आपका कूड़ा भी उठाते हैं और पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं, आप भी जानिए कौन हैं वो
‘सफाई सेना’ के करीब 12 हजार सदस्य...घरों से कूड़ा उठाने का काम करती है ‘सफाई सेना’...कूड़े से बनाते हैं खाद...
साफ-सुथरे माहौल में रहना भला कौन नहीं चाहता ? लेकिन जैसे जैसे शहरों में कूड़ा कचरा बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे अपने आसपास के इलाके को साफ सुथरा और ठीक ठाक रखना भी मुश्किल होता हो रहा है। ऐसे में दिल्ली एनसीआर इलाके में इस कूड़े को ठिकाने लगाने का इंतजाम कर रही है ‘सफाई सेना’। इस ‘सफाई सेना’ के जवान ना सिर्फ कूड़ा उठाते हैं बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा कर रहे हैं। ‘सफाई सेना’ से जुड़े लोग उस कूड़े को रिसाइकल कर उसे इस काबिल बनाते हैं कि उसका दोबारा इस्तेमाल हो सकें। ‘सफाई सेना’ में करीब 12 हजार लोग हैं जो पिछले सात सालों से घर, दुकान, ऑफिस और कारखानों से कूड़े को उठाकर उसे सही जगह पर पहुंचा रहे हैं। ‘सफाई सेना’ के इस काम में मदद करता है एक स्वंय सेवी संगठन ‘चिंतन’। ये संगठन ना सिर्फ ‘सफाई सेना’ के सदस्यों को उनके काम की ट्रेनिंग देता है बल्कि विभिन्न तरीके से उनकी जरूरतों को भी पूरा करता है।
यूं तो दिल्ली एनसीआर में सार्वजनिक साफ सफाई को लेकर अलग अलग नगर निगम हैं लेकिन अगर ‘सफाई सेना’ ना हो तो ये काम कितना कठिन हो सकता है इस बात को अलग अलग जगहों के लिए बनी नगर निगम से बेहतर कौन समझ सकता है। जिनका ये काफी बड़ा काम आसान कर देते हैं। ‘सफाई सेना’ कूड़ा बीनने वालों, घर घर जाकर कूड़ा इकट्ठा करने वालों, फेरीवालों, दूसरे छोटे खरीददारों, छोटे कबाड़ डीलरों और विभिन्न तरह के रिसाइकिलरों का दिल्ली एनसीआर में एक समूह है। सफाई सेना के सदस्य सबसे पहले कूड़े को उठाते हैं, इसके बाद कूड़े को अलग अलग सेंटर में ले जाकर अलग किया जाता है। इसके बाद जो गीला कूड़ा होता है उससे खाद बनाते हैं जबकि सूखे कूड़े को रिसाइकिल करने वालों तक पहुंचाने का काम करते हैं।
‘सफाई सेना’ जो भी कूड़ा इकट्ठा करती है उसमें से करीब-करीब बीस प्रतिशत कूड़ा ऐसा होता है जिसको रिसाइकिल नहीं किया जा सकता। जिसको ये लोग नगर निगम के हवाले कर देते हैं। दिल्ली एनसीआर में ‘सफाई सेना’ के करीब 12 हजार लोग हैं जो अलग अलग जगहों से गंदगी उठाने का काम करते हैं। दिल्ली एनसीआर में इनके 20 कलेक्शन सेंटर हैं जबकि कूड़े को ये 6 जगहों पर ही खाद में बदलने का काम करते हैं। ‘सफाई सेना’ कूड़े को खाद में बदलने का काम ऑर्गेनिक तरीके से करती है। इसके तहत तीन बाई छह का एक पिट होता है जिसमें कूड़ा डाला जाता है। जिसके बाद उसे सूखे पत्तों और घास के साथ मिला दिया जाता है। कूड़े को घास और पत्तों से मिलाने के बाद उसमें पानी डालकर 30 दिन के लिए रखा जाता है और हर दूसरे दिन उस मिश्रण को घोला जाता है। इसके बाद 15 दिन उसे सूखाया जाता है। जिसके बाद उसे बारीक कूट कर उसे खाद के रूप में इस्तेमाल लायक बनाया जाता है। फिलहाल ये जो खाद बनाते हैं उसकी बिक्री काफी कम होती है इसलिए ज्यादातर ये लोग मुफ्त में ही खाद को उन लोगों के बीच बांट देते हैं जहां से ये कूड़ा उठाने का काम करते हैं, ताकि लोग अपने घरों में रखे गमलों में उसका इस्तेमाल कर सकें।
‘सफाई सेना’ के कर्मचारी हर हफ्ते एक बैठक भी करते हैं जिसमें अपने काम के साथ साथ समाज में अपनी पहचान बनाने के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर चर्चा भी होती है। ‘सफाई सेना’ के ज्यादातर सदस्य 18 साल से लेकर 45 साल तक के बीच हैं। जरूरत पड़ने पर ये अपने सहयोगी की आर्थिक रुप से मदद करते हैं। इसके अलावा ‘सफाई सेना’ के सदस्य नियमित तौर पर सफाई के लिए मुहिम चलाते हैं। ये विभिन्न रेलवे स्टेशन, आरडब्लूए और स्कूल के साथ मिलकर अपनी मुहिम चलाते हैं। ये स्कूल में जाकर बच्चों को बताते हैं कि कूड़े को किस तरह रखना चाहिए, जिससे बच्चे स्वस्थ्य रह सकें, तो रेलवे स्टेशन या दूसरी सार्वजनिक जगहों की ये ना सिर्फ सफाई करते हैं बल्कि लोगों से शपथ पत्र भी भरवाते हैं कि वो कूड़े को सिर्फ कूड़ेदान में ही फेकें, ताकि स्टेशन और शहर साफ रह सके।
‘सफाई सेना’ के सचिव जयप्रकाश चौधरी बिहार के मुंगेर जिले के रहने वाले हैं। साल 1994 में जब काम की तलाश में ये दिल्ली आये तो इन्होने यहां पर कूड़ा उठाने और उसको बीनने का काम शुरू किया। इसके बाद ये स्वंय सेवी संगठन ‘चिंतन’ के साथ जुड़ गये। साल, 2008 में ‘चिंतन’ की मदद से ही ‘सफाई सेना’ का गठन किया गया जिसमें इनकी बड़ी भूमिका थी। जयप्रकाश के मुताबिक
"हमारी संस्था पिछले सात सालों से डोर टू डोर से लेकर कूड़ेदान तक से कूड़ा उठाने का काम कर रही है। लेकिन हमें इस बात की शिकायत है कि ‘सफाई सेना’ को जो अधिकार मिलने चाहिए थे वो अब तक नहीं मिले और इस बात की चर्चा ये हर हफ्ते होने वाली बैठकों में भी करते हैं।"
जय प्रकाश चौधरी को इस बात का मलाल है कि जिन घरों से वो कूड़ा उठाते हैं उस घर के लोग ही उनको नहीं पहचानते तो ऐसे में सरकार उनको कैसे पहचानेगी। बावजूद वो अपने काम में जरा भी लापरवाही नहीं बरतते।
वेबसाइट : www.safaisena.net