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भीड़-भाड़ और शोरगुल से दूर स्वच्छ और सुन्दर माहौल में कुछ पल बिताने का मौका दिला रहा है "लेटसकैंपआउट"

प्रकृति के करीब लोगों को ले जाने की अनोखी पहल एक बैंकर ने शुरू किया जंगलों में कैम्पिंग करवाने का कार्यक्रम फिलहाल महाराष्ट्र में उपलब्ध है सुविधा, विस्तार  करने की है योजना प्रकृति-प्रेमियों के चहेते बने अभिजीत महात्रे

Friday March 13, 2015 , 5 min Read

डिस्कवरी चैनल देखकर जंगल में और प्रकृति के करीब रहने का सपना देखने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या अब हमारे देश में भी बढ़ती जा रही है। प्रकृति के नजदीक रहकर कुछ समय बिताने की चाह रखने वालों के लिये यह किसी खुशखबरी से कम नहीं है कि अब हमारे देश में भी कुछ लोग कैम्पिंग को एक व्यवसाय का रूप् देने में जुटे हैं और और इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।


‘‘जमीन से कुछ फुट ऊपर एक मचान बनाकर टैंट में रहना और शाम के धुंधलके में समुद्र में डूबते हुए सूरज को देखने का आनंद कोई सच्चा प्रकृतिप्रेमी ही जानता है,’’ "लेटसकैंपआउट" के मालिक अभिजीत महात्रे सीना चौड़ा करके यह बात कहते हैं।


हमारे जीवन में कई ऐसी बातें और घटनाएं होती हैं जो हमें प्रेरणा देती हैं लेकिन "लेटसकैंपआउट" टीम को सबसे ज्यादा खुशी मिलती है प्रकृति की शुद्धता के बीच रहकर और दूसरों को भी आज के प्रदूषण और भाग-दौड़ भरी जिंदगी से दूर लेजाकर उसे प्रकृति की गोद में लेजाकर।


फिलहाल यह कंपनी प्रकृतिप्रेमियों को महाराष्ट्र में कैम्पिंग का आनंद दे रही है। ‘‘फिलहाल हमारे पास 12 साईट हैं जहां हम लोगों को कैम्पिंग करवाने ले जाते हैं। अभी हम लोनावाला, राजमाची, तुंगारली और शिराटा के अलावा और शांत जगहों जैसे काशिद, काॅस, मथेरान और पंचगनी जैसी प्राकृतिक जगहों पर कैंप लगाते हैं,’’ अभिजीत बताते हैं।


अभिजीत बताते हैं कि उन्हें काॅलेज के समय से ही कैम्पिंग इत्यादि करने का शौक था लेकिन भारत में कैम्पिंग इत्यादि में काम आने वाला सामान बहुत ही निचले दर्जे का मिलता था जिसे लेकर वे प्रकृति के बीच नहीं जा पाते थे। चार साल पूर्व उन्होंने इस काम में अपनी सक्रियता बढ़ाई।


अभिजीत कहते हैं कि अगर आप कुछ करने की ठान लें तो राहें अपने आप ही खुल जाती हैं। उनके साथ भी ऐसा ही हुआ। "लेटसकैंपआउट" की शुरुआत के बारे में बताते हुए वे गर्व से कहते हैं कि वे एक अंर्तराष्ट्रीय बैंक में नौकरी कर रहे थे और उन्हें चेन्नई के एक प्रोजेक्ट के लिये चुना गया। चूंकि उन्हें चेन्नई भेजा गया इसलिये उन्हें वहा रहने के तीन साल के दौरान तनख्वाह के अलावा कुछ दैनिक भत्ता भी मिला जिसे उन्होंने इस काम में प्रारंभिक पूंजी के रूप में लगाकर "लेटसकैंपआउट" की नींव डाली।


जल्द ही अभिजीत को साथ मिला अपने एक पुराने साथी अमित जम्बोतकर का, जो अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर उनके साथ इस काम में आ जुड़े।


‘‘प्रारंभ में हमारा पूरा ध्यान कैंम्पिंग को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करके इस काम को सरल बनाना था। साथ ही हम चाहते थे कि प्रकृतिप्रेमी सामने आएं।’’ अभिजीत आगे बताते हैं कि 2010 में उन लोगों ने सिर्फ कुछ तम्बुओं और मात्र एक कैम्प ग्राउंड के साथ इस काम को शुरू किया। चूंकि उस समय तक भारत में कैम्पिंग के बारे में बहुत अधिक लोगों को पता नहीं था और वे लोग इसे ठीक समय पर लोगों के बीच लेकर आये इसलिये प्रकृतिप्रेमियों ने इन्हें हाथोंहाथ लिया इसलिये हमारा यह सपना जल्द ही एक अच्छे व्यवसाय में तब्दील हो गया।


खुसकिस्मती यह कि इन लोगों को व्यवसायिक तौर पर जो पहला ग्रुप मिला वह भी इनकी तरह साहसिक कार्य करने का आदी था। बीते कुछ वर्षो में इन लोगों के पास परिवार, महिलाओं के समूह, मित्रमंडलिया और युगल कैम्पिंग के लिये संपर्क कर चुके हैं और खुले जंगल में प्रकृति के बीच कुछ समय सफलतापूर्वक बिता चुके हैं।


अभिजीत आगे जोड़ते हैं कि आज की तनाव भरी और अस्त-व्यस्त दिनचर्या के बीच लोगों को खासकर युवाओं को खुद को तरोताजा रखने के लिये कुछ नया और अलग हटकर चाहिये जो उन्हें कैम्पिंग के दौरान मिलता है। साहसिक कार्यो की तरफ भी युवा वर्ग का विशेष ध्यान रहता है और इसी वजह से स्काई गेजिंग भी एक बढ़ता हुआ व्यवसाय है।


"लेटसकैंपआउट" के पास अब अपना एक मजबूत आधार है और ये लोग प्रकृतिप्रेमियों को नित नई सौगात दे रहे हैं। हाल-फिलहाल यह कंपनी राॅक क्लाइम्बिंग, बारबेक्यू, रात्रि सफारी इत्यादि के अलावा ज्योतिष कैम्प से अपने चाहने वालों को रूबरू करवा रहे हैं।


हालांकि अब भी कंपनी प्रकृति के प्रति अपने समर्पण और इनकी साईट के आस-पास निवास करने वाले ग्रामीणों की बेहतरी के बारे में लगातार कार्य कर रहे हैं। अभिजीत आगे जोड़ते हैं कि उनके पास कैम्प लगाने वाली सारी जगहें अपनी हैं और कैम्प में रहने वाले सभी लोगों को ईको टूरिज़्म का ख्याल रखते हुए स्थानीय खाना-पीना परोसा जाता है। इसके अलावा सभी कैम्पसाईटों पर ऊर्जा संरक्षण के लिये सोलर लाईटों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही किसी भी जगह पर इन लोगों ने कोई पक्का निर्माण नहीं किया है।


अभिजीत बड़े गर्व से बताते हैं कि पिछले 4 वर्षो के दौरान इन लोगों के पास कैम्पिंग से संबंधित दुनिया के सबसे अच्छे साजोसामान हैं और इन लोगों के सहयोग से कई गांव के निवासियों की रोजी-रोटी चल रही है।


"लेटसकैंपआउट" की सफलता के साथ ही इन लोगों को कई और मोर्चों पर भी अपनी लड़ाई लड़नी पड़ी है। इनका कहना है कि रातोंरात इस पेशे में आए अनुभवहीन लोगों की वजह से कई बार लोगों की जान पर बन आती है और तब इन लोगों को बड़ी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही एक किस्सा सुनाते हुए अभिजीत बताते हैं कि एक रात उनके पास कुछ अभिभावकों का फोन आया कि उन लोगों के बच्चे लोनावाला में कैम्पिंग करने गए हैं और उनमें से किसी से भी संपर्क नहीं हो पा रहा है। उस सात बहुत जबरदस्त बारिश हो रही थी और 150 बच्चे सिर्फ 2 प्रशिक्षकों के भरोसे थे। उन बच्चों के माता-पिता को इंटरनेट से जानकारी मिली कि इन लोगों की उस जगर के पास कैम्पिंग साइट हैं तो उन्होंने इनसे बच्चों को खोजने में मदद मांगी। अभिजीत आगे बताते हैं कि उन लोगों ने गांव के अपने संपर्कों के द्वारा रातोंरात उन लोगों को ढुंढवाया और उन परिवारों की मदद की।


बीते चार वर्षों के दौरान जिस तरह से ने "लेटसकैंपआउट" तरक्की की वह वह अपने आप में एक परीकथा से कम नहीं है। इन लोगों ने दुनिया को दिखाया कि कैम्पिंग सिर्फ मौजमस्ती करने का साधन नहीं है बल्कि खुद को प्रकृति के और करीब लाने का प्रयास है।