कब तक आता रहेगा किसान दिल्ली की पद यात्रा पर?
अगर किसान मांग कर रहे कि उनकी सुनी जाए, उनको उनका हक मिले, तब आप कुछ बोलने से भी तैयार नहीं हो। ये लड़ाई, वर्ग और वर्ण की है। ये संसाधनों की है। ये जारी रहेगी।
newindianexpressa12bc34de56fgmedium"/>
पी. साईनाथ का कहना है कि आप किसानों के लिए नहीं बीमा कंपनियो के लिए काम कर रहे हैं। आप किसानों के मरने के इंतजाम में लगे हैं। आप उनको कुछ भी देने को राजी नहीं हैं और आप बोलते हैं कि मैं तो गरीब का बेटा हूँ।
एक दिन उनका निशान मिट जाना है। जिनको धरती पुत्र कहा गया। उनके लिए कहीं कुछ न बचा है। जिनका दावा था कि हम आए तो देश बदल जाएगा। वे जाति, धर्म, गोत्र, मंदिर, और ऐसे ही बकवास विषयों पर बहस चला रहे हैं। अब जब देश के किसान दिल्ली आ गए, तो कुछ भी नहीं बोल रहे। सरकार कुछ बोलने को राजी नहीं, तो फिर कौन बोलेंगा? जो देश-भक्ति के नगाड़े पीट रहे थे, वे अब खामोश हैं। सच सामने आता है तो ये झूठ का बाजार बनाते हैं। चिल्ला-चिल्लाकर अपने को महान बतानेवाले, सत्य ही बोल लेते तो देश का कुछ भला हो जाता। जब मंगल पर जीवन खोजने की कोशिश चल रही है। आदमी सीमाओं को तोड़ कर आगे की ओर जा रहा है। तब ये देश को इस तरह की बहस में डाल रहे हैं, जिसका न आरंभ है न अंत। राष्ट्र के नाम की बात करना, मतलब मलाई चाहिए। जो की पुरानी आदत है। आप किसानों के लिए ही कुछ कर देते। 29-30 नवम्बर कब और कितनी बार आएगा?
ये देश को जिस तरह की मानसिकता में डाल कर उसका लाभ लेना चाहते है, वो लोगों को दिखता है तो लोग फायदे में रहेंगे, नहीं तो फिर यही रोना है। गरीबों की बात कितनी करते हैं। और क्या भाषा और क्या निष्ठा? पहले की बात तो होती रही है, हम पिछले चार सालों की ही बात करें तो कितना कुछ किया गया। कितना विकास किया, और अब विकास कितना बड़ा हो गया है। अब वो बिंदास बोल रहा है। अब वो अपनी रणनीति पर भी आ गया है।
जो किसान दिल्ली की यात्रा नहीं सफर कर रहे है, उनके साथ में कितने पत्रकार कितने कलाकार, साहित्यकार, बोल रहे हैं? और जो बोल रहे उनको बाहर किया जा रहा है। जो चुप हैं वो मजे में हैं। असल बात ये है, कि आप जो वादे कर आए थे, उन्हें पूरा करें। अगर किसान मांग कर रहे हैं कि उनकी सुनी जाए, तो उनको उनका हक मिले, लेकिन आप कुछ बोलने को भी तैयार नहीं हैं। ये लड़ाई, वर्ग और वर्ण की है, ये लड़ाई संसाधनों की है, ये जारी रहेगी। पी. साईनाथ का कहना है कि आप किसानों के लिए नहीं बीमा कंपनियो के लिए काम कर रहे हैं। आप किसानों के मरने के इंतजाम में लगे हैं। आप उनको कुछ भी देने को राजी नहीं हैं और आप बोलते हैं कि मैं तो गरीब का बेटा हूँ। आज किसान दिल्ली में है, मुंबई भी गए थे और उनको लड़ना ही है। पर गोदी मीडिया उनकी बात नहीं कर रहा। वो परेशान है कि हमने मंदिर को लाया था, पर वो नहीं चला। गरीबों की बात करनेवाले आज कहाँ है? टीवी पर बोलनेवाले नया मुद्दा निकालने में लगे हैं। वे नहीं चाहते कि ये सब बातें भी हों। नौकरी, गरीबी, कुछ नहीं इन सब पर क्या बात करना। राफेल को कितना गलत दिखा कर बाहर किया। सब को बाहर करो। बस एक ही चलाओ। जिनको जनता इतना चाहती है, आज उनका ही विरोध हो रहा है। और वो फिर भी बोलते है, देखो हमने कितना विकास कर लिया। हमने क्या नहीं किया। वो अपनी बात को मनवाते हैं।
वो किसानों की बात नहीं करते हैं। उनके मरने की बात नहीं करते। एक समय था कि इस देश में अज़ान नहीं होती थी, लेकिन आज हो रही है तो जो ये पुण्य का काम कर रहा है, वही मर रहा है। समाज का एक वर्ग इसके साथ है, वो समझता है, वो उसके लिए कर भी रहा है। किसान भी जानता है। वो शहर आता है, तो उसके लिए परेशानी नहीं बनता। आप को पता होना चाहिए, गाँव के आदमी के लिए दिल्ली देखना सपने की तरह होता है। वो अपने लिए और दिल्ली देखने के लिए भी आ जाता है। पर आप ये न समझे कि वो पर्यटक की मानिंद आता है। वो अपने दुख और दर्द के साथ आता है।
ये है कि उसको क्या मिलता है। अभी-भी क्या मिलना है। लेकिन अन्नदाता है। उसकी नियति क्या है। उसको अन्न दाता कहा और सम्मान दिया, लेकिन वो अब खुद भूखा मर रहा है। वो खुद अपने लिए लड़ रहा है। जिन किसानों के पास काम जमीन है उनका तो पहले भी बुरा हाल था और अब और बुरा हाल है। पानी, सूखा, उसका क्या कहना। सब निकालने के बाद भी किसान कुछ नहीं कमाता तो फिर वो ये क्यों करेगा। आज खेती कोई नहीं करना चाहता। सब निकालने के बाद भी उसको कुछ नहीं मिलता है। ये वही किसान है जो कभी विदर्भ में तो कभी गुजरात में और कभी-कभी तेलंगाना में मरते हैं। नेताओं का घर भरता जा रहा है। किसान पद यात्रा पर है। जूते तक उनके पास नहीं है। कभी बैंक, कभी साहूकार, कभी कर्जदार, इन सबके बावजूद फसल की मार और फिर उसकी मौत। उसकी ज़िंदगी की यही कहानी है। साल के चालीस हजार कमाता है वो। उसके पास क्या रहेगा। घर, परिवार, खाना, रहना, तीज त्योहार, सब उसके लिए मुश्किल हो जाते हैं। आज ये सबसे नुकसान का सौदा है, लेकिन वो करता है। वो जीवन की लय के लिए। अपने लिए करता है। वो कुछ न कुछ सोच कर करता है। वो अपनी ज़िंदगी दाव पर लगाता है और बाकी अभी उसको ही दाव पर लगा रहे हैं। अंबानी एक दिन के तीन सौ करोड़ कमाते हैं और किसान क्या कमाता है, खेती? जिसका सही सही दाम भी उसे नहीं मिलता।
असल में खेती एक संस्कृति है और किसान उसका हिस्सा है। वो उसी में है। यही कारण है कि वो एक सामाजिक जीवन का निर्वाह करते हुये, कुछ न कुछ कर ही लेता है। वो कभी नियति के साथ कभी परे कुछ न कुछ कर ही लेता है। विकास के हर दौर में यही कीमत चुकाते हैं। आज का विकास सभी देख रहे हैं। देखना ये है कि सभ्यता के विकास की इस महा सदी में उसके साथ क्या-क्या होता है?
-इस लेख से योरस्टोरी का कोई सरोकार नहीं है, ये लेखक के अपने निजी विचार हैं।
ये भी पढ़ें: किसी का भी दिमाग खराब कर देने वाली एक हकीकत ऐसी भी