपूर्ण नाम हैं।
कौन हैं गौरव भूषण गोठी
गौरव एक आईटी प्रोफेशनल हैं और बेंगलुरू की एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में प्रोग्राम मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। देश के कई शहरों में रहने के साथ-साथ गौरव अमेरिका और यूरोप तक घूम आये हैं। लेकिन अपने देश की मिट्टी में उन्हें कविता की जो महक आती है, वो कहीं और कहां। गौरव मध्य प्रदेश के जिला बैतूल के रहने वाले हैं और एक साहित्यिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। किताबें और कविताएं इन्होंने अपने आसपास तब से देखी हैं, जब से होश संभाला। गौरव के दादा जी स्वतंत्रता सेनानी भी रह चुके हैं। काफी आदर्श परिवार से आते हैं गौरव। इनकी पत्नी शीतल इनके कामों में इनका भरपूर सहयोग करती हैं। सबसे अच्छी बात है, कि घुमक्कड़ कविताएं करने के साथ-साथ गौरव वाद्ययंत्रों पर भी अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं। की-बोर्ड और तबले में उन्हें महारत हासिल है। अपनी इस खूबी का प्रयोग गौरव जल्द ही घुमक्कड़ कविता के कवि सम्मेलनों में करेंगे, देखने वाली बात ये है कि किस तरह।
एक आईटी प्रोफेशनल किस तरह जुड़ गया कविताओं से
कविताओं के प्रति गौरव का झुकाव शुरू से ही रहा है। उन्हें जितना अच्छा कविताएं लिखना लगता है, उतना ही सुनना और सुनाना भी। और शायद यही वजह है, कि घुमक्कड़ कविता को बनाने का खयाल गौरव को आया। गौरव का मानना है कि दिल की बात को जितनी खूबसूरती से कविता और संगीत के माध्यम से कहा जा सकता है, वो किसी और तरह से नहीं। वो अलग बात है, कि सबके पास ये हुनर कहां, लेकिन जिनके पास है उनका सामने आना ज़रूरी है। लोगों को यही अनोखी पहचान देने के लिए गौरव ने घुमक्कड़ कविता समूह बनाया है। ये समूह कई सम्मेलन आयोजित कर चुका है इसी साल यानि की 2018, मार्च में अपना अगला प्रोग्राम उज्जैन में करने जा रहा है।
भविष्य में और क्या हैं योजनाएं
भविष्य में घुमक्कड़ कविता ऐसी जगहों पर अपनी कविताएं और वर्कशॉप्स करना चाहता है, जो शहर की चकाचौंध से दूर हो। जहां पहुंच कर कवि कविताएं करने से कतराते हैं, क्योंकि आज का साहित्य भी ऐसी जगह पर रह कर साहित्य की बात करना चाहता है, जहां लाइम-लाइट और सुर्खियों में बने रहना आसाना हो। ऐसे में घुमक्कड़ कविता ग्रामीण इलाकों में भी अपने कवियों की कविताएं के साथ ही वहां के लोकल कवियों को जोड़कर उन्हें मंच देना चाहता है। घुमक्कड़ कविता समूह के कवियों के साथ लोकल कवियों को भी मंच प्रदान करने के पीछे एक वजह ये भी है, कि लोकल कवियों के मन में बैठी झिझक को निकाला जा सके और वे भी बिना किसी झिझक के मंचों पर कविता कहना सीख सकें।
कैसे होती है घुमक्कड़ कविता के लिए फंडिंग
जैसा कि इस साल मार्च में घुमक्कड़ कविता का अगला आयोजन उज्जैन में होने जा रहा है, जिसके लिए तैयारियां गौरव ने पिछला सम्मेलन खत्म होने के बाद से ही शुरू कर दी थीं। घुमक्कड़ कविता बाकि कवि के सम्मेलनों से काफी अलग है। ये सिर्फ एक कवि सम्मेलन ही नहीं बल्कि समाज में कविता के प्रति जागरूकता फैलाना का सार्थक प्रयास है। यहां न तो वे बड़े नाम हैं, जो अन्य समारोहों का हिस्सा बने रहते हैं और न ही ऐसे लोग हैं जो हवा-हवाई बातें करें। ऐसे में किसी इस तरह के आयोजन के लिए फंडिंग इकट्ठा करना थोड़ा कठिन हो जाता है। फिर भी ऐसे कई लोग हैं, जो नि:स्वार्थ भाव से घुमक्कड़ कविता के लिए फंडिंग कर रहे हैं और जब ऐसा लगता है, फंडिंग कम पड़ रही है, तो गौरव और समूह से जुड़े कवि सेल्फ फंडिंग के माध्यम से समारोह को आगे बढ़ाते हैं, क्योंकि घुमक्कड़ कविता की कोशिश रहती है कि पैसों की वजह से प्रोग्राम रुके नहीं।
कई हाथ घुमक्कड़ कविता से जुड़े हैं और लोग बढ़-चढ़ कर इसका हिस्सा बनने के साथ-साथ इसमें पैसा लगाना चाहते हैं, क्योंकि एक सच ये भी है कि एक प्यारा-सा ईमानदार कवि तो हर दिल में बसता है।
कैसे जुड़ें घुमक्कड़ कविता से
बेहतरीन और हिंदुस्तानी कविता को बढ़ावा देने के लिए घुमक्कड़ कविता कई सफल आयोजन कर चुका है। मार्च में उज्जैन में होने वाले सम्मेलन के लिए घुमक्कड़ कविता समूह फंडिंग के लिए लोगों से जुड़ रहा है। यदि आप भी इस समूह से जुड़कर इस कैंपेन का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो देर न करें, 7892533846 नंबर पर फोन करके किसी तरह की जानकारी प्राप्त करें और साथ ही इस लिंक www.impactguru.com/fundraiser पर जाकर डोनर बनें। याद रहे आपकी छोटी सी मदद किसी खोये हुए आत्मविश्वास को मंच का हिस्सा बना सकती है।
कहते हैं सृष्टि के कण-कण में कविता छुपी है, वीणा के तार से लेकर चिड़िया की चहचहाट में, पत्तियों के गिरने की आवाज़ से लेकर नदियों के कल-कल करके बहने में ऐसे में कविता को यूं ही खत्म नहीं होने देना चाहिए, बल्कि इसी तरह नये-नये प्रयोगों से श्रोताओं के भीतर अपनी मौजूदगी का एहसास कराना चाहिए, वैसे ही जैसे कि घुमक्कड़ कविता के माध्यम से गौरव और उनके समूह के साथी लोग कर रहे हैं। घुमक्कड़ कविता का उद्देश्य कवियों को मंच देना है, कविताओं को मंचीय बनाना या भीड़ जुटाना नहीं।
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