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80 सेकेंड, आधा गिलास पानी और बिना डिटर्जेंट के धुल जाएंगे कपड़े, यह स्टार्टअप लाया खास मशीन

स्टार्टअप का दावा है कि उसकी मशीन कपड़े.और यहां तक ​​​​कि मेटल कंपोनेंट्स और PPE किट को भी 80 सेकंड में धो सकती है.

80 सेकेंड, आधा गिलास पानी और बिना डिटर्जेंट के धुल जाएंगे कपड़े, यह स्टार्टअप लाया खास मशीन

Tuesday July 26, 2022 , 11 min Read

कपड़े खरीदना जितना आसान है, उन्हें धोना उतना ही ज्यादा सिरदर्दी का काम है. इसके पीछे वजह है, कपड़े धोने में बड़ी मात्रा में लगने वाला पानी और वक्त. वहीं अगर बात बड़े और भारी पर्दे और बेडशीट को धोने की हो तो यह सिरदर्द और बढ़ जाता है. फिर चाहे आप कपड़े हाथ से धो रहे हों या फिर वॉशिंग मशीन से. कपड़े धोने में बड़ी तादाद में लगने वाले पानी की समस्या का हल लेकर आया है एक स्टार्टअप 80Wash. चंडीगढ़ स्थित स्टार्टअप 80wash को चितकारा यूनिवर्सिटी के रूबल गुप्ता, नितिन कुमार सलूजा और वरिंदर सिंह ने शुरू किया है. 80Wash की टेक्नोलॉजी को फाउंडर्स ने पेटेंट कराया हुआ है. स्टार्टअप का दावा है कि उसकी मशीन कपड़े.और यहां तक ​​​​कि मेटल कंपोनेंट्स और पीपीई किट को भी 80 सेकंड में धो सकती है. वह भी केवल कुछ मिलीलीटर पानी के साथ. इतना ही नहीं 80Wash की मशीन में कपड़े बिना डिटर्जेंट के धुलते हैं.

स्टार्टअप में तीनों फाउंडर्स की भूमिका की बात करें तो नितिन का काम स्ट्रैटेजी बिल्डिंग, बिजनेस को देखना है. मैकेनिकल-टेक्निकल पार्ट, अकाउंटेंसी, फाइनेंस, प्लानिंग, हैंडलिंग, लीगल फ्रेमवर्क से जुड़ी चीजों को वरिंदर संभालते हैं. वहीं रूबल मैन्युफैक्चरिंग, सर्विसिंग आदि सभी परिचालन संबंधी कामों को देखते हैं. योर स्टोरी हिंदी ने 80Wash की टेक्नोलॉजी, इसके फायदे, बिजनेस और फ्यूचर प्लानिंग पर तीनों को-फाउंडर्स से डिटेल में बातचीत की.

किस टेक्नोलॉजी का किया इस्तेमाल

80Wash की वॉशिंग मशीन पेटेंटेड ISP स्टीम तकनीक पर आधारित है. यह कम फ्रीक्वेंसी नॉन आयोनाइजिंग और नॉन पोलराइजिंग रेडियो.फ्रीक्वेंसी बेस्ड माइक्रोवेव्स का उपयोग करके बैक्टीरिया को मारती है. इसके बाद रूम टेंपरेचर पर जनरेटेड ड्राई स्टीम की मदद से दाग, गंदगी और गंध को हटाती है. स्टार्टअप का कहना है कि7-8 किलोग्राम की मशीन, 80 सेकंड्स के एक साइकिल में आधा कप पानी के साथ, बिना डिटर्जेंट के पांच कपड़े धो सकती है. कड़े दाग के मामले में साइकिल को कई बार दोहराया जा सकता है. आमतौर पर लगभग 4-5 साइकिल कड़े दाग हटा सकते हैं. दूसरी ओर 70-80 किलोग्राम वाली बड़ी मशीन कई साइकिल्स में 5-6 गिलास पानी के साथ 50 कपड़े धो सकती है, लेकिन यह कपड़ों पर निर्भर करता है. वर्तमान में 80Wash की मशीनों को तीन शहरों. चंडीगढ़, पंचकुला और मोहाली में हॉस्टल, अस्पतालों और सैलून सहित सात स्थानों पर पायलट के रूप में डिप्लॉय किया गया है. अभी यह सिर्फ कमर्शियल इस्तेमाल के लिए मौजूद हैं.

कैसे आया इसका आइडिया

इस ईजाद की नींव चितकारा यूनिवर्सिटी के इन्क्यूबेशन सेंटर में पड़ी. यह यूनिवर्सिटी राजपुरा, पंजाब में स्थित है. रूबल की नितिन और वरिंदर से मुलाकात साल 2017 में हुई थी. रूबल कंप्यूटर साइंस में बीटेक कर रहे थे, जबकि नितिन, चितकारा यूनिवर्सिटी रिसर्च एंड इनोवेशन नेटवर्क में सहयोगी निदेशक थे. उस वक्त वरिंदर ऑटोसिंक इनोवेशंस में प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में काम कर रहे थे. ऑटोसिंक इनोवेशंस, चितकारा में एक्सीलेंस का एक ऑटोमोटिव सेंटर है. नितिन और वरिंदर इससे पहले भी कई स्टार्टअप प्रॉजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं. रूबल, नितिन और वरिंदर शुरुआत में हॉस्पिटल्स के लिए यूवी रेज के इस्तेमाल वाली इंस्टैंट स्टरलाइजेशन मशीन पर काम करने के लिए एक साथ आए.

80Wash के आइडिया की शुरुआत 2019 से हुई. हुआ यूं कि नितिन की पत्नी की तबियत खराब थी और उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया. उन्हें सलाह दी गई कि वह अपनी पत्नी को सरकारी हॉस्पिटल में लेकर जाएं. नितिन अपनी पत्नी को सरकारी हॉस्पिटल में लेकर गए, इमरजेन्सी और आईसीयू के चक्कर लगाए. उनकी पत्नी तो 3-4 घंटों में ठीक हो गईं लेकिन नितिन के दिमाग में हॉस्पिटल की तस्वीर बस गई. सरकारी हॉस्पिटल... जहां हाइजीन की दिक्कत हमेशा बरकरार रहती है. यह दिक्कत उन मामलों में और ज्यादा चिंताजनक हो जाती है, जब मरीज किसी इन्फेक्शन से पीड़ित हो. हर मरीज के लिए बेडशीट, पिलो कवर बदला जाना आम तौर पर सरकारी हॉस्पिटल्स में नहीं होता है. इससे इन्फेक्शन एक मरीज से दूसरे में फैलने का खतरा रहता है.

हॉस्पिटल्स के लिए हर मरीज के लिए नई बेडशीट बिछाना आसान नहीं है. अगर 1 घंटे में 70 मरीज आए और गए तो हर मरीज के लिए एक अलग बेडशीट मुहैया करा पाना और पुरानी वाली को धोने के लिए भेज देना संभव नहीं है. इतनी सारी बेडशीट को धोया जाना, उन्हें सुखाया जाना, इन सबमें वक्त लगता है. एक हॉस्पिटल्स की इमरजेन्सीज, ओपीडीज और हर तरह के वार्ड मिलाकर कुल इकट्ठा होने वाले कपड़ों को धोने के लिए एक बड़ी लॉन्ड्री ही सेटअप करनी होगी. इसके लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है, साथ ही सुखाने के लिए पर्याप्त जगह की भी.

बस मन में घर कर गई बात

इसे देखने और समझने के बाद नितिन के मन में इस दिशा में कुछ करने के विचार ने जन्म लिया. पत्नी के घर आ जाने के बाद जब वह चितकारा यूनिवर्सिटी गए तो उन्होंने रूबल और वरिंदर से इस बारे में बात की. उन्होंने ऐसा आइडिया खोज निकालने का सोचा, जिससे कपड़ों को धोने की प्रक्रिया में कम पानी लगे, बिजली की बचत हो और हाइजीनिक इश्यूज दूर हो सकें यानी कीटाणु और गंध से भी मुक्ति रहे. अपने इस आइडिया के लिए उन्होंने कई एक्सपर्ट से बात भी की. फाउंडर्स पहले से रेडिएशन के एरिया में काम कर चुके थे, इसलिए उन्होंने अपने आइडिया पर काम करना शुरू किया. वरिंदर की टेक्नोलॉजी की अच्छी समझ बहुत काम आई. चितकारा यूनिवर्सिटी के लैब सेटअप का इस्तेमाल किया गया. साथ ही यूनिवर्सिटी ने वित्तीय तौर पर भी मदद की. 2021 की शुरुआत में 80Wash की टीम को पेटेंट हासिल हो गए और उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपना स्टार्टअप लॉन्च कर दिया.

पायलट्स के लिए उन्होंने 7-8 किलोग्राम लोड वाली वॉशिंग मशीन बनाई. शुरुआत में वॉशिंग मशीन उतनी प्रभावी नहीं थी, कुछ कमियां थीं. इन पर काम किया गया और कमियों को दूर करने की कोशिश की गई. पहले जो मशीन तैयार की गई, उसमें दाग निकालने की क्षमता नहीं थी. हॉस्पिटल्स ने जब इस मुद्दे को सामने रखा तो फिर 80Wash की टीम ने ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया, जो कड़े दाग भी कम पानी में और बिना डिटर्जेंट की मदद के निकाल सके. आखिरकार ऐसी मशीन तैयार हो गई, जो दाग निकालने के साथ-साथ गंध व कीटाणु मारने में भी सक्षम है. स्टार्टअप को शुरुआत में 13-14 लाख रुपये की कैपिटल लगानी पड़ी. पैसों का बंदोबस्त चितकारा यूनिवर्सिटी ने किया. कुछ पैसा फाउंडर्स ने खुद का भी लगाया.

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Team of 80Wash

सितंबर 2022 में होगी आधिकारिक लॉन्चिंग

80Wash की योजना अपने प्रॉडक्ट को सितंबर 2022 के आखिर में आधिकारिक तौर पर लॉन्च करने की है. इसके लिए उन्हें कुछ मंजूरियों की जरूरत होगी और उसी पर काम किया जा रहा है. अगले साल वह अपनी टेक्नोलॉजी के लिए इंटरनेशनल पेटेंट के लिए अप्लाई करने वाले हैं. स्टार्टअप ने अपनी मशीन्स की मैन्युफैक्चरिंग के लिए अंबाला और दिल्ली में सर्टिफाइड पार्टनर्स के साथ साझेदारी की हुई है. एक्सपेरिमेंट करने के लिए पटियाला-चंडीगढ़ राजमार्ग के पास उनका एक छोटा गैरेज है. 80Wash की टीम चितकारा यूनिवर्सिटी के इन्क्यूबेशन सेंटर से संचालित होती है और इसके कार्यालय जीरकपुर और हिसार में हैं. 80Wash की योजना खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की भी है. लेकिन यह हाल-फिलहाल नहीं होने वाला. इसके लिए फाउंडर्स पार्टनरशिप विकल्प तलाश रहे हैं.

स्टार्टअप को पंजाब व हिमाचल प्रदेश की सरकारों और केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय से ग्रांट मिल चुकी है. अब स्टार्टअप इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कंपैटेबिलिटी टेस्टिंग सर्टिफिकेशन समेत अन्य टेस्टिंग सर्टिफिकेट्स पाने की दिशा में काम कर रहा है. यह कमर्शियल इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट्स के लिए अनिवार्य हैं.

क्या तय हो चुकी है कीमत?

अभी 80Wash की मशीन्स की कीमत कितनी होगी, इस पर भी विचार चल रहा है. सर्टिफिकेशंस के बाद स्टार्टअप सितंबर 2022 तक 7-8 किलो लोड की 100 मशीन बनाएगा. उसके बाद बी2बी बिजनेस के लिए 70-80 किलो लोड की मशीनें बनाई जाएंगी. स्टार्टअप कमर्शियल स्पेस में होटलों, हॉस्पिटलों, सैलून्स और स्कूलों को कवर करने की योजना में है. हॉस्टल्स में लगाई गई 80Wash वॉशिंग मशीन्स के लिए स्टार्टअप पे-पर-यूसेज मॉडल का इस्तेमाल कर रहा है. स्टार्टअप एक छात्र से एक महीने के लिए अनलिमिटेड लॉन्ड्री के लिए 200 रुपये चार्ज करता है.

घर-घर में इस्तेमाल वाली मशीन के लिए क्या योजना

नितिन का कहना है कि उन्होंने अभी इस टेक्नोलॉजी का ईजाद, हॉस्पिटल्स, होटल, सैलून्स, रेडीमेड गारमेंट स्टोर्स, लॉन्ड्री को ध्यान में रखकर किया है. स्टार्टअप ने सबसे पहले ऐसे कपड़ों को टार्गेट किया है, जो वजन में भारी होते हैं. जैसे कि पर्दे, बेडशीट आदि. 80Wash की टेक्नोलॉजी घरों में इंडीविजुअल यूज के लिए कब मुहैया होगी, इस सवाल के जवाब में फाउंडर्स ने कहा कि अगले 1 साल तक वह बी2बी मार्केट पर फोकस करेंगे. उसके बाद वे इसे घरों में यूज के लिए लाना शुरू करेंगे. अभी पहले फेज में स्टार्टअप हॉस्पिटल्स और हॉस्टल्स को कवर करेगा, दूसरे फेज में सैलून्स और गारमेंट शॉप्स को कवर किया जाएगा. उसके बाद तीसरे फेज में रेगुलर सेगमेंट में लाने की कोशिश रहेगी.

लॉन्ड्री/ड्राई क्लीनिंग से किस तरह अलग

नितिन का कहना है कि उनकी टेक्नोलॉजी बिल्कुल अलग और अपनी तरह की पहली है. यह पूछे जाने पर कि यह लॉन्ड्री/ड्राई क्लीनिंग से किस तरह अलग है, उन्होंने कहा कि 80Wash की टेक्नोलॉजी, लॉन्ड्री/ड्राई क्लीनिंग की टेक्नोलॉजी से अलग है. ड्राई क्लीनिंग में केमिकल/पेट्रोलियम प्रॉडक्ट बेस्ड टेक्नोलॉजी से कपड़ों को साफ किया जाता है. 80Wash की टेक्नोलॉजी में किसी केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है. दोनों में समानता बस यही है कि कपड़ों को साफ करने में पानी बेहद कम इस्तेमाल किया जाता है. यहां पर भी 80Wash की टेक्नोलॉजी में, ड्राई क्लीनिंग से भी कम पानी इस्तेमाल होता है. उन्होंने यह भी बताया कि ड्राई क्लीनिंग में कुछ केमिकल इस्तेमाल होते हैं. इंटरनेशनल लेवल पर उनके इस्तेमाल की एक लिमिट है, जिसकी वजह है कि ये केमिकल टॉक्सिक होते हैं. इसीलिए उनकी कीमत ज्यादा होती है ताकि हर कोई अफोर्ड न कर सके. केमिकल के विकल्प के तौर पर ड्राई क्लीनिंग में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल होता है. आज की तारीख में पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की कीमत काफी उच्च है, ऐसे में ड्राई क्लीनिंग की कॉस्ट भी बढ़ रही है.

क्या कपड़ों की क्वालिटी होगी प्रभावित

स्टार्टअप का दावा है कि उनकी टेक्नोलॉजी कपड़ों की क्वालिटी को प्रभावित नहीं करती है. वरिंदर ने बताया कि उनकी टेक्नोलॉजी में कोई पेट्रोकेमिकल इस्तेमाल नहीं होता है. 80Wash स्टीम के इस्तेमाल से कपड़ों को साफ करती है. इसलिए इससे कपड़ों की क्वालिटी प्रभावित नहीं होती है. इसके अलावा हैवी वर्क वाली साड़ी भी 80Wash की वॉशिंग मशीन में आराम से धोई जा सकती है.

अभी क्या हैं चैलेंजेस

स्टार्टअप के लिए इस वक्त सबसे बड़ा चैलेंज मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन से जुड़ी दिक्कत है. कच्चे माल, कंपोनेंट्स की अनुपलब्धता एक समस्या है. दूसरी समस्या मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट की है, जो कि अलग-अलग लोड वाली मशीन के आधार पर 1.5 लाख रुपये तक पड़ती है. इसके बाद फिर अन्य लागतें भी रहती हैं. 80Wash चाहता है कि मैन्युफैक्चरिंग आइएसओ लेवल की हो, मैटेरियल उम्दा किस्म का हो. इसे लेकर अभी चैलेंजेस हैं और इनसे पार पाने की कोशिश जारी है.

मिल रहे हैं अच्छे ऑर्डर

और किन-किन जगहों पर 80Wash की अपनी कमर्शियल एक्टिविटी शुरू करने की योजना है, इस पर नितिन ने कहा कि चंडीगढ़, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना उनकी लिस्ट में हैं. अभी तक उन्होंने जितनी राज्य सरकारों से बात की है, उन में से अधिकांश का अच्छा रिस्पॉन्स और सपोर्ट मिला है. 80Wash कपड़े सुखाने के लिए फास्ट ड्राइंग मशीन बनाने पर भी काम कर रहा है. नितिन का कहना है कि बड़ी तादाद में कपड़ों को सुखाना भी एक इश्यू है. इसलिए स्टार्टअप ड्राइंग को फास्ट बनाने की दिशा में काम कर रहा है. फास्ट ड्राइंग मशीन तैयार होने से बिजली का बिल भी आधा हो जाएगा. नितिन ने बताया कि 80Wash को कई जगहों से ऑर्डर प्राप्त हो रहे हैं. ऑर्डर की जाने वाली मशीनों की संख्या सैकड़ों से लेकर हजारों तक में है. यहां तक कि एडवांस में पैसे लेकर मशीनें मुहैया कराने तक की मांग आ रही है लेकिन स्टार्टअप एडवांस पेमेंट नहीं ले रहा है. इसकी वजह है कि मशीनें बनाने में उन्हें अभी वक्त लगता है. 80Wash की टीम में इस वक्त 14-15 लोग हैं. स्टार्टअप को कई इन्वेस्टर भी अप्रोच कर रहे हैं, जो फंडिंग करना चाहते हैं. इसके अलावा कई हॉस्टल्स की ओर से भी भारी डिमांड आ रही है.