एलोवेरा की खेती करने के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी, आज हैं करोड़पति
सरकारी नौकरी छोड़ एलोवेरा की खेती से करोड़पति बना ये इंजीनियर किसान...
2013 में हरीश धनदेव के लिए नगरपालिका में इंजीनियर की नौकरी छोड़ना मुश्किल काम नहीं था, लेकिन नौकरी छोड़कर किसान बनना और अपने आपको साबित करना सबसे बड़ी चुनौती थी और इस चुनौती में वे खरे उतरे। कभी जिन लोगों ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना किया, वे ही आज शून्य से करोड़पति बने इस इंजीनियर किसान से प्रेरणा लेकर खुद भी एलोवेरा की खेती कर रहे हैं।
"2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1270.6 लाख ऐसे किसान हैं, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। और यह आंकड़ा, कुल जनसँख्या का सिर्फ 10% हैं। नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 1991 की तुलना में आज 150 लाख किसान कम हो चुके हैं और 2001 से 70. 7 लाख कृषक कम हो चुके हैं। विपरीत परिस्थितियों और जलवायु के चलते पिछले 20 सालों में लगभग 2035 किसान प्रतिदिन के हिसाब से खेती छोड़ रहे हैं। वहीं यदि हम दूसरी रिपोर्ट की बात करें, तो भारत में करीब 15 लाख छात्र हर साल इंजीनियरिंग कर रहे हैं, जिनमें से 80% बेरोजगारी झेल रहे हैं, लेकिन फिर भी कृषि को कैरियर के विकल्प के तौर पर अपनाना नहीं चाहते।"
एलोवेरा की खेती से करोड़पति बनने वाले हरीश धनदेव लाखों लोगों की प्रेरणा बन चुके हैं। हरीश मूल रुप से जैसलमेर के रहने वाले हैं। यहीं से उनकी आरंभिक शिक्षा हुई, इसके बाद वो उच्च शिक्षा के लिए जयपुर गए और फिर दिल्ली पहुंचे। दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई के बीच सरकारी नौकरी मिली और जैसलमेर नगरपालिका में जूनियर इंजीनियर बने।
हरीश धनदेव बदलते भारत के ऐसे किसान हैं, जो इंजीनियर होने के साथ-साथ फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलता हैं। 2012 में जयपुर से बीटेक करने के बाद जैसलमेर के हरीश ने MBA करने के लिए दिल्ली के एक कॉलेज में दाख़िला लिया, लेकिन 2013 में सरकारी नौकरी मिलने के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। हरीश जैसलमेर की नगरपालिका में जूनियर इंजीनियर के पद पर तैनात हुए। जहां महज दो महीने की नौकरी के बाद उनका मन नौकरी से हट गया। हरीश दिन-रात इस नौकरी से अलग कुछ करने की सोचने लगे। कुछ अलग करने की चाहत इतनी बढ़ गई, कि वे नौकरी छोड़कर अपने लिए क्या कर सकते हैं इस पर रिसर्च करने लगे।
अपने लिए कुछ करने के तलाश में हरीश की मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक व्यक्ति से हुई। हरीश राजस्थान की पारंपरिक खेती ज्वार या बाजरा से अलग कुछ करना चाह रहे थे। बातचीत के दौरान हरीश को उन्होंने एलोवेरा की खेती के बारे में सलाह दी। हरीश एक बार फिर दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने खेती-किसानी पर आयोजित एक एक्सपो में नई तकनीक और नए जमाने की खेती के बारे में जानकारी हासिल की। एक्सपो में एलोवेरा की खेती की जानकारी हासिल करने के बाद हरीश ने तय किया कि वे एलोवेरा ही उगाएंगे। हरीश को अपनी नई शुरुआत के लिए दिशा मिल चुकी थी। दिल्ली से लौटकर हरीश बीकानेर गए और एलोवेरा के 25 हजार प्लांट लेकर जैसलमेर लौटे।
जब बीकानेर से एलोवेरा का प्लांट आया और प्लांट्स को खेत में लगाया जाने लगा तब कुछ लोगों ने हरीश को बताया कि "जैसलमेर में कुछ लोग इससे पहले भी एलोवेरा की खेती कर चुके हैं, लेकिन उन सभी को सफलता नहीं मिली। फसल को खरीदने कोई नहीं आया, जिसके चलते उन किसानों ने अपने एलोवेरा के पौधों को खेत से निकाल दूसरी फ़सलें लगा दी।" इस बात से हरीश के मन में थोड़ी आशंका तो घर कर गई लेकिन पता करने पर जानकारी मिली कि खेती तो लगाई गई थी, लेकिन किसान ख़रीददार से सम्पर्क नहीं कर पाए, जिसका परिणाम यह हुआ कि कोई ख़रीददार आया ही नहीं। अब तक हरीश समझ चुके थे कि अपने काम को बढ़ाने और बेहतर तरीके से करने के लिए उन्हें अपनी मार्केंटिग स्किल पर भी काम करना होगा। जब तक वो अपनी मार्केटिंग स्किल पर काम नहीं करेंगी, तब तक खेती चाहे जितनी कर लो कुछ होने वाला नहीं।
हरीश के घर-परिवार में इस बात से किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई कि हरीश ने खेती करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। लेकिन हरीश के सामने खुद को बेहतर साबित करना सबसे बड़ी चुनौती थी। काफी खोज-बीन के बाद 2013 के आखिरी में एलोवेरा की खेती की शुरुआत हुई। बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय से 25 हजार प्लांट लाए गए और करीब 10 बीघे में उसे लगाया गया। आज की तारीख में हरीश 700 बीघे से भी ज्यादा में एलोवेरा की फार्मिंग करते हैं, जिसमें ज़मीन का कुछ हिस्सा हरीश का अपना खुद का है और बाकी का हिस्सा उन्होंने लीज़ पर ले रखा है।
हरीश अपने काम के शुरुआती दिनों में नये-नये ही थे, इसलिए यदि ये कहा जाये कि वे सबकुछ जानते थे तो सही नहीं होगा। हरीश ने अपनी गल्तियों और अनुभवों से काफी कुछ सीखा। जब उन्होंने अपना एलोवेरा का काम शुरु किया तो उनकी उम्र 24 के आसपास थी। काफी कम उम्र होने की वजह से उनमें अनुभव की कमी थी, लेकिन कुछ अलग करने के जुनून ने उन्हें काफी ऊपर तक पहुंचा दिया। हरीश कहते हैं, "खेती की शुरुआत होते ही जयपुर से कुछ एजेंसियों से बातचीत हुई और अप्रोच करने के बाद हमारे एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट इन कंपनियों से हो गया। इसके कुछ दिनों बाद कुछ दोस्तों से काम को आगे बढ़ाने के बारे में बात हुई।" बातचीत के बाद हरीश ने अपने सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्स से निकलने वाला पहला प्रोडक्ट (जो कि पल्प होता है) निकालना शुरु कर दिया और राजस्थान के खरीदारों को अपना पल्प बेचना शुरु किया।
हरीश धनदेव ने अॉनलाइन जाकर ये पता किया कि मार्केट में एलोवेरा का पल्प बड़े पैमाने पर खपाने वाले प्लेयर कौन-कौन हैं। उन्हें बड़े खरीदारों की तलाश थी, क्योंकि उनकी खेती का दायरा बढ़ने के साथ-साथ उत्पाद काफी मात्रा में आने लगे थे और यही वो समय था जब हरीश को पतंजलि के बारे में पता चला। भारत में पतंजलि एलोवेरा का सबसे बड़ा ख़रीददार है। बस फिर क्या था, हरीश ने पतंजलि को मेल भेजकर अपना परिचय दे डाला। उधर से पतंजलि का जवाब आया और उनसे मिलने पतंजलि टीम आई। ये हरीश का टर्निंग प्वाइंट टाईम था। पतंजलि के आने से चीजें बदलीं और आमदनी भी। करीब डेढ़ साल से हरीश एलोवेरा पल्प की सप्लाई बाबा रामदेव द्वारा संचालित पतंजली आयुर्वेद को करते हैं।
शुरुआती दिनों में हरीश को ये आशंका अक्सर घेर लेती थी, कि इस काम को आगे कैसे ले जायें, कैसे अपने काम को और बड़ा करें? लेकिन जैसे जैसे उनके अनुभव बढ़े काम को समझने का दायरा भी बढ़ता गया। आज न सिर्फ हरीश की कंपनी ‘नेचरेलो एग्रो’ का विस्तार हुआ है, बल्कि कंपनी में काम करने वाले लोगों का भी आर्थिक विस्तार हुआ है। हरीश के अनुसार, पतंजलि के आने से काम करने के तौर-तरीकों में बदलाव के साथ-साथ उनकी कंपनी ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से काम करने लगी। हरीश अपने उत्पाद की क्वालिटी कंट्रोल पर खास ध्यान रखते हैं। उनकी सत प्रतिशत कोशिश रहती है, कि उत्पाद को लेकर किसी को किसी तरह की कोई शिकायत न हो। हरीश की मानें तो उनके एलोवेरा के पल्प में न तो किसी तरह की कोई मिलावट रहती है और न ही कोई गड़बड़।
जैसलमेर नगरपालिका से इस्तिफे के बाद शुरु हुई कहानी ने हरीश को करोड़पति किसान बना दिया। हरीश की सफलता हिन्दी फिल्मों की हैप्पी एंडिंग वाली कहानी जैसी है। साथ ही अधिक पैसों की चाहत में कमाई के लिए विदेश जाने वाले युवाओं के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करती है। यदि डिग्रियों पर जायें तो हरीश धनदेव सीविल इंजीनियर हैं और आज खेती से उनकी कंपनी का टर्नओवर 2 करोड़ के आसपास पहुंच चुका है। हरीश प्रेरणा हैं उन युवाओं के लिए जो शहरों से गाँवों को लौट रहे हैं और उदाहरण हैं उनके लिए जो कृषि छोड़कर शहरों का रुख नौकरियों की तलाश में कर रहे हैं, जबकि सोने जैसी कमाई अब भी गांव की मिट्टियों में ही है।
(स्टोरी में सभी तस्वीरें हरीश धनदेव के फेसबुक प्रोफाईल से साभार हैं...)