नागालैंड के इस सिंगर ने बनाया 'सबसे आसान' वाद्य यंत्र, एक बार में ही सीख लेंगे बजाना
सिंगर ने बांस से बनाया इतना आसान वाद्य यंत्र, जिसे बजाना है बेहद आसान...
नागालैंड के परंपरागत संगीत को बचाने में बमहम की भूमिका को स्पष्ट करते हुए मोआ कहते हैं कि बमहम के ओरिजिनिल साउंड की वजह से उनके बैंड के म्यूजिक में बड़ा बदलाव आया है। बमहम, हॉवे म्यूजिक के साथ सहज है और इसकी मदद से बैंड का म्यूजिक अनूठा होता जा रहा है।
मोआ ने बांस से बने एक खास तरह के 'बमहम' नामक वाद्य यंत्र का भी आविष्कार किया है। बमहम, मजबूत किस्म के बांस से बना और हवा की मदद से बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है। इसे बजाना बेहद आसान है।
गिटार, वायलन, पियानो जैसे इन्सट्रूमेन्ट्स पूरी तरह से विदेशी ही लगते हैं। इस कमी ने ही मोआ और उनकी पत्नी को एक वाद्य यंत्र की तलाश के लिए प्रेरित किया, जिसे बजाना बेहद सहज हो।
बदलते समय के सामने हार मान लेना या फिर अपनी सोच से बदलाव की दिशा बदल देना, दोनों में से किसी एक चीज का चुनाव हम करते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है नागालैंड के फोक आर्टिस्ट सुबॉन्ग मोआ और उनकी पत्नी ऐरन्ला की। इन दोनों ने मिलकर, लोकप्रियता से दूर हो रहे नागा म्यूजिक को अपने फ्यूजन के माध्यम से युवाओं के बीच फिर से लोकप्रिय बना दिया। हाई स्कूल म्यूजिक ग्रुप से लेकर अपनी पत्नी के साथ स्टेज परफॉर्मेंस करने तक, खुद का फोक फ्यूजन बैंड तैयार करने से लेकर नए इन्सट्रूमेन्ट्स इजात करने तक, मोआ एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और उनके खाते में कई बड़ी उपलब्धियां जुड़ चुकी हैं।
मोआ ने बांस से बने एक खास तरह के 'बमहम' नामक वाद्य यंत्र का भी आविष्कार किया है। बमहम, मजबूत किस्म के बांस से बना और हवा की मदद से बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है। इसे बजाना बेहद आसान है।
कैसा रहा फ्यूजन बैंड का सफर
मोआ ने अपनी पत्नी ऐरन्ला के साथ मिलकर 'अबायोजेनेसिसि' नाम से एक फोक फ्यूजन बैंड भी बनाया। इस बैंड में कुल 4 सदस्य हैं, जो नागालैंड के फोक म्यूजिक से ताल्लुक रखते हैं।
अपने बैंड की सफलता के सफर को याद करते हुए मोआ कहते हैं कि उनके बैंड ने कवर्स और ओरिजिनल दोनों ही तरह के गानों से शुरूआत की थी। इसके बाद 2005 में बैंड को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई, जब वे हॉवे म्यूजिक फॉर्म से रूबरू हुए। यह म्यूजिक फॉर्म, नागालैंड के फोक म्यूजिक और वेस्टर्न म्यूजिक का फ्यूजन है।
मोआ बताते हैं कि उनका फोकस हमेशा इस बात पर रहा है कि पुराने संगीत को आज के संगीत के साथ मिलाकर पेश किया जाए ताकि भविष्य के लिए एक बिल्कुल ही नई धुन तैयार हो सके। मोआ ने बताया कि उनका बैंड अब सिर्फ ओरिजिनल हॉवे म्यूजिक पर काम करता है और इसके जरिए वे नागालैंड की ऐसी कहानियां लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं, जो किसी ने नहीं सुनीं।
इस बैंड के गानों की खास बात है कि इनके ज्यादातर गाने इन्सट्रूमेन्टल ही होते हैं यानी डिजिटल म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं होता और इनके बोल (लिरिक्स) इंग्लिश में होते हैं।'एक नौसिखिया भी बजा सकता है बमहम' मोआ और उनकी पत्नी को अहसास हुआ कि नागालैंड के परंपरागत संगीत में ऐसे वाद्य यंत्रों की खास कमी है, जो बिना चोट के नागा म्यूजिक के नोट्स और कॉम्पोजीशन को बजाने में सक्षम हों।
गिटार, वायलन, पियानो जैसे इन्सट्रूमेन्ट्स पूरी तरह से विदेशी ही लगते हैं। इस कमी ने ही मोआ और उनकी पत्नी को एक वाद्य यंत्र की तलाश के लिए प्रेरित किया, जिसे बजाना बेहद सहज हो। यही कहानी है कि 'बमहम' की खोज के पीछे की। बमहम, आसानी से पकड़ा जा सकने वाला और बांसुरी जैसा दिखने वाला, बांस से बना वाद्य यंत्र है। इसे मोआ ने मजबूत बांस की सहायता से अपने हाथों से बनाया है। मोआ ने इसे बनाते समय ऐरन्ला के गाने को ढंग को भी खासतौर पर ध्यान में रखा।
इसे बनाने में मोआ को एक साल का वक्त लगा। 2005 में मेघालय के राज्यपाल एमएम जैकब ने शिलॉन्ग में हुए इंटरनैशनल बैंबू फेस्ट में इसे पहली बार सबके सामने प्रदर्शित किया। 2005 के बाद से बमहम, अबायोजेनिसिस का मुख्य वाद्य यंत्र बन चुका है। शोज के दौरान मोआ और उनकी पत्नी इसके साथ जुगलबंदी पेश करते हैं। मोआ, बमहम के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसे ऐक नौसिखिया भी तुंरत बजाना सीख सकता है। जब भी कोई पहली बार इसे बजाने की कोशिश करता है और इसे बजा लेता है तो उसे खुशी भी होती है और आश्चर्य भी।
नागालैंड के परंपरागत संगीत को बचाने में बमहम की भूमिका को स्पष्ट करते हुए मोआ कहते हैं कि बमहम के ओरिजिनिल साउंड की वजह से उनके बैंड के म्यूजिक में बड़ा बदलाव आया है। बमहम, हॉवे म्यूजिक के साथ सहज है और इसकी मदद से बैंड का म्यूजिक अनूठा होता जा रहा है। मोआ कहते हैं कि नागालैंड के युवा वेस्टर्न म्यूजिक और कल्चर के दीवाने हैं। ऐसे में मोआ का बैंड, मॉडर्नाइजेशन की ओर बढ़ रहा है, न कि वेस्टर्नाइजेशन की ओर। फोक म्यूजिक अपने ओरिजिनिल फॉर्म में युवाओं को आकर्षित नहीं कर पाता, इसलिए मोआ और उनकी टीम फोक म्यूजिक को मॉडर्न म्यूजिक के साथ बतौर फ्यूजन पेश करते हैं और युवा उन्हें बेहद पसंद भी करते हैं।
बड़े स्तर पर होगा 'बमहम' का प्रोडक्शन
अपनी अनूठी खोज के लिए मोआ को 9वां नैशनल ग्रासरूट्स इनोवेशन अवॉर्ड भी मिल चुका है। 4 मार्च, 2017 को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया। नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया, बमहम के लिए एक मैनुफैक्चरिंग यूनिट लगाने में मोआ की मदद भी कर रही है। 2018 से यहां पर प्रोडक्शन शुरू हो जाएगा। आपको बता दें कि मोआ की खोज की फेहरिस्त में 'बमहम' अकेला नहीं है। उन्होंने 'टिजिकजिक' नाम का एक और इन्सट्रूमेन्ट भी बनाया है, जो ड्रम जैसा दिखता है। यह भी बांस से ही बना है। इसके अलावा मोआ अभी भी लगातार नए प्रयोगों पर काम कर रहे हैं।
'बमहम' पर बनी फिल्म
फिल्म डिविजन ऑफ इंडिया के रवि राजू ने 'बमहम' पर एक डॉक्यूमेन्ट्री भी बनाई है। 2018 में मुंबई में होने वाले इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को प्रदर्शित किया जाएगा। मोआ कहते हैं कि वह अपनी फिल्म को देखने के लिए रोमांचित हैं। इसके अतिरिक्त, 2018 (फरवरी) में हैदराबाद में होने वाली इंडिया म्यूजिक मीट में मोआ और ऐरन्ला परफॉर्म करेंगे और एक वर्कशॉप भी आयोजित करेंगे। मोआ ने बताया कि फिलहाल वे एक नए म्यूजिक अलबम पर काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, वे दोनों नागा के लोक-साहित्य पर एक फिल्म बनाने की योजना भी बना रहे हैं। मोआ ने बताया कि उनकी पत्नी ने इस फिल्म के लिए स्क्रिप्ट भी तैयार कर ली है।
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