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फैशन डिजाइनिंग का काम छोड़ श्वेता ने शुरू किया बकरीपालन, आज 25 लाख से ज्यादा टर्नओवर

फैशन डिजाइनिंग का काम छोड़ श्वेता ने शुरू किया बकरीपालन, आज 25 लाख से ज्यादा टर्नओवर

Wednesday August 23, 2017 , 5 min Read

समाज में बदलाव की बयार धीरे ही सही बह रही है। इस बदलाव का पर्याय हैं श्वेता तोमर। श्वेता ने किसी छोटे नहीं बल्कि निफ्ट जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट से पढ़ाई की है और अब वह उत्तराखंड के अपने गांव में बकरीपालन का व्यवसाय कर रही हैं....

अपने फार्म में बकरी के साथ श्वेता

अपने फार्म में बकरी के साथ श्वेता


श्वेता के फार्म में अलग-अलग नस्लों की सौ से भी ज्यादा बकरियां हैं। इनमें सिरोही, बरबरी, जमना पारी और तोता पारी ब्रीड के पांच हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे मौजूद हैं।

किसी भी पढ़े-लिखे इंसान को बकरीपालन जैसा व्यवसाय शुरू करने के बारे में कहो तो हो सकता है कि वह नाक भौह सिकोड़ने लगे। समाज की हकीकत तो यही है कि पशुपालन या खेती से जुड़े कामों को कमतर समझा जाता है। लेकिन समाज में बदलाव की बयार धीरे ही सही लेकिन बह रही है। इस बदलाव का पर्याय हैं श्वेता तोमर। श्वेता ने किसी छोटे नहीं बल्कि निफ्ट (NIIFT) जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट से पढ़ाई की है और अब वह उत्तराखंड के अपने गांव में बकरीपालन कर रही हैं।

इसकी शुरुआत 2015 में हुई थी जब श्वेता की शादी हुई और उन्हें अपने पति के साथ बेंगलुरु शिफ्ट होना पड़ा। इसके पहले वह एक सफल फैशन डिजाइनर थीं। बेंगलुरु आने के बाद वह हमेशा से अपना बिजनेस शुरू करने के बारे में सोचा करती थीं। उन्हें घर पर खाली बैठना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था। एक बार वह अपने पति के साथ घूमने गईं और वहां बकरियों का एक फार्म देखा। उन्हें वहां बकरियों के साथ समय बिताकर काफी अच्छा लगा। इसके बाद वह खाली समय में वहां जाने लगीं। इस फार्म में उन्होंने बकरीपालन से जुड़ी सारी बारीकियां सीखीं।

लगभग एक साल तक श्वेता ने इसी फार्म में बकरीपालन का अनुभव लिया। जब उन्हें आत्मविश्वास आ गया कि वह इस काम को अच्छे से कर सकती हैं तो उन्होंने अपने पति रॉबिन स्मिथ से यह बात बताई। उन्होंने खुशी-खुशी श्वेता को यह काम करने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी।

श्वेता एक गांव में पैदा हुई और वहीं पली बढ़ीं थीं। उन्हें भी यह बात अच्छे से पता थी कि इस काम को किसी शहर में नहीं शुरू किया जा सकता। उन्होंने बेंगलुरु की आरामदायक जिंदगी छोड़कर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास रानीपोखरी नाम के एक गांव में यह काम शुरू करने का फैसला किया। श्‍वेता ने रानीपोखरी में बकरी पालन शुरू करने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी लगाई। उन्‍होंने बड़े लेवल पर इस बिजनेस को शुरू करने के लिए बैंक से लोन भी लिया।

वह बताती हैं कि उनके इस फैसले से शुरू में तो सब सकते में आ गए थे, लेकिन उनके समर्पण को देखते हुए सबने उनके मन का काम करने की इच्छा जता दी। श्‍वेता कहती हैं जब आप अच्‍छी पढ़ाई-लिखाई कर लेते हैं, तो लोगों को यह उम्‍मीद होती है कि आप शहरों में किसी बड़ी कंपनी में नौकरी कर हजारों रुपए की कमाई करो। इसलिए जब हमने गांव जाकर बकरीपालन का बिजनेस शुरू करने की बात रखी, तो कई लोगों ने कहा कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। सब ने कहा कि गांव में कुछ भी नहीं रखा है। लेकिन हमने हौसला नहीं खोया और अपने दिल की सुनी।

श्वेता तोमर

श्वेता तोमर


श्वेता के पिता भी कभी खुद का बिजनेस करना चाहते थे, लेकिन वह अपने मन का काम नहीं कर पाए। श्वेता ने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए उन्हीं के नाम पर जनवरी, 2016 में प्रेम एग्रो फार्म की स्थापना की।

उत्तराखंड के जिस इलाके में श्वेता का फार्म है वहां कई सारे जंगली जानवर भी रहते हैं। इसलिए श्वेता को चिंता थी कि कहीं जंगली जानवर उनकी बकरियों को खा न जाएं। लेकिन श्वेता ने इसकी भी परवाह नहीं की और बैंक से लोन लेकर 250 बकरियों के साथ इस बिजनेस की शुरुआत की। चार बहनों में तीसरे नंबर की श्वेता के पास फार्म में अलग-अलग नस्लों की सौ से भी ज्यादा बकरियां हैं। इनमें सिरोही, बरबरी, जमना पारी और तोता पारी ब्रीड के पांच हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे मौजूद हैं।

आज श्वेता बकरीपालन के काम में महारत हासिल कर चुकी हैं। वह बकरियों का दूध निकालने से लेकर उनकी देखभाल और छोटा-मोटा इलाज भी कर लेती हैं। जरूरत पड़ने पर वह खुद ही बकरों को बिक्री के लिए लोडर में लादकर मंडी ले जाती हैं। दूध के अलावा बकरियों की बिक्री इंटरनेट के माध्यम से भी करती हैं। श्वेता बताती हैं शुरुआत में सरकारी स्तर पर छोटी-मोटी कई दिक्कतें आईं पर पशुपालन विभाग का उसे भरपूर सहयोग समय-समय पर मिलता रहा।

रानीपोखरी में श्वेता की कर्मठता और जिंदादिली के सब कायल हैं। श्वेता चार बहनें हैं और उनका एक भी भाई नहीं है। जब श्वेता के पिता का निधन हुआ था तो उन्होंने अंतिम संस्कार का सारा काम खुद ही किया था। बेटे की तरह ही उसने और बहनों सभी कर्मकांड पूरे किए। पिता की चिता को किसी लड़की द्वारा अग्नि देने का क्षेत्र में यह पहला मामला था, जो उस समय अखबारों की सुर्खियां भी बना।

श्वेता बताती हैं कि आज वही लोग हमारे काम की तारीफ करते हैं, जो कभी हमें इस काम को करने से रोक रहे थे। वह अपने फार्म के जरिए ग्रामीण भागों में रोजगार की कमी को पूरा करने की भी कोशिश कर रही हैं। श्वेता अपने बिजनेस को उत्‍तराखंड के अन्‍य क्षेत्र में भी बढ़ाने की योजना बना रही हैं।

पिछले साल पूरा स्टॉक खत्म करने के बाद श्वेता का टर्नओवर 25 लाख था। उनके इस फार्म में दो परिवार काम कर रहे हैं। वह फार्म के साथ ही बकरीपालन से जुड़ी जानकारियां भी देती हैं। इससे भी उन्हें अच्छी-खासी आय हो सकती है। श्वेता बताती हैं कि कोई भी व्यक्ति 10-20 बकरियों के साथ इस बिजनेस को शुरू कर सकता है। इसके लिए 8-10 लाख रुपये लोन की जरूरत होगी। श्वेता कहती हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। कोई भी लक्ष्य आसान नहीं होता। अगर आपके भीतर समर्पण की भावना है तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। 

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