चरवाहा बनने के लिए सिलिकॉन वैली के एक प्रोफेशनल ने छोड़ा महीने का 25 हज़ार डॉलर का काम
मौत से सामना
अपने उद्यमशीलता समाधान लागू करने से पहले बाबर खुद एक चरवाहे बने ताकि वे उस समाज के सामने आने वाली कठिनाईयों को नजदीकी से महसूस कर सकें, जिनकी रक्षा करने का वे बीड़ा उठाने जा रहे थे। और इन प्रयासों के दौरान वे लगभग अपनी जान से ही हाथ धो बैठे थे। बाबर बताते हैं, ‘‘मुझे यह सूचना मिली कि लेह के एक बाहरी इलाके में पश्मीना बकरियों के झुंड पर हिम तेंदुओं ने हमला कर दिया है। उस समय शाम के करीब 4 या 5 बजे थे और मैं घटनास्थल से करीब 60-70 किलोमीटर दूर था। मौके पर पहुंचने पर मुझे मालूम हुआ कि हमले के स्थान तक पहुंचने के लिये अभी करीब 1.5 किलोमीटर की पदयात्रा भी करनी थी। गहराती शाम के साथ मैंने अपना पैदल सफर प्रारंभ किया था और तेंदुए का सामना करने के लिये हथियार के नामपर मेरी जेब में सिर्फ एक स्विस नाइफ था। लेकिन उस परिस्थिति में अपनी पसंद का हथियार ही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल नहीं थी बल्कि वह था 14 हजार फिट की ऊँचाई पर दौड़ना। जल्द ही मेरा दम उखड़ने लगा और मैं हांफते हुए गिरकर बेहोश हो गया।’’
बाबर की किस्मत अच्छी थी कि वहां से गुजर रहे चरवाहों के झुंड की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने उन्हें बचा लिया। हालांकि उसr दिन उनका झुंड उनसे दूर चला गया लेकिन उन्होंने बाबर को एक निश्चित मौत से जरूर बचा लिया। अगले दिन दिल्ली के एक अस्पताल में आंखें खुलने के बाद पश्मीना चरवाहों की आजीविका और जीवन को और बेहतर करने का उनका संकल्प और भी अधिक दृढ़ हो गया।
मनुष्य की जानकारी में सबसे बेहतरीन फैब्रिक
अपने स्टार्टअप, कश्मीरइंक (KashmirInk) को प्रारंभ करने के विचार में अफजल बाबर बताते हैं, ‘‘यह एक ऐसी यात्रा का नतीजा है जो कई अलग-अलग धागों से गुंथी हुई है। यह उस समुदाय की यात्रा है जो सदियों से पश्मीना बकरियों की रक्षा करता आया है। एक ऐसा कपड़ा जिसकी शुद्धता पूरी दुनिया में सबसे अधिक मानी जाती है और जिसे विलास माना जाता है। एक ऐसा स्थान जो जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों से गुजरता रहा है। एक ऐसे राज्य जिसे गड़बडि़यों और आतंकवाद के लिये जाना जाता है। यह एक काॅर्पोरेट करियर को छोड़ते हुए पारिस्थितिकी तंत्र की जड़ों की रक्षा के एक मिशन में लगने और पश्मीना नामक पूर्णता को बचाने की मेरी अपनी यात्रा के बारे में है। और इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उस समुदाय कीे अधिक से अधिक सहायता करने का प्रयास है जिसने निःस्वार्थ भाव से मानव को अबतक का सबसे बेहतरीन फैब्रिक दिया है।
‘पश्मीना’ शब्द की उत्पत्ति एक फारसी शब्द ‘पश्म’ से हुई है जिसका अर्थ होता है ऊन। असली पश्मीना ऊन हिमालय के क्षेत्रों में मिलने वाली चंगथंगी बकरियों से प्राप्त होता है। चूंकि ये बकरियां ठंड के मौसम में ही पलती-बढ़ती हैं इस वजह से समय के साथ अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिये इन्होंने सुरक्षात्मक त्वचा और ऊन को विकसित करने में सफलता पाई है।
मेरे मन में यह विचार भारत के पश्मीना उद्योग से जुड़े समुदायों के लिये आर्थिक समाधान खोजने की आवश्यकता के दौरान आया क्योंकि यह मूल रूप से भारत का और शायद सच में एक विलासिता उत्पाद है।’’
एक चरवाहा बनने के लिये सिलिकाॅन वैली की जीवनशैली को त्यागा
एक हैकर के रूप में अपनी पृष्ठभूमि के चलते बाबर सूचना सुरक्षा सलाहकार के रूप में काम करते हुए 18 से 25 हजार अमरीकी डाॅलर प्रतिमाह कमा रहे थे। बाबर बताते हैं, ‘‘अपने उस काम के दौरान बहुत सी मुफ्त की यात्राओं और ठहरने का आनंद ले रहा था। मुझे लगता है कि मैं बहुत भाग्यशाली रहा क्योंकि उस समय तक बहुत अधिक सूचना सुरक्षा सलाहकार नहीं थे और 9/11 जैसी घटनाओं के चलते वैश्विक स्तर पर खतरे की अवधारणा का स्तर बहुत अधिक बढ़ गया था। उस समय क्रियाशील प्रत्येक सूचना सुरक्षा सलाहकार अपने जीवन का सबसे बेहतरीन समय गुजार रहे थे।’’
कश्मीर घाटी के इस मूल निवासी ने संघर्ष के क्षेत्र से दूर रहने और अपने लिये एक बेहतर जिंदगी की तलाश में बहुत पहले ही अपने गृहस्थान को अलविदा की दिया था। और वे अपने इस निर्णय के चलते बेहद सफल भी रहे। बाबर कहते हैं, ‘‘एक एक्टिविस्ट और चरवाहा बनने से पहले मैं भारत, अमरीका, यूके और मिडिल ईस्ट में मैंक्किंसे के साथ तकनीकी विश्लेषक, व्यापार सलाहकार और एक हैकर के रूप में काम कर चुका था। मेरे पास अमरीका के पीएमआई के पीएमपी सर्टिफिकेट सहित 25 से भी अधिक हाई एंड बिजनेस और कंप्यूटर सर्टिफिकेशन हैं।’’
अपने अत्यधिक वेतन और सिलिकाॅन वैली की जीववनशैली के चलते वे उस जीवन का आनंद ले रहे थे जिसे भारत में अभिजात माना जाता है। लेकिन अर्थ के बिना सफलता का कोई मोल नहीं है का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कश्मीर के पश्मीना पारिस्थितिकीतंत्र के संरक्षण के काम के लिये खुद को समर्पित करने के उद्देश्य से सबकुछ छोड़ दिया।
बाबर कहते हैं, ‘‘वर्ष 2009 में इस सफर को प्रारंभ करने के दौरान घाटी की दयनीय हालत को लेकर मेरा रवैया और दृष्टिकोंण अधिक शतुरमुर्गी थी।’’ लेकिन अब जब वे प्रतिदिन वास्तविकता से रूबरू हो रहे हैं तो उनका मानना है कि जम्मू-कश्मीर के लिये आतंकवाद से अधिक बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन का है।
जलवायु परिवर्तन आतंकवाद से भी बद्तर है
वर्ष 2009 में पड़े भयंकर सूखे के चलते चंगथंग की ट्सो कर झील लगभग सूख ही गई थी। इसके बाद वर्ष 2010 में आई भयंकर बाढ़ कहर बनकर टूटी। इसके बाद वर्ष 2012 में पड़े सूखे और बर्फ के चलते चंगथंग में लगभग 25 हजार से भी अधिक बकरियां काल के ग्रास में समा गईं। वर्ष 2014 में आई बाढ़ के चलते कश्मीर करीब-करीब तबाह हो गया और कई दिनों तक राज्य का संपर्क बाकी देश से कटा रहा। ऐसे कई कारण रहे जिनके चलते अपनी आजीविका के लिये पश्मीना से जुड़े समुदाय परोक्ष या अपरोक्ष रूप से दबाव में आते रहे हैं। इनमें राजनीतिक अनिश्चितता, मशीनी करघों से प्रतिस्पर्धा, जलवायु परिवर्तन का हिमालयी क्षेत्रों में प्रभाव, शुद्ध पश्मीना को पीछे छोड़ता नकली पश्मीना का धागा, श्रमिकों के लिये उचित मजदूरी इत्यादि की कमी, चरवाहों की संख्या में कमी, बकरियों की कम होती जनसंख्या, चीन से लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा, इत्यादि जैसे कई कारक शामिल हैं।
कश्मीर, कैश्मीयर और पश्मीना
पश्मीना के साथ भारत का वास्ता सदियों पुरानी एक ऐसी कहानी है जिसे दोहराना बाबर को बेहद पसंद है। वे बताते हैं, ‘‘14वीं शताब्दी के अंत में मशहूर कवि और विद्वान मीर सैयद अली हमादानी ने सबसे पहले हिमालयी बकरी की ऊन से कश्मीर को रूबरू करवाया जहां से शब्द ‘कैश्मीयर’ की उत्पत्ति हुई। कश्मीर में बुनाई के उद्योग को स्थापित करने में हमादानी का एक बहुत बड़ा सहयोग रहा है। इसके अलावा कश्मीर के शासक जैन-उल-अबीदीन ने भी एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने बुनकरों को तुर्किस्तान की और अधिक उन्नत तकनीकों से रूबरू करवाया।
एक तरफ जहां पश्मीने का बेहतरीन शाॅल मिलान और पेरिस के बाजारों में 2 लाख डाॅलर से भी अधिक की कीमत रखता है वहीं दूसरी तरफ इन पश्मीना बकरियों को पालने वाले निर्धन चरवाहे और एक अकेले शाॅल को तैयार करने में महीनों लगाने वाले मेहनतकश कारीगर और महिलाएं इस इलाके की चरम जलवायु परिस्थितियों और बेहद गरीबी के माहौल में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इन्हें अपनी कला की सही कीमत का अंदाजा ही नहीं है और सदियों से बिचैलियों द्वारा इनका शोषण किया जा रहा है। जब भी आपदा में ऊपर चर्चा की गई कोई आपदा आती है तो इनके लिये अपने अस्तित्व को बचाए रखना और भी अधिक कठिन हो जाता है।
जब बाबर ने इस क्षेत्र में कदम रख तो उन्होंने पाया कि लद्दाख, बसोहली और कश्मीर की हिमालयी बेल्ट में फैले पश्मीना के पारिस्थितिकीतंत्र से जुड़़े लोग बड़ी तेजी से कम होते जा रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘दुनिया को शानदार पश्मीना ऊन देने वाली दुर्लभ पश्मीना बकरियां 18 हजार फिट से भी अधिक की विषम जलवायु परिस्थितियों और शून्य से 30 डिग्री कम के तापमान में ही पाई जाती हैं और खानाबदोशों और चरवाहों का यह समुदाय इकलौता ऐसा समुदाय है जो इन परिस्थितियों में जीवित रहने के हिसाब से खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से ढालने में सफल रहा है।’’ उन्हें उम्मीद है कि उद्योग को इनकी ओर आर्थिक समझ विकसित करके ये इन्हें इन विषम परिस्थितियों के बावजूद इस अनूठे पेशे में बनाए रखने में मदद करेंगे। बाबर कहते हैं, ‘‘मुझे विश्वास है कि अपने समुदाय और पश्मीना बकरी नाम की इस शानदार और खूबसूरत प्रजाति के प्रति मेरी कुछ जवाबदेही है। मुझे सिर्फ इतना पता है कि जिन लोगों के लिये मैं काम कर रहा हूँ वे अपने दम पर लड़ाई लड़ने में सक्षम नहीं हैं और अगर मैंने अभी कोई कार्रवाई नहीं की तो बहुत देर हो जाएगी।’’
50 हजार चरवाहे, 3 लाख काश्तकार और 2 लाख पश्मीना बकरियां
स्थितियों से निबटने के लिये कश्मीरइंक के तत्वाधान में संचालित हो रहा पश्मीना गोट प्रोजेक्ट तीन सूत्रीय दृष्टिकोंण के साथ काम कर रहा है। बाबर बताते हैं, ‘‘इस परियोजना का मूल विचार पश्मीना पारिस्थितिकीतंत्र में न्याय के लिये लड़ने और 50 हजार चरवाहों, 3 लाख काश्तकारों और महिलाओं और 2 लाख पश्मीना बकरियों के जीवन को सुधारने का है। हमारी प्राथकिता सूची में सबसे पहले पश्मीना बकरियों का संरक्षण आता है। दूसरे इस उद्योग को खत्म कर रहे नकली पश्मीना को लेकर लोगों के बीच जागरुकता फैलाना और तीसरे पश्मीना उद्योग के लिये एक रिटेल फेयर ट्रेड प्लेटफाॅर्म तैयार करना है जो इस पारिस्थितिकीतंत्र से जुड़े चरवाहों, कारीगरों और बुनकरों का प्रतिनिधित्व करे।’’
बिचौलियों को निकाल बाहर करना
बिचौलियों को बीच से हटाते हुए दुनियाभर से शुद्ध पश्मीने की खोज में आने वालों को सीधे इस समुदाय से संपर्क करवाकर इन्होंने वास्तव में प्रारंभ में ही प्रभाव डालने का काम किया है। इस बात पर रजामंदी देते हुए बाबर कहते हैं, ‘‘हम उन्हें सीधे नीलामी में भाग लेने और सबसे अधिक मूल्य चुकाने वालों को अपना माल बेचने में मदद करते हैं। हम पश्मीना की शुद्धता और इसे खरीदते समय अपनाने वाली सावधानियों को लेकर 100 से भी अधिक देशों में वैश्विक जागरुकता पैदा कर रहे हैं जिससे लाखों लोगों का जीवनस्तर सुधारने में मदद मिलेगी। हम इन चरवाहों, खानाबदोशों और कारीगरों को सीधे फैशन जगत से रूबरू करवा रहे हें ताकि इन्हें अपनी मेहनत का उचित फल मिल सके।’’
बाबर कहते हैं कि उनकी जानकारी में विश्व में वे ही इकलौते पश्मीना एक्टिविस्ट हैं और इसी के चलते वे अपने राज्य में काफी लोकप्रिय हो गए हैं। वे कहते हैं, ‘‘यह बिना कहे समझने वाली बात है कि मेरा सबसे अधिक विरोध इस क्षेत्र के पश्मीना व्यापारी कर रहे हैं। मुझे कुछ भी करने से रोकने के लिये इन्होंने अपनी एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रखा है। यह एक ऐसा उद्योग है जिसमें अधिकतर व्यापार नकद में होता है और इसे बड़े नामों द्वारा प्रभावित किया जाता है और ऐसे में मेरे कामों का सबसे बड़ा प्रभाव बिचैलियों पर पड़ रहा है। मैंने कानूनी नोटिसों और मुकद्मों के माध्यम से नकली पश्मीना का काम करने वाले कई व्यापारियों पर नकेल डाली है और अब सभी पक्ष काफी आक्रामक रवैया दिखा रहे हैं।’’
दूसरे खतरे
हालांकि बिचौलिये फैले हुए हैं लेकिन वे शायद ही इस नाज़ुक उद्योग के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं। भारत के हाथ से बने हुए पश्मीने का मुकाबले करने के लिये चीन ने बाजारों में मशीनों और पावरलूम में बुने हुए पश्मीने की बाढ़ ला दी है। अफसोस जताते हुए बाबर कहते हैं, ‘‘हमारा पश्मीना चीन के पश्मीने के मुकाबले बहुत महीन है। साथ ही कश्मीर के शिल्पकौशल का विश्व में कोई मुकाबला नहीं है। सोंज़ी के जटिल काम के साथ एक अत्याधिक जटिल पश्मीना का शाॅल तैयार करने में एक से सात वर्ष तक का समय लगता है। यह शिल्प मशीनों और पावरलूमों से जितनी अधिक प्रतिस्पर्धा करता जा रहा है उतना ही यह दुर्लभ होता जा रहा है। और इसी वजह से इसकी अनुपलब्धता के चलते इसके दाम आसमान पर चले जाते हैं।’’
वे चरवाहों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रौद्योगिकी और तकनीक की शक्ति के प्रयोग के प्रयास कर रहे हैं। बाबर कहते हैं, ‘‘मैंने खानाबदोशों के लिये एक एक एप्लीकेशन आर्कीटेक्च्र तैयार की है जो उन्हें ऊन के तैयार होने पर हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों तक पहुंचने में मदद करेगा। वे मौसम, मूल्य, नीलामी, आपातकालीन चिकित्सा, इत्यादि के मोबाइल अलर्ट पा सकेंगे। इसकी मदद से वे न सिर्फ अपने परिवारों बल्कि वैश्विक खरीददारों के संपर्क में भी रह सकेंगे। मैं इस विचार परियोजना पर काम करने के लिये आईआईटी के कुछ लोगों से वार्ता कर रहा हूं। इसके बाद मेरा इरादा बुनकरों और कारीगरों को एक ऐसा मंच प्रदान करवाना है जो उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से डिजाइन की जानकारी लेने में मदद करेगा और वे ऐसे उत्पाद बनाने में सफल होंगे जो बाजार में अधिक दामों में बिकें।’’
अबतक का सफर
बाबर का अबतक का सफर चुनौतियों से भरा रहा है लेकिन उनके प्रयास अब अपना रंग दिखा रहे हैं। उन्होंने कश्मीरइंक को अपनी निजी बचत से बूटस्ट्रैप किया था लेकिन अब कुछ निवेशक इस स्टार्टअप के विस्तार की योजना में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। बाबर बताते हैं, ‘‘हम कुछ निवेशकों के साथ वार्ताओं के लगभग अंतिम चरण में हैं।’’ इसके अलावा कुछ बहुत ही प्रतिभावान लोग कश्मीरइंक की जल्द ही सामने आने वाली मैनेजमेंट टीम के सदस्य के रूप में भी दिखेंगे। कश्मीरइंक अबतक 1 मिलियम अमरीकी डाॅलर के आॅर्डर पा चुका है। इनके सिग्नेचर पश्मीना शाॅल 2 लाख डाॅलर तक में बिक रहे हैं।
भविष्य की योजनाएं
अपने स्टार्टअप के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर बाबर काफी सकारात्मक और निश्चित दिखते हैं। वे कहते हैं, ‘‘मुझे इस बात का विश्वास है कि दुनिया खुली बाहों के साथ हमारा इस्तकबाल करने को तैयार बैठी है। अबतक किसी ने भी कहीं भी ऐसा प्रयास करने की कोशिश तक नहीं की। पश्मीना हमेशा से ही महाराजों और महारानियों के परिधानों के व्यक्तिगत संग्रहों का एक कीमती हिस्सा रहा है जो एक पीढ़ी से दूसरी तक आता रहा है। हमारा उत्पाद विलासिता, फैशन और विरासत की जड़ है। जल्द ही हम दुनियाभर के बड़े देशों में अपने उत्पाद को पहुंचाने में सफल रहेंगे।’’
उद्यमिता के प्रति उनका दृष्टिकोंण आदर्शवादी विचारों से लबरेज है। लेकिन वे निराशावाद का मखौल उड़ाते हुए अपने जैसे विचारों वाले लोगों को सीधी सलाह देते हैं। ‘‘उद्यमिता समस्याओं को सुलझाने का नाम है और युवाओं को बड़े कदम उठाने होंगे। तो आगे आईये और भाग लीजिये।’’