डिलिवरी स्टार्टअप शुरू कर रेवती ने हजारों गरीब महिलाओं को दिया रोजगार
गरीब महिलाओं को साथ लेकर शुरू किया स्टार्टअप, एक साल में ही टर्नओवर पहुंचा 1.5 करोड़...
57 साल की रेवती के सामाजिक उद्यम का सफर 2007 में शुरू हुआ था। तब उन्होंने टैक्सी चलाने से अपनी शुरुआत की थी। 2016 में उन्होंने मुंबई में 'दीदी डिलिवरी सर्विस' की शुरुआत की।
इसके साथ ही मुंबई के कई लोकल रेस्टोरेंट के साथ भी दीदी डिलिवरी सर्विस काम कर रही है। रेवती ने सिर्फ एक साल में ही लगभग 1.5 करोड़ का टर्नओवर हासिल कर लिया है।
वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती थीं। उनके दिमाग में डिलिवरी सर्विस शुरू करने का आइडिया आया और वे महिलाओं को ही इसमें शामिल करना चाहती थीं। उन्होंने महिलाओं को बाइक और स्कूटर चलाना सिखाया।
रेवती रॉय सामान की डिलिवरी करने का एक स्टार्टअप चलाती हैं। इस स्टार्टअप से उन महिलाओं को रोजगार मिलता है जिन्हें गुजारे की सख्त जरूरत होती है। वह ऐसी महिलाओं के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। लेकिन उनकी खुद की जिंदगी काफी संघर्षों से भरी रही है। अच्छी खासी जिंदगी से फाइनैंशियल लॉस से गुजरने वाली आज कई गरीब महिलाओं की जिंदगी का सहारा बनी हुई हैं। 57 साल की रेवती के सामाजिक उद्यम का सफर 2007 में शुरू हुआ था। तब उन्होंने टैक्सी चलाने से अपनी शुरुआत की थी। 2016 में उन्होंने मुंबई में 'दीदी डिलिवरी सर्विस' की शुरुआत की।
इस दीदी डिलिवरी सर्विस में वे महिलाएं काम करती हैं जिन्हें नौकरी की सख्त जरूरत होती है और उन्हें कहीं रोजगार नहीं मिलता। अभी इस प्राइवेट लिमिटेड फर्म में लगभग 100 महिलाएं काम कर रही हैं, जिन्हें 10,000 प्रतिमाह की तनख्वाह मिलती है। लगभग 2,823 महिलाएं जाफिरो लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड के साथ 45 दिनों का ट्रेनिंग प्रोग्राम अटेंड कर रही हैं। दीदी डिलिवरी सिस्टम को जॉइन करने वाली महिलाओं को इस ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इस ट्रेनिंग के लिए हर महिला को 1,500 रुपये की फीस देनी पड़ती है, लेकिन प्रोग्राम का वास्तविक खर्च लगभग 12,000 रुपये आता है। बाकी के 10,000 रुपये महाराष्ट्र सरकार वहन करती है।
ट्रेनिंग मुंबई के अलावा बेंगलुरु और नागपुर में भी चल रही है। सिर्फ एक साल पहले शुरू हुए इस स्टार्ट अप के साथ एमेजन, पिज्जा हट और सबवे जैसी कंपनियां जुड़ गई हैं। इसके साथ ही मुंबई के कई लोकल रेस्टोरेंट के साथ भी दीदी डिलिवरी सर्विस काम कर रही है। रेवती ने सिर्फ एक साल में ही लगभग 1.5 करोड़ का टर्नओवर हासिल कर लिया है। अब उनकी योजना अगले साल तक 5 करोड़ का टर्नओवर हासिल करने की है। रेवती का ऑफिस वर्ली में है।
1960 में कर्नाटक में पैदा हुईं रेवती की परवरिश मुंबई में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई। उनकी मां घर का काम संभालती थीं तो वहीं पापा उनके एक बिजनेस मैन थे। वे रबर इंडस्ट्री से जुड़ी खबरों की एक मैग्जीन निकालते थे। रेवती की पढ़ाई कॉन्वेंट स्कूल में हुई। जिसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से इकॉनोमिक्स में ग्रैजुएशन किया। वह कहती हैं, 'मैं अपने माता-पिता की इकलौती की संतान थी इसलिए मुझे खूब लाड़ प्यार मिला। मेरे ऊपर किसी भी तरह की बंदिशें नहीं लगाई गईं। मैं अपनी मन पसंद के स्कूल में पढ़ने और कहीं भी नौकरी करने के लिए स्वतंत्र थी।'
ग्रैजुएशन करने के बाद 1982 में उन्होंने एक साप्ताहित पत्रिका के मार्केटिंग विभाग का काम संभाला इसके बाद वे छह महीने के लिए प्रतिष्ठित इंडिया टुडे ग्रुप के साथ भी जुड़ी रहीं। उन्होंने तीन साल तक टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ भी काम किया। लेकिन फिर 1985 में उनकी शादी हो गई। उनके पति का प्रिंटिंग प्रेस और लेथर का कारोबार था। लेकिन रेवती कॉर्पोरेट वर्ल्ड में ही काम करती रहीं और 2004 में वे एक रियल एस्टेट कंपनी की मार्केटिंग हेड बन गईं। अपने पति और तीन बच्चों के साथ वे खूबसूरत जिंदगी बिता रही थीं, लेकिन 2007 में उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
उनके पति का हार्ट अटैक से देहांत हो गया और उनके ऊपर घर संभालने की जिम्मेदारी आ गई। पति के इलाज में काफी पैसे खर्च हो गए थे। लगभग 3 करोड़ रुपये सिर्फ इलाज में लग गए थे। इसके लिए उन्हें अपनी प्रॉपर्टी भी बेचनी पड़ गई। वह कहती हैं, 'मैंने उन्हें बचाने की हरसंभव कोशिश की। लेकिन कामयाब नहीं हो सकी। मेरा बड़ा बेटा पुणे से पढ़ाई कर रहा था, लेकिन उसकी फीस न भर पाने के कारण उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ गई।' इसके बाद रेवती ने किसी तरह खुद को संभाला और सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। रेवती को ड्राइविंग करना आता था। उन्होंने इसके जरिये कुछ पैसे कमाने के बारे में सोचा।
रेवती ने एक टैक्सी किराए पर ली और उसे मुंबई एयरपोर्ट पर लगा दी। 2007 में ही उन्होंने अखबार में एक विज्ञापन दिया कि वे टैक्सी सर्विस खोलना चाहती हैं और इसके लिए उन्हें महिला ड्राइवरों की आवश्यकता है। उन्होंने महिलाओं को ट्रेनिंग देनी शुरू की और उन्हें बताया कि ड्राइविंग से वे कैसे आत्मनिर्भर बन सकती हैं। रेवती ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर तीन इंडिका कार के साथ इस नए वेंचर की शुरुआत की। इस पहल की काफी सराहना भी हुई और देशभर में मीडिया में उनको कवर किया गया।
कुछ ही सालों में उन्हें जापान की एक कंपनी से फंडिंग मिली और उन्होंने 20 और कारें खरीद लीं। उन्होंने खुद की कंपनी शुरू की थी, लेकिन 2009 में उन्होंने उस कंपनी को छोड़ दिया और 2010 में अपनी खुद की कैब सर्विस खोल ली। इसमें सिर्फ महिलाओं के लिए कैब बुक की जा सकती थी। इस काम में आप नेता प्रीति शर्मा मेनन ने उनका साथ दिया। लेकिन सिर्फ दो साल बाद ही 2012 में उन्होंने यह बिजनेस भी छोड़ दिया। वे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना चाहती थीं। उनके दिमाग में डिलिवरी सर्विस शुरू करने का आइडिया आया और वे महिलाओं को ही इसमें शामिल करना चाहती थीं। उन्होंने महिलाओं को बाइक और स्कूटर चलाना सिखाया।
रेवती बताते हैं, "इस फायदे वाले बिजने की शुरुआत के पीछे वंचित का मकसद महिलाओं को सशक्त बनाना था।" ट्रेनिंग करने वाली महिलाओं में 1,000 से ज्यादा तो गरीबी रेखा के नीचे की पृष्ठभूमि से आती हैं। उन्हें जिंदगी में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई महिलाएं पहले दिन के बाद वापस ट्रेनिंग में नहीं आतीं क्योंकि उनके परिवार वाले उन्हें बाहर जाने की इजाजत नहीं देते।' 'हे दीदी' स्टार्ट अप ग्रॉसरी के सामान से लेकर गिफ्ट, कोरियर और फूड आइटम भी डिलिवर करता है। वह कंपनियों से 25 से 30 प्रतिशत कमीशन भी लेती हैं। अभी उनकी कंपनी मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु और नागपुर में काम कर रही है और जल्द ही यह पुणे और नासिक जैसे अन्य शहरों में भी अपने ब्रांच खोलेगी।
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