हिंदीतर प्रदेश में एक अनूठी साहित्य-साधना
'संकल्प' एक ऐसी हिन्दी संस्था है, जो हिंदी प्रदेश में न होते हुए भी हिंदी की बात करती है...
ओडिशा के हिंदीतर भाषी राज्य होने के बावजूद ‘संकल्प' ने पूरे देश की अदबी गंगा-जमुनी तहजीब को रचनात्मक सरोकारों से पूरी आत्मीयता के साथ आबद्ध कर लिया है। 'संकल्प' की नींव के सबसे अनमोल पत्थर हैं प्रसिद्ध गजलकार एवं संस्था के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति और जाने-माने नवगीतकार डॉ.मधुसूदन साहा।
'संकल्प' की स्थापना पचास साल पहले राउरकेला के कुछ युवा उत्साही हिंदी सेवियों ने की थी। उनमें से ज्यादातर बाद में शहर छोड़ गए। कोई विदेश में बस गया, कोई कहीं और। कई एक इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन संकल्प-यात्रा थमी नहीं।
सृजन-सरोकारों के अंधेरे वक्त में कृतसंकल्प होने का संदेश देती है ओडिशा राज्य के शहर राउरकेला की साहित्यिक संस्था ‘संकल्प', जिसने हाल ही में अपनी स्थापना का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया है। संक्षेप में जानें तो देशभर के कवि-साहित्यकारों के लिए ‘संकल्प' ने वह कर दिखाया है, जो एक जमाने में साहित्यिक गतिविधियों के केंद्र बनारस में हुआ करता था, जहां का उद्यमी वर्ग दिल खोलकर कला-साहित्य-संस्कृति के लिए बारहो मास तत्पर रहता था। ओडिशा के हिंदीतर भाषी राज्य होने के बावजूद ‘संकल्प' ने पूरे देश की अदबी गंगा-जमुनी साहित्यिक तहजीब को यहां के रचनात्मक सरोकारों से पूरी आत्मीयता के साथ आबद्ध कर लिया है। विस्तार से ‘संकल्प' की गतिविधियों की तह में जाना इसलिए भी आवश्यक लगता है, कि इससे प्रेरणा लेकर ऐसी गैरसरकारी कोशिशें देश के अन्य राज्यों में भी साहित्य की संवाहक बनें। बेहतर तो होगा कि ज्ञात-अज्ञात ऐसी संस्थाओं का एक साझा केंद्रीय मंच बने, जिसके नेतृत्व में नई पीढ़ी के रचनाकारों को किसी सरकारी खैरातों का मोहताज न होना पड़े।
ये भी पढ़ें,
सोन हँसी हँसते हैं लोग, हँस-हँसकर डसते हैं लोग
एक संकलन के लोकार्पण में डॉ. नामवर सिंह शामिल हुए। उनसे प्रोत्साहन मिला। आगे बढ़ने की संभावना जगी। इसी क्रम में संस्था से जुड़े सदस्यों के परिजनों को पुरस्कारी आशु कविता लेखन के बहाने एक-दूसरे के निकट लाने का उपक्रम हुआ। साझा परिवार ने बड़ा आकार लिया। उड़िया और अन्य भाषाओं के रचनाकार, साहित्य सुधी संस्था से जुड़ते चले गए।
'संकल्प सौरभ' की एक टिप्पणी में जाने-माने नवगीतकार डॉ.मधुसूदन साहा लिखते हैं - 'बड़े स्वप्न को साकार करने के लिए बड़ी साधना की जरूरत होती है। किसी भी स्वयंसेवी हिंदी संस्था का हिंदीतर प्रदेश में स्वर्ण जयंती वर्ष मनाना गौरव की बात है। जब हाथ से हाथ और दिल से दिल मिलते हैं, बड़ी से बड़ी कठिनाई खुद-ब-खुद आसान हो जाती है।' 'संकल्प' की नींव के सबसे अनमोल पत्थर हैं प्रसिद्ध गजलकार एवं संस्था के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार प्रजापति। एक अभिन्न परिवार की तरह संस्था की नींव मजबूत करने में संरक्षक कवि डॉ. श्यामलाल सिंघल, श्याम सुंदर सोमानी, डॉ.संतोष कुमार श्रीवास्तव की आधार-भूमिका रही है। उल्लेखनीय होगा कि पूरे संकल्प-परिवार के प्राथमिक सरोकार साहित्यिक हैं। परिवार के सभी सदस्यों में अदभुत भाईचारा है।
'संकल्प' की स्थापना पचास साल पहले राउरकेला के कुछ युवा उत्साही हिंदी सेवियों ने की थी। उनमें से ज्यादातर बाद में शहर छोड़ गए। कोई विदेश में बस गया, कोई कहीं और। कई एक इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन संकल्प-यात्रा थमी नहीं। संकल्प से पहले नगर में मानस परिषद और हिंदी परिषद, दो संस्थाएं सक्रिय थीं। उस दौरान 'संकल्प' नामक पत्रिका प्रकाशित होने लगी, जो आर्थिक संकट से बीच रास्ते थम गई। फिर संस्थान ने रचनाओं के संकलन-प्रकाशन का काम हाथ में लिया।
ये भी पढ़ें,
ऐसे थे निरालाजी, जितने फटेहाल, उतने दानवीर
एक संकलन के लोकार्पण में डॉ. नामवर सिंह शामिल हुए। उनसे प्रोत्साहन मिला। आगे बढ़ने की संभावना जगी। इसी क्रम में संस्था से जुड़े सदस्यों के परिजनों को पुरस्कारी आशु कविता लेखन के बहाने एक-दूसरे के निकट लाने का उपक्रम हुआ। साझा परिवार ने बड़ा आकार लिया। उड़िया और अन्य भाषाओं के रचनाकार, साहित्य सुधी संस्था से जुड़ते चले गए। संस्था के कार्यक्रमों में कैलाश गौतम, गोपालदास नीरज, जानकी बल्लभ शास्त्री, डॉ. शांति सुमन, उद्भ्रांत जैसे कवि-कवयित्रियों की उपस्थिति ने उत्साह जगाया। संप्रति राउरकेला के प्रायः सभी साहित्य प्रेमी 'संकल्प' परिवार में शामिल हैं। नगर के होटल शुभम में संकल्प का अपना भव्य सभागार है, डॉ.मधुसूदन साहा के नाम पर बड़ी सी लायब्रेरी और कांफ्रेंस रूम है। देश के कोने-कोने से हिंदी प्रेमी और कवि-साहित्यकार यहां पहुंचते हैं।