'मेरी गलतियां आप मत दोहराना', स्टार्टअप के लिए ख़ास सलाह
एक उद्यमी का कबूलनामा...
ये कबूलनामा है प्रियदीप नाम के एक ऐसे बिजनेसमैन का, जिन्हें प्रॉबल्म्स सॉल्व करने की आदत थी और यही आदत उन्हें एक ऐसे मुकाम पर ले जा पहुंची, जहां इज्जत से लोग सलाम करते हैं, लेकिन वहां तक पहुंचने से पहले जो गलतियां उन्होंने कीं, उससे हर स्ट्रगलर को सीख लेनी चाहिेए. जानते हैं क्या थी वो गलतियां, खुद प्रियदीप के शब्दों में...
मुझे बचपन से लेकर अब तक हमेशा से खुद पर यकीन रहा है। मैं सोचता था कि मैं जिंदगी में अच्छी चीजें करने और नेतृत्व करने के लिए ही बना हूं। मैं स्कूल में हाउस कैप्टन बना था और मेरे हाउस ने उस साल पहली बार सबसे बड़े पुरस्कार को हासिल किया था। कॉलेज में मैं क्लब प्रेसिडेंट बना और उस साल क्लब का रेवेन्यू पिछले सालों के मुकाबले 16 गुना बढ़ गया और सदस्यता में भी 7 गुना इजाफा देखने को मिला।
कॉलेज की पढ़ाई खत्म हुई, तो मुझे लगा कि मुझसे नौकरी नहीं हो पाएगी। मुझे हमेशा से अपने हिसाब से चलने की आदत रही ना कि दूसरों के बनाए रास्तों पर। इसलिए मेरे लिए उद्यमी बनना ही सबसे ज्यादा मुफीद था। फाइनल सेमेस्टर के दौरान ही मैंने आभाष के साथ ज्ञान लैब की शुरुआत की। अगले महीने सोनाली भी हमसे जुड़ गई।
हम कुछ ऐसा करना चाहते थे जो सार्थक हो। शुरुआत में मुझे बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि मैं परंपरागत तरीके से नहीं बल्कि अपने हिसाब से कुछ करना चाहता था। हमारे स्टार्टअप का मकसद पैसा बनाना नहीं था बल्कि असर पैदा करना था। ये क्वालिटी एजूकेशन को मुमकिन बनाने और देश की भावी पीढ़ी को ज्यादा रचनात्मक और इनोवेटिव बनाने के लिए था।
आम तौर पर शुरुआत में स्टूडेंट्स के किसी भी स्टार्टअप के सामने जो दिक्कतें आती हैं वो हमारे सामने भी आईं। हमारे पास विजन था मगर उसे व्यावहारिक जामा पहनाने का कोई आइडिया नहीं था। जैसे-तैसे हमने स्कूलों में लर्निंग सेंटर शुरू करने की सोची क्योंकि हमें लगता था कि इसमें तेजी से बढ़ने का मौका है। हम पूरी तरह से हार्डवेयर एड टेक स्टार्टअप थे। हमने भारत के एक टॉप स्कूल चेन के साथ शुरुआत की और 2011-12 और 2012-13 में उन स्कूलों में बीटा टेस्ट आयोजित किया। इससे हमें यकीन हो गया कि हमारे प्रोडक्ट में गंभीर असर पैदा करने की शानदार क्षमता है।
अब हम ज्ञान लैब को बाजार में ले जाने को तैयार थे। 500 से ज्यादा छात्रों का बीटा टेस्ट, 450 से ज्यादा लाइब्रेरियों में 8 से ज्यादा सब्जेक्ट से जुड़े काम, 10 अवॉर्ड, डेल एजूकेशन चैलेंज 2012 का पुरस्कार और पॉवर ऑफ आइडिया 2012 का पुरस्कार; धमाकेदार एंट्री के लिए भला और क्या चाहिए था।
लेकिन कुछ खराब फैसलों और कुछ बैड लक की वजह से हमारा स्टार्टअप बेहद बुरी स्थिति में फंस गया। जनवरी 2013 में हमने बेंगलुरु जाने का फैसला किया ताकि हम अपनी सेवाओं का विस्तार कर सकें और अपने कस्टमर यानी स्कूलों की सीरीज को और बेहतर सेवाएं दे सकें।
इस तरह बेंगलुरु के बाहरी हिस्से में येलाहांका में एक ऑफिस लेने के साथ ही हमारे खराब फैसलों की शुरूआत हुई। हमने सस्ती जगह सोचकर वहां ऑफिस लिया। हम 5 महीने तक समय बर्बाद करते रहे और ऑफिस का किराया चुकाते रहे। आखिरकार हमने ऑफिस को एचएसआर लेआउट में शिफ्ट किया, जो ज्ञान लैब के लिए बेहतर जगह थी।
इस बीच हम बहुत सारे स्कूलों के साथ डील के लिए बातचीत कर रहे थे। लेकिन, हमें तब झटका लगा जब एक दूसरी कंपनी को हम पर तरजीह दी गई और हमारे स्टार्टअप को छोटे-मोटे काम दिए गए। हमने इन स्कूलों में लैब स्थापित करने का काम शुरू कर दिया मगर ये एक और गलत फैसला था। हमें आर्थिक रूप से बहुत नुकसान झेलना पड़ा।
उसी दौरान एक इनवेस्टर ने ज्ञान लैब में रूचि लेनी शुरू कर दी। इससे हम बहुत उत्साहित हुए लेकिन 6 महीने बाद तक हम ये नहीं समझ पाए कि आखिर वो इनवेस्टर हमसे चाहता क्या था। दूसरी तरफ हम जगह-जगह स्कूलों में जाते थे मगर मनमाफिक रिस्पॉन्स नहीं पाते थे। इन सबमें हमारा खर्च भी बहुत होता था।
हमारी आखिरी और सबसे बड़ी ग़लती ये थी कि हम ये मानकर चल रहे थे कि हम भी घाटे में चल रहे दूसरे स्टार्टअप की तरह कुछ पूंजी का इंतजाम कर लेंगे। लेकिन, हम ये समझ पाने में नाकाम रहे कि हम एक घाटे में चल रहे हार्डवेयर पर आधारित एजूकेशन टेक स्टार्टअप हैं। हमारे लिए फंड पाने के नियम अलग थे। इस तरह दिसंबर 2013 आते-आते ज्ञान लैब करीब-करीब कैशलेस हो चुका था।
हमारी हालत ये हो गई थी कि हमारे पास बिजनेस में आमूल-चूल परिवर्तन के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। इसलिए हमारी कोर टीम और सलाहकारों ने इस पर मिलकर काम करना शुरू किया। ज्ञान लैब को एक बेहतर योजना बनाने में हमें कुछ दूसरे लोगों की भी मदद मिली।
आगे जो हुआ उससे बहुत सीख मिली
1. ज्ञान लैब का कोर ऑपरेशन बदल गया। अब हम B2B यानी स्कूलों को अपनी सेवाएं देने की बजाय B2C यानी सीधे अभिभावकों और छात्रों को सेवाएं देने लगे। इसका मतलब ये नहीं था कि हम स्कूलों को सेवाएं नहीं दे रहे हैं, लेकिन अब हम हमारे वास्तविक कस्टमर को प्रभावित करने पर फोकस करेंगे।
2. सर्विस मॉडल नहीं अब प्रोडक्ट मॉडल-सर्विस यूज कर रहे कस्टमर की तरफ से भुगतान नहीं किए जाने या भुगतान में देरी से कंपनी को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि EduComp जो 2010 में बिलियन डॉलर कंपनी के रूप में लिस्टेड थी उसे भी ये महसूस करना पड़ा। हमने भी कुछ हद तक इसका सामना किया मगर हम इसका और सामना नहीं करना चाहते थे।
3. शुरू-शुरू में हम पर स्कूलों की तरह से कुछ नियम-कायदे थोपे गए जिससे ज्ञान लैब प्रोग्राम बच्चों पर उम्मीद के मुताबिक असर नहीं छोड़ पाया। अब हमने फैसला किया है कि हम सिर्फ उन्हीं स्कूलों के साथ काम करेंगे, जो हमें अपना प्रोग्राम चलाने में 100 फीसदी आजादी दें क्योंकि असर के बगैर ज्ञान लैब प्रोग्राम का कोई मतलब ही नहीं है।
4. दिसंबर 2013 के बाद से हमारा 100 फीसदी फोकस कस्टमर पर है ना कि निवेशकों पर। अगर फोकस सही हो तो सही समय पर इनवेस्टमेंट भी आ ही जाएगा। अच्छी-खासी तादाद में सामाजिक कार्यों के लिए फंड देने वाले हमसे संपर्क कर रहे हैं। इन सबसे हमें वाकई अच्छा लगता है।
5. किसी भी स्तर पर घाटे का कोई भी सौदा ना करें। हमने स्कूलों में अपने उन केंद्रों को जो काम करना तक भी शुरू नहीं कर पाए थे उन्हें बंद कर दिया। शुरुआती दौर में किसी भी स्टार्टअप के लिए कैश फ्लो ही सब कुछ है। कैश फ्लो इंसान के भीतर खून की तरह है, जिसका फ्लो जिंदा रहने के लिए जरूरी है।
6. हमने अपने काम-काज को बेंगलुरु और कोटा तक ही सीमित रखा है, जिससे हमें अपने खर्चों को कम करने में सहूलियत हुई। हमें अपना विस्तार वहीं तक करना है, जहां तक हम फोकस कर सकें।
7. हम एक बार में एक महीने तक की छुट्टी सुनिश्चित कर रहे है। इससे हमारा अस्तित्व कभी भी सवालों में नहीं होगा। हां, ग्रोथ थोड़ा स्लो जरूर हो सकता है, मगर हम हर दिन के साथ लोगों पर अपना असर और गहरा करेंगे।
8. हमने महसूस किया कि इस क्षेत्र में विश्वसनीयता की कमी है। बाहर से तो ये सेक्टर और इसमें संभावनाएं बेहद आकर्षक लगती हैं। इस वजह से इस सेक्टर में बहुत सारे स्टार्टअप की बाढ़ आ गई है, जिनमें बहुत सारे ऐसे हैं जिनके प्रोग्राम बेहद घटिया हैं और वो प्रोडक्ट के लिए बहुत ज्यादा चार्ज भी कर रहे हैं। इसलिए हमारा फोकस क्रेडिबिलिटी है।
मैं दूसरे क्षेत्र में बिजनेस कर रहे लोगों से कुछ नहीं कह सकता मगर वो लोग जो एजूकेशन सेक्टर में अच्छे मकसद से काम कर रहे हैं उनके लिए मैं अपने अनुभवों और सबक के आधार पर कुछ जरूर कहना चाहूंगा।
आपका उद्देश्य एक बिलियन डॉलर कंपनी बनने पर नहीं होना चाहिए बल्कि आपका उद्देश्य सच्चा असर होना चाहिए।
इनवेस्टमेंट के लिए कंपनी मत बनाइए, इससे आप लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे। आपकी कोशिश देश की भावी पीढ़ी को क्वालिटी प्रोग्राम मुहैया कराने की होनी चाहिए।
कैश फ्लो और बॉटम-लाइन आपका सच्चा मंत्र होना चाहिए। इस सेक्टर में जब आप घाटे में हों तो टॉप लाइन ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। आखिरकार, आप अपना पूरा कैश बर्बाद कर लेंगे। ये निश्चित कीजिए कि हर ट्रांजेक्शन के बाद आप ब्रेक जरूर लें। अगर आप पैसा गंवा रहे हैं, तो कुछ भी करने का क्या मतलब।
किसी एक बड़े क्लाइंट से ही अपनी सारी उम्मीदें ना पालें। आय के कई स्रोत बनाएं।
ग्राहक समय पर भुगतान करें ये सुनिश्चित कीजिए। अगर आप ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो आपका कैश फ्लो बना रहेगा।
आप एक मकसद के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा रहे हैं। इसलिए किसी को भी (कस्टमर, वेंडर) को अपना बेजा फायदा ना उठाने दें। जिस किसी से भी सीख सकते हैं ज्यादा से ज्यादा सीखिए। शुरुआत में गलतियां कीजिए मगर उन गलतियों को मत दोहराइए।
नाकामियों ने हमें इतना कुछ सिखाया जो हम शुरुआती दौर में ही कामयाबी मिलने के बाद शायद नहीं सीख सकते थे। नाकामियों का सामना तो मुश्किल था मगर हमने ज्ञान लैब में दुश्वारियों के बीच बहुत कुछ सीखा, जो हमें और मजबूत बनने की इच्छा शक्ति देता है।