राजस्थान में पहली बार वोटिंग से महिलाओं ने कराई शराबबंदी, एक अप्रैल से बंद हैं एक गांव में शराब की दुकानें
मेवाड़ का इतिहास, यहाँ की वीर महिलाओं के त्याग और बलिदान, पूरे देश में जाना जाता है. मुगलकाल में रानी पदमिनी,पन्नाधाय और हाड़ी रानी के त्याग और बलिदान ने मेवाड़ की आन बान शान को बचाये रखा. कुछ उसी तर्ज पर राजसमन्द जिले के छोटे से काछबली गांव की महिलायें भी शराबबंदी के लिए के आरपार की लड़ाई लड़ीं और जीतीं. इस गांव की मर्दानी महिलाओं ने शराब की दुकान हटाने के लिए शुरू की लड़ाई को वोटिंग तक पंहुचाया और प्रशासन को गांव से शराब की दुकानें हटाने के लिए मजबूर कर दिया.शराब की वजह गांव में हो रही मौतों से परेशान महिलाओं ने अपनी एकजुटता दिखाते हुए शराब के खिलाफ हल्ला बोल दिया. गांव की महिलाओं में शराब के प्रति इतनी नफरत है कि ये यहां शराब की एक बूंद तक बिकने नहीं देना चाहती हैं और इसके लिए वो हाथो में लट्ठ लेकर लड़ाई लड़ने को भी तैयार है. इनकी जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा है और 29 मार्च को इसके लिए पंचायत में वोटिंग रखी गई. इन्होंने दिन-रात एक कर गांव के पुरुषों को मनाकर अपने पक्ष में तैयार किया.
राजस्थान में वोटिंग कर शराबबंदी का क़ानून तो 1973 में ही बन गया था, लेकिन पहली बार इस कानून का प्रयोग उदयपुर संभाग के राजसमन्द जिले के काछबली गांव की महिलाओं ने किया. महिलाओं ने चुनाव करवाने के लिए कमर कसी और जमकर इसके लिए प्रचार भी किया. मतदान के अनुसार 67.11 फीसदी लोग शराबबंदी के पक्ष में है. प्रशासन के कराए मतदान में पंचायत के 9 वीर्डों में 2886 व्यस्क मतदाता थे जिसमें से 2039 वोटरों ने वोट डाले. इसमें से 1937 वोटरों ने गांव से शराब की दुकान हटाने के लिए वोट डाले जबकि 33 वोटरों ने शराब की दुकान खोलने के पक्ष में वोट डाले. 69 वोट गलत तरीके से डालने की वजह से खारिज भी हुए. दरअसल करीब 1 वर्ष पूर्व हुए ग्राम पंचायत के चुनाव में इस गांव के लोगों ने महिला सरपंच गीता देवी को भी इसी शर्त पर वोट दिया कि वो गांव से शराब का ठेका हटवा देंगी. गीता ने भी अपने चुनावी वादे को ध्यान में रखते हुए जीतने के बाद कई बार अपने स्तर पर प्रयास किए लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. सरपंच गीता देवी कहती हैं,
"जब किसी ने हमारी नही सुनी तब हम महिलाओं ने शराब की दुकान बंद कराने के लिए एकजुट होकर गत 27 फरवरी को ग्राम सभा में ग्रामीणों के हस्ताक्षर का लिखित प्रस्ताव पास कर लिया, लेकिन प्रशासन ने मानने से इंकार कर दिया. फिर हमने धमकी दी कि खुद ही वोट करवा दो महिलाएं लाठियां लेकर घर से निकलेंगी."
दरअसल राज्य के मधनिषेध कानून 1973 में ये प्रावधान है कि किसी ग्राम पंचायत के पचास फीसदी लोग अगर शराब की दुकान के खिलाफ वोट डालते हैं तो शराब की दुकान बंद कर दी जाएगी. गांव में शराब की वजह से कई मौतों के बाद महिलाओं ने आबकारी अधिकारियों और जिला प्रशासन से शराब की दुकान बंद कराने के लिए कहा, लेकिन किसी ने ध्यान नही दिया तो गांव की महिलाओं ने खुद ही 15 मार्च को गांव में वोटिंग का इंतजाम कराया। जिसमें 60 फीसदी लोगों ने शराब की दुकान बंद कराने के लिए वोट डाले. इस मतदान का परिणाम लेकर ग्रामीण जिला प्रशासन के पास पहुंच कर दुकान बंद करने के लिए कहा, लेकिन प्रशासन ने इसे मानने से इंकार करते हुए कहा कि वो खुद मतदान करवाएंगे. राजसमंद के जिला कलेक्टर अर्चना सिंह कहती है,
"हमारे पास ये शराब की दुकानों के विरोध में आए थे फिर हमने इन्हें वोटिंग के नियम बताए. अब परिणाम आने के बाद एक अप्रैल से पंचायत की शराब की दुकान बंद कर दी गई हैं"
दरअसल इस गांव की महिलाएं और ग्रामीण शराब के दुष्पपरिणामों से इतने पीड़ित है कि वे अब इस गांव एक बूंद शराब तक नहीं बिकने देना चाहते है. यही नहीं इसके लिए इस गांव की महिलाएं सरकार और प्रशासन से भी दो दो हाथ करने के लिए भी तैयार हैं. इस गांव के बड़े और बुजुर्ग भी इन कर्मठ महिलाओं के हौसले को देखते हुए शराब के खिलाफ इस मुहिम में इनके साथ सडकों पर उतर आए है. ग्रामीणों की मानें तो पिछले कई दशकों से इस गांव में शराब की लत से कई परिवार उजड़ गए हैं. कई महिलाएं विधवाए हो गयीं तो कई माताओं को अपने लाल की अकाल मौत देखनी पड़ी. शराब ने छोटे छोटे बच्चों को निवाला ही नहीं छीना बल्कि उन्हें अनाथ भी कर डाला है. पंचायत परिषद की सदस्य मीरा देवी कहती हैं कि गांव में एक साल में शराब पीने से सात लोगों की मौतें हो चुकी है.
इस गांव की महिलाओं के संघर्ष की कहानी भी बड़ी ही दर्दनाक है. इस गांव के पुरुष शराब पीने के इतने आदि हैं कि दिन की शुरुआत ही शराब से करते है. यही नहीं शराब पीने का यह क्रम देर रात चलता है. शराब के नशे के चलते इस गांव की युवा पीढ़ी टूटती जा रही है और बेरोजगार युवाओ की तादाद दिन ब दिन बढती जा रही है. जब इस बड़ी समस्या के निजात के लिए शराब के ठेके को हटाने की बात कही जाती तो सरकारी नियमों का हवाला दिया जाता. राज्य में शराब विरोधी आंदोलन चला रही पूजा छाबड़ा कहती हैं,
"ये तो अभी शुरुआत है. अब धीरे-धीरे सभी पंचायतों में हम वोटिंग की मांग करेंगे और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को झुकना पड़ेगा"
गौरतलब है कि राज्य में शराबबंदी लागू करने के लिए पूर्व विधायक और सामाजिक कार्यकर्ता गुरुशरण छाबड़ा ने जयपुर में अनशन कर अपनी जान दे दी थी.