कर्जमाफी की छाया में 2019 की तैयारी
उत्तर प्रदेश बजट 2017-18
किसानों की कर्जमाफी की छाया में आया योगी सरकार का पहला बजट बहुत चकित तो नहीं करता परन्तु कुछ मामलों में नयी और बड़ी लकीरें खींचता जरूर दिखता है। इसमें उन बातों का भी ध्यान रखा गया है जो अभी तक राजनीति की प्राथमिकता पर नहीं रहे। मुख्यमंत्री बार-बार कहते रहे हैं कि उनकी सरकार की असल और बड़ी परीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव होंगे। शायद इसी कारण साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का अधिकृत नगाड़ा भले ही अभी नहीं बजा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अभी से ही चुनावी मूड में आ गई है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने देश के अन्य राज्यों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है। बजट में बिना कोई टैक्स लगाये किसानों की कर्जमाफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर पूरे देश की अन्य सरकारों के सामने यह सवाल खड़े कर दिये हैं कि यदि बिना केन्द्र सरकार की मदद से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में किसानों का कर्ज माफ हो सकता है, तो यह काम संकट में घिरे किसानों के लिए देश के अन्य राज्य क्यों नहीं कर सकते हैं?
लेकिन, यह बजट उन लोगों को निराश करेगा, जिन्हें अखिलेश सरकार के शासन में लाभ मिल रहा था। कन्या विद्याधन योजना बन्द कर दी गई है। समाजवादी पेंशन भी खत्म हो गई है। बजट से समाजवादी नाम गायब हो गया है और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम छाया हुआ है।
किसानों की कर्जमाफी की छाया में आया योगी सरकार का पहला बजट बहुत चकित तो नहीं करता परन्तु कुछ मामलों में नयी और बड़ी लकीरें खींचता जरूर दिखता है। इसमें उन बातों का भी ध्यान रखा गया है जो अभी तक राजनीति की प्राथमिकता पर नहीं रहे। मुख्यमंत्री बार-बार कहते रहे हैं, कि उनकी सरकार की असल और बड़ी परीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव होंगे। शायद इसी कारण साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का अधिकृत नगाड़ा भले ही अभी नहीं बजा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अभी से ही चुनावी मूड में आ गई है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने देश के अन्य राज्यों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है। बजट में बिना कोई टैक्स लगाये किसानों की कर्जमाफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर पूरे देश की अन्य सरकारों के सामने यह सवाल खड़े कर दिये हैं, कि यदि बिना केन्द्र सरकार की मदद से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में किसानों का कर्ज माफ हो सकता है, तो यह काम संकट में घिरे किसानों के लिए देश के अन्य राज्य क्यों नहीं कर सकते हैं?
विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने यह वादा किया था, कि सत्ता में आते ही वह किसानों का कर्ज माफ करेगी। इसके साथ ही उसने एक बड़ा वादा किसानों को बिना ब्याज के फसली कर्ज उपलब्ध कराने का भी किया था। अपने पहले बजट में उत्तर प्रदेश सरकार ने बजट में किसानों के कर्ज पर कोई चर्चा नहीं की है, लेकिन कर्ज माफी के लिए धन की व्यवस्था करने पर सफलता के बाद यह साफ हो गया है कि अगले बजट में सरकार किसानों को बिना ब्याज के कर्ज उपलब्ध करने की ओर बढ़ेगी।
गौरतलब है, कि नीति आयोग की मंशा के अनुरूप बने इस बजट में कुछ क्रान्तिकारी कदमों के भी दर्शन होते हैं। इस बजट ने काफी समय से चले आ रहे प्लान व नॉन प्लान की व्यवस्था खत्म कर दी है। इससे उम्मीद है कि अफसरशाही पर नकेल कसेगी। अब सरकार खर्च पर निगाह रख सकेगी। यूपी के बजट में वे सारे प्रयास किये गए हैं, कि पैसा उस जगह तक जाये, जहां दरिद्र नारायण यह देखें कि सरकार उसके लिए कहां और कैसे धन खर्च कर रही है। इस बजट से यह साफ परिलक्षित होता है कि योगी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की ओर बढ़ गई है। सरकार जल्दबाजी में है। उसके पास समय कम है और लक्ष्य बहुत बड़ा है। कर्जमाफी के लिए धन की व्यवस्था एवरेस्ट पर चढ़ाई जैसा ही था। यह साफ है कि इस बजट के साथ ही अगला बजट भी पूरी तरह चुनावी ही होगा। अक्सर यह देखा गया है कि सरकार सत्ता में आने के पहले वर्ष कुछ अप्रिय व कड़े फैसले करती है लेकिन, तमाम आर्थिक परेशानियों के बावजूद सरकार ने अपने पहले बजट में टैक्स नहीं लगाया है।
इसे महज संयोग कहें या निकाय चुनाव के लिहाज से शहरों पर खास ध्यान देने की कोशिश समझें लेकिन, सच यही है कि अबकी बजट में प्रदेश सरकार ने शहरों के लिए सौगात की झोली खोल दी है। बीते विधानसभा चुनावों में ग्रामीण क्षेत्रों तक पैठ बना कर भाजपा ने हालांकि खुद के शहरी पार्टी होने का मिथक तोड़ा है। लेकिन अब फिर बजट में पार्टी का रुझान शहरों की तरफ नजर आ रहा है। शहरों के लिए बजट में प्रत्यक्ष तौर पर 8235.74 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई है। शहरों में गरीबों को घर मुहैय्या कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना-सबके लिए आवास (शहरी) मिशन योजना के तहत बजट में 3000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है, तो अल्पविकसित व मलिन बस्तियों के विकास के लिए भी 385 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 61 शहरों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए अमृत योजना के तहत दो हजार करोड़ रुपये के खर्च की व्यवस्था की गई है। स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) योजना के जरिये शहरों को साफ रखने के लिए एक हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
प्रदेश के 13 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सरकार ने बजट में 1500 करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी की है। इसके तहत लखनऊ, कानपुर, वाराणसी व आगरा में जहां स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कई परियोजनाओं को अन्तिम रूप दिया जा रहा है, वहीं मेरठ, सहारनपुर, रामपुर, गाजियाबाद और रायबरेली को भी स्मार्ट बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
देखा जाए तो बजट का सबसे बड़ा हिस्सा लोक निर्माण और नगरी विकास के पास गया है। नयी सड़कों से लेकर पुरानी सड़कों के मरम्मत की बात भी है और कुछ शहरों में मेट्रो रेल के लिए बजट निर्धारण किया है। लेकिन पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का जिक्र इस बजट में नहीं है जिससे यह प्रतीत होता है कि योगी सरकार इस परियोजना को राज्य के संसाधन से आगे बढ़ाने के मूड में नहीं है। प्रदेश के 13 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सरकार ने बजट में 1500 करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी की है। इसके तहत लखनऊ, कानपुर, वाराणसी व आगरा में जहां स्मार्ट सिटी मिशन के तहत कई परियोजनाओं को अन्तिम रूप दिया जा रहा है, वहीं मेरठ, सहारनपुर, रामपुर, गाजियाबाद और रायबरेली को भी स्मार्ट बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। इलाहाबाद, अलीगढ़ और झांसी को स्मार्ट सिटी घोषित किए जाने के बाद यहां भी ई-गवर्नेंस एंड सिटीजन सर्विसेज, वेस्ट व वाटर मैनेजमेंट तथा अर्बन मोबिलिटी के माध्यम से जीवन स्तर को ऊंचा करने का लक्ष्य तय किया गया है। भू-सम्पदा सेक्टर को नियम-कायदों के तहत लाने और बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार ने भू-सम्पदा नियामक प्राधिकरण (रेरा) की स्थापना करते हुए इसे क्रियाशील बनाने का निर्णय लिया है। इससे भूखण्ड, अपार्टमेंट या भवन की बिक्री दक्षतापूर्ण व पारदर्शी तरह से होगी और भू-सम्पदा सेक्टर में उपभोक्ताओं के हितों की भी रक्षा की जा सकेगी।
स्वास्थ्य के लिए सरकार की प्राथमिकता अच्छी तरह परिलक्षित हो रही है। नये अस्पताल और एम्बुलेंस के लिए बड़ा बजट निर्धारित है। गर्भवती माताओं के लिए योजनायें हैं तो पेंशनर्स के लिए कैशलेस स्कीम का प्रावधान भी किया गया है। बजट से सबसे ज्यादा निराशा असंगठित उद्योग वाले क्षेत्र को होगी। जीएसटी के लागू होने के बाद यह क्षेत्र संकट में आया है। योगी सरकार के बजट में इसे राहत देने के लिए कोई विशेष योजना नहीं उल्लिखित की गई है। ऐसे में सूबे में बन्द होते कुटीर उद्योग से बढ़ती बेरोजगारी को कैसे कम किया जाएगा इस पर सवाल हैं। नयी औद्योगिक नीति में भी बड़े उद्योगों को सहूलियतें दी गई हैं और उन्हें प्रशिक्षित श्रमिक उपलब्ध करने के लिए कौशल विकास योजना के लिए बजट है मगर करोड़ों की संख्या में बुनकर, दस्तकार जैसे लघु और कुटीर उद्योगों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है।
यह बजट उन लोगों को भी निराश करेगा, जिन्हें अखिलेश सरकार के शासन में लाभ मिल रहा था। कन्या विद्याधन योजना बन्द कर दी गई है। समाजवादी पेंशन भी खत्म हो गई है। बजट से समाजवादी नाम गायब हो गया है और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम छाया हुआ है। इस पेंशन का लाभ लगभग 50 लाख लोगों को मिलता था। यह संख्या बहुत बड़ी है। इसके साथ ही, यशभारती पुरस्कार अब नहीं मिलेगा। कब्रिस्तान की बाउण्ड्री को बनवाने लिए पिछली सरकार की योजना को समाप्त कर दिया गया है। भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार कहते हैं कि पेंशन योजना को अगले बजट में नये रूप में लाया जाएगा। अब यह कितना हो पाता है, यह तो देखने वाली बात होगी।
यह अलग बात है कि योगी सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार की कई योजनाओं को बन्द तो कर दिया। सरकार किसी तरह अपने वादे पूरा करते दिखना चाहती है। बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था भी बड़ा कदम माना जा रहा है। सामूहिक विवाह के लिए 250 करोड़ रुपये की व्यवस्था भी उस वर्ग तक पहुंचने की कोशिश है, जो धनाभाव के कारण अपनी बेटियों के ब्याह की हिम्मत तक नहीं जुटा पाता।
योगी के बजट के बाद उत्तर प्रदेश में अब विवाह के लिए मिलने वाला अलग-अलग अनुदान बन्द हो गया है। इससे साफ है कि अब सरकार गांवों तक में सामूहिक विवाह का आयोजन कर यह संदेश देना चाहती है कि वह उन लोगों के साथ खड़ी है, जिनके पास बेटी के विवाह के लिए भी पैसे तक नहीं है। यह सरकार का एक बड़ा सामाजिक दायित्व पूरा करने वाला काम होगा। जाहिर है, सरकार अपने बुनियादी एजेंडे को नहीं भूली है। बजट में स्वदेश दर्शन योजना का उल्लेख है। इसके लिए अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में 1240 करोड़ रुपये की लागत से क्रमश: रामायण, बौद्ध और कृष्ण सर्किट बनेंगे। इन्हीं तीनों नगरों में प्रासाद योजना के तहत बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए 800 करोड़ रुपये भी सरकार खर्च करने जा रही है। विंध्याचल धाम का भी सरकार ने ध्यान रखा है जिसके विकास के लिए 10 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया है।
योगी सरकार 2019 में होने जा रहे प्रयाग अर्धकुंभ मेले के लिए 500 करोड़ रुपये देने जा रही है। मथुरा में गीता शोध संस्थान और कृष्ण संग्रहालय की स्थापना के साथ ही कला उत्सव भी होंगे। कला परिषद, कबीर अकादमी की स्थापना का प्रस्ताव भी बजट में है। सरकार गीता शोध संस्थान और कलाकारों को वाद्ययंत्रों के लिए एक-एक करोड़ रुपये भी देगी। काशी, मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, नैमिषारण्य, विंध्याचल जैसे तीर्थ-स्थलों के विकास के लिए दो हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था कर योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्ववादी ऐजेण्डे का सन्देश देते हैं।