HIV पीड़ितों की मदद के लिए इस डॉक्टर ने छोड़ दी बड़े हॉस्पिटल की नौकरी, 11 साल की बच्ची को लिया गोद
सना शेख पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन उन्होंने किसी बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल में बड़ी सैलरी पर काम करने के बजाय एक एड्स फाउंडेशन के साथ काम करना पसंद किया। उन्होंने एक एचआईवी पॉजिटिव बच्ची को गोद भी लिया है।
कॉलेज खत्म होने के बाद बाकी सभी स्टूडेंट्स की तरह सना ने भी एक कॉर्पोरेट हॉस्पिटल जॉइन कर लिया, लेकिन थोडे़ ही दिनों में उन्हें अहसास हुआ कि वह इस परंपरागत तरीके से मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए नहीं बनी हैं।
हर रोज हम किसी न किसी ऐसी खबर से गुजरते हैं जो हमें निराश कर जाती हैं। हमें लगता है कि अगर जरूरतमंदों की मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़े तो इंसानियत से भरोसा उठना तय है। लेकिन हमारे आस-पास ही ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो इस दुनिया को बेहतर बनाने में लगे हुए हैं। हम आपको आज ऐसे ही एक शख्स से मिलाने जा रहे हैं, जिसका नाम है सना शेख। सना पेशे से डॉक्टर हैं। लेकिन उन्होंने किसी बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल में बड़ी सैलरी पर काम करने के बजाय एक एड्स फाउंडेशन के साथ काम करना पसंद किया। उन्होंने एक एचआईवी पॉजिटिव बच्ची को गोद भी लिया है। सना ने ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे से अपनी कहानी साझा की हम उस कहानी को आप तक पहुंचा रहे हैं।
सना जब मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थीं तभी उन्हें एक एड्स फाउंडेशन से जुड़कर वेश्यावृत्ति में संलिप्त महिलाओं के लिए काम करने का मौका मिला। यह फाउंडेशन ऐसी महिलाओं और लड़कियों को इस पेशे से बाहर निकालकर उनकी जिंदगी बदलने का काम करता था। इस संगठन के साथ काम करने के दौरान ही सना को एक 11 साल की लड़की का केस मिला, जो न तो कुछ बोलती थी और न ही कुछ खाने के लिए हां करती थी। सना बताती हैं कि वह लड़की चुपचाप एक कोने गुमसुम बैठी रहती थी। कई लोगों ने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसने किसी से बात नहीं की।
उस छोटी सी लड़की से बात करने के लिए सना उसके पास जाकर बैठ जाती थीं और घंटों बिना बात किए बस उसके पास ही बैठी रहती थीं। वह उससे अपनी टिफिन से खाना खाने को भी कहती थीं। हालांकि शुरू में तो लड़की ने अपनी जुबां नहीं खोली, लेकिन धीरे-धीरे उसने सना से बात करना शुरू कर दिया। सना उसे अपनी टिफिन का खाना खिलाती थीं और बात भी करती थीं। और बात करने पर पता चला कि उस लड़की को एचआईवी है। लेकिन इस बात से सना पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वह पहले की तरह ही उस लड़की की देखभाल करती रहीं। उन्होंने उस लड़की को आर्थिक तौर पर गोद ले लिया और आज भी वह उसे अपनी बेटी मानती हैं।
कॉलेज खत्म होने के बाद बाकी सभी स्टूडेंट्स की तरह सना ने भी एक कॉर्पोरेट हॉस्पिटल जॉइन कर लिया, लेकिन थोडे़ ही दिनों में उन्हें अहसास हुआ कि वह इस परंपरागत तरीके से मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए नहीं बनी हैं। उन्होंने दस दिन में ही यह नौकरी छोड़ दी और एक एड्स फाउंडेशन जॉइन कर लिया। यहां सना को पहले की तुलना में 70 प्रतिशत कम सैलरी मिलती थी, लेकिन उन्हें इस काम से संतुष्टि मिल रही थी। यहां भी थोड़े दिन काम करने के बाद सना को लगा कि काम तो अच्छा है, लेकिन इस काम के लिए फंड भी जुटाने की जरूरत है। व बताती हैं, 'मेरा वहां मौजूद होना और मेरा काम लोगों की काफी मदद कर रहा था, लेकिन और भी बहुत कुछ करने के लिए मुझे भी आगे बढ़ने की जरूरत थी।'
इसलिए सना ने फिर से कॉलेज की ओर लौटने का फैसला कर लिया। उन्होंने हैदराबाद के इंडियन बिजनेस स्कूल से मार्केटिंग में एमबीए किया। अभी सना ने 30 वर्ष की उम्र भी नहीं पूरी की है और उन्होंने अपनी कंपनी में एसोसिएट डायरेक्टर की जिम्मेदारी को निभाते हुए खुद की अहमियत को साबित कर दिया है। वह कहती हैं कि अपना रास्ता तय करने के लिए खुद को लचीला बनाए रखिए लेकिन लेकिन दूसरों की मदद करना बिलकुल भी मत भूलिए। दुनिया में बदलाव लाने के लिए आपको बहुत ज्यादा समझौता करने की जरूरत नहीं है। आप अपने काम के साथ ही मददगार भी बन सकते हैं। सना की नजर में यही सबसे बड़ा काम है।
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