कैसे एक गांव 'नमामि गंगे' के सपने को साकार करने में जुटा है, निभा रहा है सफाई योजना में अहम भूमिका
कहते हैं नदियां जीवनदायिनी हैं और उसका प्रवाह जीवन के उत्थान के लिए आवश्यक है। कहा जाता है कि नदियों में अगर पानी है तो जीवन में गति है और जीवन में गति है तो देश का विकास तय है। कोई मानें या न मानें, जल ही जीवन है के स्लोगन को चलताऊ ढंग से लेने वाला राष्ट्र विकास की उस ऊंचाई को छू ही नहीं सकता, जिसकी वो कल्पना करता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर का पिघलना और नदियों का सिमटना और उसका अस्तित्व खत्म होना दोनों जारी है। ऐसे में ज़रूरी है नदियों की देखरेख करने की। इसी देखरेख में जुटा है पंजाब का एक गांव सुल्तानपुर लोदी सींचेवाल। ै मोदी सरकार उन 1600 गांवों से गुजरने वाली गंगा नदी को साफ करना चाहती है जो गंगा किनारे बसे हैं . इसके लिए पंजाब के सुल्तानपुर लोदी सींचेवाल गांव को मॉडल गांव बनाया गया है . यहां के लोगों ने 160 किलोमीटर काली नदी को फिर से जिंदा कर दिया है. काली नदी पंजाब में व्यास नदी की सहायक नदी है जो दोआबा क्षेत्र में बहती है . होशयारपुर से शुरु होकर 160 किलोमीटर का सफर तय कर हरिके बैराज में जा मिलती है. कहते हैं कि सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने इसी नदी के किनारे तप किया था और तीन दिन की जल समाधि के बाद गुरबाणी के मूल मंत्रों की रचना की थी. लेकिन ये नदी जैसी साफ हो गई है वैसी 16 साल पहले नहीं थी. आज नदी इतनी साफ है कि इसका पानी आप पी भी सकते हैं. बात जुलाई सन 2000 की है . संत बलबीर सिहं सींचेवाल ने जनता को साथ लेकर काली नदी को साफ करने का जिम्मा संभाला.
संत बलबीर सिंह सींचेवाल ने योरस्टोरी को बताया,
ये नदी नाले में बदल गई थी. गंदा पानी बदबू देता था पूरे इलाके का गंदा पानी इसी नदी में गिरता था. हमने तो एक शुरुआत की थी लेकिन लोगों का सहयोग मिलता गया और हमने फिर से काली को उसके पुराने रुप में लौटाया है.
काली नदी में 53 गांवों और 5 कस्बों का गंदा पानी गिरता था...काली नदी पूरी तरह से जलकुम्भी से बर्बाद हो चुकी थी. सफाई कार्य के तहत सबसे पहले नदी में मौजूद हजारों टन जलकुम्भी को हटाया गया . आसपास से लोग कारसेवा करने के लिए उमड़ पड़े. कोई अपना ट्रैक्टर लाया तो कोई जेसीबी मशीन. दिन रात कई सालों तक काम चला. देखते ही देखते नदी का रंग बदलने लगा. सबसे बड़ी बात है कि इस काम में सरकार का कोई सहयोग नही मिला. सारा खर्च गांव वाले खुद उठा रहे थे.
संत बलबीर सिंह सींचेवाल बताते हैं,
"जब लोगों को इस नदी के फिर से जीवित होने के फायदे नजर आने लगे तो खुद हीं आगे आने लगे. सभी गांव के लोगों ने पूरी मेहनत की और आज इस पानी ने लोगों की जिंदगी बदल दी है. पीने की पानी का संकट तो दूर हुआ हीं है खेती में भी फायदे हो रहे हैं."
सींचेवाल गांव की आबादी लगभग दो हजार है . सबसे पहले गांव में सीवरेज लाइन डाली गयी . सभी शौचालयों और नालियों को इस लाइन के साथ जोड़ा गया. तीन छोटे कुएं और एक बड़ा तालाब बनाने में तो ज्यादा पैसा खर्च नहीं होगा लेकिन सीवरेज लाइन डालने में जरुर लाखों का खर्च आएगा . अगर गांव की आबादी ज्यादा है तो एसटीपी यानि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना पड़ेगा जिसपर 70- 80 लाख तक की लागत आ सकती है .अब हालात है कि करीब अस्सी फीसद नालों का गिरना बंद हो गया है. पानी आसपास के खेतों में काम आता है. इसकी वजह से इलाके का जल स्तर डेढ़ मीटर उपर आ गया है. साथ हीं सेम की समस्या से छुटकारा मिला है और पैदावार भी बढ़ी है, जिसकी वजह से किसानों को मुनाफा भी मिल रहा है.आसपास हजारों एकड़ में इसका पानी खेती के काम आ रहा है . आठ हजार रुपये प्रति एकड़ प्रति साल का फायदा किसानों को हो रहा है . मलकीत सिंह जैसे किसान की पैदावार और मुनाफा 25 फीसद तक बढ़ गया है .मलकीत सिंह कहते हैं,
"पहले तो गंदे पानी से फसल ही जल जाती थी लेकिन अब हम साल में ती-तीन फसल तो लेते हीं है साथ हीं हमारी उपज भी 25 फीसदी बढी है."
नमामि गंगे का काम संभाल रहीं केंद्रीय मंत्री उमा भारती काली नदी की सफलता से बेहद प्रभावित हैं. वो चाहती हैं कि काली नदी की तरह ही 1600 गांवों से होकर बहने वाली गंगा भी साफ हो सके. उमा भारती ने सींचेवाल मॉडल को आदर्श बनाया है. उमा भारती ने गंगा किनारे बसे 1600 गांवों को साफ करने का फैसला किया है . उमा भारती का कहना है, "पैसों की कमी नहीं , जन सहयोग की जरुरत है. गांव साफ होंगे तो गंगा भी साफ होगी. जब हम ये कहते हैं कि नदी को साफ करना है तो इसका मतलब नदी किनारे बसे गांवों शहरों के गंदे पानी को साफ करने से होता है."
सींचेवाल गांव के सरपंच रजवंत कौर बताती हैं कि पहले यहां रेत के टिब्बे हुआ करते थे लेकिन अब एक साल में तीन तीन फसलों का आनंद किसान ले रहे हैं .साथ हीं गांव कई बीमारियों से मुक्त हो गया है.
गंगा सफाई के लिए नमामि गंगे योजना शुरु करने वाली मोदी सरकार ने सरपंचों को सींचेवाल गांव प्रशिक्षण के लिए भेजना भी शुरु कर दिया है. अभी तक सौ से ज्यादा सरपंच सींचेवाल गांव जाकर खुद अपनी आंखों से गंदा पानी साफ करने की विधि को देख चुके हैं. बाबा बलबीर सिंह सरपंचों को बड़ी बारीकी से सारी तकनीत समझाते हैं कि कैसे गांव भर का गंदा पानी एक जगह आएगा , कैसे तीन अलग अलग कुओं से गुजरेगा , कैसे भारी चीजें नीचे बैठती चली जाएंगी और गंदा पानी खुद को साफ करता जाएगा . बाकी का काम सूरज की किरणें और कुदरत कर देगा .
लेकिन गंगा को सिर्फ 1600 गांव ही गंदा नहीं कर रहे हैं . हरिद्वार , कानपुर , इलाहाबाद , बनारस, पटना जैसे छोटे बड़े 118 शहरों से कुल मिलाकर 700 करोड़ लीटर गंदा पानी रोज निकलता है . इसमें से सिर्फ 212 करोड़ लीटर पानी को ही साफ करने के एसटीपी यानि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे है . इन 51 संयंत्रों में से भी 15 बंद हैं और बाकी 36 भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं .