यूपी-राजस्थान में गीत-संगीत की तान पर दूध बरसाती हैं गायें
ये कैसा संगीत है, जिसे सुनकर गायें दे रही हैं 20 प्रतिशत तक ज्यादा दूध...
वैसे हरियाणा के बाजारों को माफिया ने नकली दूध से मक्खन, क्रीम, घी, दही, पनीर, खोया से पाट रखा है और टीके लगाकर भी अधिक दूध निकालना अपराध है लेकिन सीकर (राजस्थान) और सीतापुर (उ.प्र.) में दुहाई के वक्त गीत-संगीत सुनने वाले गाय-भैंस बीस फीसदी तक ज्यादा दूध देने लगे हैं। एम्प्लीफायर से गूंजती मधुर धुनें मंथर-मंथर स्पंदित करने लगती हैं और इससे दूध की मात्रा बढ़ती चली जाती है।
श्रीगोपाल गौशाला की गायें रोजाना सुबह-शाम एम्पलीफायर लगाकर तीन-तीन घंटे गीत-संगीत सुन कर 20 प्रतिशत तक ज्यादा दूध देने लगी हैं। गौशाला के अध्यक्ष दौलतराम गोयल बताते हैं कि गौशाला की 550 गायों को लगभग दो साल से सुबह 5.30 बजे से 8.30 बजे तक और शाम को 4.30 बजे से 8.00 बजे तक एम्पलीफायर से गीत-संगीत सुनाया जा रहा है।
दूध का भाव आसमान पर चढ़ता जा रहा है तो दुधारू पशुओं की उन्नत नस्लें हालात संभालने में मददगार बन रही हैं लेकिन ऐसे वक्त में जब पता चले कि गाय-भैंसे गाना सुनकर ज्यादा दूध दे रही हैं तो यह खुशी सोने में सुगंध जैसी लगती है। ज्यादा दूध देने वाली खबरें मन को कुछ अलग ही तरह के सुकून से भर देती हैं। जालंधर में तो पंजाब प्रोग्रेसिव डेरी फार्मा एसोसीएशन की एक ऐसी गाय (पंजाब होलस्टेन) है, जिसे एक साथ चार लोग मिलकर रोजाना साठ लीटर से अधिक दूध उससे दुहते हैं यानी उससे हर माह 65 हजार रुपए की कमाई हो रही है। ये गाय यूरोप की अच्छी नस्ल की गाय से विकसित की गई है। फिलहाल, हम बात कर रहे हैं गाना सुनने वाली गाय की। उसे प्रतिदिन दूध दुहने के दौरान ढाई-तीन घंटे तक एम्पलीफायर से गाना सुनाते रहते हैं।
ऐसी पहली दुधारू दास्तान सीकर (राजस्थान) के नीमकाथाना में खेतडी रोड स्थित श्रीगोपाल गौशाला की है और दूसरी दास्तान उत्तर प्रदेश के मिश्रिख (सीतापुर) की। श्रीगोपाल गौशाला की गायें रोजाना सुबह-शाम एम्पलीफायर लगाकर तीन-तीन घंटे गीत-संगीत सुन कर 20 प्रतिशत तक ज्यादा दूध देने लगी हैं। गौशाला के अध्यक्ष दौलतराम गोयल बताते हैं कि गौशाला की 550 गायों को लगभग दो साल से सुबह 5.30 बजे से 8.30 बजे तक और शाम को 4.30 बजे से 8.00 बजे तक एम्पलीफायर से गीत-संगीत सुनाया जा रहा है। वर्ष 2016 में उन्हें किसी गोभक्त ने बताया था कि संगीत की हिलोरें गाओं को ज्यादा दूध देने के लिए स्पंदित कर देती हैं। उसके बाद उन्होंने गौशाला में ध्वनि प्रसारण यंत्र लगवा दिया। दूध दुहने के दौरान गीत-संगीत सुनकर गायें अनायास पहले से ज्यादा दूध देने लगीं। गायों को सुविधाजनक स्थिति में चालीस फुट लम्बा और 54 फुट चौड़ा आरसीसी हॉल बनाया गया है जिसमें सौ से अधिक पंखें भी लगे हैं। उनकी हर वक्त देखभाल के लिए लगभग दो दर्जन कर्मचारी तैनात किए गए हैं।
गौशाला संचालन पर प्रतिमाह करीब सात लाख रूपये खर्चा आता है। उसमें दो लाख रूपये प्रतिमाह दूध बेचकर आते हैं और शेष रकम जनसहयोग से मुंबई, सूरत, जयपुर नीमकाथाना से जुटाई जाती है। वह नीमकाथाना के स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों को भी गौ पालन में दान के लिए प्रेरित करते हैं। इस तरह कस्बे के करीब दो दर्जन स्कूलों से हर साल दो लाख रूपए जुट जाते हैं। इस गौशाला के अच्छे संचालन के लिये राज्य सरकार की ओर से उन्हे सम्मानित भी किया जा चुका है। वह बताते हैं कि गायों को मुख्यतया भजन और शास्त्रीय संगीत सुनाए जाते हैं। इस व्यवस्था से पहले उनकी ज्यादातर गायें प्रायः दूध दुहने के वक्त सुस्त हो जाती थीं। जब से वे संगीत सुनने लगी हैं, दूध दुहने के वक्त उनमें अजीब सी प्रफुल्लता दिखती है। इतना ही नहीं, गीत-संगीत सुनाने का उनकी सेहत पर भी सकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है। वह पहले से काफी तदुंरूस्त हो गई हैं।
ऐसी ही एक और सुखद दास्तान है मिश्रिख (सीतापुर) की। मिश्रिख ब्लॉक का एक गांव है कुंवरापुर। यहां की डेयरी मालकिन सुधा पांडेय बताती हैं कि उनके यहां पल रही पचास से अधिक गाय-भैसों को भी रोजाना सुबह-शाम गाना सुनाकर दूध दुहा जाता है। संगीत एवं भजन सुनाने की दूध के परिमाण पर असर पड़ा है। वे ज्यादा दूध देने लगी हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है कि जिन गाय, भैसों के बच्चे मर जाते हैं, वे भी गीत-संगीत की धुनों से तरंगित होकर दूध देने से इनकार नहीं करती हैं। इन दुधारू पशुओं की सुविधा के लिए उनकी डेयरी में पंखे के साथ ही गर्मियों में फव्वारे भी चलाए जाते हैं। इन सब कामों से स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है और वह स्वयं सैकड़ों महिलाओं को डेयरी का प्रशिक्षण भी दे रही हैं। इसके अलावा डेयरी से सम्बंधित एक अन्य उद्यम चलाने के लिए एक तेरह बीघे का प्लाट खरीद लिया है, जिसमें गोबर से केंचुए की खाद बनाई जाती है। इस तरह सफल डेयरी संचालन के लिए उनको गोकुल पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।
ज्यादा दूध के लिए गाय-भैंस को टीके लगाना तो अमानवीय है ही, गीत-संगीत सुनाकर ज्यादा दूध उपार्जित करने की विधि तो नई-नई सी है, हमारे यहां आयुर्वेद में पशुओं से अधिकाधिक दूध प्राप्त करने के और भी कई नुस्खे बहुत पहले से इजाद हैं। गाय-भैंस के दूध बढ़ाने के और भी कई रामबाण सरल घरेलू उपाय हैं। जैसे कि 250 ग्राम गेहू दलिया, 100 ग्राम गुड सर्बत, 50 ग्राम मैथी, एक कच्चा नारियल, 25-25 ग्राम जीरा और अजवाइन मिश्रित करने के बाद खाली पेट दुधारू पशुओं को देना काफी लाभदायक साबित हो रहा है।
विधि ये है कि सबसे पहले दलिया, मैथी, गुड को पका लें, फिर उसमें नारियल को पीसकर डाल दें। ठण्डा होने पर खिलाएं। ये खाद्य दो महीने तक केवल सुबह खाली पेट देने से दूध में आश्चर्जनक मात्रा में बढ़ोत्तरी हो जाती है। सुखाद्य न दें और सिर्फ गाना सुनाने के भरोसे चाहें कि ज्यादा दूध मिल जाए तो यह बात भी हास्यास्पद हो सकती है। ब्याने के बाद केवल तीन दिनों तक 25-25 ग्राम अजवाइन और जीरा गायों के देने के बहुत अच्छे परिणाम मिले हैं।
इसके अलावा दो-तीन सौ ग्राम सरसों के तेल में 250 ग्राम गेहूँ का आटा मिलाकर शाम को पशु को चारा-पानी के बाद खिलाना भी लाभकर रहता है। यह एक तरह की दवा है, जो ब्याने के बाद दुधारू पशुओं को दी जाती है। वैसे तो आजकल आर्टिफीशियल दूध बनाने वाले माफिया 'लोहे की भैंस' का नायाब ढंग अपनाकर लोगों को बीमारियों की चपेट में डाल रहे हैं। वे कृत्रिम दूध से मक्खन, क्रीम, घी, दही, पनीर, खोया बनाकर भारी मात्रा में बाजारों में बेच रहे हैं और इनकी धर-पकड़ करने वाले विभाग सफेद हाथी बनकर रह गए हैं।
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