'अवसर मिले तो हो सकता है हर कोई रचनाकार और कलात्मक रचना से होती है तनाव में कमी'
‘यह चौंकाने वाला भी था और नहीं भी क्योंकि आर्ट थेरैपी का यह एक अहम विचार है - हर कोई रचनात्मक होता है और अगर उन्हें अनुकूल माहौल में काम करने का अवसर मिले तो वह दृश्य कला (विज्वल आर्ट) में प्रभावी हो सकता है।’’
एक अनुसंधान के मुताबिक, कलात्मक रचना करने से किसी व्यक्ति के शरीर में तनाव पैदा करने वाले हॉर्मोन में उल्लेखनीय कमी आती है, भले ही कलात्मक रचना में आपकी दक्षता स्तर कुछ भी हो।
उल्लेखनीय है कि अनुसंधानकर्ताओं में एक भारतवंशी भी शामिल है। अध्ययन में यह पता चला कि हर किसी को इससे समान लाभ मिला और कलात्मक रचना की गतिविधि के दौरान किसी व्यक्ति का पिछला अनुभव तनाव कम करने वाले प्रभावों को बढ़ा सकता है।
ब्रिटेन में ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी से गिरिजा कैमल ने कहा, ‘‘यह चौंकाने वाला भी था और नहीं भी क्योंकि आर्ट थेरैपी का यह एक अहम विचार है - हर कोई रचनात्मक होता है और अगर उन्हें अनुकूल माहौल में काम करने का अवसर मिले तो वह दृश्य कला (विज्वल आर्ट) में प्रभावी हो सकता है।’’ गिरिजा ने कहा, ‘‘मैंने अनुमान लगाया कि यह प्रभाव पहले से अनुभवी व्यक्तियों के लिए और प्रभावी होगा।’’
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि ‘‘बायोमेकर्स’’ जैव सूचक :हॉर्मोन के जैसे: हैं जिसे शरीर में तनाव जैसी स्थिति मापने में इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्टीसोल इसी तरह का एक हॉर्मोन है जिसे अध्ययन के दौरान लार के नमूनों के जरिए मापा गया। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्ति का कोर्टीसोल का स्तर जितना अधिक होता है, उसमें तनाव का स्तर भी उतना ही अधिक होता है।
अध्ययन के तहत 45 मिनट की कला रचना में प्रतिभागी के तौर पर 18 से 59 साल की उम्र वाले 39 वयस्कों को लिया गया था और फिर इससे पहले एवं बाद में उनके कोर्टीसोल का स्तर मापा गया था। इस दौरान एक आर्ट थेरेपिस्ट वहां मौजूद था।
अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि 45 मिनट की कला रचना के दौरान 75 प्रतिशत प्रतिभागियों का कोर्टीसोल स्तर नीचे चला गया। यह अनुसंधान आर्ट थेरेपी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। (पीटीआई)