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कैसे 3 छात्र बिना निवेश किए कमा रहे हैं लाखों, ‘द टेस्टमेंट’,कहानी उतार-चढ़ाव और सफलता की

ये तब और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया था, जब टीयर2 कॉलेज के छात्रों ने इस काम को शुरू किया था। इतना ही नहीं चीजें तब और ज्यादा बिगड़ी जब काम शुरू करने के बाद पहले निवेशक ने इनका साथ छोड़ दिया। जिसने इनके उद्यम में निवेश का वादा किया था। आईपी विश्वविद्यालय के तीन पूर्व छात्रों ने जब ‘द टेस्टमेंट’ की शुरूआत की तब कॉलेज का मैनेजमेंट अपने वादे से मुकर गया और उसने शुरूआती निवेश से अपने हाथ खींच लिये। ‘द टेस्टमेंट’ की शुरूआत अप्रैल, 2012 में हुई।

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‘द टेस्टमेंट’ को विश्वविद्यालय की पत्रिका के तौर पर शुरू किया गया था। ‘द टेस्टमेंट’ के सह-संस्थापक निशांत मित्तल का कहना है कि “हमारा लक्ष्य आईपी विश्वविद्यालय को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करना था क्योंकि हम अपने अंदर टीयर2 शहर के संस्थान से पढ़ने की हीन भावना को दूर करना चाहते थे।” शुरूआत में ‘द टेस्टमेंट’ टीम के लिए सबकुछ ठीक ठाक था। जुलाई, 2012 में कॉलेज मैनेजमेंट की ओर से निवेश का आश्वासन भी मिला। इतना ही नहीं राष्ट्रीय अखबारों में इनके काम की चर्चा भी होने लगी। लेकिन तब इनको बड़ा झटका लगा जब कॉलेज ने इनका साथ छोड़ दिया। निशांत का कहना है,

“तब हम अपने काम को रोक भी सकते थे या हम दूसरा कोई काम कर सकते थे, लेकिन हमने इसे जारी रखने का फैसला लिया और आगे बढ़ते गये।” 

‘द टेस्टमेंट’ में निशांत के अलावा अवनीश खन्ना और कुमार संभव दूसरे सह-संस्थापक हैं। इन तीनों ने आईपी विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है।

विश्वविद्यालय की पत्रिका से शुरू हुआ ‘द टेस्टमेंट’ के सफर ने ट्रेनिंग और डेवलपमेंट कंपनी के अलावा मीडिया और मार्केटिंग में मौके तलाशे। निशांत के मुताबिक “आर्थिक रूप से ये ज्यादा फायदेमंद नहीं था लेकिन इस यात्रा के दौरान हमने 12 महिनों के दौरान देशभर के 10 लाख छात्रों का एक नेटवर्क तैयार किया।” ‘द टेस्टमेंट’ कंपनियों को आंशिक तौर पर मैनपावर सप्लाई करने का काम करता है। ‘द टेस्टमेंट’ में आज दैनिक आधार पर 10 शहरों से 60 लोग काम करते हैं। कंपनी का दावा है कि पिछले वित्तीय वर्ष में कंपनी ने चार सौ प्रतिशत तक बढ़ोतरी की है। निशांत के मुताबिक, 

“पिछले वित्तीय वर्ष में हमने 30 लाख रुपये का राजस्व हासिल किया और अब उम्मीद है कि चालू वित्तीय वर्ष के दौरान ये 1.2 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।” 

स्टॉर्टअप का दावा है कि उसको मिलने वाले हर प्रोजेक्ट में 20 प्रतिशत तक का अच्छा मार्जिन मिल जाता है।

फिलहाल ये अपनी सेवाएं फोर्ड, जनरल मोटर्स, मारूति सुजुकी, यूबीएम के अलावा सफल स्टार्टअप जैसे उबेर, क्विकर, अर्बनक्लेप, त्रिपदा, स्वजल आदि कंपनियों को दे रहे हैं। निशांत का कहना है कि “हम इन कंपनियों के लिए बाजार में अधिग्रहण और प्रशिक्षण के काम में मदद करते हैं।” ‘द टेस्टमेंट’ की योजना साल 2016-17 के अंत तक अपने राजस्व को 5 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की है। साल 2015 में ‘द टेस्टमेंट’ के 10 शहरों में 20 ग्राहक हैं और इनके लिए कंपनी 5सौ से ज्यादा लोगों की मदद ले रही है। ‘द टेस्टमेंट’ की नजर अब इन हाउस ऑटोमेट वर्कफोर्स के साथ प्रबंधन और प्रशिक्षण प्रकियाओं का विकास करना चहता है। कंपनी अब 20 और लोगों को अपने यहां रखने का मन बना रही है जो इस साल मुंबई और बेंगलुरू में काम करना शुरू कर देंगे। फिलहाल 90 प्रतिशत लोग पार्ट टाइम के तौर पर बाजार की मांग पूरी कर रहे हैं और ये सब असंगठित हैं या किसी एजेंसी के जरिये काम करते हैं। हालांकि ये एजेंसियां स्टार्टअप और विभिन्न ब्रांड के लिए नये जमाने की प्रौद्योगिकी की जरूरतों को समझने में काबिल नहीं हैं। ऐसे में ‘द टेस्टमेंट’ का मुकाबला ऐसी ही एजेंसियों के साथ है।

‘द टेस्टमेंट’ ने कभी भी बाहर से निवेश नहीं उठाया है। निशांत का कहना है, 

“शीर्ष पायदान वाले संस्थानों के संस्थापकों के लिए निवेशक जुटाना आसान होता है लेकिन हमारे संस्थान को ज्यादा लोग नहीं जानते इसलिए यहां पर बाहर से पूंजी जुटाना संभव नहीं था।” 

आज ज्यादातर स्टार्टअप वेंचर कैपिटल के जरिये निवेश हासिल कर रहे हैं और उद्यमियों का विश्वास है कि बाहरी निवेश के जरिये अपना अस्तित्व बनाये रखना मुश्किल होता है। बावजूद साल 1997-2007 तक 900 तेजी से बढ़ती कंपनियों में से 756 ऐसी कंपनियां थी जिन्होने निवेश हासिल करने की कोशिश नहीं की।

निशांत के मुताबिक “बड़ा कारोबार खड़ा करने के लिए आपको ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती, जरूरत होती है कि आपके पास ना सिर्फ अच्छा बिजनेस मॉडल हो बल्कि आपका मिशन भी सही हो।” इतना ही नहीं कारोबार में टिके रहने के लिए उनका कहना है कि “अपने चारों ओर देखिये हर जगह कीमतों को लेकर जंग छिड़ी हुई है ऐसे में आपको दूसरों के मुकाबले सस्ती सेवाएं देने का दबाव होता है वर्ना आप फेल भी हो सकते हैं।”


लेखक-जय वर्द्धन

अनुवादक-हरीश बिष्ट