हैंडमेड प्रोडक्ट्स बेचने के साथ-साथ कलाकारों को मंच भी दे रहा ये स्टार्टअप
गुवाहटी के युवा दंपति ने मिलकर शुरू किया एक अनोखा स्टार्टअप...
गुवाहाटी (असम) के रहने वाले ऋषिराज सरमाह और उनकी पत्नी पबित्र लामा सरमाह ने फरवरी 2017 से माटी सेंटर की शुरूआत की। हालांकि, यह दंपती 2009 से अलग-अलग जगहों के हैंडमेड प्रोडक्ट्स (हस्तशिल्प उत्पाद) बेच रही है। योर स्टोरी से अपनी यात्रा साझा करते हुए ऋषिराज ने माटी सेंटर से जुड़े कई रोचक पहलुओं के बारे में बताया।
असम के इस युवा दंपति ने 2009 में गुवाहाटी के जीएस रोड पर एक छोटा सा स्टोर शुरू किया था, जो सिर्फ़ 50 स्कवेयर फ़ीट के एरिया में बना था। इसके बाद भी वो रुके नहीं। ऋषिराज और उनकी पत्नी पबित्रा दोनों एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बनाना चाहते थे, जो आर्ट और कल्चर को प्रमोट कर सके और उन्होंने वो कर दिखाया।
क्या आप 'माटी सेंटर' के बारे में जानते हैं? दरअसल, यह एक सोशल एंटरप्राइज़ है, जहां पर कलाकार-शिल्पकार और गैर-लाभकारी संगठन (नॉन-प्रॉफ़िट ऑर्गनाइज़ेशन) न सिर्फ़ अपने उत्पाद बेच सकते हैं, बल्कि वे अपने उत्पाद और अपनी कला से जुड़ीं रोचक कहानियां और विचार भी लोगों से साझा कर सकते हैं। गुवाहाटी (असम) के रहने वाले ऋषिराज सरमाह और उनकी पत्नी पबित्र लामा सरमाह ने फरवरी 2017 से माटी सेंटर की शुरूआत की। हालांकि, यह दंपती 2009 से अलग-अलग जगहों के हैंडमेड प्रोडक्ट्स (हस्तशिल्प उत्पाद) बेच रही है।
योर स्टोरी से अपनी यात्रा साझा करते हुए ऋषि राज ने माटी सेंटर से जुड़े कई रोचक पहलुओं के बारे में बताया। आइए जानते हैं, माटी सेंटर की कहानी, ऋषिराज की ज़ुबानीः
योरस्टोरी: माटी सेंटर का आइडिया आपके ज़ेहन में कैसे आया?
ऋषि राज: हमारी यात्रा की शुरूआत 9 साल पहले हुई, जब मैं और मेरी पत्नी, अक्सर घूमने निकल जाया करते थे। हम दोनों को ही गांव-गांव घूमना बेहद पसंद था। इस क्रम में ही हमने कई गैर-सरकारी संगठनों से संपर्क बनाया और हैंडमेड प्रोडक्ट्स बेचने वालों से भी पहचान बनाई। छोटी-छोटी जगहों के बेहद प्रभावी शिल्प को जानने के बाद, हमारे मन में न सिर्फ़ उनके उत्पादों को बल्कि उनके पीछे की कहानी को भी लोगों तक पहुंचाने का ख़्याल आया।
हम अक्सर अलग-अलग जगहों से हैंडमेड प्रोडक्ट्स ख़रीद कर लाते थे, जो हमारे घर में आने वाले मेहमानों को काफ़ी आकर्षित करते थे। धीरे-धीरे पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने हमसे हैंडमेड प्रोडक्ट्स मंगवाने शुरू कर दिए और धीरे-धीरे हमारी पहचान के लोगों ने ही हमसे प्रोडक्ट्स ख़रीदने शुरू कर दिए।
संभावनाओं को देखते हुए हमने 2009 गुवाहाटी के जीएस रोड पर एक छोटा सा स्टोर शुरू किया, जो सिर्फ़ 50 स्कवेयर फ़ीट के एरिया में बना था। इसके बाद भी हम रुके नहीं। मेरा और मेरी पत्नी दोनों ही एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बनाना चाहते थे, जो आर्ट और कल्चर को प्रमोट कर सके। साथ ही, स्थानीय कलाकार अपनी कला से अच्छी कमाई भी कर सकें। इस क्रम में हमने 2014 में कुछ स्वतंत्र कलाकारों और ऑन्त्रप्रन्योर्स से बातचीत की, जिसके बाद 2017 के फरवरी महीने में माटी सेंटर की शुरूआत हुई। माटी सेंटर की प्लानिंग की एक सोशल एंटरप्राइज़ बनाने के तहत हुई थी, जहां पर कलाकार न सिर्फ़ अपने उत्पाद बेच सकें, बल्कि अपनी कला से जुड़ी कहानियां भी लोगों से साझा कर सकें। गैर-सरकारी संगठनों समेत हमने 70 संगठनों से करार किया और साथ ही, हमने पूरे भारत के युवा कलाकारों, डिज़ाइनरों और ऑन्त्रप्रन्योर्स को भी अपने साथ जोड़ा।
योरस्टोरी: कौन से कारक हैं, जो माटी सेंटर को ख़ास बनाते हैं?
ऋषिराज: हम मानते हैं कि शहर की जनता और ख़ासकर युवाओं को कहानियों के माध्यम से देश की प्राचीन कला और शिल्प के प्रति आकर्षित किया जा सकता है। हम देशभर से कलाकारों को आमंत्रित करते हैं और उन्हें अपने काम की जानकारी साझा करने का मंच मुहैया कराते हैं। माटी सेंटर या तो अपने फ़ंड से या फिर क्राउड फ़ंडिंग से इन कार्यक्रमों का आयोजन कराता है।
योरस्टोरी: अभी तक आपका ग्रोथ रेट कितना रहा है?
ऋषिराज: 2009 में हमने सिर्फ़ 30 हज़ार रुपए के निवेश के साथ शुरूआत की थी। 2017 में हमारा टर्नओवर 36 लाख रुपए तक पहुंचा। फ़िलहाल हमारे पास 7 कर्मचारियों की टीम है।
योरस्टोरी: भविष्य के लिए आपने क्या सोचा है?
ऋषिराज: हमने पिछले साल ही ग्रामीण समुदायों से जुड़ने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया है और उम्मीद है कि यह जल्द ही लाइव हो जाएगा। हमने मजुली में एक तरह का आर्ट मूवमेंट शुरू किया है, जहां पर हमने दो गांवों को गोद भी लिया है। हम चिताधरचुक में एक आर्ट विलेज भी बनवा रहे हैं, जो आने वाले समय में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। हमारी योजना है कि इलाके में ईको-टॉयलट्स और लाइब्रेरियां भी बनवाएं। बाढ़ के समय में बच्चे अपने स्कूलों तक नहीं जा पाते, इसलिए हमारी योजना है कि उनके लिए स्कूल के पास ही एक हॉस्टल बनवाया जाए, जिसका चार्ज लगभग न के बराबर हो। इतना ही नहीं हम माटी फ़िल्म्स नाम से एक प्रोडक्शन हाउस शुरू करने के बारे में भी सोच रहे हैं, जो आर्ट और कल्चर के ऊपर फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाने में स्वतंत्र फ़िल्मकारों की मदद करे।
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