मेघालय में बच्चों के लिए अनोखी लाइब्रेरी चलाने वाली जेमिमा मारक
जेमिमा मारक उन बच्चों को किताबों से दोस्ती करना सीखा रही हैं जो मोबाइल, कम्प्यूटर के दौर में किताबों से दूर भागते हैं। 'द 100 स्टोरी हाउस' के जरिये जेमिमा बच्चों को किताबों के साथ कुछ इस तरह जोड़ती हैं, कि किताबें बच्चों को बोझिल और उबाऊ नहीं लगतीं...
जो बच्चे कल तक किताबों की ओर झांकते तक नहीं थे, वे आज जेमिमा की लाइब्रेरी की मदद से ना केवल खुशी-खुशी किताबें पढ़ते हैं, बल्कि उनमें लिखी कहानियों को पढ़ उसे दूसरों बच्चों को सुनाते भी हैं।
मेघालय की पहचान खूबसूरत वादियों और ज्यादा बारिश के साथ एक अशांत इलाके के तौर पर होती है। वहां के ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल ठीक नहीं है, जिसकी सबसे बड़ी वजह है बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिये बेहतर किताबों का ना मिल पाना। बच्चों की इसी परेशानी को देखते हुए गारो हिल्स में रहने वाली जेमिमा मारक पिछले एक साल से चला रही हैं 'द 100 स्टोरी हाउस' लाइब्रेरी।
कहते हैं किताबें हमेशा जिंदा रहती हैं, इस बात को बेहतर तरीके से समझा बादलों के घर मेघालय में रहने वाली जेमिमा मारक ने। जिनकी किताबों के साथ पक्की दोस्ती है और अब ये उन बच्चों को किताबों से दोस्ती करना सीखा रही हैं जो मोबाइल, कम्प्यूटर के दौर में किताबों से दूर भागते हैं। 'द 100 स्टोरी हाउस' के जरिये जेमिमा बच्चों को किताबों के साथ इस तरह जोड़ती हैं, जिससे वे उनको बोझिल न लगें। इसके लिये वह अपनी इस लाइब्रेरी में पढ़ाई का अलग माहौल देती हैं। यही वजह है कि कल तक जो बच्चे किताबों की ओर झांकते तक नहीं थे, वो आज ना केवल खुशी-खुशी किताबें पढ़ते हैं, बल्कि उनमें लिखी कहानियों को पढ़ उसे दूसरों बच्चों को सुनाते हैं।
मेघालय जिसकी पहचान खूबसूरत वादियों और ज्यादा बारिश के साथ एक अशांत इलाके के तौर पर है वहां के ज्यादातर सरकारी स्कूलों पढ़ाई का माहौल ठीक नहीं है। इसकी वजह है बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिये बेहतर किताबों का ना मिलना। बच्चों की इसी परेशानी को देखते हुए गारो हिल्स में रहने वाली जेमिमा मारक पिछले एक साल से 'द 100 स्टोरी हाउस' लाइब्रेरी चला रही हैं। जेमिमा मारक खुद एक स्कूल टीचर होने के साथ-साथ करियर काउंसलर भी हैं। उनका कहना कि इस तरह की लाइब्रेरी शुरू करने का आइडिया उनको तब आया जब उन्होने महसूस किया कि बच्चों में अगर पढ़ाई का स्तर सुधारना है तो उनको रुचिकर तरीके से पढ़ाना होगा और किताबों की अच्छी बातों को पढ़ शायद यहां के बच्चे अशांत इलाके को एक शांत और प्रगतिशील इलाके में बदल सकें।
जेमिमा ने गारो हिल्स के स्थानीय बाजारों में खूब खाक छानी, लेकिन वहां पर बच्चों के पढ़ने लायक किताबें नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो लाइब्रेरी खोल सकें।
जेमिमा ने जब अपनी सोच को हकीकत में बदलने की कोशिश की तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी बच्चों से जुड़ी किताबों को इकट्ठा करने की। इसके लिये उन्होने गारो हिल्स के स्थानीय बाजारों में खूब खाक छानी, लेकिन वहां पर बच्चों के पढ़ने लायक किताबें नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो लाइब्रेरी खोल सकें। तब उन्होंने पुणे, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में रहने वाले अपने दोस्तों को इस आइडिया के बारे में बताया। जिसके बाद उनके दोस्तों के अलावा कई दूसरे लोगों ने बच्चों की कहनी की पुरानी किताबें इकट्ठा कर पार्सल के जरिये उन तक पहुंचाने का काम किया।
इस तरह जेमिमा के पास जब एक हजार से ज्यादा किताबें इकट्ठी हो गईं तो उन्होने अपने घर की छत पर बांस की मदद से एक लाइब्रेरी बनाई और उसे नाम दिया 'द 100 स्टोरी हाउस'।
इस लाइब्रेरी की खास बात ये है कि यहां सिर्फ पढ़ने के लिये किताबें ही नहीं बल्कि बच्चों से जुड़ी कई तरह की गतिविधियां भी कराई जाती हैं। इनमें आर्ट एंड क्राफ्ट, पेंटिंग और सिंगिंग भी शामिल हैं।
जेमिमा का कहना है कि उन्होने लाइब्रेरी को इस तरह डिजाइन किया है जहां पर बच्चों को ये न लगे कि वे बोरिंग जगह पर किताबों के बीच हैं। इस लाइब्रेरी में किताबों के अलावा बीम बैग, कुशन, बिस्तर और कुर्सी मेज को इस तरह रखा गया है जहां पर बच्चे अपनी मर्जी के मुताबिक लेटकर या बैठकर पढ़ाई करते हैं। इस लाइब्रेरी की खास बात ये है कि यहां सिर्फ पढ़ने के लिये किताबें ही नहीं बल्कि बच्चों से जुड़ी कई तरह की गतिविधियां भी कराई जाती हैं। इनमें आर्ट एंड क्राफ्ट, पेंटिंग और सिंगिंग भी शामिल हैं। यही वजह है कि यहां आने बच्चों में पहले के मुकाबले काफी ज्यादा आत्मविश्वास बढ़ा है।
जेमिमा की पहल से शर्मीले स्वभाव के बच्चे आज खुलकर अपनी बातें दूसरों के सामने रखते हैं वहीं बच्चों की अंग्रेजी पढ़ने और लिखने की स्पीड में भी सुधार हुआ है। बच्चों में आए इस सुधार को देखते हुए जेमिमा चाहती हैं कि एक मोबाइल वैन की व्यवस्था हो ताकि दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों तक भी वो किताबें पहुंचा सकें।
-गीता बिष्ट
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