प्लानिंग न होने की वजह से फिर से खराब हुई दिल्ली की हवा: ग्रीनपीस की रिपोर्ट
आंकड़ों से ये साबित होता है कि वायु प्रदूषण की स्थिति अभी भी खतरनाक बनी हुई है। इस खराब वायु गुणवत्ता में पटाखों की भूमिका को समझने के लिये ग्रीनपीस ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 18,19 और 20 अक्टूबर के आकंड़ों का विश्लेषण किया।
20 अक्टूबर की सुबह 1 बजे से 3 बजे तक वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट दर्ज की गयी, ज्यादातर निगरानी स्टेशन पर 1000 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पीएम 2.5 दर्ज की गयी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी दिल्लीवासियों ने जमकर पटाखे फोड़े। जाहिर सी बात है कि पटाखा बेचने पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद कुछ लोग पटाखा बेच रहे थे।
इस बार सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में पटाखों की बिक्री पर बैन जरूर लगा दिया था। लेकिन कोर्ट का आदेश ज्यादा असरकारी नहीं रह पाया। प्रदूषण को मापने वाले कारक के आधार पर यह सामने निकलकर आया कि पिछले साल की तुलना में इस बार सिर्फ 2.5 पीएम कम प्रदूषण रहा। पिछले साल इस वक्त पीएम 2.5 औसत 343 माइक्रो प्रति घनमीटर था जबकि इस साल 181 माइक्रो प्रति घनमीटर रहा। लेकिन केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बेवसाइट से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा पुसा वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन पर 20 अक्टूबर 2017 को 4 बजे सुबह 1500 माइक्रो प्रति घनमीटर तक पीएम 2.5 रिकॉर्ड किया गया जो पिछले साल की तुलना में थोड़ा ही अलग है।
इन आंकड़ों से ये साबित होता है कि वायु प्रदूषण की स्थिति अभी भी खतरनाक बनी हुई है। इस खराब वायु गुणवत्ता में पटाखों की भूमिका को समझने के लिये ग्रीनपीस ने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 18,19 और 20 अक्टूबर के आकंड़ों का विश्लेषण किया। 20 अक्टूबर की सुबह 1 बजे से 3 बजे तक वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट दर्ज की गयी, ज्यादातर निगरानी स्टेशन पर 1000 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पीएम 2.5 दर्ज की गयी। वैसे 2016 के 18 और 20 अक्टूबर से तुलना करें तो सामान्य प्रदूषण स्तर पिछले साल इस की तरह ही है लेकिन पटाखों की वजह से उसमें कल रात इजाफा दर्ज किया गया।
जब पिछले साल 18 और 20 अक्टूबर 2016 के आंकड़ों से तुलना किया गया तो पाया गया कि उसमें भी बहुत सामान्य अंतर है। पिछले साल इन दो दिनों में पीएम 2.5 औसत 150 से 165 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था वहीं इस साल यह 154 से 181 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा। इस पूरी स्थिति पर ग्रीनपीस कैंपेनर सुनिल दहिया का कहना है, 'इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि वायु प्रदूषण की प्रवृत्ति क्षेत्रीय है और यह बहुत सारे कारकों के कारण बढ़ता है। बीच-बीच में आने वाले प्रासंगिक प्रदूषण कारकों जैसे कि दिवाली में पटाखों का इस्तेमाल आदि से निपटते रहने के साथ-साथ आज प्रदूषण के मूल कारणों पर नियंत्रण लगाने की जरुरत है, इसके बाद ही देश के सभी हिस्सों में हर समय हम सांस लेने लायक हवा बना सकते हैं।'
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी दिल्लीवासियों ने जमकर पटाखे फोड़े। जाहिर सी बात है कि पटाखा बेचने पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद कुछ लोग पटाखा बेच रहे थे। इस मामले में पटाखा बेचने पर दिल्ली पुलिस ने करीब 47 लोगों पर केस भी दर्ज किए हैं। साथ ही 47 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। वहीं ढाई हजार किलो से अधिक पटाखा जब्त किया गया है। इस मामले में किसी पुलिस वाले के खिलाफ ऐक्शन लेने की जानकारी पुलिस ने नहीं दी है। लेकिन इससे साफ हो जाता है कि पटाखे इस बार भी बिक रहे थे। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ लोगों ने पटाखों के लिए दूसरे पड़ोसी नजदीकी राज्यों का भी रुख किया।
पिछले साल दिवाली में दिल्ली में सबसे खराब प्रदूषण देखने को मिला था, इस बात के सबूत हैं कि पिछले साल सिर्फ पटाखो की वजह से धुआँ नहीं जमा था, वह सिर्फ तात्कालिक वजह थी।
सुनील कहते हैं, 'बहुत सारे दूसरे स्रोत हैं जो खासकर उत्तर भारत की हवा को खराब कर रहे हैं। अगर पर्यावरण मंत्रालय लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है और लोगों को स्वच्छ हवा देना चाह रहा है तो उसे एक मजबूत नीति लानी होगी और वर्तमान योजनाओं के बारे में लोगों को जागरुक करना होगा। एक व्यवस्थित, समन्वित, समय-सीमा के भीतर सभी कारकों से निपटने की कार्य-योजना के बाद ही हम इस खराब वायु प्रदूषण की समस्या से निजात पा सकते हैं।'
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