स्कूलों में बच्चों को पहुंचाने के लिए 'मास्टर जी' बन गए बस ड्राइवर
शिक्षक ने पेश की अनोखी मिसाल....
स्कूल का बजट काफी कम है इसलिए बस चलाने वाले ड्राइवर को काफी पैसे देने पड़ रहे थे जिसका भार स्कूली बच्चों पर आ रहा था। शिक्षक राजाराम ने बच्चों का आर्थिक भार कम करने के लिए खुद ही बस चलाने का फैसला कर लिया।
राजाराम बताते हैं कि उनका दिन काफी व्यस्त रहता है। वे घर से सुबह 8.10 पर ही निकल जाते हैं ताकि सभी बच्चे टाइम से स्कूल पहुंच सकें। वे 30 किलोमीटर की दूरी के 4 चक्कर लगाते हैं।
शिक्षकों को बच्चों के भविष्य का निर्माता कहा जाता है। कई सारे शिक्षक ऐसे होते हैं जो बच्चों की पढ़ाई को लेकर इतने प्रतिबद्ध हो जाते हैं कि उसके लिए कुछ भी करने को तैयार बैठे रहते हैं। कर्नाटक के उडुपी जिले के ऐसे ही एक शिक्षक हैं जिन्होंने स्कूलों में बच्चों की कम होती संख्या से चिंतित होकर बस चलाने का फैसला कर लिया। उडुपी के ब्रह्मावर कस्बे के पास स्थित बराली सरकारी उच्च प्राथमिक स्कूल में बच्चों की संख्या लगातार कम होती जा रही थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि अभिभावक अपने बच्चों को उसी स्कूल में भेजना पसंद करते हैं जहां बस की सुविधा हो।
स्कूल में टीचरों ने इस समस्या से चिंतित होकर एक बस खरीदने का फैसला किया। स्कूल से निकले पुराने छात्रों के संगठन को जब यह बात पता चली तो उन्होंने भी कुछ करने के बारे में सोचा। स्टूडेंट एसोसिएशन ने कुछ पैसे दिए और बीते साल एक मिननी बस खरीद ली गई। स्कूल में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक राजाराम इसका श्रेय बेंगलुरु में काम कर रहे विजय हेगड़े और गणेश शेट्टी को दिया। ये दोनों लोग इसी स्कूल के छात्र रह चुके हैं।
हालांकि स्कूल का बजट काफी कम है इसलिए बस चलाने वाले ड्राइवर को काफी पैसे देने पड़ रहे थे जिसका भार स्कूली बच्चों पर आ रहा था। शिक्षक राजाराम ने बच्चों का आर्थिक भार कम करने के लिए खुद ही बस चलाने का फैसला कर लिया। उन्होंने बेंगलुरु मिरर से बात करते हुए कहा कि वह स्कूल के पास ही रहते हैं और जब वे उनके बस चलाने से बस से आने वाले सारे बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं।
राजाराम का यह आइडिया काम आया और बच्चों के स्कूल छोड़ने की संख्या में तेजी से गिरावट हुई। इस पहल से स्कूल में बच्चों की संख्या भी बढ़ती चली गई। राजाराम बताते हैं कि उनका दिन काफी व्यस्त रहता है। वे घर से सुबह 8.10 पर ही निकल जाते हैं ताकि सभी बच्चे टाइम से स्कूल पहुंच सकें। वे 30 किलोमीटर की दूरी के 4 चक्कर लगाते हैं। स्कूल आने वाले अधिकतर बच्चे ग्रामीण इलाके से आते हैं इसलिए वहां पहुंचना भी थोड़ा मुश्किल होता है।
हालांकि राजाराम स्कूल में बच्चों को पढ़ाते भी हैं, लेकिन वह कहते हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह स्कूल की बस चलाते हैं। उन्होंने कहा कि चाहे जो हो जाए वे इस काम को आगे भी जारी रखेंगे। यह एक छोटा सा स्कूल है और हेडमास्टर कुसुमा के मुताबिक स्कूल में सिर्फ 4 अध्यापक हैं। उन्होंने बताया कि राजाराम सबसे प्रतिबद्ध शिक्षक हैं। वे बच्चों को शारीरिक शिक्षा पढ़ाने के साथ-साथ गणित और विज्ञान भी पढ़ाते हैं। राजाराम जैसे शिक्षकों की सोच की बदौलत बच्चों की तकदीर बदल रही है और देश में शिक्षा की तस्वीर तभी बदलेगी जब हर अध्यापक राजाराम जैसी सोच का होगा।
यह भी पढ़ें: मिलिए तमिलनाडु की पहली ट्रांसजेंडर वकील सत्यश्री शर्मिला से