गरीब किसान का बेटा बन गया देश का टॉप हैकर
कुछ सालों पहले तक रवि सुहाग को उनके सर्कल से बाहर कोई नहीं जानता था और आज वो भारत में हैकिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जाने-पहचाने चेहरे बन गए हैं। 27 वर्षीय रवि ने पिछले चार वर्षों में 16 हैक कॉम्पटीशन में से 14 में जीत हासिल की है। एक किसान परिवार में जन्मे सुहाग के घर एक कंप्यूटर तक नहीं था। कॉलेज में दाखिल होने के बाद उन्हें कंप्यूटर मिल सका।
रवि हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में सलाहकार के रूप में भी काम करते हैं, अपना खुद का उद्यम चलाते हैं। इतना ही नहीं, इन्हें भारत के राष्ट्रपति ने भी सम्मानित किया है।
रवि हमेशा से आईआईटी में पढ़ना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी भाषा की कम जानकारी और सही समय पर उपयुक्त ट्रेनिंग न मिल पाने की वजह से वे वहां प्रवेश नहीं पा सके थे। इस बात का उन्हें हमेशा अफसोस रहता है। उनका मानना है कि छोटे शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षा की बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए।
कुछ सालों पहले तक वाले रवि सुहाग को उनके सर्कल से बाहर कोई नहीं जानता था और आज वो भारत में हैकिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जाने-पहचाने चेहरे बन गए हैं। 27 वर्षीय रवि ने पिछले चार वर्षों में 16 हैक कॉम्पटीशन में से 14 में जीत हासिल की है। एक किसान के परिवार में जन्मे सुहाग के घर एक कंप्यूटर तक नहीं था। कॉलेज में दाखिला होने के बाद उन्हें कंप्यूटर मिल सका। क्वार्ट्ज के साथ एक साक्षात्कार में रवि ने बताया कि मेरी शुरुआती स्कूली शिक्षा हरियाणा में एक गांव के हिंदी माध्यम के स्कूल में हुई थी। जहां सुविधाएं न के बराबर थीं।
रवि बताते हैं कि जब सातवीं कक्षा में पिता जी एक नए गैजेट के साथ घर आए, जो कि एफएम रेडियो और एक टेप रिकॉर्डर का संयोजन था, उसके बाद से मेरे अंदर इलेक्ट्रॉनिक्स में गहन रुचि उत्पन्न हो गई थी। मैंने उस यंत्र को पूरा तोड़ दिया। उसके टुकड़े यहां-वहां पड़े थे। मैं उसे वापस नहीं जोड़ नहीं सका। मैंने सोचा 'मेरा पिताजी तो मुझे मार ही डालेंगे'। कुछ महीनों तक इस बारे में अध्ययन करने के बाद, मैंने इसे वापस जोड़ दिया। उस मशीन ने दोबारा काम करना शुरू कर दिया।
उसके बाद रवि ने सभी तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, जैसे ट्यूबलाइट्स, स्पीकर, रेडियो। विज्ञान में अपनी प्राकृतिक रुचि की वजह से रवि हमेशा से प्रतिष्ठित आईआईटी में भौतिकी विषय में प्रवेश लेना चाहते थे। आईआईटी लाखों भारतीय छात्रों की तरह रवि का भी स्वप्न-विश्वविद्यालय था। रवि ने कक्षा नौवीं में अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल में दाखिला ले लिया था। लेकिन जल्द ही उन्हें अंग्रेजी में पढ़ाई करने में दिक्कत आने लगी।
मोमबत्ती की रोशनी और कम नींद लेने की वजह से अध्ययन करने वक्त उन्हें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ता था। उन्होंने दो और दोस्तों के साथ भुगतान वाले अतिथि आवास में जाने का फैसला लिया। एक वक्त था जब उनके रिश्तेदारों और परिवार को यकीन था कि वे आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में जरूर सफल होंगे, फिर भी वे विफल रहे। उन्होंने स्क्रॉल से बातचीत में कहा, मेरा दिमाग परीक्षा के दिन खाली हो गया था। मैं आईआईटी परीक्षा को क्लियर नहीं कर सका।
अंततः रवि ने कामराह इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी, गुरुग्राम में एडमिशन ले लिया और वहां से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। रवि बाहर की दुनिया में वास्तविक प्रतिस्पर्धा को समझते थे, वह जानते थे कि वह कॉलेज में अच्छे से अच्छे ग्रेड की आवश्यकता होती है ताकि वह भीड़ से अलग दिखें। वह अपनी शिक्षा के साथ ट्यूशन देने का काम भी करने लगे और एक छोटे से परामर्श फर्म 'प्रेरणा एज' शुरू करने के लिए वह सब पैसे बचा लेते थे। उनको उस वक्त नहीं मालूम था कि उनका भविष्य क्या होगा इसलिए उन्होंने कॉलेज लाइब्रेरी से डिजाइन और कोडिंग की पुस्तकों का अध्ययन भी शुरू कर दिया। वे जानते थे कि भविष्य में इसका कुछ तो उपयोग होगा। क्वार्ट्ज मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रवि अब अपना लाभदायक निजी उद्यम चलाते हैं।
वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एविडेन्स फॉर पॉलिसी डिज़ाइन (ईपीओडी) में एक सलाहकार भी हैं, जहां वे विभिन्न ग्रामीण मंत्रालयों के साथ कार्यकर्ताओं को डिजिटल भुगतान करने में देरी को कम करने के लिए काम करते हैं। जुलाई 2013 में गुरुग्राम में एक वेब डेवलपर के रूप में शुरुआती कार्यकाल के दौरान हैकॉथन में हैकिंग पर अपना पहला हाथ चलाने बाद से, रवि कोडिंग में खुद का नाम बना रहे हैं। हाल ही में, जब रवि को भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। तब उनके चाचा ने उनके पिता को फोन किया और कहा, "बधाई हो! रवि को राष्ट्रपति से एक पुरस्कार मिला" तो उनके माता-पिता को लगा कि उनके बेटे के नियमित रूप से जीतने वाले हैकिंग कॉम्पटीशन के कारण ऐसा हो रहा। उनके पिता ने जवाब दिया कि, अरे वह तो हर दो महीनों में जीत जाता है।
सुहाग ने क्वार्ट्ज को बताया, हममें से ज्यादातर को कभी मौका नहीं मिलता है, हम एक बुरे कॉलेज में जाते हैं, बुरे कॉलेज में खराब शिक्षक होते हैं, वे आपको प्रोत्साहित नहीं करते। लोगों के लिए उस से बाहर आना मुश्किल है। सभी अच्छे संकाय आईआईटी में चले जाते हैं। जरूरत यह है कि छोटे महाविद्यालयों में बेहतर प्रोफेसर होने चाहिए, वहां छात्रों को अधिक ध्यान और प्रोत्साहन और एक्सपोजर की आवश्यकता होती है।
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