अपनी शर्तों पर जीने वाली वहीदा रहमान, जिनके अभिनय का सारा जहां है दीवाना
वहीदा रहमान की खूबसूरती के आज भी लोग कायल हैं, उन्होंने अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय से सबको अपना दीवाना बनाया। 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो' मोहम्मद रफी का गाया यह गाना साल 1990 की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' का है। वहीदा रहमान इसी फिल्म से मशहूर हुई थीं। संयोगवश वहीदा का मतलब भी 'लाजवाब' होता है।
बचपन में वहीदा रहमान बनना चाहती थीं डॉक्टर, मगर किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू भी की, लेकिन फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से यह कोर्स वह पूरा नहीं कर सकीं।
पिता की मृत्यु के बाद घर में आये आर्थिक संकट से निपटने के लिए वहीदा रहमान ने किया था फिल्मी दुनिया का रुख। पिता के एक मित्र की मदद से मिला था वहीदा को अफनी पहली तेलुगू फिल्म में काम, जो कि एक सफल फिल्म साबित हुई।
हिंदी फिल्मों की सदाबहार अभिनेत्री वहीदा रहमान एक बेहतरीन अदाकारा हैं। वह अपने दौर की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार की जाती थीं। वहीदा जी की खूबसूरती के सभी कायल हैं, उन्होंने अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय से सबको अपना दीवाना बनाया। 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो' मोहम्मद रफी का गाया यह गाना साल 1990 की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' का है। वहीदा रहमान इसी फिल्म से मशहूर हुई थीं। संयोगवश वहीदा का मतलब भी 'लाजवाब' होता है। अपने करिश्माई अभिनय से पांच दशकों तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाली वहीदा सचमुच लाजवाब हैं।
एक होनहार छात्रा से कुशल अभिनेत्री बनने का सफर
वैसे तो बचपन में वहीदा डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू भी की, लेकिन फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से यह कोर्स वह पूरा नहीं कर सकीं। माता-पिता के मार्गदर्शन में वहीदा भरतनाट्यम सीखने लगी थीं। 13 वर्ष की उम्र में ही वहीदा रहमान नृत्य कला में पारंगत हो गईं और स्टेज शो करने लगीं। फिल्म निर्माताओं की तरफ से उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के ऑफर मिलने लगे, लेकिन उनके पिता ने फिल्म निर्माताओं के ऑफर को ठुकरा दिया। उनके पिता कहना था कि वहीदा अभी बच्ची हैं और यह उनके पढ़ने लिखने की उम्र है। जब पिता का निधन हो गया, तब घर में आर्थिक संकट के चलते वहीदा ने फिल्मों का रुख किया। वहीदा के पिता के एक मित्र ने उनको एक तेलुगू फिल्म में काम दिलाया। फिल्म सफल रही। फिल्म में वहीदा के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा।
अपनी शर्तों पर जीने वाली वहीदा रहमान
हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान निर्माता गुरुदत्त के एक फिल्म वितरक वहीदा के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने गुरूदत्त को वहीदा से मिलने की सलाह दी। बाद में गुरूदत्त ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और अपनी फिल्म सीआईडी में काम करने का मौका दिया। फिल्म निर्माण के दौरान जब गुरुदत्त ने वहीदा को नाम बदलने के लिए कहा, तो वहीदा ने साफ मना कर दिया और कहा कि उनका नाम वहीदा ही रहेगा। उन्हें साल 1955 में दो तेलुगू फिल्मों में काम करने का मौका मिला।
बॉलीवुड में अभिनेता, निर्देशक व निर्माता गुरुदत्त ने उनका स्क्रीन टेस्ट लिया और पास होने पर उन्हें फिल्म सीआईडी में खलनायिका का किरदार दिया। अभिनय के अपने हुनर से उन्होंने इस किरदार में जान डाल दी, इसके बाद उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिलनी शुरू हो गईं। वहीदा जी ने अपने करियर की शुरुआत में गुरुदत्त के साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था, जिसमें उन्होंने शर्त रखी थी कि वह कपड़े अपनी मर्ज़ी के पहनेंगी और अगर उन्हें कोई ड्रेस पसंद नहीं आई तो उन्हें वह पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
बहुआयामी अभिनय में पारंगत वहीदा रहमान
राज कपूर के साथ फिल्म तीसरी कसम में उन्होंने नाचने वाली हीराबाई का किरदार निभाया था और इसमें नौटंकी शैली में गाया गया गाना था- पान खाए सैंया हमार हो, मलमल के कुर्ते पर पीक लाले लाल'। जो काफी लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। 'फिल्म गाइड में वहीदा रहमान और देवानंद की जोड़ी ने ऐसा कमाल किया कि दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखने को टूट पड़ते थे। वहीदा जी को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
उनकी थिरकन से नाचने लगता है संसार
वहीदा रहमान ने जब फिल्म गाइड को साइन किया, तो कई लोगों ने वहीदा को रोजी का रोल करने से मना किया। एक फिल्म निर्माता ने तो उनसे यहां तक कहा कि आप अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही हैं, लेकिन वहीदा ने इस रोल को स्वीकार किया। इस फिल्म के जरिए ही वहीदा की बेहतरीन नृत्य कला से जमाना परिचित हुआ। 'आज फिर जीने की तमन्ना है' में डांस करते वक्त वहीदा से निर्देशक ने कहा कि दिल खोल कर नाचो, उसी से स्टेप्स बन जाएंगे। इस गाने में वहीदा की डांस परफॉरमेंस को काफी पसंद किया गया।
इस फिल्म में रोजी के किरदार के लिए जब वहीदा को फिल्म फेयर पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई, तो कई लोगों के साथ-साथ खुद वहीदा को भी बहुत अचंभा हुआ। क्योंकि वहीदा समझ रही थीं कि रोजी का किरदार ग्रे शेड लिए हुए था। वहीदा सोच रहीं थी कि तवायफ की बेटी जो अपने पति को छोड़कर गाइड के साथ रहती है और फिर उसे भी छोड़ देती है, ऐसी नायिका को ऑडिएंस से दया और सहानुभूति नहीं मिलेगा। शादी के बाद वहीदा ने लगभग 12 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 2001 में वहीदा ने अपने करियर की नई पारी शुरू की और ओम जय जगदीश, वाटर, रंग दे बसंती, दिल्ली-6 जैसी फिल्मों से दर्शकों का मन मोहा। वहीदा जी को 1972 में पद्मश्री और साल 2011 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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