बचपन में बूँद-बूँद पानी को तरसने वाले करुणाकर रेड्डी आज बुझा रहे हैं 75 लाख लोगों की प्यास
पीने का पानी पाने के लिए बचपन में बहाया खूब पसीना ... घर-परिवार के लिए पानी लाने में ही चले जाते थे हर दिन तीन घंटे... खेती का काम करते हुए भी की स्कूल की पढ़ाई ... गरीबी ने डॉक्टर बनने का सपना किया था चकनाचूर ... डिग्री की पढ़ाई के दौरान माँ के गहने बेचकर शुरू की थी एक कंपनी ... जूनून ऐसा था सवार कि एमबीए की डिग्री लेकर ही ली चैन की सांस ... पेप्सी में नौकरी करते हुए खूब की तरक्की ... लाखों रुपये वाली नौकरी छोड़ी और लोगों को सुरक्षित पानी देने के लिए बन गए उद्यमी ... अपनी कंपनी 'स्माट इंडिया' के ज़रिये अब 75 लाख लोगों को मुहैया करा रहे हैं सुरक्षित पानी
पीने का पानी न मिलने पर होने वाली प्यास से उपजती वेदना को करुणाकर रेड्डी बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। बचपन में उन्होंने घर-परिवार के लिए पानी जुटाने में ही घंटो बिता दिए थे। लोगों को कुओं और तालाबों का गन्दा पानी पीकर बीमार होते और फिर अस्पताल में मरते हुए उन्होंने अपनी आँखों से देखा था। उन्होंने डॉक्टर बनकर गाँवों के गरीब और निस्सहाय की लोगों की मदद करने का सपना देखा था।लेकिन गरीबी ने कुछ इस तरह से जकड़ रखा था कि सपने ने दम तोड़ दिया। जब नौकरी मिली तब उन्हें समझ में आया कि जहाँ कुछ कंपनियां पानी को बेचकर करोड़ों रुपये कमा रही हैं वहीं लोग बूँद-बूँद पानी को तरस रहे हैं। करुणाकर रेड्डी को अहसास हो गया था कि कुछ कंपनियां भारत में पानी की किल्लत को भुनाने में लगी हुई हैं। शायद यही वजह भी थी कि उन्होंने मौका मिलते ही अपना जीवन लोगों की पानी की प्यास बुझाने में समर्पित कर दिया।
करुणाकर रेड्डी पानी के महत्त्व और उसकी असली कीमत के बारे में सही जानकारी रखते थे। इसी वजह से उन्होंने 'स्माट इंडिया' कंपनी शुरू की। 'स्माट इंडिया' ने तरह-तरह के जल शुद्धिकरण यंत्र बनाए। इन यंत्रों की वजह से गाँवों में भी लोगों को शुद्ध पानी पीने के लिए मिलने लगा। 'स्माट इंडिया' ऐसे भी यंत्र बनाने लगी जो नाले के गंदे पानी को भी पीने लायक जितना शुद्ध बना देते हैं। करुणाकर रेड्डी की कंपनी देश और दुनिया में इस तरह के सोलह हज़ार से ज्यादा यंत्र लगा चुकी है। 35 देश उनके यंत्रों का लाभ उठा रहे हैं। करुणाकर रेड्डी की पहल की वजह से भारत में 6500 से ज्यादा गाँवों में अब लोगों को आसानी से पीने का पानी मिल रहा है। एक मायने में करुणाकर रेड्डी इस समय दुनिया के 75 लाख लोगों की पानी की प्यास बुझा रहे हैं। वे एक कामयाब उद्यमी तो हैं ही, उनकी कामयाबी की कहानी कोई सामान्य कहानी नहीं है, वो आसाधारण हैं। लोगों को प्रेरणा देने वाली है। इरादे नेक हों तो लोग किस तरह कामयाब होते हैं, ये बताने वाली कहानी है।
इस अद्भुत कहानी की शरुआत महबूबनगर जिले के रंगापुरम गाँव ( मौजूदा तेलंगाना राज्य ) में हुई। यहीं करुणाकर रेड्डी का जन्म हुआ था। गाँव छोटा था और अक्सर सूखे की चपेट में रहता। गाँव में पानी की बड़ी समस्या थी। पीने तक को पानी नहीं था। गाँव से करीब चार किलोमीटर दूर पर ही कृष्णा नदी बहती थी, लेकिन गाँववालों को बूँद-बूँद पानी के लिए तरसना पड़ता था। किल्लत इतनी थी कि गाय, भैंस, बकरी जैसे जानवरों के लिए भी पानी नहीं था।
बचपन में सुबह उठते ही करुणाकर रेड्डी का पहला काम होता; घर के लिए पानी लाना। सुबह-सुबह ही वे मिट्टी के घड़े लेकर पानी लाने चले जाते थे। करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक कुवां था वहीं से वे घर की ज़रूरतों के लिए पानी लाते थे। एक ट्रिप के लिए पंद्रह से बीस मिनट का समय लगता था और हर ट्रिप में चालीस लीटर पानी घर में आता। हर दिन दो से तीन घंटे उनके पानी लाने में ही निकल जाते थे।
पानी के लिए आसपास के गाँवों में भी बहुत मारामारी थी। कुएं और तालाब ही पानी का स्रोत थे। लेकिन कई कारणों से कुओं और तालाब का पानी दूषित हो जाता था। कुछ लोगों के पास इतना समय नहीं होता था कि वे पानी को उबालकर पिएं। कुएं और तालाब का दूषित पानी पीकर कई लोग अक्सर बीमार पड़ जाते थे। बारिश के मौसम में सबसे बुरा हाल होता था। लगभग हर कुएं और तालाब का पानी मैला हो जाता। लोग इस दूषित पानी को पीकर बीमार पड़ जाते। हैज़ा और अतिसार - ये दो बीमारियाँ गाँव में बारिश के मौसम में आम बात होतीं।
करुणाकर रेड्डी ने बताया,"बचपन में स्कूल जाना मेरा लिए आखिरी काम होता। पहली प्राथमिकता होती - घर-परिवार के लिए पानी लाना । दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी थी - दूषित पानी पीने की वजह से बीमार हुए गांववालों की अस्पताल में देखभाल करना । इन सब के बीच अगर समय मिलता तो मैं स्कूल जा पाता था।"
करुणाकर रेड्डी के पिता किसान थे और खेती-बाड़ी से ही घर-परिवार का गुज़र-बसर होता था। पिता की सोच थी कि अगर करुणाकर रेड्डी खेत में काम करें तो हर दिन एक मज़दूर का मेहनताना बच जाएगा। उस समय एक दिन के काम के लिए मज़दूर को चालीस से पचास रुपये दिए जाते थे। करुणाकर रेड्डी के खेत में काम करने का सीधा मतलब था कि हर दिन चालीस से पचास रुपये की बचत। पिता के साथ काम करते- करते करुणाकर रेड्डी खेती से जुड़े सभी काम सीख गए थे। छोटी उम्र में उन्होंने हल चलाना, बुआई-जुताई का सारा काम सीख लिया था। पिता अक्सर करुणाकर रेड्डी से कहते कि पढ़ाई-लिखाई से कुछ मिलने वाला नहीं है। लेकिन, करुणाकर रेड्डी का मन पढ़ाई में लग गया था। वो खूब पढ़ना चाहते थे। इसी वजह से जब कभी मौका मिलता वे स्कूल चले जाते। बचपन में जहाँ कहीं उन्हें पुराने अखबार मिलते वे उन्हें उठाकर पढ़ने लगते थे। स्कूल के टीचर भी करुणाकर रेड्डी की पढ़ाई के प्रति लगन और प्रेम से बहुत प्रभावित थे। लगन और प्रेम ऐसा था कि करुणाकर रेड्डी शाम को अपने एक टीचर के भी घर चले जाते। ऐसा करने से दो फायदे थे। एक तो उनकी पढ़ाई-लिखाई हो जाती और दूसरा ये कि मास्टर के घर में कुवाँ था वहां से उन्हें पानी मिल जाता।
लगन और मेहनत का ही नतीज़ा था कि करुणाकर रेड्डी ने दसवीं की परीक्षा पास कर ली। ये कोई साधारण बात नहीं थी। गाँव के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी। करुणाकर रेड्डी के स्कूल से 38 लड़के-लड़कियों ने दसवीं की परीक्षा लिखी थी और सिर्फ करुणाकर रेड्डी ही परीक्षा में पास हुए थे। पास भी ऐसे-वैसे नहीं बल्कि फर्स्ट क्लास में। आसपास के गाँवों के स्कूलों को मिलाकर भी वे अकेले ऐसे छात्र थे जिन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की थी। यही वजह थी कि उनका नाम अखबार में भी छपा था। उस दिन को याद करते हुए करुणाकर रेड्डी ने कहा,"मेरे स्कूल में पिछले दो साल से कोई भी दसवीं की परीक्षा पास नहीं हुआ था। सारे टीचर्स की उम्मीदें मुझ पर ही टिकी थीं । वे मेरी तरफ ख़ास ध्यान भी देते थे। उन दिनों सिर्फ अखबार में रिजल्ट छपते थे। रिजल्ट वाले दिन मैंने भी अखबार ख़रीदा। पहले थर्ड क्लास वाली सूची में अपना नंबर देखा। नंबर नहीं मिला। फिर सेकंड क्लास वाली सूची में देख , उसमें भी नंबर नहीं था। पहले तो लगा कि मैं भी फेल हो गया हूँ। लेकिन मुझे मेरे टीचर की एक बाद याद आयी। परीक्षा के बाद मैंने अपने टीचर को वो सब बताया था जो मैंने एग्जाम में लिखा था। मेरी बातें सुनने के बाद उन्होंने कहा था कि मुझे 600 में से 366 नंबर मिलेंगे। यानी मैं फर्स्ट क्लास में पास हो जाऊंगा। इस बात को याद कर मैंने अपना नंबर फर्स्ट क्लास की सूची में देखा। मेरा नंबर था। मुझे अब भी याद हैं जितने नंबर टीचर ने बताये थे उससे दो नंबर मुझे ज्यादा मिले थे।" अपने जीवन के सबसे यादगार दिनों में एक, उस दिन के महत्त्व के बारे में बताते हुए करुणाकर रेड्डी ने ये भी कहा,"माँ बहुत खुश थी। वे भावुक हो गयी थीं । सारे गाँववाले मेरे बारे में ही बात कर रहे थे। पिताजी भी अंदर से खुश थे, लेकिन बाहर अपनी खुशी का इज़हार नहीं कर रहे थे। अब भी वे यही कह रहे थे कि मुझे खेती-बाड़ी ही करनी है।"
लेकिन, करुणाकर रेड्डी के विचार कुछ और ही थे। उन्होंने ठान ली थी कि वे डॉक्टर बनेंगे। पढ़ने का जूनून उनपर कुछ इस तरह से सवार था कि वे कुछ भी करने तो तैयार थे। लेकिन पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अपने बच्चे को इंटरमीडिएट की पढ़ाई करवा सकें। उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए थे। लेकिन, करुणाकर रेड्डी ने अपने टीचरों से सिफारिश करवाई। पिता को ये यकीन दिलाया कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई में ज्यादा खर्च नहीं होगा। और वे मौका मिलने पर खेती-बाड़ी में उनका हाथ बटाते रहेंगे। किसी तरह से पिता को मना लिया गया। इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए करुणाकर रेड्डी ने अपने गाँव से करीब बीस किलोमीटर दूर वनपर्ति टाउन के सरकारी कालेज में दाखिला लिया। चूँकि इरादा डॉक्टर बनने का था उन्होंने बायोलॉजी, फिजिक्स और केमिस्ट्री (बीपीसी ) विषय चुने। पढ़ाई ज़ोरों पर चलती रही।और फिर, मेडिकल कॉलेज में दाखिले की योग्यता के लिए होनी वाली प्रवेश परीक्षा - एमसेट का भी समय आ गया। लेकिन, उन दिनों घर-परिवार के हालात इतने खराब थे कि प्रवेश परीक्षा की फीस अदा करने के लिए रुपये नहीं थे । पांच सौ रुपये की फीस अदा करने की स्थिति में ना होने की वजह से करुणाकर रेड्डी प्रवेश परीक्षा नहीं लिख पाए। ग़रीबी ने डॉक्टर बनने के उनके सपने को ख़त्म कर दिया।
इंटर की पढ़ाई के दौरान ही एक और बड़ा हादसा हुआ था। करुणाकर रेड्डी के पिता गुज़र गए। हालात बद से बदतर हुए थे। लेकिन, माँ ने हिम्मत नहीं हारी। माँ ने खुद खेती-बाड़ी की ज़िम्मेदारी ली और करुणाकर रेड्डी के जूनून को देखते हुए उन्हें पढ़ाई जारी रखने की सलाह दी।
इंटर के बाद करुणाकर रेड्डी के बीएससी की पढ़ाई शुरू की। इस दौरान उनके एक दोस्त ने उन्हें रोज़गार का एक मौका भी दिलवाया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कुछ हद तक सुधरी। करुणाकर रेड्डी के इस दोस्त के पिता टीवी का कारोबार करते थे। उन दिनों टीवी के लिए छत पर एंटीना लगाना पड़ता था। करुणाकर रेड्डी घर-घर जाकर एंटीना लगाने लगे। एक एंटीना लगाने पर दोस्त के पिता 75 रुपये देते थे, इसमें से उनका दोस्त 25 रुपये खुद रख लेता था और 50 रुपये उन्हें देता था। इस काम की वजह से करुणाकर रेड्डी को काफी राहत मिली। चूँकि काम बढ़ रहा था और आर्डर भी खूब मिल रहे थे करुणाकर रेड्डी ने अपनी खुद की एक कंपनी खोलने की सोची। माँ के गहने बेचकर करुणाकर रेड्डी ने 'सिंधुजा इंटरप्राइजेज' नाम से कंपनी खोली। कारोबार अच्छा होने की वजह से रुपये-पैसों की समस्या दूर हुई। इस दौरान करुणाकर रेड्डी ने डिग्री की पढ़ाई पूरी कर ली। इस मुकाम पर उन्होंने पुलिस में भर्ती होने की सोची, लेकिन शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट न होने ही वजह से वे अपनी इस ख्वाइश को भी पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद भी करुणाकर रेड्डी ने पढ़ाई जारी रखने की सोची। उन्होंने चार अलग-अलग विश्वविद्यालयों में पीजी कोर्स में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा लिखी। उन्हें पुणे के सिम्बियोसिस कॉलेज में डिस्टेंस एजुकेशन से एमबीए की सीट मिल गयी।
एमबीए की सीट क्या मिल गयी, करुणाकर रेड्डी की ज़िंदगी तेज़ी से बदलने लगी। शायद बड़े बदलाव के लिए ही उन्हें ये सीट मिली थी।। एमबीए की पढ़ाई से पहले करुणाकर रेड्डी की सारी पढ़ाई तेलुगु मीडियम से ही हुई थी। लेकिन अब उनके लिए इंग्लिश सीखना ज़रूरी हो गया। जुनून बरकरार था इसी वजह से करुणाकर रेड्डी ने खूब मेहनत की, जमकर पढ़ाई की। हर बार की तरह की इस बार भी मेहनत रंग लाई। उनका कैंपस में ही सिलेक्शन भी हो गया। पेप्सी जैसी बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गयी।
करुणाकर रेड्डी उन दिनों की याद कर बहुत भावुक हो जाते हैं। उन्होंने कहा,"नौकरी मिलने के बाद जब में घर आया और अपनी माँ को बताया कि नौकरी मिली है और तनख्वा बारह हज़ार रुपये महीना है तब उन्हें यकीन नहीं हुआ । माँ ने समझा कि मैं मज़ाक कर रहा हूँ। जब माँ को यकीन हुआ तो उनके खुशी की कोई सीमा नहीं थी। मैं उस खुशी को शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता।"
आने वाले दिनों में माँ को ऐसी और भी हकीकतों का सामना करना पड़ा जिससे वे आश्चर्य में डूबने वाली थीं। पेप्सी में करुणाकर रेड्डी का काम इतना बढ़िया था कि छह महीने के अंदर ही उनकी पदोन्नति हो गयी। तनख्वा भी दुगुनी हो गयी। वे कस्टमर सर्विस एग्जीक्यूटिव से सेल्स एग्जीक्यूटिव बन गए। आगे भी उन्हें खूब इंसेंटिव मिले। जल्द ही वो दिन भी आ गया जब उनकी तनख्वा महीना एक लाख रुपये से भी ज्यादा हो गयी। स्वाभाविक था - माँ इस बात पर भी आसानी से यकीन नहीं करतीं। करुणाकर रेड्डी बताते हैं, "उन दिनों लखपति होना बड़ी बात थी। गांववाले सभी आसपास के लखपतियों के बारे में जानते थे। जब उन्हें पता चला कि मैं भी लखपति बन गया हूँ तो सारा गाँव बहुत खुश हुआ। उन दिनों हमारा सारा गाँव एक परिवार जैसा था। हर कोई हर किसी के घर आता-जाता था। किसी के घर में शादी हो तो सभी ऐसा मान लेते थे की उन्हीं के घर में शादी है। मेरी कामयाबी से सभी बहुत खुश थे।"
लेकिन, करुणाकर रेड्डी पेप्सी से ज्यादा दिन खुश नहीं रहे। करुणाकर रेड्डी ने बताया, "मुझे लगा कि सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन जैसे बड़े लोगों की शक्ल दिखाकर शक्कर मिला पानी बड़ी कीमत पर बेचा जा रहा। मुझे शक्कर मिला पानी बेचने का ये कारोबार पसंद नहीं आया। इसकी एक और बड़ी वजह थी। पेप्सी के लिए काम करते समय मुझे देश के कई हिस्सों का दौरा करने का मौका मिला। मैं कई राज्य गया। कई गाँवों में घूमा-फिरा। मुझे अहसास हुआ कि भारत के सभी गाँव लगभग एक जैसे हैं। हर गाँव में पीने के पानी की समस्या है। हर गाँव मेरे गाँव जैसा है। सारा ग्रामीण भारत एक जैसा है। मैंने फैसला कर लिया कि मैं नौकरी छोड़ दूंगा और कोई दूसरा काम करूँगा जिससे लोगों की भलाई हो। "
करुणाकर रेड्डी ने जब अपने 'बॉस' को नौकरी छोड़ने के फैसले की बात बतायी तो वे चौंक गए। 'बॉस' ने करुणाकर रेड्डी को बेवक़ूफ़ कहा। 'बॉस' ने ये भी कहा कि नौकरी छोड़ना ख़ुदकुशी करने जैसा होगा। 'बॉस' ने बताया कि पेप्सी जल्द ही पीने के पानी का कारोबार शुरू करने जा रही है और करुणाकर रेड्डी को पेप्सी छोड़कर एक्वाफिना में काम करने की हिदायत दी। करुणाकर रेड्डी ने 'बॉस' की सलाह मान ली। कुछ महीनों तक एक्वाफिना में काम करने के बाद फिर उनके मन नौकरी छोड़ने और गरीबों के हितों के लिए काम करने की इच्छा जगी। इस बार उनका निश्चय पक्का था। करुणाकर रेड्डी ने लाखों रूपये वाली नौकरी छोड़ दी।
एक्वाफिना के लिए काम करते हुए करुणाकर रेड्डी ने कई नयी और बड़ी बातें जान ली थीं। उन्हें पता चल गया था कि आने वाले दिनों में भारत में पानी का कारोबार लगातार बढ़ता चला जाएगा। पानी की समस्या बढ़ेगी और कारोबार साथ-साथ बढ़ेगा। इतना ही नहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस मौके का फायदा उठाने की ताक में बैठी थीं। करुणाकर रेड्डी ने ऐसे हालात में एक बड़ा फैसला लिया। फैसला था पानी की बचत के लिए लोगों में जागरूकता लाना और लोगों को पीने का पानी कम से कम कीमत पर उपलब्ध कराना। फैसले को अमल में लाने का काम भी शुरू हो गया।
इसी बीच एक और बड़ी घटना हुई जिसने करुणाकर रेड्डी के काम और प्रयास को बहुत तेज़ कर दिया। करुणाकर रेड्डी को राष्ट्रपति भवन में काम करने का एक मौका मिला। मुग़ल गार्डन में पानी से जुड़ा काम था। इससे पहले के ठेकेदारों ने पन्नों पर जिस तरह लिखा था ठीक वैसे ही काम को अंजाम दिया था। लेकिन करुणाकर रेड्डी ने काम को नए अंदाज़ में और बहुत ही शानदार तरीके से अंजाम दिया।
करुणाकर रेड्डी का काम देखकर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम बहुत ही प्रभावित हुए थे। उन्होंने करुणाकर रेड्डी को अपने पास बुलाया और कहा - " तुम्हारा काम बहुत अच्छा है। लेकिन, हैदराबाद से कुछ ही दूर नलगोंडा में लोग ज़हर पी रहे हैं ,तुम उनके लिए क्यों नहीं काम करते।"
करुणाकर रेड्डी ने डॉ. अब्दुल कलाम की बातों को अपना मिशन बना लिया। उन्होंने अविभाजित आँध्रप्रदेश के गाँवों में सुरक्षित पीने के पानी का इंतज़ाम करना शुरू किया। करुणाकर रेड्डी ने गाँव-गाँव जाकर कम्युनिटी बेस्ड वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट यानी समुदाय आधारित पानी शुद्धिकरण यंत्र लगाए। इससे कई गाँवों में लोगों को आसामी से पीने का पानी मिलने लगा। करुणाकर रेड्डी ने बताया,"डॉ. अब्दुल कलाम ने मेरी बहुत मदद की। वे मुझे हमेशा सलाह देते रहे। पैंतीस से चालीस बार मैं उनसे मिला हूँ। हर बार उन्होंने मुझे कुछ न कुछ सिखाया। उन्होंने कई जगह मेरी तारीफ़ की। मेरे लिए सिफारिश भी की। मुझे काम मिलता गया और मैं गाँवों में साफ़ पानी पहुंचाने में कामयाब होता गया।"
करुणाकर रेड्डी इस समय अपनी कंपनी "स्माट इंडिया" के ज़रिये 35 देशों में अलग- जगह पीने का पाने उपलब्ध करवा रहे हैं। पश्चिम के कई देशों के अलावा चीन और खाड़ी देशों में भी करुणाकर रेड्डी लोगों की पानी की ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं। वे दुनिया में अलग-अलग जगह सोलह हज़ार से ज्यादा पानी शुद्धिकरण यंत्र लगा चुके हैं। अपने इन्हीं यंत्रों की वजह से करुणाकर रेड्डी दुनिया-भर में 75 लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित पानी पिला पा रहे हैं। हमसे बातचीत के दौरान करुणाकर रेड्डी ने इस यंत्र के कामकाज के तरीके और इससे जुड़ी इकोनॉमिक्स के बारे में भी बताया। करुणाकर रेड्डी के मुताबिक, एक यंत्र की कीमत आठ लाख रुपये है। पांच अलग-अलग मॉडल से इन यंत्रों को गाँवों में पहुंचाया जा रहा है।
पहला मॉडल - कई जगह सरकार यंत्र का पूरा खर्च उठा रही है। कई गाँवों में यंत्र का खर्च केंद्र सरकार ने उठाया है तो कई जगह वहां की राज्य सरकारों ने।
दूसरा मॉडल - सरकार (राज्य या केंद्र ) और कॉर्पोरेट, यंत्र का खर्च आधा-आधा उठा रहे हैं।
तीसरा मॉडल - सांसद निधि या विधायक निधि से कई गाँवों में ये यंत्र लगाए गए हैं।
चौथा मॉडल - अप्रवासी भारतीय या कॉर्पोरेट सीधे यंत्र का सारा खर्च वहन कर रहे हैं ।
पाँचवा मॉडल - गाँव के लोग ही खुद यंत्र का खर्च उठाते हैं।
करुणाकर रेड्डी ने बताया,"एक यंत्र लगाने के बाद तीन तरह के खर्च होते हैं। पहला ऑपरेटर की तनख्वा (दस हज़ार रुपये महीना ), दूसरा- बिजली का बिल (दस हज़ार रुपये महीना) और तीसरा कन्स्यूमबल्स यानी उपभोज्य वस्तुओं जैसे फ़िल्टर आदि (पंद्रह हज़ार रुपये महीना )। यानी पैंतीस हज़ार रुपये महीने के खर्च पर हर दिन एक यंत्र से लोगों को बीस से पचास हज़ार लीटर पीने का पानी मिलता है।
पूरे खर्च के बाद गांववालों को सिर्फ बारह पैसे प्रति लीटर के हिसाब से पीने का शुद्ध पानी मिलता है। ख़ास बात ये भी है यंत्र भू-जल को शुद्ध करता है। भू-जल कितना भी खराब क्यों न हो ये यंत्र उसे शुद्ध कर पीने लायक बनाता है।
करुणाकर रेड्डी की कंपनी "स्माट इंडिया" पानी शुद्धिकरण के लिए अलग-अलग यंत्र बना रही है। गंदे नाले के पानी को भी शुद्ध करने के यंत्र बनाए और बेचे जा रहे हैं। करुणाकर रेड्डी के इस शानदार काम और उनकी नायाब कामयाबियों के लिए उन्हें अब तब तक 163 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। लगातार तीन साल उन्हें राष्ट्रपति के हाथों बेस्ट नेशनल एमएसएमई अवार्ड मिला। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास बैंक ने भी उन्हें उनके इन्नोवेशन के लिए अवार्ड दिया। उन्हें उनकी उद्यमिता और सेवाओं के लिए इंग्लैंड में "क्वालिटी क्राउन" से भी नवाज़ा जा चुका है।
ये पूछे जाने पर कि वे अपने जीवन की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी किसे मानते हैं, इस सवाल के जवाब में करुणाकर रेड्डी ने एक बहुत दिलचस्प किस्सा सुनाया। करुणाकर रेड्डी ने कहा,"2014 में जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आयी। बाढ़ बहुत भयानक थी। बाढ़ की वजह से हर तरफ पानी-पानी था। लेकिन पानी बहुत ही गन्दा था ,पीने के लायक नहीं था। वो पानी पीने पर मौत का खतरा था। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट रेस्पोंस यानी एनडीआरएफ की टीमें भी पीने का पानी मुहैया कराने में नाकाम रही थीं। भारत सरकार ने हमारी मदद माँगी। हमारी टीम कई सारे पोर्टेबल वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लेकर श्रीनगर पहुँची। सेना की मदस से हवाई जहाज़ से हम पोर्टेबल वाटर ट्रीटमेंट प्लांट ले गए थे। हमने हज़ारों लोगों को साफ़ पीने का पानी दिया था। हम बाढ़ के गंदे पानी को ही शुद्ध कर लोगों को दे रहे थे। हमारे प्लांट बहुत ही शानदार हैं और इनकी वजह से ही हमने बाढ़ के पानी को भी शुद्ध किया था।" करुणाकर रेड्डी ने आगे कहा,"कश्मीर में लोगों के हाथ में क्रेडिट कार्ड थे, नोटों के बण्डल थे लेकिन पीने को पानी नहीं था। हालात बहुत बुरे थे। लोग पीने के पानी के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। ऐसे हालात में हमने लोगों को पानी दिया। जम्मू-कश्मीर के मुख़्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हमारी खूब तारीफ की थी । राजनेताओं और अफसरों ने कहा था कि हमने उनकी इज़्ज़त बचा ली। यही मेरे लिए सबसे बड़ी कामयाबी है।"
एक सवाल के जवाब में करुणाकर रेड्डी ने कहा,'मेरा सपना है कि भारत के हर गाँव और घर में पीने का सुरक्षित पानी मिले, वो भी आसानी से। लोगों को उस तरह तकलीफें न हों जो मैंने बचपन में पानी पाने के लिए उठायी थीं।'
ये पूछे जाने पर कि ये सपना कब और कैसे साकार होगा, करुणाकर रेड्डी ने कहा,"ये एक आदमी की ज़िम्मेदारी नहीं है। हर आदमी को पानी का महत्व समझना चाहिए। पानी की बचत करनी चाहिए। जब हर नागरिक पानी को लेकर जागरूक हो जाएगा और पानी का सही इस्तेमाल करेगा तब पानी की समस्या हर हाल में दूर हो जाएगी।"
इन दिनों करुणाकर रेड्डी पानी की बचत के लिए जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं। इस जागरूकता के तहत वे लोगों को कुछ दिलचस्प जानकारियां भी देते हैं। वे बताते हैं, टॉयलेट में एक बार फ्लश करने से बीस से पच्चीस लीटर पानी लगता है। और चार लोगों के मकान में हर दिन औसत सौ लीटर का 'फ्रेश वाटर' फ्लश की वजह से खराब चला जाता है। वे टॉयलेट में फ्लश इस्तेमाल न करने और सफाई के लिए ज़रूरी पानी का ही इस्तेमाल करने का सुझाव देते हैं। ऐसे कई सुझाव लेकर वे जनता के बीच जा रहे हैं और लोगों में जागरूकता लाने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे हैं।
अपनी कंपनी का नाम 'स्माट इंडिया' रखने के कारण के बारे में पूछे जाने पर करुणाकर रेड्डी ने बताया," संस्कृत में 'स' का मतलब होता है शुद्ध और पवित्र। 'म' से हमारा मतलब है मल्हार। मल्हार एक राग है और इससे मन को शांति मिलती है। मल्हार का मतलब बारिश भी है। स्माट में पहले 'ए' का मतलब एक्वा यानी पानी और दूसरे 'ए' का मतलब एयर यानी हवा है। और 'टी' का मतलब टेक्नोलॉजी है। इन्हीं सभी को मिलाकर मैंने अपनी कंपनी का नाम 'स्माट इंडिया' रखा।"