साइकिल और वो भी 114किमी प्रति घंटा? वाकई पांच दोस्तों ने इसे सच कर दिखाया...
हाई स्पीड क्रूजर बाइकों के बारे में आपने खूब पढ़ा और सुना होगा। मुमकिन है, हममें से कई लोगों ने इसे देखा और शायद इसकी सवारी का भी लुत्फ उठाया हो। पल भर में हवा से बातें करने का एहसास कराने वाली इस तरह की बाइकें रफ्तार के दीवानों को खूब लुभाती है। हालांकि इसकी भारी-भरकम कीमतों की वजह से ये हर किसी की पहुंच से कोसों दूर हैं। जब कोई बांका नौजवान फर्राटे भरता हुआ हाई स्पीड बाइक से सामने से निकलता है तो, हममें से कई लोग मन मसोस कर रह जाते हैं। लेकिन अगर आपको बेहद मामूली कीमत पर साइकिल में ही बाइक जैसी रफ्तार मिल जाए तो क्या कहेंगे आप? वह भी सिर्फ पैंडल मार कर। बिना किसी इंधन और ऊर्जा की खपत किए। बगैर जेबें ढीली किए एक साथ रफ्तार, रोमांच और फिटनेस का तड़का। एक बारगी यकीन तो नहीं होता कि ऐसी कोई साइकिल हो सकती है। लेकिन ये सोलह आने सच है। भोपाल के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के पांच होनहार छात्रों ने इसे सच कर दिखाया है। छात्रों की बनाई हुई इस साइकिल का अगर मास प्रोडक्शन सफल होता है, तो देश में एक बार फिर साइकिल की सवारी का अंदाज बदल जाएगा। साइकिल एक बार फिर शान की सवारी हो जाएगी। इसे खरीदने की होड़ लग जाएगी। देश और दुनिया में ईंधन के बढ़ते उपभोग और उससे उत्पन्न प्रदूषण के खतरों का हल निकल जाएगा। महानगरों से लेकर कस्बों तक में ट्रैफिक की बढ़ती समस्या से निजात मिल सकेगा।
55 से 60 किमी/ घंटा है सामान्य स्पीड
भोपाल के गांधीनगर इलाके में स्थित सागर इंस्टिटयूट ऑफ साइंस एण्ड टेक्नॉलजी के मैकेनिकल ब्रांच में पांच दोस्त पढ़ते हैं, प्रिंस सिंह, सिराज हुसैन, सैयद मुशब्बिर, सैयद इलाफ और आमिर सिद्दिकी। इनमें से कुछ बीई थर्ड ईयर तो कुछ फाइनल के छात्र है। पांचों छात्रों पर लीक से हटकर कुछ नया करने का जुनून है। पांचों ने मिलकर एक ऐसी साइकिल डिजायन की है, जिसकी टॉप स्पीड 114 किमी प्रति घंटा है। पलभर में हवा से बात करने वाली इस साइकिल को एरोडाइनेमिक डिजाइन पर ढाला गया है। साइकिल में कुल पांच स्पीड गियर है। फर्स्ट गियर पर साइकिल की स्पीड कुछ मिनटों में ही 55 से 60 किमी प्रति घंटे पर पहुंच जाती है। दूसरी गियर पर इसकी स्पीड 60 से 70 और तीसरे गियर पर स्पीड 70 से उपर पहुंच जाती है। चौथे गियर पर जहां इसकी स्पीड 80 से 90 होती है, वहीं पांवचे गियर पर इसकी टॉप स्पीड 114 किमी प्रति घंटा तक मापी गई है। हालांकि इस प्रोजेक्ट को हैंडल करने वाले छात्र सिराज हुसैन कहते हैं,
"साइकिल की आदर्श स्पीड अभी 60 से 70 किमी प्रति घंटा ही रखी गई है। गति सीमा सीमित करने के पीछे उनका तर्क है कि अभी साइकिल में जो टायर लगी है, वह अधिकतम 60 से 70 किमी प्रति घंटा तक ही चल सकती है। स्पीड सीमा बढ़ाने के लिए अभी साइकिल में और भी उच्च क्वालिटी का टायर लगाया जाना बाकी है। अगर अभी इसे अधिकतम सीमा पर चलाई गई तो टायर ब्रस्ट कर चालक का संतुलन बिगड़ने और दुघर्टना होने की आशंका है।"
साइकिल में स्पीडोमीटर भी लगा है जो, साइकिल राइड करते वक्त इसकी गति सीमा बताता रहता है। साइकिल की स्पीड को देखते हुए इसमें बाइक की तरह आगे के व्हील में डिस्क ब्रेक लगाया गया है। इससे आप अधिकतम स्पीड में भी इसके इफेक्टिव वर्किंग सिस्टम का इस्तेमाल कर साइकिल को अचानक रोक सकते हैं।
लम्बी दूरी में भी महसूस नहीं होगी थकान
साइकिल का डिजायन कुछ ऐसा बनाया गया है कि आपको लंबी दूरी तक सफर तय करने के बाद भी थकान महसूस नहीं होगी। साइकिल की सीट से पैंडल और सीट से हैंडल बार की दूरी एरोडायनेमिक पोजिशन पर सेट किया गया है। इससे चालक साइकिल चलाते वक्त काफी आराम महसूस करता। पैंडल को इस तरह डिजायन किया गया है कि एक पैंडल मारने पर सामान्य साइकिल के दस पैंडल की शक्ति एक बार में ही जेनेरेट हो जाती है, जो साइकिल की गति बढ़ाने और राइडर के भरपूर ऊर्जा का इस्तेमाल करती है। गियर पिनियन रियर व्हील और फ्रंट व्हील दोनों में लगाया गया है। साइकिल चेन पर चलती है, बस पुराने बॉल बियरिंग के बदले प्रिसिसन केज्ड सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है, जो व्हील के मूवमेंट को और भी आसान करती है। साइकिल का कुल वजन भी सामान्य साइकिल जितना ही रखा गया है।
सामान्य साइकिल से थोड़ा सी ज्यादा होगी इसकी कीमत
सिराज बताते हैं,
"अभी हमने इस साइकिल में मार्केट से खरीदे गए कल-पुर्जे का इस्तेमाल किया है, जिसमें लगभग सात से आठ हजार रुपये का खर्च आया है, लेकिन साइकिल की स्पीड को देखते हुए इसकी पूरी बनावट और इस्तेमाल की जाने वाली सारी चीज़ें गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए, ताकि स्पीड के दौरान लगने वाले झटकों को साइकिल आसानी से बर्दाश्त कर सके। इसका मास प्रोडक्शन करने पर लागत मूल्य भी कम किया जा सकता है। ऑन रोड ग्राहकों के लिए ये 15 से 16 हजार तक उपलब्ध हो सकेगी।"
सिराज का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी स्तर पर इसे बनाने में किसी प्रकार की मदद मिलेगी तो वह इसकी कीमत और भी कम कर सकते हैं। फिलहाल उन्होंने इस साइकिल को पेटैंट कराने के लिए आवेदन दे रखा है। पेटैंट के बाद और उनकी इंजीनियरिंग की परीक्षा समाप्त होते ही वो इसके उत्पादन की दिशा में कार्य करना शुरू कर देंगें।
साइकिल एक समाधान अनेक
सिराज हुसैन का कहना है कि इस साइकिल से उन्होंने एक साथ कई समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की है। पहली समस्या है ऊर्जा संकट की। यानि जिस तरह से देश और दुनिया भर में पेट्रोल और डीजल जैसे प्राकृतिक ईंधनों का भंडार कम होता जा रहा है और भविष्य में गंभीर ऊर्जा संकट पैदा होने के हालात बन रहे हैं, ऐसे में इस दिशा में उनका ये कदम सार्थक होगा। दूसरी समस्या प्रदूषण की है। पेट्रोल और डीजल पर चलने वाले वाहनों से लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है, जबकि साइकिल से इस तरह का कोई खतरा नहीं है। इसके अलावा वाहनों के बढ़ते प्रयोग और इसपर निर्भरता के कारण लोगों को पैदल चलने या वर्कआउट करने का समय नहीं मिल पाता है। इससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। साइकलिंग अपने आप में एक तरह का एक्सरसाइज है, इसके इस्तेमाल से एक तरफ जहां इसको चलाने वाले का फिटनेस बना रहेगा वहीं उनके पैसे भी बचेंगे। इस तरह साइकलिंग से एक साथ प्रदूषण कंट्रोल, एनर्जी सेविंग, मनी सेविंग और हेल्थ मेन्टेन करना आसान हो सकता है। सिराज कहते हैं कि आज साइकिल इसलिए आउट ऑफ डेटेट हो चुकी है, क्योंकि लोगों के पास टाइम नहीं है। हर किसी को अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी होती है, इसलिए वह चाहकर भी साइकिल के बजाए बाइक या कार से अपने गणतव्य तक पहुंचना चाहते हैं। पिछले 100 सालों में भी साइकिल की स्पीड बढ़ाने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। इसलिए साइकिल रोजमर्रा की जिंदगी से बाहर हो गई। लेकिन हमने इसकी स्पीड बढ़ाकर इसे फिर से रोजाना की जिंदगी का एक हिस्सा बनाने की छोटी सी कोशिश की है।
कैसे मिली प्रेरणा
सिराज हुसैन कहते हैं कि उन्हें बचपन से ऐसी मोटरसाइकिल पसंद थी, जिनमें ज़रूरत के हिसाब से बदलाव किया गया हो। वह खुद अपनी बाइक को ऐसी ही करना चाहते थे, लेकिन उनके घर वालों ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। उनके घर वाले ने कहा था कि कुछ ऐसा करो जिससे लोगों की कोई मुश्किल आसान हो सके। बाइक को बदलाव के साथ तैयार करने वालों से तो भोपाल शहर भरा पड़ा है, तुम साइकिल में तब्दीली करो, इसे और बेहतर बनाने के लिए कुछ कर सको तो करो। सिराज कहते हैं कि उन्हें बस यहीं से साइकिल को बेहतर बनाने की प्रेरणा मिली थी। पहली बार उन्होंने 2011 में इस साइकिल का पहला वर्जन तैयार किया था, जब वह 11वीं में पढ़ते थे। लेकिन उस वक्त साइकिल की स्पीड इतनी नहीं थी और उसे चलाने में पीठ में दर्द भी होता था। बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया जहां उन्हें इन दोस्तों का सहयोग मिला, जिन्होंने साइकिल को आज इस स्टेज तक पहुंचाने में उनका साथ दिया है।