157 लोगों की जान बचाने वाले कमांडो रवि धर्निधर्का
26/11 मुंबई आतंकी हमले में 157 लोगों की जान बचाने वाले यूएस मरीन कमांडो रवि धर्निधर्का
हमले के दौरान होटल में फंसीं एक ब्रिटिश पत्रकार कैथी स्कॉट-क्लार्क और आड्रिया लेवी के मुताबिक हमले की खबर सुनते ही कैप्टन रवि ने वहां पर साउथ अफ्रीका के 6 पूर्व कमांडो के साथ आतंकियों का मुकाबला करने की योजना बनाई थी।
आतंकियों के हथियारों के खतरे को देखते हूए उन्होंने बंधकों को सुरक्षित बाहर निकालने का फैसला किया। जलते हुए होटल की 20वीं मंजिल से 157 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना अपने आप में एक बड़ा मिशन था जिसे कैप्टन ने बखूबी अंजाम दिया।
उस वीभत्स आतंकी हमले में तमाम भारतीय और विदेशी नागरिकों की मौत आज भी हमें द्रवित कर देती है। हमें रवि जैसे उन सभी जाबांज लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने तमाम लोगों की जिंदगियां बचाईं।
मुंबई पर 26/11 को हुआ हमला भारत के नवीनतम इतिहास का सबसे बड़ा धब्बा है जब लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने आज से ठीक 9 साल पहले ताज होटल और उसके आस पास की इमारतों पर हमला कर 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस हमले में लगभग 600 लोग घायल भी हुए थे। इस हमले में अपनी जान की बाजी लगाकर आतंकियों को ढेर करने में कुछ जाबांज बहादुर सिपाहियों और पुलिस अधिकारियों का योगदान था। ऐसे ही एक हीरो थे कैप्टन रवि धर्निधर्का जिन्होंने उस हमले के दौरान ताज होटल में फंसे 157 लोगों की जान बचाई थी।
इंडिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कैप्टन रवि धर्नि र्का यूएस मरीन में कैप्टन थे। वे भारत मूल के हैं और उस वक्त लगभग एक दशक बाद अपने चचेरे भाईयों और परिवार के लोगों से मिलने के लिए भारत आए थे। जिस दिन हमला हुआ उस दिन वे ताज होटल की 20वीं मंजिल पर एक रेस्टोरेंट में थे। हमले के दौरान होटल में फंसीं एक ब्रिटिश पत्रकार कैथी स्कॉट-क्लार्क और आड्रिया लेवी के मुताबिक हमले की खबर सुनते ही कैप्टन रवि ने वहां पर साउथ अफ्रीका के 6 पूर्व कमांडो के साथ आतंकियों का मुकाबला करने की योजना बनाई।
ब्रिटिश पत्रकार ने 'ताज होटल में 68 घंटे' नाम से एक किताब लिखी है। इस किताब के मुताबिक पहले रवि कैप्टन खुद हमलावरों से मुकाबला करना चाहते थे लेकिन आतंकियों के हथियारों के खतरे को देखते हूए उन्होंने बंधकों को सुरक्षित बाहर निकालने का फैसला किया। जलते हुए होटल की 20वीं मंजिल से 157 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना अपने आप में एक बड़ा मिशन था जिसे कैप्टन ने बखूबी अंजाम दिया। इस काम में उनकी मदद दक्षिण अफ्रीका के दो पूर्व कमांडो ने भी की। उन्होंने कुर्सी और मेज के सहारे एक सीढ़ी को भी बंद कर दिया ताकि आतंकी कमरे तक न आ सकें।
उन्होंने आतंकियों का मुकाबला करने के लिए किचन के चाकू और दूसरे औजारों, कुर्सियों टेबल वगैरह से उन्होंने पहले आतंकियों का रास्ता रोका और फिर बंधकों को अपने साथ लेकर सुरक्षित किया जब पूरा कमरा उन 157 लोगों से भर गया तो कमरे की लाइटें बंद करर दी गईं और दरवाजे को बंद कर दिया गया। दरवाजे के पीछे जितनी भी चीजें हो सकतीं थीं, लगा दी गईं ताकि उसे आसानी से खोला न जा सके। सभी लोगों से शांति बनाने की अपील की गई ताकि आवाज से आतंकी पहचान न सकें। लेकिन तुरंत दो बड़े धमाकों की आवाज आईं। ये आवाजें आरडीएक्स धमाकों की थीं जिसे आतंकियों ने ताज होटल के हेरिटेज टावर में रखा था।
देर रात लगभग 2 बजे के करीब आतंकियों ने ताज महल के बीच में 6वें फ्लोर पर 10 किलो का आरडीएक्स रख दिया और आग लगा दी। आग की लपटें ऊपर की ओर उठने लगीं। इसके बाद कैप्टन रवि को लगा कि अब आराम से नीचे जाया जा सकता है। साउथ अफ्रीका के कमांडों ने इस बात का पता लगाया कि रास्ता खाली है। कैप्टन रवि ने लोगों को आहिस्ते-आहिस्ते कमरे से बाहर निकालना शुरू किया। सभी से अपील गई थी कि वे एकदम शांत रहें। लेकिन तभी मालूम चला कि कमरे में एक 84 साल की बुजुर्ग महिला भी हैं, जिन्हें सीढ़ी के रास्ते नीचे उतारना आसान नहीं है। कैप्टन रवि ने वेटरों की मदद से उन्हें अपने कंधे पर लादकर नीचे उतारा। उस वीभत्स आतंकी हमले में तमाम भारतीय और विदेशी नागरिकों की मौत आज भी हमें द्रवित कर देती है। हमें रवि जैसे उन सभी जाबांज लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने तमाम लोगों की जिंदगियां बचाईं।
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