MBA करने के बाद शुरू की मशरूम की खेती, 18×45 की जगह से बनाए लाखों
एमबीए की पढ़ाई करने के बाद खेती करने के लिए लौटे प्रग्नेश पटेल के पास उन सभी किसानों के लिए एक समाधान है, जो खेती के साथ ही कुछ अतिरिक्त रकम कमाना चाहते हैं। उन्होंने अपने छोटे से 18 x 45 के शेड से 700 किलो मशरूम का उत्पादन किया। इतना मशरूम हर चार महीने में तैयार हो जाता है और उन्हें लगभग हर साल 4.2 लाख रुपये की आमदनी होती है...
प्रग्नेश पहले विदेश में एक मल्टीनेशनल कंपनी के साथ काम कर रहे थे। अच्छी-खासी सैलरी के साथ वे खुश भी थे, लेकिन तीन साल जॉब करने के बाद उन्हें लगा कि वह अपने काम से संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं और फिर वो कर दिखाया, जिसने नौकरी को छोड़ दिया काफी पीछे...
शुरू में प्रग्नेश को 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलने लगे। लेकिन प्रग्नेश के पास एक और चुनौती थी। मशरूम की उम्र काफी कम होती है और उसे काफी संभालकर रखना पड़ता है।
जैसे-जैसे किसानों की जोत घटती जा रही है वैसे-वैसे उनकी आमदनी में भी गिराटव आ रही है और किसानों की आजीविका पर भी संकट मंडरा रहा है। इसके लिए कई सारे कदम उठाए जा रहे हैं और किसानों को खेती के साथ-साथ, मुर्गीपालन, मशरूम या मछली पालन जैसे काम करने के लिए कहा जाता रहा है। एमबीए की पढ़ाई करने के बाद खेती करने के लिए लौटे प्रग्नेश पटेल के पास उन सभी किसानों के लिए एक समाधान है, जो खेती के साथ ही कुछ अतिरिक्त रकम कमाना चाहते हैं। उन्होंने अपने छोटे से 18 x 45 के शेड से 700 किलो मशरूम का उत्पादन किया। इतना मशरूम हर चार महीने में तैयार हो जाता है और उन्हें लगभग हर साल 4.2 लाख रुपये की आमदनी होती है।
प्रग्नेश पहले विदेश में एक मल्टीनेशनल कंपनी के साथ काम कर रहे थे। अच्छी-खासी सैलरी के साथ वे खुश भी थे। लेकिन तीन साल जॉब करने के बाद उन्हें लगा कि वह अपने काम से संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें जिंदगी में कुछ अधूरापन लग रहा है। इसी वक्त उन्होंने वापस भारत लौटने का फैसला किया। यहां आकर उन्होंने मुंबई में एक दवा कंपनी के साथ मार्केटिंग का काम संभालने लगे। इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि कितने सारे लोग काफी कम उम्र में ही खराब खाने की वजह से बीमार पड़ जा रहे हैं। उन्हें लगा कि हमारी खाने-पीने की आदतों और लाफस्टाइल में कोई कमी आ गई है जिससे ऐसा हो रहा है।
इसके बाद उन्होंने काफी रिसर्च किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें खुद से ऑर्गैनिक फूड पैदा करना चाहिए। फिर उन्हें मशरूम उत्पादन के बारे में पता चला और उन्होंने सोचा कि घर वापस चलकर अपने छोटे से 2 एकड़ के फार्म में इसकी खेती करनी चाहिए। उन्हें लगा कि यह मुश्किल का सबसे सही समाधान है। उन्हें यह भी मालूम था कि इस फसल का अच्छा दाम भी मिलेगा। कई सारे विडियो देखने और इंटरनेट पर अच्छी तरह से खाक छान लेने के बाद उन्होंने ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन शुरू किया। उन्हें गुजरात के एक छोटे से लोकल सोर्स के जरिए मशरूम के बीज मिले जिसे पहले प्रयास में एक छोटे से बांस के शेड के नीचे लगाया गया।
मशरूम के अच्छे उत्पादन की तो उम्मीद थी, लेकिन एक चुनौती थी कि इसे बेचा कहां जाएगा। लेकिन एमबीए करने वाले इंसान को चार सालों तक मार्केटिंग का काम करने के बाद इतना तो अनुभव हो ही गया था कि सामान कैसे बेचा जाए। प्रग्नेश बताते हैं, 'मैंने देखा कि मशरूम की सब्जी दो तरीके से बनाई जा सकती है। दोनों तरफ के मशरूम के अलग-अलग फायदे होते हैं।' उन्होंने अपना मशरूम लोकल इलाके में ही बेचना शुरू किया। शुरू में उन्हें 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलने लगे। लेकिन प्रग्नेश के पास एक और चुनौती थी। मशरूम की उम्र काफी कम होती है और उसे काफी संभालकर रखना पड़ता है।
इसके बाद उन्हें पता चला कि जो मशरूम न बिकें उन्हें सोलर ड्रायर के जरिए सुखा लेना चाहिए। जिसे बाद में भी इस्तेमाल में लाया जा सकता था। उनकी दूसरी फसल और सफल रही और इस बार उन्होंने पहले के मुकाबले 150 किलो मशरूम और उगाया। धीरे-धीरे यह आंकड़ा बढ़ता ही गया और वे हर चार महीने में 700 किलो मशरूम उगाने लगे। इससे वे साल भर में 2100 किलो मशरूम का उत्पादन करने लगे जिसको बेचकर उन्हें साल भर में 4.2 लाख रुपये की आमदनी हो जाती थी। प्रग्नेश अब मशरूम उगाने के लिए रेडीमेड बेड सप्लाई करने वाले हैं। जिसके जरिए सिर्फ पानी डालकर मशरूम उगाया जा सकता है।
प्रग्नेश कहते हैं, 'मैं मशरूम की खेती को जितना संभव हो सके आसान बनाना चाहता हूं। मैं किसानों को हर तरह का कच्चा माल उपलब्ध कराऊंगा। मेरा मानना है कि किसान अपनी फसल ढंग से बेच नहीं पाते हैं, मैं अपने मार्केटिंग स्किल से उनकी मदद करना चाहता हूं। मैं अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा हूं और उन्हें मशरूम की खेती करने के बारे में जागरूक कर रहा हूं।' प्रग्नेश की मेहनत रंग लाई है और अब लगभग 25 लोकल किसान उनके साथ ट्रेनिंग लेने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। प्रग्नेश अपने पूरे गांव को ऑर्गैनिक खेती करने वाले गांव में बदलना चाहते हैं। इसके लिए वे कृषि विज्ञान केंद्र की भी मदद ले रहे हैं।
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