जब मां दुर्गा अपने साथ थोड़ी और चपातियां लेकर आती हैं...
दुर्गा उत्सव में जहां आप अपने घरों में पूजा की तैयारियों में व्यस्त रहते हैं। साफ-सफाई और दुर्गा प्रतिमा की स्थापना को लेकर उल्लास से भरे रहते हैं वहीं कुछ लोगों के लिए यह दुर्गा उत्सव कुछ दिन थोड़ी ज्यादा चपातियां खाने का अवसर होता है जिसके लिए वह महीनों इंतजार करते हैं।
दुर्गा पूजा के अवसर पर मां दूर्गा की मूर्तियां बनाने वाले मूर्तिकारों को मूर्तियां बेचकर कुछ पैसा मिलता है और यही वे गिने चुने दिन होते हैं जब वे थोड़ा पेट भरकर रोटियां खा पाते हैं ।
दिल्ली और आसपास की महानगरीय संस्कृति में आपने शायद कभी गौर किया हो कि सड़क किनारे झुग्गियों में रहने वाले कुछ लोग या यूं कहें मूर्तिकार कई तरह की देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाकर रखे रहते हैं और इक्का-दुक्का ग्राहक ही उनके पास नजर आते हैं लेकिन दुर्गा उत्सव का समय उनके लिए काफी अच्छा होता है।
यह वह समय होता है जब लोग ढेर अपने घरों में प्रतिमा की स्थापना के लिए उनके पास मूर्तियां खरीदने जाते हैं।
नगर के महाराणा प्रताप चौक के पास ही ऐसी ही एक मूर्तिकार दरिहा का कहना है, ‘‘कम से कम इन दिनों हमारे पास काम होता है और खाने के लिए रोटियां भीं। जब यह त्यौहारी मौसम चला जाएगा तो हमारी कुछ मूर्तियां ही बिकेंगी। उसके बाद मुश्किल से ही कोई ग्राहक आए। बाकी समय हम लोग कचरा बीनकर ही अपना गुजारा चलाते हैं।’’
दरिहा ने बताया कि उसके परिवार का नाम यहां पर सुखराली निवासी के तौर पर पंजीकृत है लेकिन उसके बावजूद उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए बाध्य होना पड़ता है और इससे उनके सामान की बहुत टूट-फूट होती है। एक अन्य मूर्तिकार मोहन लाल सोलंकी बताते हैं कि पहले पुलिस वाले अक्सर उनसे उनकी झुग्गी को हटाने के लिए कहते थे लेकिन अब वह थोड़ा कम तंग करते हैं।
इनके अलावा चंदा भी अपनी कुछ ऐसी ही दास्तां बताती हैं कि कैसे यह त्यौहार का समय उनके लिए चार पैसे कमाने का वक्त होता है।
दरिहा रोटियां बनाने के लिए आटा गूंथ रही होती हैं उसी समय उत्तर प्रदेश के रायबरेली से संबंध रखने वाली पूजा सिंह ऑटोरिक्शा से उतरती हैं और दरिहा से प्रतिमा लेती हैं।
पूजा जहां इस बात को लेकर आनंदित हैं कि वह अपनी सोसायटी में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना कर रही हैं वहीं दरिहा के लिए खुशी का मतलब है कि छह महीनों की मेहनत के बाद दुर्गा की प्रतिमा से उन्हें 1400 रूपये मिलेंगे।
इसी तरह की कई कहानियां आपको इन सड़क किनारे के मूर्तिकारों के पास मिलेंगी । तो अगली बार हो सके तो उनसे प्रतिमा लेने के साथ ही उनकी कहानी भी जानें क्योंकि उनके लिए यही वह समय है जब मां दुर्गा उनके लिए थोड़ी और चपातियां साथ लेकर आती हैं।