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अब चली गई याद्दाश्त को वापस लाना हुआ आसान!

अब चली गई याद्दाश्त को वापस लाना हुआ आसान!

Monday September 04, 2017 , 6 min Read

एमआईटी के तंत्रिका वौज्ञानिकों ने पहली बार बताया कि याद्दाश्त वापस लाने के लिए एक घुमावदार परिपथ की जरूरत होती है। जिसकी शाखांए वास्तविक स्मृति पथ से बिल्कुल अलग होती हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

फोटो साभार: सोशल मीडिया


यह अध्ययन दिमागी शोध पर सबसे मूल सवाल को जन्म देता है कि कैसे प्रासंगिक यादें वापस लाई जा सकती हैं या क्या उन्हें संगठित किया जा सकता है।

डॉक्टर धीरत रॉय और वैज्ञानिक ताकाशी कितामोरा इसकी अगुवाई कर रहे थे। इसमें राइकेन ब्रेन साइंस इंस्टीट्यूट के कुछ और छात्र भी शामिल थे।

जब भी हम कुछ नया अनुभव करते हैं, इसकी यादें हमारे स्नायु सर्किट में स्टोर हो जाती हैं जो दिमाग के एक छोटे से हिस्से में एकत्रित हो जाता है। स्नायुओं का हर समूह अलग अलग तरीके की स्मृतियां स्टोर करता है, जैसे कि घटना की जगह या उससे जुड़ी हमारी भावनाएं। स्मृतिशास्त्र का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने माना कि पुरानी चीजों को याद करते ही हमारा दिमाग वास्तविक स्मरण शक्ति को सक्रिय करने वाले हिप्पोकैम्पल सर्किट में बदल गया। एमआईटी के तंत्रिका वौज्ञानिकों ने पहली बार बताया कि याद्दाश्त वापस लाने के लिए एक घुमावदार परिपथ की जरूरत होती है। जिसकी शाखांए वास्तविक स्मृति पथ से बिल्कुल अलग होती हैं। यह अध्ययन दिमागी शोध पर सबसे मूल सवाल को जन्म देता है कि कैसे प्रासंगिक यादें वापस लाई जा सकती हैं या क्या उन्हें संगठित किया जा सकता है।

जीवविज्ञान और न्यूरोसाइंस जाने माने प्रोफेसर और राइकेन एमआईटी सेंटर के डायरेक्टर सुसुमू टोनेगावा बताते हैं कि यादों को दुबारा प्राप्त करने और उनका गठन करने वाला दिमाग का अंतर सर्किट इसका बहुत बड़ा प्रमाण है। भूल चुकी यादों को दुबारा प्राप्त करने वाला यह विशेष सर्किट इससे पहले हड्डी वाले प्राणियों में कभी नहीं देखा गया। जबकि पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि कैनोरहैबडायटिस एलिगेंस नाम के रेंगने वाले कीड़े में ठीक इसी तरह का एक सर्किट पाया गया था। एमआईटी के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम इस पेपर के लेखक थे, जिसे 17 अगस्त को जारी किया गया था। डॉक्टर धीरत रॉय और वैज्ञानिक ताकाशी कितामोरा इसकी अगुवाई कर रहे थे। इसमें राइकेन ब्रेन साइंस इंस्टीट्यूट के कुछ और छात्र भी शामिल थे।

इस सर्किट से वैज्ञानिक थे अब तक अनजान

दिमाग का खास हिस्सा हिप्पोकैम्पस कई विभागों में बंटा होता है। हर विभाग का काम अलग-अलग होता है। उनमें से कुछ के बारे में तो पता होता है लेकिन उसी का एक बहुत छोटा हिस्सा के बारे में बहुत की कम जानकारी जुटाई जा सकी है। इस हिस्से को सबिकुलम के नाम से जाना जाता है। टोनेगावा लैब ने ऐसे चूहों पर इसका प्रयोग आजमाया जो आनुवांशिक रुप से विकसित थे। इन चूहों के सबिकुलम तंत्रिकाओं को रौशनी के जरिये जगाया गया या फिर बंद किया गया। चूहे के एक खास हिस्से को हल्के बिजली के झटके दिए गए। शोधकर्ताओं ने इस पद्धति को डर की अवस्था में स्मरण की कोशिकाओं नियंत्रित करने के लिए आजमाया। पुराने शोध में बताया गया कि इन स्मृतियों को इस्तेमाल लायक बनाने में सीए1 नाम की एक खास कोशिका शामिल होती है। जो हिप्पोकैम्पस का ही हिस्सा होती है। यह मस्तिष्क के दूसरे संरचनाओं को जानकारी देता है जिसे एंरोहैनल कॉर्टेक्स कहा जाता है।

मस्तिष्क में हरेक जगह पर न्यूरॉन्स का एक उप समूह सक्रिय होता है. जो यादों को बनाते हैं। उन्हें इनग्राम कहा जाता है। प्रोफेसर टोनेगावा ने बताया कि इनग्राम के निर्माण में जिस सर्किट की भूमिका होती है, वहीं इन सर्किट दुबारा याद करने की प्रकिया के दौरान फिर से सक्रिय हो जाते हैं। जबकि वैज्ञानिकों ने ये पहले ही पाया था कि कुछ अंदरूनी संरचनाएं दिमाग के एक हिस्से सैबिकुलम से सीए1 तक घुमावदार रूप में फैली होती हैं। जो दिमाग के मध्य भाग से जुड़ी होती हैं। ये सर्किट का काम करती हैं। और इस दिमाग के इस हिस्से को अब तक कोई नहीं जान पाया था।

एमआईटी की टीम ने चूहे के जिस पहले समूह पर इस प्रयोग को आजमाया था, उनकी संकोची स्नायुओं पर डर की अवस्था में याददाश्त दुबारा हासिल करने की क्षमता पर कोई फर्क नहीं पड़ा जबकि चूहों के दूसरों समूह को जैसे ही एक वास्तविक चैंबर में रखा गया उन पर इसका गहरा असर देखा गया। इन चूहों ने सामान्य डर की प्रवृति नहीं दिखी जो दिखा रहा था कि उनकी याद करने की क्षमता बिगड़ी हुई है। ये इस बात का सबूत दे रहा था दुबारा याद करने की प्रवृति के लिए सबिकुलम के साथ गोल सर्कीट जरूरी होता है। लेकिन यादों को बनाने में नहीं। जबकि दूसरे प्रयोग ने बताया कि सीए1 से दिमाग के बीच वाले हिस्से तक सीधा सर्किट दुबारा याददाश्त हासिल के लिए जरूरी नहीं होता। बल्कि स्मरण शक्ति बनाने के लिए जरूरी होता है।

याददाश्त संपादन में भी अहम भूमिका

अब सवाल ये है कि हमारे दिमाग को दो अलग अलग सर्किट की जरूरत क्यों है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए दो संभावित वजहें बताईं। पहला दोनों सर्किट के इंट्रैक्शन या उन्हें अपटेड करने की प्रक्रिया को आसान बनाना। जैसे ही रिकॉल सर्किट सक्रिय होता वैसे ही यादों को बनाने वाला सर्किट भी सक्रिय होकर उसमें जानकारी जोड़ने लगता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि जानवरों में इस तरह का मौजूद पहला सर्किट पुरानी याददाश्त बढ़ाता था। और जरूरी पड़ने पर इसे इस्तेमाल लायक भी बनाता था। वैज्ञानिक रॉय ने बताया कि मौजूदा मेमोरी में नई जानकारी को शामिल करने के लिए कुछ नया जोड़ना होता है। जब भी आप कुछ पुराना याद करते हैं और इसमें कुछ नया जोड़ने की जरूरत पड़ती है। जबकि दूसरे गोल सर्किट का काम दीर्घकालिक तनाव प्रतिक्रियाओं को प्रोत्साहित करने में मदद करना है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सबिकुलम, हाइपोथेलेमस में संरचनाओं की एक जोड़ी से जोड़ता है जिसे स्तनधारी अंगों के रूप में जाना जाता है, जो कॉर्टिकॉस्टिरिओड्स नामक तनाव हार्मोन की रिहाई को उत्तेजित करता है। जबकि शोधकर्ताओं ने सकारात्मक और नकारात्मक भावनात्मक घटकों यादों के साथ शामिल करने वाले दो-सर्किट के रूप में इसकी पहचान की। शोधकर्ताओं के मुताबिक नतीजे अल्जाइमर रोग से भी संबंधित एक दिलचस्प संभावना बताते हैं जिन चूहों में शुरुआती चरण के अल्जाइमर रोग के लक्षण थे, उन्हें याद करने में परेशानी हो रही थी। लेकिन फिर भी वो नई यादें बनाने में सक्षम थे। इससे ये भी पता चलता था कि अल्जाइमर रोग से ग्रसित होने की वजह से याददाश्त की क्षमता पर इसका असर पड़ता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने इसका अध्ययन नहीं किया है।

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