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वाराणसी के पास छात्रों ने लिया एक गांव को गोद,पॉकेटमनी से मुहैया करा रहे हैं ज़रूरी चीज़ें

वाराणसी के पास छात्रों ने लिया एक गांव को गोद,पॉकेटमनी से मुहैया करा रहे हैं ज़रूरी चीज़ें

Tuesday January 05, 2016 , 6 min Read

चार दोस्तों ने शुरू की कोशिश...

बनाया होप वेलफेयर ट्रस्ट...

वाराणसी के पास के गांव खुशियारी को लिया गोद...

आज 287 जुड़े हैं ट्रस्ट से...

राष्ट्रपति ने की गांव को गोद लेने की तारीफ...


3 जनवरी 2015 को एक दोस्त का जन्मदिन मनाने के बाद जब अस्सी घाट से चार दोस्त वापस आ रहे थे तभी उनकी नज़र पड़ी सड़क किनारे कूडे के ढेर में भोजन ढूंढते कुछ बच्चे और महिलाओं पर। हालत ये थी एक तरफ कुत्ते थे दूसरी तरफ बच्चे और महिलाएं। बच्चे और महिलाएं कुत्तों को लगातार भगाने की कोशिश करते रहे पर न तो कुत्ते भागे न ही ये लोग वहां से हटे। रोटी के दो टुकड़े को लिए जद्दोजहद ने इन चारों दोस्तों को दहला दिया। एक ही पल में जन्मदिन की सारी मस्ती जाती रही। उसी समय इन चारों युवाओं ने ठान लिया कि समाज और गांव के बदलाव मे अपना योगदान देंगे। ये चार दोस्त थे रवि मिश्रा, दिव्यांशु उपाध्याय, धर्मेंद्र सिंह यादव और विपुल त्रिपाठी। ऐसा नहीं कि ये दोस्त किसी बड़ी कंपनी में काम कर रहे थे। ये वाराणासी के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे थे और अब भी अध्ययनरत हैं। लेकिन कहते हैं जब सामने एक लक्ष्य हो तो फिर न तो उम्र देखी जाती है और न ही पैसे। बस जो सामने होता है वो है जज़्बा। कुछ कर गुजरने का उत्साह अब नया रूप लेने की तैयारी में था।

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संगठन

कहते हैं युवाओं के कंधों पर देश की बागडोर है। युवा चाह लें तो देश की दशा और दिशा बदल सकते हैं। ऐसा ही किया रवि मिश्रा, दिव्यांशु उपाध्याय, धर्मेंद्र सिंह यादव और विपुल त्रिपाठी ने। इन चारों दोस्तों ने समाज सेवा के साथ-साथ एक संस्था का गठन किया और नाम रखा होप वेलफेयर ट्रस्ट। ये ट्रस्ट पूरी तरीके से पाकेटमनी से संचालित होता है। और इसे संचालित करते हैं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के युवाओं द्वारा। समय के साथ इसमें युवाओं की संख्या बढ़ती गई और इसका दायरा भी बढ़ता गया। अब इसमें न सिर्फ वाराणसी के बल्कि दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल हो चुके हैं। इससे अब तक 287 छात्र जुड़ चुके हैं।

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होप वेलफेयर के शुरुआती कार्य

रवि मिश्रा ने योरस्टोरी को बताया,

वाराणसी के दुर्गाकुण्ड की सफाई, वृद्ध आश्रम जैसे कई कार्यों के बाद हम युवाओं ने गावों में कार्य करने का सोचा क्यूंकि आज भी कई ऐसे गाँव हैं जिनको सरकारी योजना का लाभ, बिजली तथा पानी जैसी चीजें मुहैया नही हो पाती। वाराणसी के कई गांव का सर्वे करने के बाद हमने 9 अगस्त 2015 को खुशियारी गांव को गोद लिया और इसको पूरी तरह से बदल देने का संकल्प लिया। खुशियारी गांव वाराणसी से 12 किलोमीटर दूर है, जो कि काशी विद्यापीठ ब्लॉक में आता है।
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खुशियारी गांव को चुनने के प्रमुख कारण

होप वेलफेयर के संस्थापकों में से एक दिव्यांशु उपाध्याय बताते हैं कि जब इन लोगों ने खुशियारी गांव का दौरा किया तो गांव वालों को देखकर इन्हें हैरानी हुई। हैरानी इस बात से कि देशभर के गांवों में शौचालय बनवाने के लिए सरकार की तरफ से लगातार कोशिशें जारी हैं। लेकिन इस गांव में मात्र दौ शौचालय थे वे भी निजी। ऐसे में होप वेलफेयर ने तय किया कि इस गांव में काम करना ज़रूरी है। इसके अलावा इन लोगों को यह देखकर भी हैैरानी हुई कि वाराणसी से महज 12 किलोमीटर दूर इस गांव में अबतक बिजली नहीं पहुंच पाई है। टूटी सड़कें और पीने का साफ पानी अपनी कहानी अलग से सुना रही थीं। ऐसे में शिक्षा को लेकर गांव वालों में चिंता एक लक्जरी जैसी बात थी। खुशियारी गांव में आधे से कम लोग शिक्षा से जुड़ पाए हैं अबतक। अशिक्षित होने के साथ-साथ गांव वालों में नशे की लत आम बात थी। और जब इतनी सारी समस्याएं एक साथ एक गांव में व्याप्त हों तो फिर बेरोजगारी तो होगी ही।

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गांव मे किए गए कार्य

युवाओं को अबतक समझ में आ गया था कि खुशियारी गांव में सघन काम करने की ज़रूरत है। युवाओं ने हर उस काम को अंजाम देने की कोशिश की जिसकी सख्त ज़रूरत गांव वालों को थी। गांव के लिए 50 शौचालय बनवाने की मंजूरी मिली और कार्य प्रगति पर है। बिजली पहुंचाने के लिए छात्रों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया। इसका नतीजा ये है कि गांव में अलगे दो महीने में बिजली पहुंचने वाली है। होप परिवार की तरफ से खुशियारी गांव को नशा मुक्त करने के लिए तमाम कोशिशें जारी हैं। कैम्प लगाने से लेकर नुक्कड़ नाटक के ज़रिए लोगों को जागरुक करने की पहल जारी है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें लघु कुटीर उद्योग से जोड़ा जा रहा है। महिलाओं के सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। साथ ही गांव के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनके माता-पिता की काउंसलिंग की जाती है। नतीजा ये निकला कि लड़कियां भी स्कूल जाने लगी हैं। कई लड़कियों को साईकिल भी दी गई है। लड़कियों को लैपटॉप के ज़रिए हफ्ते में एक दिन कम्प्युटर की जानकारी दी जा रही है। इन सबसे बड़ी बात ये है कि गांव में प्रौढ़ शिक्षा का भी प्रचाप प्रसार किया जा रहा है। उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है ताकि वो अपने हक के लिए आगे आएं।

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गांव के लोगों के लिए रोज़गार के अवसर भी बनाए जा रहे हैं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि खेती से इनको अलग किया जा रहा है। किसानों को नई तकनीक से खेती के लिए जानकारी भी दी जारी है। होप वेलफेयर की कोशिशों का नतीजा है कि यूनियन बैंक की सहायता से गांव में 3 सोलर लाइट लगवाई गई हैं। ज़ाहिर है देश के विकास में सबकी भागीदारी अहम है। ऐसे में होप वेलफेयर खुशियारी गांव के लिए वरदान साबित हो रहा है।

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सराहना

होप वेलफेयर की तमाम कोशिशों का नतीजा है कि एक गांव नई तरफ से सांस ले रहा है। गांव के हर शख्स को जीवन का एक मकसद मिल गया है। होप वेलफेयर के युवाओं के इस नेक काम की गूंज दूर-दूर तक फैलने लगी है। घर्मेंद्र यादव और विपुल त्रिपाठी ने योर स्टोरी को बताया,

हमारे लिए सबसे बड़ी बात ये थी कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बी एच यू वीडियो कॉनफ्रेंसिंग में खुशियारी गांव को गोद लिए जाने की सराहना की और कहा अधिक से अधिक युवाओं की भागीदारी होनी चाहिए इसमें। इसके अलावा राज्य के राज्यपाल राम नाइक ने हमें मिलने के लिए बुलाया है।
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इस संस्था का सबसे बड़ा उसूल है कि इसे राजनीति से पूरी तरह अलग रखा गया है। अगर कोई सदस्य किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हुआ या प्रचार करता हुआ पाया जाता है तो उसकी सदस्यता छीन ली जाती है।

प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों को एक-एक गांव गोद लेने के लिए कहा था। इन छात्रों ने भी अपनी जिम्मेदारी समझी और जुट गए अपने देश के विकास में। योरस्टोरी को इन छात्रों पर गर्व है। तय है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी गर्व महसूस होगा।