आदिवासी हुनर को मिला इतवारी का गुरु मंत्र, तीरंदाजों का गढ़ बना शिवतराई
15 साल से आर्चरी की मुफ्त शिक्षा देकर प्रतिभा को निखार रहे हैं प्रधान आरक्षक
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
कहते हैं कि हुनर को सही गुरु मंत्र मिल जाए तो वह अपनी मंजिल तलाश लेता है। बिलासपुर से 70 किमी दूर ग्राम शिवतराई के हुनरवानों को 15 साल पहले ऐसे ही एक गुरु मिले प्रधान आरक्षक इतवारी राज सिंह।
यहां के बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण के रायपुर केंद्र ने तीरंदाजी का स्पेशल ट्रायल कराया था। इसमें 35 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और 10 चुने गए। चयनित खिलाड़ियों ने साई सेंटर ज्वाइन किया।
होनहार बिरवान के होत चिकने पात। तीरंदाजी के लिए यह कहावत हर उस बच्चे के लिए चरितार्थ होती है, जो आदिवासी परिवेश में पल-बढ़ रहा हो। लेकिन कहते हैं कि हुनर को सही गुरु मंत्र मिल जाए तो वह अपनी मंजिल तलाश लेती है। बिलासपुर से 70 किमी दूर ग्राम शिवतराई के हुनरवानों को 15 साल पहले ऐसे ही एक गुरु मिले प्रधान आरक्षक इतवारी राज सिंह। उनके ही समर्पण का नतीजा है कि आज आठ सालों में यहां के खिलाड़ियों ने 122 पदकों के ढेर लगा दिए। हर बच्चा चैंपियन बनने को आतुर है और उसी उत्साह से लक्ष्य के साथ प्रैक्टिस भी करता है।
बच्चों के इस उत्साह का सीधा संबंध इतवारी के जुनून से है। तीरंदाजी के संसाधन जुटाने में अपनी तनख्वाह को भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकिचाए। लोन भी लिया, लेकिन बच्चों को निराश नहीं होने दिया। छत्तीसगढ़ पुलिस के प्रधान आरक्षक इतवारी राज सिंह की बदौलत गांव को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। उन्होंने गांव के बेरोजगार युवाओं को खेलों के लिए प्रोत्साहित किया। अपनी तनख्वाह से खेल पर खर्च किया। संसाधन कम पड़े तो लोन लेने की ठानी। फिर उसी से बच्चों के लिए तीर-कमान आदि का इंतजाम किया। पहले उन्होंने गांव के चार बच्चों को आर्चरी की ट्रेनिंग देनी शुरू की। आज पूरे गांव के बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं। गांव की आबादी 1500 है और ज्यादातर बच्चे चैम्पियन बनने का खाब देख रहे हैं। कई लोगों ने अपना सपना पूरा भी किया है। स्पर्धाओं में गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मैडल जीतकर।
शिवितराई का एक किस्सा और है। यहां के बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण के रायपुर केंद्र ने तीरंदाजी का स्पेशल ट्रायल कराया था। इसमें 35 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और 10 चुने गए। चयनित खिलाड़ियों ने साई सेंटर ज्वाइन किया। यह साई के इतिहास में पहला मौका था जब किसी गांव में ट्रायल के लिए साई सेंटर की पूरी टीम भेजी गई हो। यह शुरू हुआ था शौक के तौर पर। इतवारी ने बच्चों को सिखाना शुरू किया। जब प्रतिस्पर्धाओं में मेडल आने लगे तो यही शौक जुनून बन गया। बस यहीं से शुरू हुआ चैंपियन बनाने का सफर। उन्होंने वेतन लगाने के बाद संसाधन जुटाने 50 हजार का लोन लिया। इस वक्त उनके पास तीर-कमान के 35 सेट हैं। इतवारी की इच्छा है कि दुनिया के नक्शे में शिवतराई का नाम हो और छत्तीसगढ़ का हरेक व्यक्ति इस पर गर्व करे।
खुद उनका बेटा अभिलाष राज इसमें माहिर है। उसके समेत चार खिलाड़ियों को छत्तीसगढ़ में तीरंदाजी का सबसे बड़ा सम्मान प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार भी मिल चुका है। इस अवार्ड को पाने वाला एक खिलाड़ी संतराम बैगा भी है। प्रदर्शन के आधार पर शासन ने संतराम को शिवतराई के स्कूल में भृत्य की नौकरी भी दी है। संतराम के अलावा भागवत पार्ते और खेम सिंह भी स्पोर्ट्स कोटे के आधार पर आर्मी में नौकरी कर रहे हैं। शिवतराई के ही अगहन सिंह भी राजा प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार पा चुके हैं। फिलहाल शिवतराई स्कूल मैदान में मिनी, जूनियर और सीनियर वर्ग में बालक और बालिका वर्ग से 50 बच्चे प्रशिक्षण ले रहे हैं।
ग्रामीणों के साथ-साथ खुद इतवारी को यह विश्वास है कि आने वाले दिनों में शिवतराई के खिलाड़ियों का नाम निश्चित तौर पर दुनिया के बेहतरीन तीरंदाजों में गिना जाएगा। वे इसके लिए हर संभव प्रयास करते रहेंगे और प्रतिभाओं को निखारते रहेंगे। इतवारी के इस समर्पण से लगता है कि महाभारत काल में एकलव्य गुरु द्रौण की तलाश में था ताकि उसकी प्रतिभा में निखार आए। इतवारी ने खुद कई एकलव्य तलाश लिए ताकि वे उनके हुनर को सही अंजाम दे सकें।
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