1 लाख लगाकर शुरू की थी कंपनी, दो साल में टर्नओवर 12 करोड़ पार
Gohoardings.com की कहानी: शादी के बाद लिया बिजनेस का रिस्क
दिल्ली में रहने वाले दीप्ति अवस्थी और विकास शर्मा आउटडोर एडवर्टाइजिंग स्टार्टअप Gohoardings.com के फाउंडर हैं जिसे दोनों ने शादी के बाद शुरू किया था और सिर्फ दो सालों में ही इसका रेवेन्यू 12 करोड़ के पार हो गया है।
दोनों का सपना था कि कभी खुद का बिजनेस करें। शादी के बाद जहां एक तरफ लोग सेटल्ड हो जाने की सोचते हैं वहीं इस कपल ने शादी के बाद ही रिस्क ले लिया। बिजनेस करने का रिस्क।
दिल्ली में रहने वाले दीप्ति अवस्थी और विकास शर्मा वैसे तो जिंदगी के हमसफर हैं, लेकिन हम आपको उनकी कहानी इसलिए बताने जा रहे हैं क्योंकि वे ऐसे एडवर्टाइजिंग स्टार्टअप के फाउंडर हैं जिसे दोनों ने शादी के बाद शुरू किया था और सिर्फ दो सालों में ही इसका रेवेन्यू 12 करोड़ के पार हो गया है। योरस्टोरी ने गोहोर्डिग्ंस (Gohoardings.com) दीप्ति शर्मा से बात की और उनकी कहानी को विस्तार से जानने और समझने का प्रयास किया।
दीप्ति दिल्ली में पली बढ़ीं। यहीं के कमला नेहरू कॉलेज से उन्होंने ग्रैजुएशन किया। ग्रैजुएशन के वक्त उनके दिमाग में सीए करने का ख्याल आया और उन्होंने सीए में दाखिला ले लिया। लेकिन उनका मन यहां लगा नहीं और उसे बीच में ही छोड़ दिया। 2014 का वक्त था, जब दीप्ति सीए छोड़ चुकी थीं और कुछ नया करने की प्लानिंग कर रही थीं। इसी दौरान उन्हें एक बड़ा इवेंट ऑर्गनाइज करने का मौका मिला, जिसमें बड़ी हस्तियां हिस्सा लेने वाली थीं। दीप्ति ने पार्टनरशिप में इस इवेंट को सफल बनाने की जिम्मेदारी ले ली।
लेकिन दुर्भाग्य से इवेंट के लिए दीप्ति को स्पॉन्सर नहीं मिल सके और टिकट भी ज्यादा नहीं बिकीं। इस वजह से उन्हें इवेंट में 40 लाख रुपयों का नुकसान हो गया। इवेंट में जो पार्टनर था वो भी दीप्ति को अकेला छोड़कर चला गया। अब दीप्ति अकेले पड़ गई थीं। वह कहती हैं, 'मेरे पास उस वक्त दो रास्ते थे। या तो मैं भी भाग जाती या फिर इस मुश्किल का सामना करती। मुझे लगा कि अगर मैं इस हालात को छोड़ कहीं भागने की कोशिश करूंगी तो शायद हमेशा भागती ही रहूंगी।'
लेकिन अच्छी बात यह रही कि हमेशा की तरह दीप्ति का परिवार उनके साथ रहा। उन्होंने अपने पिता से इस पर चर्चा की। दीप्ति बताती हैं कि पापा ने उसी दिन घर बेचने की योजना बनाई और काफी कम पैसों में ही घर बेच दिया ताकि इवेंट में हुए नुकसान की भरपाई हो सके। एक मुश्किल से तो दीप्ति के पापा ने उन्हें बचा लिया था, लेकिन 40 लाख रुपये गंवाने का दर्द दीप्ति के ऊपर बोझ बनता जा रहा था।
उन दिनों को याद करते हुए वह कहती हैं, 'मैं एक तरह से ट्रॉमा में थी। मुझे नहीं समझ आ रहा था कि इतने बड़े बोझ से निकलकर कैसे बाहर आ पाऊंगी। मैंने सीए छोड़ दिया था, अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी ताकि कुछ कर सकूं, लेकिन अब मैं एक नई मुश्किल से घिर चुकी थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था और मैंने अपने आप को एक कमरे में कैद कर लिया था।' दीप्ति बताती हैं कि हर मुश्किल घड़ी में उनके पापा का साथ मिला। वे बताती हैं, 'पापा ने मेरा सपोर्ट किया। उन्होंने मुझे समझाते हुए एक बात कही कि ये जो पैसे गए हैं इन्हें बेकार मत समझना। ये तुम्हें काफी सीख देकर गए हैं इसे तुम अपने एमबीए की फीस समझ लो और आगे बढ़ो।'
इसके बाद दीप्ति के अंदर हिम्मत आई और उन्हें लगा कि अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं है और मुझे दोबारा कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने ठान लिया था कि अब वापस नहीं लौटना है। शायद यही दीप्ति की जिंदगी का टर्निंग पाइंट था। इसके तीन महीने बाद ही उनकी शादी विकास से हो गई। विकास एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे और एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। वैसे तो ये अरेंज मैरिज थी, लेकिन साथ में आकर दोनों को लगा कि उनके सपने एक जैसे ही हैं।
दोनों का सपना था कि कभी खुद का बिजनेस करें। शादी के बाद जहां एक तरफ लोग सेटल्ड हो जाने की सोचते हैं वहीं इस कपल ने शादी के बाद ही रिस्क ले लिया। बिजनेस करने का रिस्क। विकास ने नौकरी छोड़ दी और फ्रीलांसिंग के तौर पर कुछ टेक कंपनियों के लिए काम करने लगे। विकास किसी प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे थे, जहां उन्हें किसी क्लाइंट ने कहा कि उन्हें होर्डिंग्स लगवानी हैं। उस काम के लिए विकास को खुद दौड़ भाग करनी पड़ी। तब उन्हें अहसास हुआ कि यह इंडस्ट्री कितनी असंगठित है जहां एक ही काम को लेकर अलग-अलग पैसे बताए जाते हैं। तभी विकास ने सोचा कि क्यों न खुद की एक कंपनी स्थापित की जाए जहां सिर्फ एक क्लिक में लोगों को होर्डिंग्स लगवाने का काम हो जाए। और इस तरह से उन्होंने अपनी कंपनी गोहोर्डिंग्स डॉट कॉम की स्थापना की।
दीप्ति अपने बिजनेस को समझाते हुए कहती हैं, 'आज से दस साल पहले रियल एस्टेट का बिजनेस असंगठित था और बिचौलियों की संख्या की ज्यादा थीं। इसके बाद वहां कई सारे स्टार्टअप्स आए। जिनकी मदद से काम आसान हुआ। ठीक वही हाल एडवर्टाइजिंग का है। एक ही काम करवाने में पैसों का काफी अंतर होता है। इसी अंतर को खत्म करने का काम हम अपनी कंपनी के माध्यम से कर रहे हैं। हमने बिचौलियों का काम खत्म किया।'
जब दीप्ति और विकास ने अपनी कंपनी शुरू करने की योजना बनाई थी तो दोनों के पास बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे और उन्होंने सिर्फ 50-50 हजार रुपये ही लगाए थे। लेकिन उनका आइडिया इतना सही था कि अपनी मेहनत की बदौलत दोनों ने सिर्फ दो साल में 12 करोड़ का टर्नओवर हासिल कर लिया। दीप्ति बताती हैं कि पहले साल में सिर्फ 2 करोड़ का टर्नओवर था, लेकिन आने वाले साल में उनका टार्गेट 50 करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल करना है।
गोहोर्डिंग्स के पास इस वक्त पूरे भारत में एक लाख 30 हजार साइट्स रजिस्टर्ड हैं। दीप्ति बताती हैं, 'हम तेज और भरोसेमंद सर्विस प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं। अगर आपको पूरे भारत में कहीं भी होर्डिंग लगवानी है तो हम सिर्फ 24 घंटे में यह काम करके दे देते हैं।' अपने बिजनेस की यूएसपी के बारे में बताते हुए वह कहती हैं, 'कमिटमेंट की वैल्यू बहुत इम्पोर्टेंट होती है। अगर हम कोई वादा कर देते हैं तो हर हाल में उसे पूरा करते हैं। किसी चीज में जुबान दे दे है तो फिर उससे पलटते नहीं है चाहे हमारा नुकसान ही क्यों न हो।'
नोएडा स्थित इस स्टार्टअप में फिलहाल 20 लोग काम कर रहे हैं। जिसमें सेल्स, मार्केटिंग और टेक से जुड़े लोग भी हैं। दीप्ति भारतीय स्टार्टअप ओयो को दिल से फॉलो करती हैं। वे कहती हैं कि हम आउटडोर एडवर्टाइजिंग के ओयो बनना चाहते हैं। वे आगे कहती हैं, 'हम ओयो को फोलो करते हैं। दरअसल हम ऐसी भारतीय कंपनी बनाना चाहते हैं, जिसका डंका पूरी दुनिया में बजे।'
आज भले ही इन दोनों युवाओं ने अपना बिजनेस जमा लिया हो, लेकिन वे आज भी अपने बीते दिनों को याद रखते हैं। दीप्ति बताती हैं, 'हमारी फैमिली में दूर दूर तक कोई बिजनेस में नहीं था। लोग यही सोचते थे कि हमें कोई नौकरी करनी है। सेटल्ड होना है। अगर सरकारी नौकरी मिल जाए तो और बढ़िया है। लेकिन हमने बिजनेस शुरू किया और उसमें सफल भी हैं।'
वे आगे कहती हैं, 'लोग शादी इसलिए करते हैं ताकि उन्हें स्थिरता मिल जाए, लेकिन हमने शादी के बाद रिस्क लिया। हम दोनों सपने बहुत देखते हैं। ऐसे ही हमने एक सपना देखा जिसे पूरा करने में लगे हुए हैं। हमने रिस्क लेना इसलिए सही समझा क्योंकि हमें लगता था कि हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं। हमें खुद पर भरोसा था।' हालांकि ये सब इतना आसान नहीं था। दीप्ति और विकास ने पूरी शिद्दत से मेहनत की जिसका फल उन्हें अब मिल रहा है।
ऐसे ही एक वाकये को याद करते हुए वह बताती हैं जब वे प्रेग्नेंट थीं। वे कहती हैं, 'मैंने प्रेग्नेंसी में भी काम किया। जब बेबी की डिलिवरी होने वाली थी तो मैंने डॉक्टरों से रिक्वेस्ट की कि मुझे सामान्य डिलिवरी करवाएं ताकि मैं जल्दी से जल्दी ऑफिस जा सकूं। डॉक्टर हैरान थे लेकिन घरवालों की तरफ से मुझे पूरा सपोर्ट मिला।' बच्चे को जन्म देने के कुछ दिनों बाद ही दीप्ति ने फिर से ऑफिस जाना शुरू कर दिया।
वह कहती हैं, 'ऐसा नहीं है कि मुझे अपने बच्चे से प्यार नहीं है, लेकिन मेरा काम ही मेरा ऑक्सिजन है। मैं कुछ भी सोच लेती हूं तो उसे पूरा कर के ही दम लेती हूं।' दीप्ति की कहानी दरअसल हर एक उद्यमी को यही सीख देती है कि अगर अपने काम को ऑक्सिजन समझ लिया जाए तो कोई भी मंजिल दूर नहीं लगेगी। दीप्ति और विकास का स्टार्टअप नई ऊंचाइयों को छुए और देश का नाम रोशन करे, योरस्टोरी की ऐसी कामना है।
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