द्वारिका प्रसाद की रचनाओं पर थी श्यामनारायण पांडेय की छाप
माहेश्वरी ने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। उन्होंने छह काव्यसंग्रह और दो खंड काव्य रचे। इसके अलावा तीन तीन कथा संग्रह और लगभग इतनी ही पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं।
उनका मानना था कि मनुष्य के जीवन का अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश देने वाला होना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने सभी जिलों में यह गीत अपनी होर्डिगों में प्रचारित किया था।
वीर रसावतार पंडित श्याम नारायण पांडेय ने एक बार मुझे बताया था कि मैंने माहेश्वरी से पहले अपने 'जौहर' प्रबंध काव्य में एक प्रयाण गीत लिखा था।
बाल-कविताओं के अमर रचनाकार द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, जिनकी आज (29 अगस्त) पुण्यतिथि है, उनके साथ एक अनोखा वाकया बाल साहित्यकार कृष्ण विनायक फड़के का जुड़ा हुआ है। फड़के ने अपनी अंतिम इच्छा जताई थी कि जब उनकी मृत्यु हो जाए तो महाप्रयाण में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का बालगीत पढ़ा जाए। उनका मानना था कि मनुष्य के जीवन का अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश देने वाला होना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने सभी जिलों में यह गीत अपनी होर्डिगों में प्रचारित किया था। इस पर उर्दू में भी एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था, 'हम सब फूल एक गुलशन के।'
उत्तर प्रदेश के शिक्षा सचिव रहे माहेश्वरी आगरा के रहने वाले थे। 29 अगस्त 1998 को बाथरूम में फिसल जाने से उनका देहांत हो गया था। आगरा के केंद्रीय हिंदी संस्थान को वह शिक्षा का तीर्थस्थान मानते थे। इसमें प्राय: भारतीय और विदेशी हिंदी छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का ज्ञान दिलाने में माहेश्वरी का अवदान हमेशा याद किया जाता रहेगा। माहेश्वरी ने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। उन्होंने छह काव्यसंग्रह और दो खंड काव्य रचे। इसके अलावा तीन तीन कथा संग्रह और लगभग इतनी ही पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। फड़के जिस कविता को अपनी शवयात्रा में सुनाने का अपने परिजनों, प्रियजनों से आग्रह कर गए थे, उसका शीर्षक है- हम सब सुमन एक उपवन के। यह पूरा प्रयाण गीत इस प्रकार है-
एक हमारी धरती सबकी जिसकी मिट्टी में जन्मे हम, मिली एक ही धूप हमें है, सींचे गए एक जल से हम। पले हुए हैं झूल-झूल कर पलनों में हम एक पवन के, हम सब सुमन एक उपवन के।
माहेश्वरी जी का ऐसा ही एक और कालजयी गीत है- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। वीर रसावतार पंडित श्याम नारायण पांडेय ने एक बार मुझे बताया था कि मैंने माहेश्वरी से पहले अपने 'जौहर' प्रबंध काव्य में एक प्रयाण गीत लिखा था। उनका कहना था कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने मेरे उसी गीत के बिंब लेकर अपना गीत कोर्स में लगा लिया है। श्यामनारायण पांडेय का प्रयाण गीत इस प्रकार है-
अन्धकार दूर था, झाँक रहा सूर था। कमल डोलने लगे, कोप खोलने लगे। लाल गगन हो गया, मुर्ग मगन हो गया। रात की सभा उठी, मुस्करा प्रभा उठी। घूम घूम कर मधुप, फूल चूमकर मधुप। गा रहे विहान थे, गूँज रहे गान थे।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त पांच पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और खंड काव्यों की भी रचना की। बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ और प्रवर्तन करने वालों के रूप में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और स्तर के उन्नयन के लिए अनथक प्रयास किए। उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर उन्हे याद करते रहने के उपक्रम दिए। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े जतन से वृत्त चित्र बनाया। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उसे उन्होंने पूरा किया।
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