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एक ऐसी टीचर जिसने छात्रों की बेहतर पढ़ाई के लिए बेच दिये अपने गहने

एक ऐसी टीचर जिसने छात्रों की बेहतर पढ़ाई के लिए बेच दिये अपने गहने

Monday May 08, 2017 , 4 min Read

आपने ये तो सुना होगा, कि एक माँ ने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने गहने बेच दिये, लेकिन आपने शायद ही ऐसी किसी टीचर के बारे में सुना होगा, जिसने अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा देने के लिए अपने आभूषण बेच दिये हों। आईये हम मिलवाते हैं, आपको तमिलनाडु के विल्लुपुरम की एक ऐसी टीचर से जिसके सपने उसकी ज़रूरतों से बड़े हैं। सपना अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा देने का, सपना उनके भविष्य को एक खूबसूरत और शिक्षित आकार देने का...

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अन्नपूर्णा मोहन अपने छात्रों के साथ। फोटो साभार: फेसबुकa12bc34de56fgmedium"/>

तमिलनाडु के विल्लुपुरम का सरकारी स्कूल उस टीचर की कहानी सुनाता है, जिन्होंने छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अपनी सारी कमाई न्योछावर कर दी और अपने आभूषण बेचकर एक सरकारी स्कूल को अनूठे स्कूल में बदल देने का दुनिया भर के शिक्षकों के सामने एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया।

रंगीन मनमोहक फर्नीचर, इंटरैक्टिव स्मार्टबोर्ड और ढेर सारी रोमांचक किताबों के साथ, ये यकीन कर पाना मुश्किल होता है, कि ये तीसरे दर्जे तक का एक सरकारी स्कूल है। किसी भी ग्रामीण कक्षा की सफलताओं को ध्यान में रखते हुए, तमिलनाडु के विल्लुपुरम की टीचर अन्नपूर्णा मोहन ने स्कूल में सुविधाओं की कमी का रोना रोते रहने की बजाय स्कूल के सुधार में सक्रिय रूप से योगदान करने का निर्णय लिया। टीएनएम की एक रिपोर्ट में उन्होंने कहा,

'मैंने अपनी कक्षा में अंग्रेजी सीखने के लिए एक अच्छा माहौल बनाने की कोशिश की। मैंने अपने छात्रों के साथ कक्षा की शुरुआत से लेकर अंत तक अंग्रेज़ी में बातचीत करने की शुरुआत की। शुरुआत में, उनमें से कुछ इसे समझ नहीं पाते थे, लेकिन समय के साथ-साथ उन्होंने जवाब देना शुरू किया।'

अन्नपूर्णा पंचायत संघ प्राथमिक स्कूल (PUPS) में एक इंग्लिश टीचर हैं। स्कूल की बेहतरी और बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखकर अन्नपूर्णा मोहन ने सब से पहले बच्चों के उच्चारण, व्याकरण और भाषा पर ध्यान देना शुरू किया। उनके अनुसार सबसे पहले बच्चों को कुछ भी सीखाने समाझाने के लिए उनके बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। वे कहती हैं,

'तमिलनाडु में शिक्षक इस पद्धति का इस्तेमाल नहीं करते हैं और तोते जैसा रटा कर अंग्रेजी सिखाते हैं, जिस कारण से छात्रों में अंग्रेजी का डर बन जाता है। फोनेटिक आधार के माध्यम से मैंने उन्हें आवाज़ सिखाई, जो उन्हें जटिल अंग्रेजी शब्दों को पढ़ने में मदद करती।'

अन्नपूर्णा फेसबुक पर अपनी कक्षाओं और अंग्रेजी में बोलने वाले बच्चों के वीडियो अपलोड करती रही हैं। छात्रों द्वारा दिखाये गये बेहतर परिणामों के कारण और छात्रों के जीवन में एक ठोस अंतर लाने के प्रति उनकी गहरी रुचि तथा इस अभ्यास से वे काफी चर्चा में आ गई हैं। अपने सकारात्मक परिवर्तन और प्रयास के बारे में बात करते हुए अन्नपूर्णा कहती हैं,

'मैंने खुद ऐसा करने का फैसला किया, क्योंकि मैं किसी पर बोझ नहीं डालना चाहती थी। अपने प्रयास को कुशलतापूर्वक स्वयं करने से इसे और अच्छे से कर पाई। मैं अपने काम को खुद से ही करना चाहती थी, किसी और पर निर्भर होती तो कर भी नहीं पाती और वैसे भी मुझे किसी और पर निर्भर होने की ज़रूरत नहीं थी।'

विद्यालय और शिक्षक विल्लुपुरम जिले में छात्रों के लिए मसीहा बन गए हैं। मीडिया में विकास की बात शुरू होने के साथ ही फंड भी आने लगा है। अन्नपूर्णा बताती हैं,

'सरकारी स्कूलों में शिक्षण का स्तर प्राइवेट स्कूलों जितना अच्छा नहीं है। प्राइवेट स्कूलों में माता-पिता उस शिक्षा के लिए लाखों रुपये का भुगतान करते हैं, जो वास्तव में उनके बच्चों को मुफ्त मिलनी चाहिए। थोड़े से प्रयास से सरकारी स्कूल भी उन परिवारों और अभिवाकों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकते हैं, जो प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं दे सकते।'

Live Mint की एक रिपोर्ट के अनुसार, माध्यमिक विद्यालयों की तुलना में पांच गुना अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। राज्य स्तर पर ये विसंगति और भी अधिक कठोर हो जाती है। इस संबंध में 13.3: 1 अनुपात के साथ सबसे खराब प्रदर्शन बिहार का है, जबकि 1.2: 1 के अनुपात के साथ सबसे संतुलित स्थित में चंडीगढ़ हैं। इस विसंगति का मुख्य कारण 60 से कम छात्र नामांकन वाले छोटे विद्यालयों में तेज वृद्धि है और ये सभी प्राथमिक स्कूल हैं।